नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

सुंदरवन में सात साल - बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय, भुवनमोहन राय | जयदीप शेखर | साहित्य विमर्श प्रकाशन

संस्करण विवरण 

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 126 | प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन | अनुवाद: जयदीप शेखर | मूल भाषा: बांग्ला 

पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श | अमेज़न 



कहानी 

13 वर्षीय नीलू राय अपने दादा के साथ घूमने आया था। उसके दादा सागर द्वीप में तीर्थाटन करने आए थे और उनकी अपने सहायकों को ताकीद थी कि नीलू की जो जिद हो वो पूरी की जाए।

पर मेले में घूमते घूमते नीलू बर्मी अकारानी जल दस्यु की नजर चढ़ गया और उन्होंने उसका अपहरण कर लिया।

नीलू को सात साल बाद ही अपने घर लौटने का मौका लगा। 

ये सात साल नीलू ने सुंदरबन के जंगलों में बिताए।

आखिर क्यों नीलू अराकानी जल दस्यु की नजर में चढ़ा?

नीलू के सात साल कैसे बीते?

नीलू अपने घर आखिर कैसे लौटा?


मुख्य किरदार 

नीलू राय - एक तेरह वर्षीय लड़का
मउंड-नू (मोनू) - नीलू का दोस्त
टूंग - पे - नू  - बर्मी दस्यु। मोनू के पिता
निवारण मांझी - मोनू और नीलू का दोस्त और एक मांझी का बेटा
भैरव चंद्र मजूमदार - नीलू के दादा
बदरूदीन - एक बूढ़ा मांझी जिससे नीलू सुंदरबन से निकलने के बाद संपर्क में आया था
कालीवर राय - एक वृद्ध जो कि काछिम खाली में रहते थे और कछुओं के खोल का व्यापार करते थे



मेरे विचार

'सुंदर बन में सात साल' लेखकद्वय बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय और भुवनमोहन राय का लिखा किशोर उपन्यास है। मूलतः यह उपन्यास बांग्ला भाषा में लिखा गया था। उपन्यास के लिखे जाने की कहानी भी रोचक है। उपन्यास की शुरुआत भुवनमोहन राय ने बाल पत्रिका सखा ओ साथी के लिए 1895 में की थी। वह इस पत्रिका के संपादक थे। चार भाग लिखने के पश्चात यह रचना अधूरी रही और फिर इस रचना को पूरा करने का कार्यभार 1950 से पहले बिभूतिभूष्ण बंद्योपाध्याय पर आया जिन्होंने अपनी शैली में ढाल कर इसे पूरा किया। यानी उपन्यास का बीस प्रतिशत भाग 1895 में लिखा गया और लगभग 80 प्रतिशत भाग 1950 के आसपास लिखा गया। पुस्तक रूप में यह रचना 1952 में प्रथम बार प्रकाशित हुई और अब इसका हिंदी अनुवाद 2022 में साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। अनुवाद जयदीप शेखर द्वारा किया गया है। 

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प्रथम पुरुष में लिखे गए इस उपन्यास की कहानी का कथावाचक नीलू है। नीलू, जो कहानी की शुरुआत में तेरह वर्ष का रहता है, सुंदरवन में बिताए अपने सात सालों की कहानी सुना रहा है। वह कैसे सुंदरवन पहुँचा, वहाँ उसके साथ क्या क्या हुआ यह वह बताता चलता है। 

काराकानी जल दस्यु द्वारा अपहरण किए जाने के बाद कैसे वो दस्यु के बेटे मोनू और उनके मांझी के बेटे निवारण के साथ जंगल में कई रोमांचकारी अनुभवों से गुजरता है यह देखना रोचक रहता है। इन अनुभवों में उसका सामना बाघ, गेंडे, अजगर, प्राणघाती मछलियों, ऊँची ऊँची लहरों इत्यादि से होता है। इनके यह अनुभव उपन्यास में रोमांच की कमी नहीं होंने देते हैं। 

सुंदरबन से लौटते हुए भी उसे कई रोचक और खतरनाक अनुभव होते हैं। ऐसे अनुभव जो उसके प्राण खतरे में डालते हैं और ऐसे अनुभव भी जो उसे जीवन भर की शिक्षा दे जाते हैं।

उपन्यास के किरदार जीवंत हैं। डाकुओं के परिवार किस तरह आपस में आम परिवारों जैसे रहते हैं यह इधर दिखता है। कैसे उनके अंदर भी मानवीय भावना होती हैं यह भी इधर दिखता है। नीलू, मोनू और निवारण की दोस्ती मन मोह लेती है। उनके बीच लड़ाई भी होती है और प्रतिस्पर्धा भी लेकिन इससे ऊपर उनकी मैत्री रहती है जिसके चलते वो अपनी सारी परेशानियों से पार पा जाते हैं। आखिर में आए कालीवर राय नामक बुजुर्ग  का किरदार रोचक है। वह नीलू को जीवन की जीने की शिक्षा दे जाते हैं। जीवन में खुशी पाने के लिए हम लोग चीजों के पीछे भागते रहते हैं लेकिन ये खुशी क्षणिक होती है और दिन प्रति दिन हमें खाली और खोखला ही करती रहती है। ऐसे में हमें परमानंद मिल जाए तो कैसे संसार की सभी वस्तुएँ जिनके पीछे लोग पागल है अपना महत्व खो देती हैं और कैसे उनके बिना भी खुश रहा जाता है ये उन वृद्ध को देखकर जाना जाता है।

कथानक की कमी की बात करूँ तो एक चीज थी जो मुझे समझ नहीं आई। कहानी में बताया गया है कि नीलू अमीर घर का है इसलिए उसका अपहरण किया गया है। फिर आगे ये बताया जाता है कि ऐसे अपहृत बच्चों को आगे जाकर बेच दिया जाता है। अब यहाँ ये समझ नहीं आता है कि अगर उसका अपहरण किया गया तो क्या उसकी फिरौती माँगी गई? क्योंकि माँगने की बात उपन्यास में नहीं दिखती। और अगर फिरौती का कोण नहीं था तो बच्चा अमीर हो या गरीब उससे क्या ही फर्क पड़ेगा। या फिर क्या अमीर बच्चों की कीमत बाजार में अधिक मिलती थी? ऐसा भी नहीं दर्शाया गया है। यह बातें थोड़ा मन में संशय पैदा करती हैं।

कहानी की भाषा शैली कहीं कहीं थोड़ा क्लिष्ट हो जाती है। कई जगह कठिन शब्दों के अर्थ दिए भी हैं लेकिन कई जगह नहीं भी दिए हैं। लेकिन यह फिर भी यह इतना फर्क नहीं डालता है। बशर्ते पाठक उन शब्दों का अर्थ नेट में खोजने की परेशानी उठा ले। 

अंत में यही कहूँगा कि सुंदरवन में सात साल एक रोमांचक कथा जो कि सुंदरवन के जंगलों, वहाँ रह रहे जीवों और कुछ हद तक वहाँ रह रहे लोगों के जीवन से आपका परिचय करवाता है। अगर आपने नहीं पढ़ा है तो आपको पढ़कर देखना चाहिए। अगर आपके यहाँ कोई तेरह वर्ष से ऊपर का किशोर है तो उसे भी इसे पढ़ाना चाहिए।


पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श | अमेज़न 


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