नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

राख - जितेंद्र नाथ | बुककेमिस्ट

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 200 | प्रकाशक: बुककेमिस्ट (सूरज पॉकेट बुक्स)

पुस्तक लिंक: अमेज़न


राख - जितेंद्र नाथ | बुककेमिस्ट


कहानी 

प्रेम नगर एक उभरता हुआ शहर था जहाँ आई तरक्की अपने साथ साथ अपराध भी लेकर आई थी। 

इन दिनों प्रेम नगर ऐसे ही एक जघन्य अपराध से जूझ रहा था।

प्रेम नगर में अलग अलग जगह दो जली हुई लाशें मिली थीं और ऐसी उम्मीद थी कि इन लाशों में अभी और इजाफा होना था।

अपराधी कौन था इसका कोई पता नहीं लग पा रहा था और जाँच कर रहे इंस्पेक्टर कालीरमण के ऊपर अपराधी को पकड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा था।

आखिर किनकी थी ये लाशें?

क्यों मारा गया था इन्हें?

क्या इनके बीच में कोई संबंध था?

क्या कालीरमण लाशों की इस गुत्थी को सुलझा पाया?


मुख्य किरदार 

रोशन वर्मा - सब इंस्पेक्टर 
रणवीर कालीरमण - प्रेमनगर थाने का इंचार्ज
सौम्या - रणवीर की पत्नी 
भव्या - रणवीर की बेटी 
अनिल कुमार - हेड कांस्टेबल फोरेंसिक
वरुण - पत्रकार
नवीन - कैमरामैन
रतन लाल - थाने का मुंशी
नवनीत कंसल - पोस्टमार्टम के पैनल हेड
पुरषोत्तम गोयल - दुर्गा कॉलोनी में हुई हत्या के मकान का मकान मालिक
अनिकेत - किरायेदार
संजय बंसल - अनिकेत का दोस्त और दूसरा शिकार
वेदपाल - फोरेंसिक का हेड
गौरव कालिया - पहला शिकार
सुरेंद्र कालिया - गौरव का पिता
रोहित गेरा - अनिकेत का दोस्त
शमशेर सिंह गेरा - रोहित का पिता और एक बाहुबली
मोहित गेरा - शमशेर का दूसरा लड़का
विपिन मित्तल - शमशेर के फार्म हाउस महक फार्म हाउस का मैनेजर
दिनेश, कृष्ण, अनिल, कदम सिंह  - रणवीर के मातहत
पुनीत खन्ना - वेल केयर फार्मा का डिस्ट्रीब्यूटर
रामचरण - एमएलए
नरेश मल्होत्रा - ड्रग इंस्पेक्टर
अविनाश चौधरी - एक युवक
अशोक - अविनाश का मकान मालिक 
रूप कुमार - एक बुजुर्ग व्यक्ति 
दया राम - रूप कुमार का पड़ोसी 
अक्षत वर्मा - रूप कुमार का बेटा 
रूपाली वर्मा - रूप कुमार की बेटी 



मेरे विचार

'राख' लेखक जितेंद्रनाथ की  लिखी रहस्य कथा है जो कि सूरज पॉकेट बुक्स के इम्प्रिन्ट बुककेमिस्ट से 2021 में प्रकाशित हुई थी। अगर इसे अपराध कथा की उप शैली में वर्गीकृत करना पड़े तो इसे एक पुलिस प्रोसीजरल की श्रेणी में रखा जा सकता है जो कि ऐसे उपन्यास होते हैं जिसमें पुलिस की कार्यशैली को दर्शाया जाता है। 

उपन्यास के केंद्र में इंस्पेक्टर कालीरमण है जो कि प्रेम नगर थाने का एस एच ओ है। उसके इलाके में जब दो जली हुई लाशें मिलती हैं तो वो उस मामले को सुलझाने में लग जाता है। केस में जैसे जैसे वो आगे बढ़ता जाता है वैसे वैसे शहर के रसूखदार लोगों के ऐसे राज उसके सामने उजागर होते जाते है जिसके चलते उसके ऊपर विभागीय और राजनैतिक प्रेशर पड़ने लगता है। वहीं इस केस की तहकीकात ऐसे जघन्य अपराध से भी परदा उठाती है जिसे सिस्टम की मदद से छुपाने के पहले प्रयास किया गया था।

चूँकि यह एक पुलिस प्रोसीजरल है तो पुलिस के तहकीकात करने के लहजा कहानी का महत्वपूर्ण भाग है। इस तरीके को बहुत बारीकी से दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त अक्सर पुलिसिया कार्यवही बाहरी तत्वों से प्रभावित होती है यह भी दिखता है। कैसे सिस्टम के आगे कई बार ईमानदार लोगों को मुँह की खानी होती है और सब कुछ देखते हुए भी आँखें बंद कर देने की मजबूरी उसकी होती है  यह भी इधर दिखता है। 

अगर पुलिस अपराधियों का साथ देने लगे तो एक आम आदमी की हालत क्या हो जाती है यह भी इधर रूप कुमार की हालत देखकर दिखता है। 

उपन्यास में जिस तरह से सिस्टम को दर्शाया गया है वह यथार्थ के काफी नजदीक लगता है और यह एक आम आदमी के तौर पर आपको डराने के लिए काफी है। लेकिन उपन्यास में मौजूद ऐसे किरदार भी हैं जो कि आपकी उम्मीद बँधाते हैं कि वह अपने स्तर पर सही कार्य करने की कोशिश करते हैं।  

उपन्यास की एक और अच्छी बात मुझे ये लगी कि कालीरमण की व्यक्तिगत ज़िंदगी को इधर दर्शाया गया है। अक्सर हिंदी अपराध कथाओ में ऐसा कम होता है कि हम पुलिस वालों की व्यक्तिगत ज़िंदगी देखते हैं। उनका काम कैसे उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी को प्रभावित करता है यह भी कम देखने को मिलता है।  ऐसे में लेखक द्वारा ये पहलू दर्शाया जाना अच्छा लगता है। 

उपन्यास का घटनाक्रम प्रेम नगर नाम की जगह में घटित होता है। यह एक काल्पनिक शहर है जो कि हरियाणा में शायद कहीं है। उम्मीद है लेखक इस शहर के और किस्से लेकर आयेंगे। जिस हिसाब से अपराध इधर बढ़ रहे हैं उस हिसाब से कई मामले तो बन सकते हैं।

कथानक आप पर पकड़ बनाकर रखता है। जैसे जैसे सबूत मिलते जाते हैं वैसे वैसे कथानक उजागर होता जाता है। पर जो आपको दिख रहा है क्या वो सच है या इसमें कुछ घुमाव है? यह एक ऐसा प्रश्न रहता है जो कि आपको आखिर तक कथानक से बाँधे रखता है।  लेखक कथानक में ट्विस्ट देने की भी कोशिश करते हैं और उसमें सफल भी हुए हैं। 

किरदारों की बात की जाए तो अधिकतर किरदार जीवंत हैं। उपन्यास में पुलिस विभाग केंद्रीय भूमिका में है तो यहाँ की राजनीति इधर दिखती है। अच्छे बुरे सब तरह के अफसर यहाँ मौजूद हैं। ईमानदार अफसरों में भ्रष्ट अफसरों के कारण जो खीज उत्पन होती है यह भी इधर दिखती है। कैसे ताकत आपके पास हो तो स्याह को सफेद और सफेद को स्याह बनाया जा सकता है यह भी इधर दिखता है। 

कालीरमण एक ईमानदार पुलिस वाला है जिसे अपनी ईमानदारी की कई बार कीमत चुकनी पड़ती है। वहीं अपनी इसी खूबी के चलते वह अपने उन मातहतों के बीच में सम्मान का पात्र है जिनके भीतर अभी मनुष्यता बाकी है। कालीरमण से मैं दोबारा जरूर मिलना चाहूँगा। 

कालीरमण के अलावा एक पत्रकार वरुण भी कहानी में मुख्य भूमिका निभाता है। वरुण एक ईमानदार और महत्वायाकांक्षी पत्रकार है जिसका प्रयोग कालीरमण समय समय पर करता है। वरुण और कालीरमण की बातें अक्सर इस संजीदा उपन्यास में हास्य का तड़का भी लगाती हैं जो कि माहौल को हल्का करने में काम आता है। इनके बीच का समीकरण मुझे रोचक लगा। 

इसके अतिरिक्त राजनैतिक संरक्षण पाए बाहुबली, राजनेताओं के सामने दुम हिलाने वाले पुलिस वाले, फोरेंसिक से जुड़े लोग  और अन्य किरदार इसमें हैं। यह सभी कथानक के लिए जरूरी हैं और उसी हिसाब से इनका प्रयोग लेखक द्वारा किया गया है।

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो एक दो चीजें थीं जो कि मुझे थोड़ा लगी जिनपर और काम हो सकता था। 

कहानी का फ्लेवर चूँकि यथार्थवादी है तो कहानी का आखिरी घुमाव, जिसमें अपराधी की पहचान का पता लगता है, को पचाने में काफी लोगों को दिक्कत हो सकती है। अचानक से एक अमीर किरदार को ले आना ओर फिर महंगे मेडिकल प्रोसीजर करवा देना थोड़ा अटपटा लगता है और उपन्यास को यथार्थ से काफी दूर इसे ले जाता है। ऐसा भी लगता है कि लेखक ने कथानक खत्म करने के लिए एक सरल रास्ता चुना है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि अगर लेखक बिना इसके कहानी को अंत तक पहुँचा पाते तो बेहतर होता।

इसके अतिरिक्त एक कमी जो मुझे कथानक में लगी वो ये थी कि उपन्यास में एक किरदार है जिसका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है। ये देखकर हैरानी होती है कि उसको इलाज दिलाने की कोशिश नहीं की गई। जबकि एक किरदार ऐसा था जो कि वो कोशिश कर सकता था या उसे ऐसी जगह रख सकता था जहाँ उसका ध्यान रखा जाता। ऐसा उसके द्वारा अपनी पहचान उजागर किए बिना भी हो सकता था।  इससे अधिक बोलना कहानी को खोलना होगा लेकिन अगर ऐसी कोई कोशिश, फिर चाहे वो असफल ही रही हो, का जिक्र किया रहता तो बेहतर होता। 

इनके अतिरितक इक्का दुक्का जगह नाम में थोड़ी गड़बड़ दिखी। रणवीर कालीरमण एक जगह रणवीर सिंह हो गया और वेद पाल एक आध जगह तेजपाल हो गया था। वहीं इक्का दुक्का जगह वर्तनी की गलतियाँ थी जो कि इतनी नहीं थी कि पढ़ने का मजा किरकिरा हो। 

अंत में यही कहूँगा कि राख एक रोचक रहस्यकथा है जो कि पाठक को अंत तक बाँध कर रखती है। उपन्यास क्योंकि पुलिस प्रोसीजरल है तो उस हिसाब से पुलिसिया कार्यवाही के बारे में अधिक जानकारी दी है जो कि मुझे नहीं खली। यह एक अलग तरह का फ्लेवर इसे देती है। अगर पुलिस प्रोसीजरल और रहस्यकथाएँ पसंद हैं तो मुझे लगता है कि उपन्यास आपका मनोरंजन करने में सफल अवश्य होगा। 

उम्मीद है लेखक रणवीर कालीरमण को लेकर और भी कथानक लिखेंगे। मैं तो जरूर रणवीर से दोबारा मिलना चाहूँगा। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न


Full Disclosure (पूर्ण प्रकटीकरण): उपन्यास लेखक द्वारा मुझे उपहार स्वरूप दिया गया था।


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6 Comments
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  1. 'राख' उपन्यास काफी रोचक है। मेरे विचार से पुलिस विभाग पर ईमानदारी से लिखा गया काल्पनिक उपन्यास है। जहाँ कोई जासूस नहीं, बल्कि पुलिस की कार्यशैली दर्शायी गयी है।।

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    1. जी सही कहा। पुलिस प्रोसीजरल्स कम ही लिखे जाते हैं हिंदी में। ऐसे में यह एक अच्छी और ईमानदार कोशिश है।

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  2. विस्तृत समीक्षा के लिए हार्दिक आभार विकास जी। ek book journal में राख को स्थान मिलना एक गौरवशाली पल है मेरे लिए

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    1. जी आभार सर। कालीरमण के अगले मामलों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  3. अपराध हो और बीच में पुलिस न हो, कैसे हो सकता है,,इसमें उत्सुकता बनी रहती है जिससे रोचकता भी बनी रहती है,,बहुत अच्छी समीक्षा उपन्यास की,,,
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. जी सही कहा। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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