नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

सूरमा - अनिल मोहन | सूरज पॉकेट बुक्स | देवराज चौहान शृंखला

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 310 | प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स | शृंखला: देवराज चौहान 

पुस्तक लिंक: अमेज़न


सूरमा - अनिल मोहन | सूरज पॉकेट बुक्स

कहानी 

दिल्ली चंडीगढ़ हाइवे पर चलती देवराज चौहान की गाड़ी को किस्मत ने ही शायद उस जगह लाकर खराब किया था।

जहां गाड़ी खराब थी उससे कुछ ही दूरी पर भारत सरकारी बैंक की इमारत मौजूद थी जो कि पास के कस्बे जीरकपुर से कुछ दूर ही थी।

जगमोहन और देवराज को बैंक की यह मौजूदगी बहुत मुफीद लगी थी।

उन्होंने इसे लूटने का प्लान बना लिया था।

क्या वो अपनी इस योजना में सफल हो पाए?


किरदार 

देवराज चौहान - डकैती मास्टर
जगमोहन - देवराज का साथी
सूरमा - पंचर बनाने वाला
गोलू - सूरमा के यहां काम करने वाला
बंटी - कीनू के जूस बनाने वाला
कमला - बंटी की बीवी
कस्तूरी - सूरमा की पत्नी
गोपाल चंद डोडा - बैंक मैनेजर बाद में ये सोढ़ी हो जाता है 
चांदीलाल - एक बुर्जुग जिसे सूरमा जानता था
बलबीर - बैंक का चपरासी 
मिसेज शर्मा - बैंक में काम करने वाले एक अफसर की पत्नी 


मेरे विचार 

'सूरमा' अनिल मोहन द्वारा लिखा देवराज चौहान शृंखला का उपन्यास है। देवराज चौहान से अगर आप वाकिफ नहीं है तो वह एक डकैती मास्टर है जो अपने साथ जगमोहन के साथ मिलकर कई डकैतियाँ कर चुका है। प्रस्तुत उपन्यास सूरमा भी एक ऐसी ही डकैती की कहानी है।

जब उनकी गाड़ी दिल्ली चंडीगढ़  हाईवे में एक जगह खराब हो जाती है तो देवराज चौहान और जगमोहन को पता लगता है कि वहीं पर भारत सरकारी बैंक है। यह बैंक नजदीकी कस्बे जीरकपुर से थोड़ी दूरी पर है और इसलिए कदरन शांत इलाके में है। इसी के चलते  भारत सरकारी बैंक में डकैती का विचार देवराज और जगमोहन करते हैं। वह इसके लिए क्या तैयारियाँ करते हैं, कौन कौन इसमें शामिल होता है और डकैती पड़ने के बाद क्या क्या ट्विस्ट आते हैं यह इस उपन्यास में देखा जा सकता है।

उपन्यास अंत तक रोमांच बनाए रखता है। कथानक में देवराज के कहानी से निकलने के बाद भी काफी कुछ होता है जो कि उपन्यास की रोचकता तो बढ़ाता है।

कहानी में रोमांच तो है ही साथ है कई किरदारों की आपसी बातचीत हँसी भी ले आती है। चांदीलाल का किरदार भी ऐसा ही है। उसकी बातचीत अक्सर हँसी ला जाती है। चपरासी बलबीर और कस्तूरी और  बलबीर और चांदी लाल की बातचीत भी कई बार हास्य पैदा करती है। झिकझिक करती पति पत्नी की जोड़ी दर्शाने में अनिल जी को महारथ हासिल है। इसमें भी बंटी और कमला के बीच नोकझौंक को रोचकता से दर्शाया है।

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो उपन्यास के कथानक में ऐसी कोई कमी नहीं लगी। हाँ, उपन्यास में एक जगह देवराज चौहान द्वारा बैंक वैन को रोकने का प्रसंग है। वह गोली चलाकर टायर खराब करता है। मुझे लगता है ये प्रसंग बिना गोली चलाये निपटाया होता तो बेहतर होता। ऐसा इसलिए कि अगर थोड़े वीराने में मेरा बैंक हो और मुझे दो दिन बड़ी तादाद में उसमें पैसे भेजने हो और पहले दिन कोई गोली मारकर बैंक की वैन रोके तो मेरे मन में शक उत्पन्न होगा और अगले दिन मैं पैसे नहीं भेजूँगा। फिर बैंक वैन लुटी हो या नहीं। लेकिन अगर बैंक की वैन किसी दूसरे तरीके से खराब हो जैसे कील या किसी और वजह से टायर फट जाए या यातायात किसी तरह बाधित हो जाए तो ऐसे शक की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।  

कथानक में मुख्य किरदार तो देवराज और जगमोहन ही हैं लेकिन दूसरे किरदार भी रोचक हैं। सूरमा एक पंचर बनाने वाला है और उसी के नाम पर उपन्यास का शीर्षक रखा गया गया। वह एक आम आदमी है जो कि गरीब है। उसके साथ उपन्यास में क्या क्या होता है यह देखना रोचक रहता है। कस्तूरी सूरमा की बीवी है और एक तेज तर्रार औरत है। इसके साथ साथ बैंक के चपरासी बलबीर वाले सीन भी रोचक बन पड़े हैं। 

उपन्यास में ठग जुगलकिशोर और चंदा का भी आते हैं। यह दोनों ही किरदार कथानक में तेज घुमाव लाते हैं और रोमांच बढ़ा देते हैं। दोनों ही किरदार मुझे पसंद आए। जुगलकीशोर के बार में पढ़कर लगा कि यह एक पुराना किरदार है। पर इसको लेकर अब तब मैने कोई और कथानक नहीं पढ़ा है लेकिन पढ़ने की कोशिश रहेगी। कुछ के नाम तो पता कर लिए हैं। 

उपन्यास के शीर्षक की बात करूँ तो इसका नाम सूरमा जरूर है लेकिन वो कथानक में फिट नहीं बैठता है। कथानक को न्यायौचित ठहराने के लिए एक किरदार का नाम सूरमा जरूर रख दिया है पर वो किरदार और उसकी हरकतें ऐसी नहीं है कि शीर्षक उसके नाम पर रखा जाए। मुझे लगता है कि शायद नाम पहले घोषित हो चुका था और फिर इस पर एक कहानी फिट करनी थी तो एक किरदार का नाम शीर्षक वाला रखकर इतिश्री कर दी। अगर नाम रखना ही था तो किरदार जरा सशक्त होता तो बेहतर होता। अभी शीर्षक पढ़ने से ऐसा लगता है जैसे सूरमा देवराज का प्रतिद्वंदी हो लेकिन ऐसा कुछ भी उपन्यास में नहीं है।

प्रस्तुत संस्करण की एक कमी ये भी है कि इसमें वर्तनी की काफी गलतियाँ हैं। वर्तनी के अलावा बैंक मैनेजर् जिसका नाम शुरुआत में गोपाल चंद डोडा रहता है वो आगे जाकर सोढ़ी हो जाता है। ये गलतियाँ पढ़ने की लय को बाधित करती हैं। अगर इनमें सुधार हो तो पढ़ने का अनुभव और बेहतर हो सकता है। 

अंत में यही कहूँगा कि देवराज चौहान के प्रशंसक हैं तो कहानी आपका मनोरंजन करने में पूर्णतः सफल होगी। कहानी तेज रफ्तार है और जहाँ थोड़ा बहुत धीमी पड़ती भी है तो वहाँ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जिसके चलते आप आगे पढ़ने को उत्सुक रहते हैं। उपन्यास मुझे तो पसंद आया। उम्मीद है आपको भी आएगा।


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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