नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

तहकीकात 2 | नीलम जासूस कार्यालय

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 160 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय अंक: तहकीकात 2

पत्रिका लिंक: अमेज़न


तहकीकात 2: सीढ़ियाँ और जहर - अहमद यार खाँ | इश्तियाक खाँ

तहकीकात नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पत्रिका है। मूलतः अपराध साहित्य पर केंद्रित इस पत्रिका में सत्यबोध परिशिष्ट भी मौजूद है जिसमें साहित्यिक रचनाएँ मौजूद रहती हैं। 

पत्रिका में संपादक के पत्र, गजल, लतीफों के अतिरिक्त समीक्षाएँ, लेख और कथाएँ मौजूद हैं।

'सीढ़ियाँ और जहर' पत्रिका में प्रकाशित पहली रचना है। यह अहमद यार खाँ द्वारा लिखी सत्यकथा है। अहमद यार खाँ ब्रिटिश भारत में एक पुलिस अफसर थे और जिन मामलों की तहकीकत उन्होंने की थी उन्हें उन्होंने उर्दू में प्रकाशित कराया था। यह भी एक ऐसे ही मामले की कथा है जिसमें अहमद यार खाँ को दो कत्ल के मामलों को सुलझाना पड़ा था। अनुवाद इश्तियाक खाँ  द्वारा किया गया है और अच्छा हुआ है। अगर पुलिस की कार्यशैली में रुचि है तो आपको यह पसंद आएगी। चूँकि रचना बढ़ी है तो इसकी विस्तृत समीक्षा अलग पोस्ट में की गई है जिसे आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

पत्रिका की अगली रचना लेखक योगेश मित्तल की कहानी सुपर मॉडल का कत्ल है। अब कत्ल हुआ है तो कातिल भी होगा और कातिल है तो कातिल का पता भी लगाया जाएगा। इस कहानी में कातिल का पता अनिल कुमार चक्रवर्ती लगाता है जो कि राजनगर में प्रकाशित होंने वाले अखबार विस्फोट का खोजी पत्रकार है। लेखक ने किरदार और उसकी पृष्ठभूमि सुरेन्द्र मोहन पाठक के किरदार सुनील से प्रेरित होकर और उनकी रचनाओं के प्रति प्रेम दर्शाने के लिए करी है। कहानी चूँकि लंबी है तो इसके ऊपर अलग से पोस्ट लिखी है जिसे आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

मेजर अली रजा की डायरी जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा की लिखी उपन्यासिका है। यह उपन्यासिका एक पाकिस्तानी मेजर के डायरी में दर्ज अनुभवों को पाठकों के सामने रखती है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की पृष्ठभूमि में रची यह रचना आज भी प्रासंगिक है और अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आपको इसे जरूर पढ़ना चाहिए। मेजर अली रजा की डायरी के विषय में विस्तृत विचार आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

पत्रिका की अगली रचना अहमद यार खाँ की सत्यकथा अनजान हत्यारे है। यह सत्यकथा भी मूलतः उर्दू में लिखी गई थी जिसका अनुवाद इश्तियाक खाँ द्वारा किया गया है। कथानक घुमावदार है पर जब एक किरदार के विषय में पता लगता है कि ये अंदेशा लगाना सरल हो जाता है कि असल में क्या हआ होगा।  अगर सत्यकथाएँ आपको पसंद आती हैं और पुलिसिया कार्यशैली में रुचि है तो ये मामला आपको रोचक लगेगा। अनजान हत्यारे के विषय में विस्तृत राय आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

लेखक अनिल पुरोहित के संग्रह वो कौन थी से ली गई रचना रहस्यमय कपालिक  पत्रिका की अगली रचना हैकहानी प्रथम पुरुष में लिखी गई है और कहानी के केंद्र में लेखक खुद हैं। लेखक अपने मित्र ओंकारनाथ सान्याल के कहने पर अंबुवाची मेला देखने गुवाहाटी पहुँचते हैं। यहाँ एक रहस्यमय कपालिक से हुई मुलाकात के अनुभव ही यह कहानी बनती है। यह कपालिक कौन है और कैसे पारलौकिक अनुभव कथावाचक को होते हैं यह देखना रोचक रहता है। कथानक बाँधने वाला है और इसमें ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं जो कि अंत तक पढ़ते चले जाने के लिए आपको विवश करती हैं। हाँ, घटनाओं के बाद आखिर में जब लेखक एक रात दूर रहने के पश्चात जब अपने दोस्त से मिलते हैं तो वो प्रसंग मुझे अटपटा लगता है। अगर मेरा कोई मित्र मुझसे मिलने आए और मेरे साथ किसी जगह जाकर खो जाए तो शायद मैं बहुत ज्यादा परेशान हो जाऊँगा। पुलिस थाने के चक्कर भी लगाऊँ। पर इधर जो प्रतिक्रिया रहती है वो इतनी संजीदा नहीं रहती है। हो सकता है लेखक के ऐसे गायब होने का यह उनके दोस्त का पहला अनुभव न हो और इसलिए वो इतने चिंतित न हुए हों लेकिन ऐसा कुछ भी इधर दर्शाया नहीं गया है तो ये चीज साफ नहीं है। 

बेवफाई लेखक विनय सक्सेना की कहानी है। यह पत्रिका की अगली रचना है। विवाहेत्तर संबंधों पर केंद्रित यह एक दुखांत कथा है। हाँ इसका अंत थोड़ा यथार्थ से अलग लगता है। अगर अंत को यथार्थ के निकट रखते तो शायद बेहतर होता। अभी किरदार अपने कार्यों के परिणाम भुगतने के बजाय भागना बेहतर समझते हैं। 

सत्यबोध परिशिष्ट 

तहकीकात में अपराध कथाओं से इतर साहित्यिक रचनाएँ भी प्रकाशित होती हैं। यह रचनाएँ सत्यबोध परिशिष्ट के अंतर्गत प्रकाशित होती हैं। 

प्रसिद्ध लेखक कृश्न चंदर की लिखी शहजादा सत्यबोध परिशिष्ट की पहली रचना है। यह सुधा की कहानी जो कि आम सी दिखने वाली लड़की है। उसके क्या सपने हैं और कैसे वह अपने सपनों को जीने की कोशिश करती है यह कहानी का केंद्र बनता है। कहते हैं प्यार से अधिक प्यार की कल्पना खूबसूरत होती है। यह चीज इधर दिखती है। 
कहानी मूलतः शायद उर्दू में लिखी गई होगी और फिर इसका देवनागरी में लिपींतरण कर दिया होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कई जगह वाक्य उर्दू से लदे फदे भारी हो गए हैं जो कि लगभग अपठनीय हो जाते हैं। वहाँ उर्दू की जगह हिंदी के शब्द प्रयोग करते तो कहानी और अधिक पठनीय बन सकती थी। 

'कमाई का फर्क' परिशिष्ट की अगली रचना है। रोशनलाल सुरीरवाला द्वारा रचित यह लघु कथा आज भी प्रासंगिक है। आज भी ऐसे घरों के बच्चों, जिन्हें पैसे आसानी से मिल जाते हैं, को पैसे की कद्र नहीं होती। वह अक्सर पैसे को यूँ ही उड़ाते दिखते हैं। पर जब वो पैसे कमाने पड़े तो अपने आप उन पैसों की कद्र होने लगती है। इसी चीज को यह लघुकथा भी दर्शाती है। 

परिशिष्ट की अगली रचना सुबोध भारतीय, जो कि पत्रिका के संपादक हैं, की पुस्तक हैशटैग की समीक्षा है। यह समीक्षा जितेंद्रनाथ ने की है। समीक्षा पुस्तक के प्रति उत्सुकता जागृत करती है। 

अगली रचना संपादकीय टीम द्वारा लिखी गई है जो कि पाठकों का परिचय अतुल प्रभा की पुस्तक पल पल दिल के पास से करवाती है। यह भी पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब होती है। 

कोई अर्श पर कोई फर्श पर गंगा प्रसाद सुमन की रचना है जिसमें दो पत्थरों के संवाद से लेखक यह बतलाते हैं कि मेहनत करने से ही व्यक्ति सफल होता है और तभी समाज में उसको वो इज्जत मिलती है जिसकी उसे चाह होती है। पूरे मन से कर्म अगर कोई व्यक्ति कर रहा है तो वो तप के समान ही है। 

परिशिष्ट का अगला हिस्सा गज़लों को दिया गया है और इसमें सोनिया 'रूह', ओम प्रकाश यति, मनोज बेताब और संजय तन्हा की गजलें शामिल की गई हैं। गज़लों के शौकीनों को यह पसंद आएँगी। 

अंत में यही कहूँगा कि तहकीकात का यह दूसरा अंक हर तरह के पाठकों के लिए कुछ कुछ अपने में समेटे हुए हैं। चूँकि पत्रिका का ध्यान अपराध साहित्य पर है तो उसकी बहुलता होना जायज है पर फिर भी सत्यबोध परिशिष्ट काफी कुछ पाठकों के लिए दे जाता है। हाँ, सत्यबोध में नवीन लेखकों की रचनाओं को भी जगह मिले तो बेहतर होगा। अगर साहित्य में रुचि है यह पत्रिका आपको पसंद आएगी। 



पत्रिका लिंक: अमेज़न


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