नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

मिट्टी मेरे देश की | संजीव जायसवाल 'संजय' | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 117 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्र: मित्रारुण हालदार

पुस्तक लिंक: इग्ज़ाटिक इंडियन आर्ट



कहानी 

संकल्प, विपुल, मान्या, पूजा और उनके जैसे कई बच्चे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के जिलों से नैनीताल 'कुमायूँ यूथ एसोसिएशन' द्वारा आयोजित दो हफ्ते के एक ट्रेकिंग कैंप के लिए इकट्ठा हुए थे।

इस कैंप के दौरान उन्हें उत्तराखंड में कालागढ़ नामक जगह से आगे के पहाड़ी इलाकों में दो हफ्ते ट्रेकिंग का प्रशिक्षण और ट्रेकिंग करनी थी।

सभी जानते थे कि ये एक रोमांचक अनुभव होने वाला है पर वो ये नहीं जानते थे कि यहाँ उनके साथ ट्रेकिंग से इतर भी ऐसी घटनाएँ होंगी जो उनकी इस यात्रा को हमेशा के लिए यादगार बना देंगी।


किरदार 

संकल्प - एक लड़का जो नैनीताल ट्रेकिंग के लिए लखनऊ से आया था
विपुल - लखीमपुर से आया लड़का
मान्या, पूजा - कैम्प के लिए आई लड़कियाँ
कर्नल सुदीप कौल - ट्रेकिंग कैंप के कमांडर
धीरेंद्र नेगी - कुमायूँ यूथ एसोसिएशन के सचिव
धर्मदास - एक पहाड़ी जो ट्रेकिंग में जाते बच्चों को रास्ते में बेहोश पड़ा मिला था
जीवनदास - धर्मदास का भाई
लेफ्टीनेंट प्रकाश और लेफ्टीनेंट भास्कर - ट्रेकिंग कैंप के डिप्टी कमांडर
जिम्मी - एक विदेशी पर्यटक
अमजद, प्रेम, प्रोफेसर राय, डॉ चौधरी, डिसूजा, पीटर - जिम्मी के  साथी



मेरे विचार

'मिट्टी मेरे देश की' संजीव जायसवाल 'संजय'  का लिखा किशोर उपन्यास है। उपन्यास राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ( National Book Trust) द्वारा प्रकाशित किया गया है।  उपन्यास प्रथम बार 2019 में प्रकाशित हुआ था और 2021 में इसको नवीन संस्करण प्रकाशित हुआ है।

गर्मियों की छुट्टियों की बच्चों को बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है। अक्सर बच्चे इन छुट्टियों के दौरान कुछ नया करना चाहते हैं। इन छुट्टियों में वे तरह तरह के कार्य करते हैं। कोई अपने माता पिता के साथ घूमने जाता है तो कोई समर कैंप जाकर रोमांचक गतिविधियों में भाग लेता है। प्रस्तुत उपन्यास भी ऐसे ही बच्चों की कहानी है जो कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के जिलों से नैनीताल इकट्ठा हुए रहते हैं ताकि वो कुमायूँ यूथ एसोसिएशन द्वारा आयोजित दो हफ्तों के ट्रेकिंग कैंप का भाग बन सकें। 

वैसे तो इस समूह में दो बस भरकर बच्चे रहते हैं लेकिन कहानी की शुरुआत संकल्प के नैनीताल पहुँचने से होती है तो एक तरह से वो ही केंद्र में रहता है। वह एक रेलवे अफसर का पुत्र है जिसे उसके अभिभावक नैनीताल कैंप में भाग लेने के लिए लाते हैं। उसके माध्यम से पाठक नैनीताल के पर्यटन स्थलों की भी जानकारी पाते हैं क्योंकि वह कैंप में शामिल होने से पहले इन स्थलों की सैर भी करता है। 

 संकल्प के अतिरिक्त कैंप में पहुँचकर संकल्प का नया नया बना दोस्त विपुल और मान्या और पूजा भी कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वयस्कों के रूप में कहानी में यूथ एसोसिएशन के सचिव और कर्नल कौल जरूरी किरदार हैं। कर्नल सुदीप कौल फौजी हैं लेकिन अनुशासन पसंद होते हुए भी उन्हें मौज मस्ती करनी आती है। अगर बचपन में मुझे कैंप जाने का मौका मिलता तो उन जैसा ही कैंप कमांडर मैं चाहता और अब अगर अपने बच्चे को मैं कैंप भेजूँगा तो चाहूँगा कि उसे भी उन जैसा ही कैंप कमांडर मिले। इसके अतिरिक्त मौजूद बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं। 

छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित कथानक में ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं पाठक की रुचि आगे पढ़ते चले जाने में स्वतः ही हो जाती है। जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है वैसे वैसे जहाँ कथानक में एक तरफ रहस्य के तत्व जुड़कर पाठक को बाँध देते हैं वहीं दूसरी तरफ कैंप में होंने वाले खेल और बच्चों की आपसी चुहलबाजी भी मनोरंजन करती है।  संकल्प और मान्या के बीच के समीकरण भी रोचक हैं। उनके बीच की प्रतिद्वंदिता भी कथानक में रुचि जगाती है और उनके बीच की जबानी जंग पढ़ते हुए मज़ा आता है।  

यह साहसिक कथा है और इसलिए हमारे मुख्य किरदारों का मुसीबत में पड़ना भी लाजमी है। संकल्प, विपुल, मानया और पूजा यह चारों बच्चे मुसीबत में भी पड़ते हैं और अपनी सूझ बूझ से उस मुसीबत से न केवल निकलते हैं बल्कि साथ ही उन रहस्यों से भी परदा उठाते हैं जिसने वयस्कों तक को उलझा कर रखा था। यह रहस्य और मुसीबतें क्या रहती हैं इसके विषय में आप पढ़कर जाने तो मेरे विचार से बेहतर होगा। 

उपन्यास की भाषा शैली सहज सरल है जो कि उन पाठकों के हिसाब से सही है जिनको ध्यान में रखकर इसे लिखा गया है।

अक्सर जब बच्चों को लेकर कोई साहसिक कारनामा दर्शाता उपन्यास लिखा जाता है उसमें कई बार लेखक अपने किशोर मुख्य पात्रों से ऐसी बातें भी करवा देते हैं जिन्हें पचाने में थोड़ा मुश्किल होती है लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है। यथार्थ के निकट ही लेखक ने अपने पात्रों को रखा है और उसी के अनुसार ही समस्या का समाधान उनसे करवाते हुए उन्हें दर्शाया है।

वैसे तो कहानी में मुझे ऐसी कोई कमी नहीं लगी फिर भी ढूँढने की कोशिश करूँ तो एक यही बात खलती है कहानी में बच्चे तहकीकात करते नहीं दिखते हैं बल्कि मुख्य रहस्य तक संयोग से पहुँचते हैं और किस्मत के चलते ही वह खलनायकों तक भी पहुँचते। अगर रहस्य का पता लगाने के पश्चात वह अपनी सूझ बूझ से खलनायक के अड्डे तक पहुँचते तो कथानक और रोमांचक हो सकता था लेकिन फिर शायद वह उतना यथार्थवादी न रह जाता।हाँ, उसके बाद खलनायक के अड्डे में पहुँचे पर वह अपनी सूझ बूझ से कार्य करते हैं जिसे देखना रोचक रहता है। 

इसके अतिरिक्त बच्चे दिमाग से ही खलनायक को चित्त भी करते हैं जो कि कथानक को यथार्थ के निकट तो रखता है लेकिन अगर कोई पाठक ऐसा है जिसे अपने नायकों को रोमांचक कार्य करते देखना पसंद है तो हो सकता है उसे यह चीज कम रोमांचक लगे। इससे बचने के लिए लेखक आखिर में कुछ रोमांचक घटनाओं का समावेश करते तो कथानक और अच्छा हो सकता था। 

उपन्यास में चित्र भी मौजूद हैं। मित्रारुण हालदार द्वारा बनाए गए चित्र कथानक को उभारने का कार्य करते हैं। 21 अध्यायों में विभाजित इस कथानक में हर अध्याय में दो से तीन चित्र मौजूद हैं जो कि इसे पढ़ने के अनुभव को और अधिक बेहतर कर सकते हैं। 

अंत में यही कहूँगा कि हिंदी में किशोर रोमांचकथाओं हाल के समय में कमी रही है। लेखक की यह रचना उस कमी को भरने का कार्य करती है। अगर आपने नहीं पढ़ा है तो इसे पढ़कर देख सकते हैं। मुझे लगता है कि ये आपका मनोरंजन करने में सफल होगी।


पुस्तक लिंक: इग्ज़ाटिक इंडियन आर्ट


Full Disclosure: मैं यहाँ ये बताना अपना कर्तव्य समझता हूँ कि यह पुस्तक मुझे लेखक द्वारा उपहार स्वरूप दी गई थी। 


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