संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 26 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय | अंक: तहकीकात 2
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
मृतक मृत्यु के समय अड़तालीस वर्षीय था। उसके बेटे आशिक अली और उसकी दूसरी पत्नी राहत का कहना था कि मृत्यु हृदयागति रुक जाने से हुई थी।
वहीं मृतक की बेटी रफत और उसके पति मुर्तजा का कहना था कि मृत्यु में कोई पेंच था और यह एक हत्या थी।
क्या मृतक की मृत्यु प्राकृतिक थी या असल में उसमें पेंच था?
रफत और मुर्तजा को यह हत्या क्यों लगती थी?
अहमद यार खां की तहकीकात का क्या नतीजा निकला?
किरदार
रफत - मृतक की बेटी
मुर्तजा - मृतक का दामाद
आशिक अली - मृतक का बेटा
राहत - मृतक की दूसरी पत्नी
अलसम - मृतक का छोटा बेटा
अनवर - राहत का जानकार
टंडल - एक डाकू
मुर्तजा - मृतक का दामाद
आशिक अली - मृतक का बेटा
राहत - मृतक की दूसरी पत्नी
अलसम - मृतक का छोटा बेटा
अनवर - राहत का जानकार
टंडल - एक डाकू
विचार
'अनजान हत्यारे' अहमद यार खाँ की एक सत्यकथा है जो कि तहकीकात पत्रिका के दूसरे अंक में प्रकाशित हुई है। सत्यकथा का अनुवाद इश्तियाक खाँ द्वारा किया गया है और अनुवाद अच्छा हुआ है।
अहमद यार खाँ ब्रिटिश इंडिया में पुलिस अफसर थे और इस दौरान उन्होंने कई मामले सुलझाये। बाद में विभाजन के बाद वो पाकिस्तान बस गए और उधर उनके ये अनुभव उर्दू में प्रकाशित होते रहे। ऐसे ही एक मामला अनजान हत्यारे भी है।
यह मामला एक अड़तालीस वर्षीय व्यक्ति की मृत्यु है जिसकी मृत्यु के विषय में उसके बेटे और सौतेली पत्नी का कहना था कि मृत्यु हृदय गति रुकने से हुई थी। पर क्या ऐसा असल में था? यही इस कथानक को पढ़कर जाना जा सकता है।
प्रथम पुरुष में यह घटना बताई गई है जिसमें अहमद यार खाँ मामले की तहकीकात करते दिखते हैं। किस तरह से वह मामले की तहकीकात करते हैं। पूछताछ के क्या तरीके अपनाते हैं और आखिर में कैसे मामले के अंत तक पहुँचते हैं यह इधर दिखता है। साथ में केस के दौरान सामाजिक व्यवस्था और पुलिसिया तरीकों पर उनकी टिप्पणियाँ भी हैं जो कि इसे रोचक बना देती हैं।
समाज में बेमेल विवाह की परंपरा काफी समय से रही है। अक्सर लड़कियों की शादी उनसे उम्र में कई बड़े मर्दों से उनकी मर्जी के खिलाफ कर दी जाती है। इस शादी का क्या परिणाम होता है और कैसे यह एक सुखी परिवार को खत्म कर सकता है यह इधर दृष्टिगोचर होता है।
इसके अतिरिक्त इस कहानी में डाकुओं का जिक्र है। अभी तक मैं अहमद यार खाँ के द्वारा लिखित कुछ मामले पढ़ चुका हूँ और ऐसा मामला पहली बार पढ़ा है जिसमें डाकू शामिल हैं। डाकुओं की कार्यशैली और पुलिस से उनके समीकरण कैसे थे यह भी इधर दिखता है।
कथानक घुमावदार है पर जब एक किरदार के विषय में पता लगता है कि ये अंदेशा लगाना सरल हो जाता है कि असल में क्या हआ होगा। अगर सत्यकथाएँ आपको पसंद आती हैं और पुलिसिया कार्यशैली में रुचि है तो ये मामला आपको रोचक लगेगा।
रचना के कुछ अंश:
अगर आप किसी भी पुलिस स्टेशन में वारदातों और मुकदमों का रिकार्ड देखें तो हत्या की बहुत सी कहानियों में यह तीन कैरेक्टर जरूर देखेंगे।बूढ़ा पति, जवान पत्नी और मरने वाला का जवान बेटा। (पृष्ठ 86)
जहाँ एक जवान बेटा और जवान सौतेली माँ हो वहाँ के बारे में कैसा ही झूठ बोल दो सच लगता है लेकिन जब आप थानेदार की वर्दी पहन लेते हैं तो आपकी नज़रों में झूठ और सच के अर्थ बदल जाते हैं। (पृष्ठ 86)
वह मुझे एक कमरे में ले गया जहाँ एक जवान लड़की खड़ी थी। मैंने अंदर जाते ही उसे सर से पाँव तक देखा। उसके चेहरे और डीलडोल को ध्यान से देखा। अधिकतर वारदातों में संदिग्ध व्यक्ति के चेहरे रहस्य खोल दिया करते हैं। उस लड़की के चेहरे पर भी वही प्रभाव था जो हर उस जवान लड़की के चेहरे पर होता है जिसका बूढ़ा पति एक साल बाद ही मर गया हो। (पृष्ठ 87)
पुलिस इंस्पेकटर को वह दरिंदा या भूत समझ रहा था। मगर इस भूत ने इंसानों की तरह प्यार और हमदर्दी की बात शुरू कर दी तो वह रेत की ढेरी बन गया। मैंने उसके दिल दिमाग पर कब्जा कर लिया। (पृष्ठ 95)
खुदा के अलावा आईविटनेस कोई नहीं था। मुझे जमीन की गवाही लेनी थी। जमीन की ज़बान तो नहीं होती लेकिन जहाँ इंसान का खून गिरता है वहाँ से जमीन बोलती जरूर है और यह ज़बान समझने वाले कुछ लोग होते हैं जिन्हें खोजी कहते हैं। (पृष्ठ 101)
आप यह सुनकर शायद चकित होंगे कि इन डाकुओं के साथ हम संपर्क साध लिया करते थे। यह संपर्क विशेष प्रकार के मुखबिरों के द्वारा होता था। इस काम के लिए खोजियों को भी इस्तेमाल किया जाता था। कुछ वारदातों की खोज में पेशेवर गिरोह हमारी सहायता भी किया करते थे। (पृष्ठ 103)
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