नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

अगले भाग के लिए अच्छी भूमिका बनाता औसत से अच्छा कॉमिक है सर्पसत्र - दीपक पूनियां

दीपक पूनियां राजस्थान के रहने वाले हैं।  कॉमिक बुक्स के दीवाने हैं। हालिया रिलीज़ हुयी सर्पसत्र पर उन्होंने हमें अपने विचार लिखकर भेजे हैं। आप भी पढ़िये।

समीक्षा: सर्पसत्र - दीपक पुनियां
सर्पसत्र


प्रकाशक: राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्तापृष्ठ संख्या: 48  लेखक: अनुपम सिन्हापेंसिलेर: अनुपम सिन्हा |  इंकर: जगदीश | कलरिस्ट: भक्त रंजन | श्रृंखला: विश्वरक्षक नागराज

कॉमिक बुक लिंक: अमेज़न

 

सर्पसत्र राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता की हालिया रिलीज़ कॉमिक बुक है। इस कॉमिक्स के माध्यम से पूरे सात साल बाद न केवल विश्व रक्षक नागराज ने वापसी की है बल्कि साथ ही अनुपम सिन्हा जी ने नागराज के कॉमिक्स पर काम करने की भी वापिसी की है। इससे पहले अनुपम सिन्हा जी  ने 2014 में आई विश्व रक्षक नागराज की कॉमिक्स पर काम किया था। 

सर्पसत्र की कहानी की बात करें तो कहानी की शुरुआत प्रलय के एक दृश्य के बाद से शुरू होती है। यह प्रलय क्यों आई है यह कहानी की शुरुआत में बताया नहीं गया है। इसके बाद कहानी में एक अनजान महिला दिखती है  जिसके पीछे कुछ इच्छाधारी साँप पड़े हैं और उनसे नागराज का टकराव होता है। स्टोरी में आगे महानगर में नागराज के रहने की प्रॉब्लम, पाताल लोक से अप्सरा के धरती पर आने और नागराज के गायब होने के बारे में फ्लैशबैक में बतलाया गया है। अंतिम पृष्ठों  पर तौसी की भी एंट्री करवा के नेक्स्ट पार्ट में दोनों के ज़बरदस्त टकराव  का आधार स्थापित किया गया है। 

प्रकाशक द्वारा इस सीरीज को तौसी वर्सेस नागराज के लिए हाइप किया जा रहा है और सर्पसत्र श्रृंखला के प्रारंभिक इवेंट्स या कह सकते है कि कहानी की भूमिका बनाने का काम करती है। चूँकि कॉमिक बुक की कहानी एकदम अनुपम सिन्हा स्टाइल है, जिसे हम सब काफी सालों से पढ़ते चले आ रहे है,  तो इतने सालों के गैप के बाद भी ऐसा कुछ ताजगी लिए हुए कथानक पढ़ने का फील नहीं होता है।

अनुपम जी की कहानियों की जो एक सबसे बड़ी कमी है वो है उनका कैरक्टर डेवलोपमेन्ट पर ज़रा भी काम न करना। चाहे नागराज ले ले या ध्रुव, दोनों के किरदार आज भी वैसे ही लगते है जैसे 15-20 साल पहले लगते थे। कहानी के दूसरे मुख्य किरदार भी समय में वैसे ही फँसे हुए लगते हैं। इतने वर्षों के गुजरने के बाद भी उनमें कोई बदलाव, जो हर व्यक्ति के अन्दर समय के साथ आता है, हुआ हो ऐसा नहीं लगता है। मसलन नागु अपनी पहली कॉमिक सम्मोहन से लेकर अभी तक वैसे ही फिल्मी स्टाइल में काम करता है और बातचीत करता है। वहीं भारती विसर्पी नागराज का लव ट्राइंगल त्रिफना सीरीज से घिसते हुए आ रहा है। इतने टाइम से तीनों वही अटके पड़े है। वेदाचार्य तो मानो बुढ़ापे में अमृत पी लिए है। पहली बार खजाना सीरीज से लेकर आज तक वैसे के वैसे ही है। नागराज विसर्पी का रिश्ता जो कई बार बनता बिगड़ता आ रहा है, उस रिश्ते को लेकर नागराज को इतनी बचकाने तरीके से प्रपोज करने की हरकत करते दिखाया है, जो जमता नहीं है। वह भी तब जबकि त्रिफना, फुंकार आदि सीरीज में, जो कि 14-15 साल पहले आ चुकी है, इससे कही गंभीर तरीके से इस परिस्थिति को दिखाया है। यानी जहाँ चीजें और विकसित होनी चाहिए वहाँ उसे और बचकाना किया जा रहा है। ऐसा लगता है मानो सबके दिमाग एक पॉइंट से आगे विकसित ही नहीं हो रहे हैं। 

दूसरी चीज जो मुझे खली वह यह है कि सर्पसत्र कॉमिक में किरदारों का व्यवहार इतना अजीबोगरीब दिखाया गया है कि यकीन नही होता ये काम इतने सीनियर और राज कॉमिक्स के सबसे "बड़े" राइटर/आर्टिस्ट का है। तौसी पूरी धरती को खत्म करने चल देता है क्योंकि उसकी प्रेमिका उसको बिना बताए धरती पर चली गई। यह प्लाट पॉइंट काफी बेतुका लगता है। आम व्यक्ति के साथ ऐसा हो तो वह इसकी वजह जानने की कोशिश करेगा लेकिन क्या मजाल तौसी भाई साहब इसकी वजह जानने की कोशिश करे। उन्हें सबसे अच्छा उपाय यह सूझता है कि धरती ही खत्म कर दो। न रहेगी धरती न रहेगी प्रेमिका और  न रहेगा पाताल जहाँ वो खुद रहता है। भई वाह..मतलब लेखक ने कसम खा ली है कि दिमाग तो थोड़ा बहुत भी इधर उधर लगाना नही है। ऐसे ही नागमणि को दिखाया गया है। उसका सबसे बड़ा दुश्मन उसके पास मदद माँगने आता है और वह कहता है कि पहले मेरे को पापा बोलो तभी हेल्प करूँगा। विलन ना हुआ कॉलेज होस्टल का लौंडा हो गया। विश्व रक्षक नागराज सीरीज में तो नागमणि और नागराज का रिश्ता ऐसा कभी दिखाया भी नहीं गया था। अब तक पता नही कितनी बार दोनों का आमना सामना हो चुका है। ऐसा लगता है कि  नरक नाशक नागराज की "पापा-बेटे" वाली चीज अनुपम जी ने वहाँ से उठा के यहाँ घुसा दी है। इसके अलावा शुरुआत में मौजूद "मैडम बिटिया" डायलॉग तो सिर दर्द ही कर देता है

यह ऐसी चीज़ें हैं जो सालों पहले कॉमिक्स में अच्छी लगती थी लेकिन आज के टाइम में सिर्फ बचकानी लगती हैं। साथ ही ये पढ़ने वाले का दिमाग भी खराब कर देती हैं। मुझे लगता है कि आप लास्ट 30-32 सालों से कॉमिक लिख रहे हो और आपको ये भी नही पता कि किस किरदार का क्या व्यक्तित्व है और उसे आज के टाइम में कैसे लिखना चाहिए तो फिर इसके ऊपर क्या ही कहा जा सकता है। 

सर्पसत्र के आर्टवर्क की बात करें तो अनुपम जी का आर्ट हमेशा की तरह पहली नज़र में या सरसरी नज़र में तो अच्छा ही लगता है पर अगर आप थोड़े गौर से आर्टवर्क को देखते है तो आपको कई खामियाँ नज़र आने लगती है। 

आर्टवर्क में कंटीन्यूटी न रखना अनुपम जी की पुरानी खूबी है जिसको उन्होंने यहाँ भी पूरा बनाये रखा है। पहले पेज पर जो ऑटो है, दूसरे पेज पर उसी ऑटो की बैक डिज़ाइन बदल जाती है। भारती के हाथ के कंगन अपने आप एक हाथ से गायब हो जाते है और सूट के गले की डिज़ाइन भी अपनी इच्छा के हिसाब से छोटी बड़ी होती रहती है।  सौडांगी के हार की डिज़ाइन तो हर दूसरे फ्रेम में बदल रही है। 4 फ्रेम में 3 तरह की डिज़ाइन देख सकते है आप। लगता है अनुपम जी के आर्टवर्क में हर चीज़ के पास इच्छाधारी शक्ति हैं। 

टाइम के साथ अनुपम जी का आर्टवर्क वैसे भी कमजोर हुआ जा रहा है। जहाँ उनके पहले के कॉमिक्स में एक पूरे कॉमिक में किरदारों का चेहरा एक जैसा रहता था वहीं सर्पसत्र में यह हर दूसरे पेज पर बदल जाता है। नागराज का चेहरा ही पता न कितनी भाँति का बना है। पहले अनुपम जी का आर्टवर्क/पेन्सिलिंग एकदम कंट्रोल्ड लगती थी पर अब ऐसे फैला हुआ सा लगता है। 

लेकिन फिर भी डिटेलिंग की इन खामियों को नजरंदाज किया जाए तो आर्टवर्क सही है। कम से कम यह आँखों को तकलीफ तो नही देता है।  आजकल कई कॉमिक्सों में मॉडर्न आर्ट के नाम पर ऐसे चित्र बना देते है कि समझ ही न आता आर्टिस्ट क्या बना के क्या दिखाना चाहते हैं ।

सर्पसत्र में इंकिंग जगदीश जी की है जो मेरे को व्यक्तिगत रूप से पसंद नहीं आई। यह आर्टवर्क को बेहतर बनाने के बजाय बिगाड़ती हुई सी नज़र आती है। एक आध जगह पर तो इंकिंग की वजह से किरदारों के चेहरे ही बड़े अजीब से लगते हैं। 

सर्प सत्र में कलरिंग भक्त रंजन की है जो कि सही हुई है। यह ग्लॉसी पेजेज पर और भी बढ़िया निखर के आती है। 

अपनी बात का समापन करूँ तो सर्पसत्र कुल मिला के एक औसत से अच्छा यानी अबव एवरेज कॉमिक है जो अपने अगले पार्ट के लिए बेस बनाने का काम अच्छे से कर देती है। 48 पेज के हिसाब से अनुपम जी ने सही मात्रा में कंटेंट दिया है। इतने में ही कहानी काफी आगे बढ़ जाती है वरना आजकल कुछ राइटर्स 80-90 पेजेज में भी स्टोरी ज़रा सी भी आगे नहीं खिसका पाते हैं। हालिया, दूसरी नई रिलीस कॉमिक आज़ादी की ज्वाला से आर्ट और स्टोरी दोनो के मामले में तो यह काफी बेटर बन पड़ी है। अनुपम जी का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड रहा है अच्छे खासे जमे जमाये प्लॉट को लास्ट में आकर जल्दबाजी में निपटा कर खराब कर देना तो उम्मीद करते है कि इस सीरीज में ऐसा ना हो और नागराज बनाम तौसी की जो हाइप फिलहाल बनाई जा रही है वो हाइप रीडर्स की उम्मीद पर खरी उतरे।

कॉमिक बुक लिंक: अमेज़न

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टिप्पणीकार परिचय


दीपक पूनियां झुंझुनू राजस्थान के रहने वाले हैं। वह फ़िलहाल सरकारी नौकरी की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें कॉमिक्स बुक्स, ग्राफिक नॉवेल पढ़ना, फिल्में और वेब सीरीज देखना पसंद है। घूमने के शौक़ीन हैं लेकिन अभी तक अपने इस शौक को तैयारी के चलते ज्यादा परवान नहीं चढ़ा पाए हैं। लक्ष्य प्राप्ति के बाद इस शौक को परवान चढ़ाने की पूरी इच्छा रखते हैं। 


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