नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

ये हैं के डी पी पेन टू पब्लिश 2021 के हिन्दी भाषा के विजेता। आपने कितनों को पढ़ा है?

हाल ही में अमेज़न द्वारा आयोजित प्रतियोगिता  के डी पी पेन टू पब्लिश (KDP Pen to Publish) के चौथे संस्करण  के विजेताओं के नाम घोषित किये गये। अमेज़न द्वारा आयोजित के डी पी पेन टू पब्लिश प्रतियोगिता (KDP Pen to Publish) में रचनाओं के दो श्रेणियाँ रखी जाती हैं। यह श्रेणी शब्द संख्या के आधार पर सुनिश्चित की जाती हैं।  पहली श्रेणी दीर्घ फॉर्मेट (Long Format) होती है जिसमें 10000 शब्दों या इससे ज्यादा शब्दों की रचनाएं मान्य होती हैं और दूसरी श्रेणी लघु फॉर्मेट (short format) होती है जिसमें 2000 शब्दों से लेकर 10000 शब्दों की रचनाएं ही मान्य होती हैं। यह प्रतियोगिता अंग्रेजी, हिंदी और तमिल भाषा में लिखने वाले रचनाकारों के लिए ही आयोजित की गयी थी। हर श्रेणी में इन भाषाओं की तीन-तीन रचनाओं को प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार दिया जाता है।

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आज हम आपके समक्ष के डी पी पेन टू पब्लिश (KDP Pen to Publish) 2021 में शामिल हुई हिन्दी  भाषा की उन रचनाओं की जानकारी लेकर आये हैं जिन्हें इस प्रतियोगिता में विजयी घोषित किया गया हैं। हम लोग आपको दीर्घ और लघु दोनों ही श्रेणी में पुरस्कार हासिल करने वाली रचनाओं के विषय में बतायेंगे।

 

ये हैं के डी पी पेन टू पब्लिश 2021 के हिन्दी भाषा के विजेता। आपने कितनों को पढ़ा है?


दीर्घ श्रेणी में निम्न रचनाओं ने मारी बाजी 

ओये! मास्टर के लौंडे - दीप्ति मित्तल

दीर्घ श्रेणी में प्रथम पुरस्कार लेखिका दीप्ति मित्तल  के लघु उपन्यास ओये! मास्टर के लौंडे को दिए जाने की घोषणा हुई है। 80 के दशक के दो बालकों की कहानी दर्शाता यह उपन्यास आपको अपने हास्य प्रसंगों के द्वारा गुदगुदाता है। 

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किताब परिचय:

‘ओय! मास्टर के लौंडे’ दो देसी बच्चों की देसी शरारतें समेटे एक हल्की-फुल्की हास्य कहानी है जो आपको ले जाएगी 1980वें दशक को पार कर रहे एक छोटे से शहर मुज़फ्फ़रनगर में जहाँ डी.ए.वी. कॉलेज के स्टाफ क्वाटर्स में 12 साल का लड़का दीपेश रहता था और उससे थोड़ा दूर उसका क्लासमेट हरदीप। दोनों पक्के दोस्त थे। साथ स्कूल जाते, साथ पढ़ते और शरारतें भी साथ करते। मगर दोनों में एक फ़र्क था। दीपेश मास्टर का बेटा था और हरदीप चाय वाले का...।

दीपेश की नज़र में हरदीप मनमर्जियां करने वाला एक आज़ाद परिंदा था और वो खुद पिंजरे में कैद ग़ुलाम। वहीं दूसरी ओर हरदीप की नज़र में दीपेश की लाइफ सेट थी क्योंकि उसके पापा प्रोफ़ेसर थे, कोई चाय वाले नहीं...। दीपेश ‘हरदीप’ हो जाना चाहता था, वो सारे सुख पाना चाहता था जो हरदीप के पास थे जैसे हर महीने फ़िल्में देखना, ज़ोर ज़ोर से गाने गाना, पतंगें लूटना, खोमचे पर चाऊमीन खाना, ‘फ़िल्मी कलियाँ’ पढ़ना और जब चाहे स्कूल से छुट्टी मार लेना...दीपेश इन सुखों से वंचित था क्योंकि उसके पापा मास्टर थे जिनकी नज़र में ये सब करना गलत था। दीपेश की व्यथा और हरदीप की कथा के ताने-बाने से बुना गया ये हास्य उपन्यास आपको आपके स्कूल के दिनों में ले जाएगा और आप कह उठेंगे, ‘अरे! ये तो हमारे साथ भी हुआ था!’

किताब लिंक: अमेज़न

ब्रेकिंग न्यूज़: वहशी कातिल - अजिंक्य शर्मा 

ब्रेकिंग न्यूज़: वहशी कातिल अजिंक्य शर्मा का लिखा हुआ लघु-उपन्यास है। दीर्घ श्रेणी में वहशी कातिल को द्वतीय स्थान प्राप्त हुआ है। अजिंक्य शर्मा किंडल पर लिखे हुए अपने अपराध कथाओं और हॉरर कथाओं के लिए जाने जाते हैं। ब्रेकिंग न्यूज़: वहशी कातिल भी एक मर्डर मिस्ट्री है। 

यह भी पढ़ें: अजिंक्य शर्मा से उनके उपन्यास दूसरा चेहरा पर एक छोटी सी बातचीत

किताब परिचय:

सूरजवीर सिंह एक अरबपति बिजनेसमैन था लेकिन उस पर अपनी ही कंपनी के अरबों रूपये हड़प जाने का आरोप था, जिसके सिलसिले में पुलिस और जाँच एजेंसियां उसकी तलाश में जुटी हुईं थीं.

लेकिन उनसे पहले कोई और उस तक पहुँच गया.

फिर क्या हुआ?

अजिंक्य शर्मा की कलम से निकली एक तेजरफ्तार हैरतअंगेज मर्डर मिस्ट्री

किताब लिंक: अमेज़न

पल्लवी - पल्लवी पुण्डीर 

दीर्घ श्रेणी में तृतीय पुरस्कार लेखिका पल्लवी पुण्डीर  के उपन्यास पल्लवी को दिए जाने की घोषणा हुई है। अपने इस उपन्यास पल्लवी से उन्होंने हिडिम्बा की कहानी की कोशिश की है जिसका असल नाम पल्लवी था। 

किताब परिचय:

भारतीय पौराणिक कथाओं में पितृसत्ता और पुरुष को विशेष स्थान मिला है । स्त्रियों की दशा और स्थान दोनों ही निम्न रहें । वैसे कुछ स्त्री चरित्रों को महत्वपूर्ण स्थान भी मिला । लेकिन उन्हें भी या तो प्रताड़ित होते दिखाया जाता अथवा वे सतीत्व के मापदंड तय करने में व्यस्त रहतीं । वहीं कुछ स्त्री चरित्र ऐसे भी हैं जिन्हें कथाओं में तो अनदेखा किया गया, लेकिन उनका स्वयं का चरित्र इतना मजबूत रहा कि वे पाठकों के दिल और दिमाग पर प्रभाव छोड़ गईं। वैसा ही एक चरित्र है, हिडिंबा । बहुत कम लोगों को पता है कि हिडिंबा का वास्तविक नाम 'पल्लवी' था । राक्षस कुल में जन्म लेने वाली यह स्त्री तत्कालीन समाज की विचारधारा को लगातार चुनौती देती रही ।

वह वनवासी थी । आजाद और स्वछंद । एक ऐसी विचारधारा जिसके चारों तरफ उस समय का समाज भी लक्ष्मण-रेखा नहीं खींच पाया। हिडिंबा कहें अथवा पल्लवी कहें, इतना तो तय है कि आधुनिक युग का नारिवाद उसमें अपनी झलक देख सकता है ।

हिडिंबा का चरित्र महाभारत काल से है । कुछ घटनाओं के अतिरिक्त, यह सम्पूर्ण उपन्यास मेरी कल्पना की उड़ान है।


किताब लिंक: अमेज़न

लघु-श्रेणी में निम्न रचनाओं ने मारी बाजी 

फ़ालतू का कागज - चन्द्रभानु सोलंकी

लघु श्रेणी में प्रथम पुरस्कार लेखक चन्द्रभानु सोलंकी की कहानी फ़ालतू का कागज को दिए जाने की घोषणा हुई है।

किताब परिचय:

हम दिनभर में कितने ही कागज़ देख लेते होंगे। हर कागज़ हमारे काम का नहीं होता इसलिए हम उसे फेंक देते है। कुछ ऐसे ही कागज़ को एक दिन वो छात्र भी फेंकने ही वाला था पर उसे किसीने रोक लिया। अब उसने वो कागज़ फेंका या संभाल कर रख लिया बस उसी कागज़ की है ये छोटी सी कहानी।

किताब लिंक: अमेज़न

पुष्पक -विशी सिन्हा

लघु श्रेणी में द्वितीय पुरस्कार लेखक विशी सिन्हा की कहानी पुष्पक को दिए जाने की घोषणा हुई है। 21वीं सदी में साइबर क्राइम अपराधों की एक अलग श्रेणी बनकर उभरे हैं। ऐसे ही एक साइबर क्राइम पर यह कहानी लिखी गयी है। 

यह भी पढ़ें: एक बुक जर्नल में की गयी पुष्पक की समीक्षा

किताब परिचय:

वक़्त के साथ अपराध करने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। अब डिजिटल-युग में अपराध तकनीकी की सहायता से किये जा रहे हैं। जाहिर सी बात है, कम्प्यूटर और इन्टरनेट की सहायता से किये जाने वाले अपराध बेहतर तकनीकी ज्ञान और दक्षता से ही अंजाम दिए जाते हैं। ऐसे अपराध और अपराधियों की रोकथाम दिन-प्रतिदिन दुष्कर होते जा रहा है। लेकिन अपराध आखिरकार “कागज़ की नाव” ही साबित होती है, जो बहुत देर तक, बहुत दूर तक नहीं जा सकती। सायबर वर्ल्ड में किये गए ऐसे ही एक अपराध और उसके इन्वेस्टिगेशन की कहानी है पुष्पक।

किताब लिंक: अमेज़न

फरिश्ता - सुनीता लाहोटी

लघु श्रेणी में तृतीय पुरस्कार लेखिका सुनीता लोहाटी की कहानी फरिश्ता को दिए जाने की घोषणा हुई है। सुनीता लोहाटी की यह कहानी एक पाँच वर्षीय बच्ची की कहानी है।

किताब परिचय:

उसका न नाम था न ही उसकी कोई माँ थी जो उसे नाम दे सके। पाँच वर्ष की उस बच्ची के हाथ लोगों के समक्ष भीख माँगने को फैले हुए थे जबकि उस वक्त उसे भीख क्या होती है इसका अहसास ही न था। उसके दिल में मासूमियत थी और मन में हर एक शब्द का अर्थ जानने की इच्छा। ऐसे ही एक दिन उसने एक शब्द फरिश्ता सुना और उसकी जिंदगी ही बदल गयी। 

पर क्या असल जिंदगी में फरिश्ते मिलने मुमकिन है? क्या वह अपने फरिश्ते को ढूँढ पायी? 

किताब लिंक: अमेज़न

बताते चलें दीर्घ फॉर्मेट की श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विजेता को पाँच लाख रूपये का नगद पुरस्कार दिया जायेगा। वहीं दूसरे स्थान पर आये विजेता को एक लाख का नगद पुरस्कार और तृतीय स्थान पर आये विजेता को पचास हज़ार का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। 

लघु-फॉर्मेट श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले  विजेता को पचास हजार रूपये नगद दिया जायेगा। वहीं द्वीतीय स्थान प्राप्त करने वाले विजेता को पच्चीस हजार रूपये और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विजेता को दस हजार रूपये की इनाम राशी दी जायेगी।

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तो आप बताइये, आपने इनमें से कितनी रचनाओं को पढ़ा है?

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