नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

किताब परिचय: सव्यसाची : छल और युद्ध

किताब परिचय: सव्यसाची : छल और युद्ध



किताब परिचय

वर्षों पूर्व शांति स्थापित करने के लिए जिस एकद्वीप का विभाजन हुआ था, आज वही एकद्वीप खड़ा है एक भीषण युद्ध की विभीषिका पर। दक्षिणांचल का महाराज शतबाहु जल दस्युओं की सहायता से पुनः अखंड एकद्वीप का निर्माण करना चाहता है, परंतु उसके परिणाम सबके लिए भयावह होने वाले हैं।

मेघपुरम को लक्ष्य बना कर अपने ग्राम से निकला कौस्तुभ क्या मायावियों, वनवासियों और मार्ग की अन्य बाधाओं को पार कर अपने गंतव्य तक पहुँच पायेगा?

मरुभूमि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहा शिखी क्या अपने साथ घट रही घटनाओं और स्वयं की वास्तविकता को जान पायेगा?

सिंधु के तट पर बसे प्रसान नगर में छद्म रूप में रह रहा युवराज यशवर्धन क्या समय से पूर्व वर्षानों के षड्यंत्र को समझ पायेगा?

किस प्रकार जुड़े हैं यह सभी आने वाले युद्ध से?

छल, क्रोध, माया, प्रेम और साहस से भरी अविस्मरणीय गाथा !

पुस्तक लिंक: अमेज़न | सूरज पॉकेट बुक्स



पुस्तक अंश


मरुभूमि के निकट स्थित घने वन में वह अत्यधिक तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था। अंधकारमय रात्रि होने के उपरांत भी वह सूखी टहनियों से इस प्रकार बचते हुए चल रहा था कि उनके टूटने से किसी भी प्रकार की ध्वनि न उत्पन्न हो। वह नहीं चाहता था वे सावधान हो जाएँ जिनको ढूँढ़ते हुए वह वन में विचरण कर रहा था।

रात्रि के समय वन में भयावह ध्वनि उत्पन्न करती वायु और कीट पतंगो का असामान्य स्वर हिंसक पशुओं को भी उनके आश्रयों में रहने को विवश कर रहा था। परंतु वह जानता था कि जिसे वह ढूँढ रहा है, वे उनसे भी अधिक हिंसक हैं। आकाश में अर्धचंद्र उदित हो चुका था, परंतु उसकी मद्धम किरणें घने वृक्षों के कारण वन की भूमि तक नहीं पहुँच पा रहीं थीं।

एक सर्प ने उसको आगे बढ़ते हुए देखा; परंतु उसके मुख के भावों को देख वह अपने स्थान पर ही रुका रहा। वह स्वयं नहीं जानता था कि वह क्यों क्रोधित था। उसे ज्ञात था कि आश्रम की भूमि से बिना आज्ञा के वन में आना निषेध है, परंतु उनके कृत्यों का दंड वह स्वयं देगा, उसने निश्चिय किया था। उसकी मुट्ठियाँ कसी हुई थीं।

उसे वन में दूर से आता हुआ प्रकाश दिखाई दिया। यह वही हैं, उसने मन में सोचा। उसे और अधिक सावधानी से आगे बढ़ना होगा। असावधान शत्रु पर पहला प्रहार करके उन्हें अचंभित करना होगा। उन्होंने एक शिशु का अपहरण किया था, और संभवतः वे आज ही उसकी बलि भी देने वाले थे। उससे पूर्व उसे उन तक पहुँचना होगा। वे माया के पूजक थे; वह जानता था कि वे मायावी थे जो जीवात्मा को ब्रह्मात्मा में विलीन होने से पूर्व उसकी शक्तियों को संचित और प्रयोग करने की कला जानते थे।

प्रकाश की दिशा में बढ़ते रहने पर उसे कुछ दूरी पर उस प्रकाश का स्रोत दिखा। उसने दूर से ही प्रज्ज्वलित अग्नि को देखा जिसके निकट वह सभी बैठे आपस में बातें कर रहे थे। उसने ध्यानपूर्वक उन्हें देखा, वह संख्या में चार थे। शत्रु पर आक्रमण से पूर्व उसकी वास्तविक स्थिति ज्ञात करना आवश्यक था।

जैसे जैसे वह अग्नि के निकट बढ़ रहा था, उसके प्रकाश में उसके केसरी वस्त्र भी स्पष्ट रूप से दिख रहे थे। मरुभूमि के अधिकाँश जन और ऋषि केसरी रंग के ही वस्त्र पहनते थे; यद्यपि यह कोई नियम नहीं था, परंतु समय के साथ साथ केसरी रंग मरुभूमि में स्थित अग्नि कुल संप्रदाय का प्रतीक रंग बन गया था।

वह कुछ और आगे बढ़ा तो उसने उनके निकट ही एक शिला पर रखे हुए शिशु को देखा। वह शांतिपूर्वक उस शिला पर पड़ा हुआ था। उसका अनुमान था कि शिशु अभी मृत नहीं था, क्योंकि मायावी मृत की बलि नहीं देते थे। अवश्य ही उन्होंने किसी प्रकार उस शिशु को मूर्छित किया हुआ था अथवा रोते रोते वह शिशु स्वयं ही मूर्छित हो गया था।

उसकी मुट्ठियाँ और अधिक कस गयीं। उसने स्मरण किया कि एक दिन वह भी इसी भांति वन में पड़ा हुआ था। स्वयं उसे जन्म देने वालों ने ही उसे वन में छोड़ दिया था, संभवतः मरने के लिए। इसका कारण भी वह भलीभांति जानता था।

प्रकृति ने उसे न पुरुष बनाया था और न स्त्री। वह दोनों में से कुछ नहीं था या दोनों था।

वह एक किन्नर था।

******

उस स्थान से थोड़ी दूर-
"तुम्हारे होते हुए शिखी आश्रम से कैसे निकल गया।"- महर्षि वह्निमित्र ने क्रोधित अवस्था में सायक से पूछा जो उनके साथ ही चल रहा था।

"क्षमा करें महर्षि, परंतु आप तो शिखी का व्यवहार जानते ही हैं। मैं स्वयं उसपर दृष्टि रखे हुए था, परंतु वह कब आश्रम से निकल गया, मुझे ज्ञात ही नहीं हुआ।"- सायक ने महर्षि के मुख को देखा। उनके मुख पर क्रोध के साथ साथ चिंता के भाव भी स्पष्ट दिख रहे थे। वह एक किन्नर बालक के लिए क्यों परेशान थे, वह यह समझने में सक्षम नहीं था।

जैसे ही उसे ज्ञात हुआ था कि शिखी आश्रम से निकल कर वन की दिशा में गया है, उसने अविलंब महर्षि को इसकी सूचना दी। परंतु उसे आश्चर्य तब हुआ जब महर्षि स्वयं उसे ढूँढने के लिए वन की ओर निकल पड़े। वह अग्नि कुल संप्रदाय के प्रमुख थे, महर्षि वह्निमित्र। उनके एक संकेत पर सैंकड़ों लोग उस किन्नर को ढूँढने के लिए निकल जाते।

परंतु इस समय, रात्रि के अंधकार में महर्षि स्वयं उसके साथ हाथों में अग्नि दीपदंड लिए उसे ढूँढ रहे थे। उन्होंने उसे किसी को भी इस विषय में सूचित करने के लिए मना किया था। उसने बहुत अनुनय किया तब महर्षि उसे साथ ले जाने को तैयार हुए थे। वह जानता था कि यदि आश्रम में किसी को यह ज्ञात हुआ कि उसने महर्षि को अकेले वन में जाने दिया था तो वे लोग अवश्य उसपर क्रोधित होंगे।

"मुझे शंका है कि शिखी उन मायावियों को ढूँढने वन में गया होगा। इस माह उन्होंने तीसरे शिशु का अपहरण किया है।"- उसने महर्षि से कहा। महर्षि की शांति उसे और भी भयभीत कर रही थी।

"इसमें शंका की कोई बात ही नहीं सायक, मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह उन्हीं मायावियों को ढूँढने वन में गया है। जब उन्होंने दूसरे शिशु का अपहरण किया था तभी शिखी ने मुझसे अनुमति माँगी थी। परंतु मैंने उसे अनुमति नहीं प्रदान की थी।"- वह्निमित्र ने चिंतित स्वर में कहा। जब कुछ दिनों पूर्व शिखी ने उनसे स्वयं मायावियों को ढूँढने के विषय में अनुमति माँगी थी तो उन्होंने उसके स्वर में अत्यधिक क्रोध का अनुभव किया था। वह उनसे उन मायावियों को शीघ्रतिशीघ्र दंड देने के विषय में कह रहा था। हालाँकि मायावियों को अतिशीघ्र बंधक बनाने और दंड देने के विषय में वह स्वयं विचार कर रहे थे, परंतु पंद्रह वर्षीय शिखी के मुख से उन्हें यह सुनना असामान्य प्रतीत हो रहा था। वैसे वह बालक स्वयं सामान्य नहीं था, परंतु वह नहीं चाहते थे कि शिखी अनभिज्ञता और क्रोधवश स्वयं को किसी प्रकार के संकट में डाल ले। इसी कारण उन्होंने अपने प्रधान सहायक आचार्य सायक को आदेश दिया था कि वह शिखी की गतिविधियों पर ध्यान देते रहें। वह अभी मायावियों द्वारा उत्पन्न समस्या को सुलझाने के विषय में ही विचार कर रहे थे कि सायक ने उन्हें शिखी के विषय में यह सूचना दी।

"पता नहीं किस प्रकार ये मायावी मरुभूमि के निकट आ गए। पहले दो प्रयासों से में सफल होने के कारण अवश्य वे निडर हो गए होंगे।" सायक धीमे से बोला। उसने महर्षि की दिशा में देखा परंतु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।

महर्षि ने केसरी रंग के अंगवस्त्र और धोती पहनी हुई थी जो अग्नि कुल का प्रतीक रंग मानी जाती थी। उनके हाथों में थमे दीपदंड की अग्नि में सायक स्पष्ट रूप से उनके मुख के भावों को देख सकता था। वह अवश्य ही उस बालक के लिए चिंतित थे। परंतु उसे यह भी ज्ञात था कि शिखी आश्रम के सबसे प्रतिभाशाली शिष्यों में से एक था। यदि वह मायावियों से जीत नहीं सकता तो कम से कम उनके पहुँचने तक वह मायावियों से संघर्ष तो कर ही सकता था। ईश्वर कृपा करें, सायक ने मन ही मन प्रार्थना की।

******

लेखक परिचय

किताब परिचय : सव्यसाची - आकाश पाठक



22 वर्षीय आकाश पाठक बचपन से ही कॉमिक्स और उपन्यास में रूचि रखते हैं। गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त करने के बाद वह वर्तमान में प्रतिलिपि कॉमिक्स में एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।

सव्यसाची इनका प्रथम प्रकाशित उपन्यास है, हालाँकि इसके पहले वह कई कहानियाँ लिख चुके हैं जिनके ऑडियो संस्करण और कॉमिक्स रूपांतरण आ चुके हैं।

संपर्क:
फेसबुक | इंस्टाग्राम | ईमेल :  authorakashpathak@gmail.com

नोट: 'किताब परिचय' एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

contactekbookjournal@gmail.com

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

8 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
    'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद मैम....

      Delete
  2. "सव्यसाची : छल और कपट" पर आधारित बहुत ही शानदार समीक्षा एवं पुस्तक परिचय..।

    ReplyDelete
  3. बढ़िया और शानदार है सब्यसाची आकाश पाठक टैलेंटेड हैं
    और आप भी अच्छा लिखते है आर्टिकल

    ReplyDelete
  4. हमेशा की तरह बहुत बढ़िया परिचय कराया आपने किताब से

    ReplyDelete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल