नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पुस्तक अंश: कठपुतली

कठपुतली लेखक वेद प्रकाश शर्मा का लिखा हुआ एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास के केंद्र में विनम्र भारद्वाज नाम का नौजवान है जो जब भी किसी ऐसी औरत को देखता जो किसी मर्द को अपने रूप जाल में फँसा रही है तब ही वह क्रोध में पागल हो जाता और उसके जहन में उठती एक आवाज उसे उस लड़की का कत्ल करने के लिए उसकाने लगती। ये आवाज कैसी थी और क्यों विनम्र को सुनाई दे रही थी। इससे विनम्र के जीवन पर क्या असर पड़ा? ये ऐसे प्रश्न है जो आपको इस उपन्यास को पढ़कर ही मिलेंगे लेकिन आज आज एक बुक जर्नल हम आपके लिए इसी उपन्यास कठपुतली का छोटा सा अंश लेकर प्रस्तुत हुए हैं। 

उम्मीद है यह अंश पुस्तक के प्रति आपकी उत्सुकता जगाएगा और आपको उपन्यास पढ़ने के लिए प्रेरित भी करेगा। 

पुस्तक लिंक: पोथी 


पुस्तक अंश: कठपुतली

"विनम्र... विनम्र।" किसी ने उसे झँझोड़ा। 

"आं!" वह चौंका। 

चौंककर झँझोड़ने वाली की तरफ देखा। 

वह श्वेता थी। 

उसकी अपनी श्वेता। 

वह जिसके साथ विनम्र यहाँ आया था। जिसे वह बहुत-बहुत प्यार करता था। 

परन्तु!

इस वक्त वह उसे अजनबी-सी लगी।

"विनम्र!" हैरान नजर आ रही श्वेता ने पूछा - "क्या हो गया है तुम्हें?"

"म-मुझे?" विनम्र के मुँह से हड़बड़ाये हुए शब्द निकले - "म-मुझे क्या होता?"

"कुछ तो हुआ था।" श्वेता बोली - "आस-पास आईना होता तो तुम्हें दिखाती। भभककर लाल हो गया था तुम्हारा चेहरा। ठीक यूँ, जैसे किसी दहकती भट्टी के नजदीक बैठे हो। जबड़े कस गए थे। आँखों में... आँखों में इस कदर हिंसक भाव उभर आए थे कि मुझ तक को तुमसे डर लगने लगा था।"

विनम्र को लगा - "श्वेता ठीक कह रही है।"

वह खुद को अभी-अभी किसी भयंकर स्वप्न से बाहर निकलता-सा लगा। 

बड़बड़ाया - “हाँ, कुछ हुआ तो था।”

“क्या हुआ था?” श्वेता ने पूछा। 

“नहीं पता।”

“अजीब बात कर रहे हो विनम्र! तुम्हें कुछ हुआ और तुम्हीं को नहीं पता क्या हुआ था। जब तुम्हें हुआ था तब तुम ‘उसे घूर रहे थे।’”

“क-किसे?”

“उस कलमुँही को।” -श्वेता ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें स्विमिंग पूल की तरफ घुमाई। 

अब... विनम्र ने उस तरफ देखा। 

हाँ, वह वही थी। एक लड़की। एक ऐसी लड़की जिसके जिस्म पर केवल ब्रा और वी शेप का अण्डरवियर था। स्विमिंग पूल के पानी में वह अपने पुरुष साथी के साथ अठखेलियाँ कर रही थी। पुरुष अधेड़ था। लड़की से करीब दुगनी उम्र का! पुरुष ने उसे बाँहों में भरना चाहा। लड़की खिलखिलाई और मछली केए मानिंद पानी के अंदर तैरती चली गयी। यूँ... जैसे पुरुष को ‘तरसा’ रही हो।

स्विमिंग पूल पर और लोग भी थे। बल्कि अनेक लोग थे। वे शोर भी कर रहे थे मगर विनम्र के कानों में गूँजी तो सिर्फ और सिर्फ उस लड़की खिलखिलाहट! वह खिलखिलाहट विनम्र को अपने कानों में पिघले हुए शीशे की मानिंद उतरती सी लगी और आँखें... आँखें एक बार फिर उसी पर जमी रह गईं। उस पर जिसे विनम्र ने आज से पहले कभी नहीं देखा था। वह लड़की उसके लिए पूरी तरह अजनबी थी। बावजूद इसके इस वक्त उसे सिर्फ और सिर्फ वह लड़की ही नजर आ रही थी। स्विमिंग पूल पर मौजूद भीड़ में से और कोई नहीं दिख रहा था उसे। उसका पुरुष साथी भी नहीं। 

एक बार फिर जहन मे विस्फोट-सा हुआ। 

उसके अंदर मौजूद अनजानी ताकत चीखी- “कितनी सुंदर है वह लड़की मगर मरने के बाद और भी ज्यादा सुंदर लगेगी। हाथ-पैर ठंडे पड़ जाएंगे उसके! वाह!... मज़ा आ जाएगा! विनम्र... मार डाल उसे।”

“देखो ... देखो विनम्र।” श्वेता की घबराई हुई आवाज बहुत दूर से आती महसूस हुई - “तुम्हारा चेहरा फिर भभकने लगा है। जबड़े फिर कस गए हैं। तुम्हें फिर कुछ हो रहा है विनम्र! खुद को संभालो।”

“हाँ।” विनम्र ने मन-ही-मन खुद से कहा - “श्वेता ठीक कह रही है। मुझे खुद को संभालना चाहिए। वरना मैं उस लड़की को मार डालूँगा। मगर क्यों- मैं तो उसे जानता तक नहीं। फिर मैं क्यों उसे मार डालना चाहता हूँ? हे भगवान! ये मुझे क्या हो रहा है? मैं क्यों उस लड़की की गर्दन दबाना चाहता हूँ?”

“क्योंकि वह मरने के बाद सुंदर लगेगी।” जवाब उसके अंदर मौजूद अज्ञात ताकत ने दिया - “उससे कई गुना ज्यादा सुंदर जितनी इस वक्त लग रही है। अपनी आँखों को सुकून पहुँचाना चाहता है तो उसे मार डाल। बहुत शांति मिलेगी तेरी आत्मा को। यकीन नहीं आता तो उसकी गर्दन दबाकर देख।”

“होश में आओ विनम्र! होश में आओ।” घबराई हुई श्वेता ने उसे एक बार फिर झँझोड़ा। 

विनम्र फिर चौंका। 

जैसे सोते से जागा हो। 

उस लड़की के अलावा भी सबकुछ नजर आने लगा। लड़की के साथ का पुरुष भी। स्विमिंग पूल पर मौजूद भीड़ भी और बुरी तरह आंतकित श्वेता भी। एक बार फिर उसने श्वेता को ‘अजनबियों’ की सी नजर से देखा। साथ ही महसूस किया, उसका अपना चेहरा इस वक्त पसीने से बुरी तरह भरभराया हुआ है। 

“तुम्हें फिर कुछ हुआ था विनम्र?” श्वेता ने पूछा - “आखिर बात क्या है?”

“चलो यहाँ से। श्वेता के सवालों का जवाब देने केए जगह विनम्र ने उसकी कलाई पकड़ी और तेजी के साथ ‘स्विमिंग पूल जोन’ से बाहर निकलने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गया।”

“अरे... अरे!” उसके साथ खिंची चली जा रही श्वेता ने कहा - “ये क्या कर रहे हो विनम्र! हम लोग यहाँ ‘इन्जॉय’ करने आए थे मगर तुम हो कि आते ही वापिस चलने...”

“श्वेता।” उसने ठिठककर कहा - “अगर मैं यहाँ रुका तो उसका खून कर दूँगा।”

“ख-खून!” श्वेता के जिस्म का रोयाँ खड़ा हो गया। 

“हाँ।”

“क-किसका?”

विनम्र ने स्विमिंग पूल मे अठखेलियाँ कर रही लड़की की तरफ इशारा करके कहा- “उसका।”

“क-क्या बात कर रहे हो?” श्वेता हकला गई- “क्या तुम उसे जानते हो?”

“नहीं।”

“फिर क्यों... क्यों खून कर दोगे उसका?”

“मुझे नहीं पता।”

“अजीब बात कर रहे हो विनम्र। जिसे जानते तक नहीं। जिससे न तुमहारी दोस्ती है न दुश्मनी। जिससे तुम्हारा कोई सम्बन्ध ही नहीं है उसे क्यों कत्ल कर दोगे?”

“कहा न मुझे नहीं पता! केवल इतना जानता हूँ - अगर वह लड़की मेरी आँखों के सामने रही तो मैं उसे छोड़ूँगा नहीं। क्या तुम चाहती हो मैं हत्यारा बन जाऊँ? उसकी हत्या कर दूँ?”

“न-नहीं!” श्वेता काँपकर रह गई - “म-मैं भला ऐसा कैसे चाह सकती हूँ?”

“तो फिर आओ मेरे साथ! निकलो वहाँ से।” कहने के साथ एक बार फिर वह उसकी कलाई पकड़कर स्विमिंग पूल से बाहर की तरफ बढ़ गया। लड़की अब भी अपने पुरुष साथी को ‘सता’ रही थी। 

उस बेचारे को तो इल्म तक नहीं था कि वह मरने से बाल-बाल बची है। 


*****

पुस्तक लिंक: पोथी 

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