नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

तलाश | सुरेखा पाणंदीकर | चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 48 | प्रकाशक: चिल्ड्रेनस बुक ट्रस्ट | चित्रांकन: सौरभ पांडेय

तलाश | सुरेखा पाणंदीकर | चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट

कहानी

अनाथालय में काम करने वाली पार्वती को जब पता चला कि पुरी मैडम हिंदुस्तान से आई हैं तो वह उनके पास अपनी परेशानी लेकर पहुँची। 

पार्वती, उसकी माँ जानकी और उसके छोटे भाई बच्चू को पार्वती के चाचा और दादा ने घर से निकाल दिया था। उनका कहना था कि क्योंकि पार्वती के पिता की मृत्यु हो चुकी थी इसलिये वह उनका खर्चा नहीं उठा सकते थे। 

तब से पार्वती अपनी माँ और भाई के साथ इस अनाथालय में रह रही थी। 

पर अब पार्वती को पता चल गया था कि उसके पिता जिंदा थे और उसके रिश्तेदार उसके पिता के भेजे पैसे हड़प रहे थे।

पार्वती अब अपने पिता को ढूँढने हिंदुस्तान जाना चाहती थी और इस काम के लिए पुरी मैडम की मदद चाहती थी। 

क्या पुरी मैडम ने उसकी मदद की? 
क्या पार्वती को अपने पिता के विषय में जो पता लगा वो सही था?
क्या पार्वती अपने पिता को पा सकी?


मुख्य किरदार

पार्वती - एक 10-12 वर्षीय लड़की 
जानकी - पार्वती की माँ 
बच्चू - पार्वती का छोटा भाई 
राम सिंह थापा - पार्वती के पिता जो भारत की फौज में हवलदार थे 
मैडम राणा - अनाथालय की निदेशक 
मैडम पुरी - हिंदुस्तान से आई स्त्री 
रेणुका - मिसेज पुरी की जानपहचान की अफसर 
मोनिका - मिसेज पुरी की बहु 
बंटी - मोनिका का बेटा 
परमजीत - पुरी का बेटा
भोपू सिंह - मिसेज पुरी की सोसाइटी का चौकीदार 
विजया - कमांडर की पत्नी 
विक्की - कमांडर का बेटा 
कप्तान जगजीत सिंह - डोगरा रेजीमेंट की टुकड़ी का कप्तान जिसके साथ पार्वती को भेजा गया था 
गोपाल सिंह गुरुंग - वह फौजी जिसे कप्तान ने पार्वती की जिम्मेदारी सौंपी थी 
डॉक्टर पुनीता राय - मिलिट्री अस्पताल में डॉक्टर


मेरे विचार

'तलाश' (Talash) 'सुरेखा पाणंदीकर' (Surekha Panandikar) का लिखा बाल उपन्यास है जो कि 2017 में प्रथम बार चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किया गया था। 2021 और 2022 में इसका पुनः मुद्रण किया गया था। 

उपन्यास के कहानी नेपाल से शुरू होती है जहाँ पार्वती नाम की दस बारह वर्षीय लड़की भारत से आई महिला मिसेज पुरी से मदद की गुहार करती है। वह अपने पिता को तलाश करने के लिए उन्हें कहती है। वह पिता जो भारत में फौज की नौकरी करते हैं और जिन्हें मरा बताकर पार्वती की माँ और छोटे भाई को उसके चाचा और दादा ने घर से निकाल दिया है। अब पार्वती को भारत जाकर अपने पिता को लाने की इच्छा है। अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए वह क्या करती है? भारती में उसके साथ क्या होता है और क्या वह अपने पिता से मिल पाती है? इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर इस उपन्यास में दिए गए हैं। 

छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित यह उपन्यास शुरू से लेकर आखिर तक पठनीय है। पार्वती एक बहादुर बच्ची है जो कि अपनी साफगोई, अपनी ईमानदारी, अपनी स्वाभिमानी प्रवृत्ति और अपनी मासूमियत से पाठक और उपन्यास के कई किरदारों का दिल जीत लेती है। पाठक इस किरदार से जुड़ सा जाता है और उसकी इस यात्रा में उसका साथी बन जाता है। 

कहानी में पार्वती के समक्ष कई मुसीबतें आती हैं जिनका वह बहादुरी से सामना करती है। उसका सामना ऐसे स्वार्थी लोगों से होता है जो कि उसका शोषण करना चाहते हैं तो साथ ही ऐसे लोगों से भी होता है जो कि इंसानियत से लबालब भरे हुए हैं और उसकी मदद करते हैं। यह लोग दर्शाते हैं कि इंसानियत का पढ़ाई से लेना देना नहीं होता है। यह तो व्यक्ति का स्वभाव होता है। उपन्यास के किरदार सजीव हैं और जीवंत से अपने आस पास के लोगों जैसे प्रतीत होते हैं।

पार्वती जिस प्रकार मुसीबतों से जूझते हुए और अपने व्यवहार से लोगों के दिल जीतते हुए  अपनी मंजिल की तरफ बढ़ती है वह कहानी में आपको बांधकर रखता है। 

उपन्यास चूँकि बच्चों के लिए लिखा गया है तो इसकी भाषा सरल है। कथानक भी सरल है जो कि पाठक वर्ग के हिसाब से ही है। 

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो कथानक में दो बातें थीं जो मुझे खटकी थीं। उपन्यास में एक प्रसंग मिसेज पुरी के घर का होता है। मिसेज पुरी एक समझदार महिला थीं। वह इतनी सशक्त थीं कि दूसरे देश जाकर भी कार्य कर रही थीं। ऐसे में यह लाजमी ही है कि ऐसी महिला अपने घर के लोगों के व्यवहार से परिचित होंगी और इस कारण जिसकी वो मदद करना चाह रही हैं उसे ऐसे माहौल में नहीं लाएंगी जहाँ उसके शोषण की गुंजाइश हो। पर यहाँ वह महिला असहाय सी प्रतीत होती हैं जो कि उनके किरदार से मेल खाता नहीं लगता है। अगर उनके इस व्यवहार का कोई पुख्ता कारण लेखिका ने दिया होता तो शायद बेहतर होता।

उपन्यास की दूसरी कमी एक प्रसंग है जिसमें एक किरदार एक हथगोला फेंकता है और वह फट जाता है। जहाँ तक मेरी जानकारी है हथगोला तब तक नहीं फटता जब तक कि उसका पिन निकाल कर न फेंका जाए। लेकिन ऐसा कुछ इधर होते न दिखता है। जो किरदार इधर हथगोला फेंकता  उसने उस दिन से पहले हथगोला नहीं देखा होता है और वह इस बात से भी परिचित नहीं होता है कि वह काम कैसे करता है। ऐसे में उसका बिना पिन निकाले फेंकना लाजमी है। पर उसका फटना तार्किक नहीं लगता है। हाँ, अगर किरदार को उसके कार्य करने की प्रक्रिया की जानकारी लेते हुए और फिर सही से फेंकते हुए दर्शाया होता तो बेहतर होता।

 _____ बाईं तरफ की झाड़ियों की तरफ गोलियाँ चला रहे थे। तभी ____ को हथगोलों का ख्याल आया। उसने ____ की रकसैक में हाथ डालकर गोला निकाला और दूसरी तरफ की खिड़की से बाहर झुककर पूरी ताकत से हथगोला फेंका। गोला नीचे गिरा। 
“पर फटा क्यों नहीं,”दूसरा फेंकती हूँ। ___ सोच ही रही ठि कि धड़ाम से गोला फटा, धुआँ उठा। (पृष्ठ 41)
पुस्तक की तीसरी बात जो मुझे खटकी वह यह थी कि इसमें लेखिका 'सुरेखा पाणंदीकर' (Surekha Panandikar) का परिचय नहीं दिया गया है। अक्सर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट (Children Book Trust) से प्रकाशित पुस्तकों में रचनाकार और उपन्यास के लिए चित्र बनाने वाले चित्रकार का परिचय दिया होता है लेकिन इधर 
ऐसा नहीं है जो कि खटकता है। मुझे लगता है लेखिका और चित्रकार सौरभ पांडेय का परिचय इधर होना चाहिए था । 

ऊपर लिखी छोटी छोटी कमियाँ ही पुस्तक में मुझे नजर आईं।

उपन्यास में सौरभ पांडेय (Saurabh Pandey) द्वारा चित्रित रंगीन चित्र भी मौजूद है जो कि बाल पाठकों के लिए पुस्तक का आकर्षण बढ़ा देते हैं। यह रंगीन चित्र उपन्यास को पढ़ने के अनुभव को बढ़ा देते हैं। 

अंत में यही कहूँगा सुरेखा पाणंदीकर (Surekha Panandikar) का उपन्यास 'तलाश' (Talash) एक पठनीय उपन्यास है। उपन्यास का कथानक आपको बांधने में सक्षम है और आप इसे अंत तक पढ़ते चले जाते हैं। उपन्यास बाल पाठकों को पसंद आएगा और पार्वती का किरदार उन्हें उसके जैसे हिम्मती,साफदिल और ईमानदार बनने के लिए प्रेरित करेगा। 


नोट:

यह किताब में 2023 में हुए नई दिल्ली पुस्तक मेले में खरीदी थी। इस पुस्तक मेले में जाने का अनुभव भी मैंने लिखा था। वह अनुभव आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:



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