दूसरा चेहरा अजिंक्य शर्मा का चौथा उपन्यास है जो उन्होंने अमेज़न की स्वयं प्रकाशन सेवा (सेल्फ पब्लिशिंग सर्विस) किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग के माध्यम से प्रकाशित किया है। यह उपन्यास अविनाश भारद्वाज श्रृंखला का दूसरा उपन्यास है और इसी सिलसिले में ‘एक बुक जर्नल’ से उन्होंने एक छोटी सी बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आयेगी।
प्रश्न: ब्रजेश जी सबसे पहले तो नए उपन्यास के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई। बातचीत की शुरुआत दूसरा चेहरा के विषय में जानने से ही करते हैं। अपने इस उपन्यास के विषय में पाठकों को कुछ बताईए।

उत्तर: धन्यवाद विकास भाई। मेरा नवीनतम उपन्यास ‘दूसरा चेहरा’ ‘प्राइवेट डिटेक्टिव अविनाश भारद्वाज सीरिज’ का दूसरा उपन्यास और क्रोनोलॉजिकल क्रम में मेरा चौथा उपन्यास है। इससे पिछला उपन्यास ‘काला साया’ एक मर्डर मिस्ट्री है, जिसकी व्यापक सफलता ने ही मुझे ‘अविनाश भारद्वाज’ सीरिज को आगे बढ़ाने के लिये प्रेरित किया। ‘दूसरा चेहरा’ में कुछेक जगहों पर आपको ‘काला साया’ से जुड़ी घटनाओं का जिक्र भी देखने को मिलेगा क्योंकि ये कहानी करीब-करीब ‘काला साया’ के क्लाइमैक्स के पास से ही आगे बढ़ाई गई है। ‘दूसरा चेहरा’ भी एक मर्डर मिस्ट्री है लेकिन इसमें थ्रिल एलीमेंट ज्यादा है, जो मर्डर मिस्ट्री पर हावी रहता है। इसमें एक अलग किस्म के पात्र को भी इन्ट्रोड्यूस किया है, जिसके बारे में ज्यादा कुछ यहाँ कहना स्पॉइलर हो जायेगा। वैसे ‘दूसरा चेहरा’ की जो प्रतिक्रियाएं मुझे प्राप्त हो रहीं हैं, उनके आधार पर मैं कह सकता हूं कि मेरी मेहनत सफल रही। सीरिज के पिछले उपन्यास की तरह ही ये भी भरपूर पसंद किया जा रहा है और पाठक जल्द अविनाश और बियांका से दोबारा मुलाकात कराने की फरमाइश कर रहे हैं।
प्रश्न: उपन्यास अविनाश भारद्वाज श्रृंखला का उपन्यास है। इस किरदार को रचने का ख्याल कैसे आया?
उत्तर: अविनाश भारद्वाज एक प्राइवेट डिटेक्टिव है। पुलिस या किसी अन्य सरकारी जाँच एजेंसी का जासूस आमतौर पर सरकारी नियमों से बंधा होता है जबकि प्राइवेट डिटेक्टिव के साथ ऐसा नहीं होता। इससे पूर्व अपने दोनों पिछले उपन्यासों ‘मौत अब दूर नहीं’ और ‘पार्टी स्टार्टेड नाओ!’ में मैं पुलिस इंस्पैक्टर को नायक जैसे किरदारों में पेश कर चुका हूं। इसलिए अविनाश भारद्वाज के रूप में एक अलग तरह के हीरो को पेश करने की कोशिश की है।
प्रश्न: उपन्यास के लिए क्या आपने कुछ रिसर्च की और अगर हाँ तो यह किन किन बिंदुओं पर थी?
उत्तर: ‘दूसरा चेहरा’ के एक खास किरदार को एक मेंटल डिसऑर्डर का शिकार बताया गया है, जिसका मैंने अपनी ओर से यथासम्भव वास्तविक चित्रण करने का प्रयास किया है, जिसके लिए मुझे काफी रिसर्च करना पड़ा कि उस मेंटल डिसऑर्डर का पेशेंट पर किस तरह का असर होता है। हालाँकि वो किरदार ही ऐसा है कि उसके क्रियाकलापों को वास्तविकता के दायरे में रखना काफी मुश्किल लगता है। फिर भी अभी तक पाठकों से जो प्रतिक्रियाएं प्राप्त हो रहीं हैं, उससे मुझे इस बात का संतोष है कि पाठकों को किरदार भी पसंद आ रहा है और उपन्यास भी। एक पाठक ने तो अपने ई-मेल में ये भी कहा है कि ‘दूसरा चेहरा’ में इतना पोटेंशियल है कि उसकी कहानी को आधार बनाकर मैं अभी आगे दस उपन्यास लिख सकता हूँ।
प्रश्न: आपने रहस्यकथाएं और स्लेशर शैली के उपन्यास लिखे हैं। आगे और किन किन शैलियों के उपन्यासों की पाठक आपसे अपेक्षा रख सकते हैं?
उत्तर: आगे भी मैं विभिन्न जोनर के उपन्यास लिखना चाहता हूँ, जिसमें थ्रिलर, जासूसी आदि शामिल रहेगें। एक लेखक के रूप में-और पाठक के रूप में भी-विविधतापूर्ण लेखन मेरी पहली पसंद है। मेरे ख्याल से अगर कहानी अच्छी है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि जोनर कौन-सा है? ‘जुरासिक पार्क’ जैसी ठोस साइंटिफिक फैक्ट्स पर आधारित किताब लिखने वाले माइकल क्राईटन ने ‘द ग्रेट ट्रेन रॉबरी’ जैसा थ्रिलर भी लिखा था। विविधतापूर्ण लेखन से लेखक को भी अपनी लेखनी और क्षमता को परखने का अवसर मिल जाता है। और कहानी शानदार हो तो पाठक भी पसंद करेंगे ही।
प्रश्न: आपके अभी तक सभी उपन्यास ई बुक फॉरमेट अमेज़न किंडल से आये हैं। इस प्लेटफॉर्म के विषय में बताएँ? इसमें क्या आपको भाता है और इसके नुकसान क्या है? क्या पाठक भविष्य में आपके उपन्यासों की हार्डकॉपी की भी अपेक्षा रख सकते हैं?
उत्तर: किंडल में अपने उपन्यास ई-बुक के रूप में प्रकाशित करना थोड़ा सुविधाजनक हो जाता है। इसीलिए अभी तक मैंने अपने नॉवल किंडल पर ही प्रकाशित किए हैं। नॉवल्स की हार्डकॉपी की भी पाठक भरपूर माँग करते हैं, जिसके चलते मैं जल्द ही नॉवल्स को हार्डकॉपी के रूप में पब्लिश कराने के लिए भी प्रयासरत हूँ। हार्डकॉपी आने में काफी विलम्ब भी हुआ है, जिसको लेकर पाठक नाराजगी भी जाहिर करते हैं लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों से अब तक मैं अपने उपन्यास हार्डकॉपी में नहीं ला पाया हूँ। खैर, पाठकों की ये शिकायत भी जल्द ही दूर करने की कोशिश जारी है, जिससे हार्डकॉपी में पढ़ने के इच्छुक पाठकों को भी जल्द ही मेरे उपन्यास पढ़ने को मिल सकें।
प्रश्न: कोरोना काल चल रहा है। आप इस समय को कैसे देखते हैं? इसका आप पर क्या प्रभाव पड़ा है और आप खुद को किस तरह सकारात्मक रखते हैं?
उत्तर: कोरोना काल दुनिया के लिये बहुत भयावह समय है। इस ने हमें उस सच्चाई से भी रूबरू कराया है, जिससे हम अब तक भागते ही रहे थे। और वो सच्चाई है आपसी सहभागिता की। सह-अस्तित्त्व की। इसने लोगों को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया है। लेकिन दुनिया सिर्फ सोचने से ही नहीं बदलती। उसके लिये काम भी करना पड़ता है। आपसी सहभागिता से भी ये सम्भव है। विचार आपके हों और उन पर कार्य कोई और करे, तो भी उसे कल्पना से हकीकत में बदला जा सकता है। अगर हमारे अंदर कोई कार्य करने की क्षमता नहीं है लेकिन हमारे पास विचार है तो उस विचार को लोगों तक पहुँचाना हमारा दायित्त्व है, जिससे कोई और उस पर कार्य कर सके। कोरोना काल में अब तक इंसान को समझ जाना चाहिए था कि इंसान दुनिया पर राज करने के लिए नहीं बना। उसके ऊपर भी कोई शक्ति है, जो उसे अपने इशारों पर नचाने की ताकत रखती है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि 24 घंटे भागती रहने वाली दुनिया इस तरह थम भी सकती है। लोग घरों से बाहर आने से डरने लगेंगें। हाइवे सूने हो जाएंगें। दिन-रात चलने वाले फैक्ट्री, कारखाने, ऑफिस महीनों के लिए बंद हो जाएंगें। लेकिन ये सब हुआ है। और हो रहा है। लेकिन मानवता के भी अनेक उदाहरण इस बेहद मुश्किल दौर में देखने को मिले। डॉक्टरों, नर्सों आदि स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी जान पर खेलकर लोगों का इलाज किया। अनेक डॉक्टरों ने इस प्रयास में अपने प्राणों की आहुति भी दे दी। लेकिन इसके बाद भी वे अपनी जंग से पीछे नहीं हटे। किसी के पास इसके लिए आँसू बहाने का वक्त नहीं है। कभी नहीं था। डॉक्टर, नर्स आदि खामोशी के साथ वर्षों से यही काम तो करते आए हैं। मैडम क्यूरी और उनके पति ने रेडियोएक्टिविटी पर आजीवन रिसर्च किया और अंत में उन्हीं घातक किरणों के प्रभाव से बीमार होकर इस दुनिया से विदा ले ली। वो सब वो किसलिए कर रहे थे? मानवता के लिए। आज डॉक्टर, नर्स, पुलिस आदि कोरोना के खिलाफ जंग किसके लिए लड़ रहे हैं? मानवता के लिए। लेकिन हमारे पास उनके बलिदान के लिए आँसू बहाने का वक्त नहीं है। हमारे पास दूसरे बड़े मुद्दे हैं। लॉकडाउन कब हटेगा? सरकार गरीबों पर ही क्यों ध्यान दे रही है, मध्यमवर्ग के लिए कुछ क्यों नहीं कर रही? मल्टीप्लेक्स कब खुलेंगें और उनमें फिल्में कब लगनी शुरू होंगीं? एक छोटे से वायरस ने, जिसे खाली आँखों से देख पाना तक सम्भव नहीं है, पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है। ऐसे हालात बना दिए हैं कि इस समय को ‘कोरोना काल’ का ही नाम दे दिया गया है। लेकिन ये ‘कोरोना काल’ आपको ये भी बताता है कि जब एक छोटे से वायरस में इतनी शक्ति है तो फिर सोचिये, आपके बनाने वाले ईश्वर ने आपको कितना शक्तिसम्पन्न बनाया होगा? आपके शरीर में तो उससे कई गुना बड़ी असंख्य कोशिकाएं हैं। मस्तिष्क है, जिसे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस होने के बाद भी वैज्ञानिक भी पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। तो ऐसी शक्तियों के बल पर आप क्या नहीं कर सकते? जरूरत है तो बस अपने-आप को पहचानने की। और अपनी ऊर्जा का उपयोग सकारात्मक कार्यों के लिए करने की। क्योंकि नकारात्मक प्रयोग कोरोना को जन्म दे सकता है।
प्रश्न: ब्रजेश जी बात चीत का सिलसिला तो अविराम चल सकता है लेकिन हमें विराम लेना पड़ता है। यही रीत है। अंत में इस बातचीत को विराम देने से पहले क्या आप अपने पाठकों को कुछ कहना चाहेंगे?
उत्तर: मैं अपने पाठकों से यही कहना चाहता हूँ कि पुस्तकें पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करें क्योंकि किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता। एक बार स्कूल टाइम में मैंने एक डिबेट कम्पीटिशन में हिस्सा लिया था, जिसके लिए मेरी पहले से कोई तैयारी नहीं थी और न ही मैं उस तरह की प्रतियोगिताओं में ज्यादा पर्टिसिपेट करता था। डिबेट का विषय था-‘जीवन में किताबों का महत्त्व’ और हर प्रतिभागी को बोलने के लिए पांच मिनट का समय दिया गया था। अपनी बारी आने से पहले तक तो यही सोच-सोच कर मेरी हालत खराब हो रही थी कि मैं वहाँ सबके सामने खड़े होकर बोल भी पाऊँगा या नहीं? खैर, जब मेरी बारी आई तो मैंने बोल तो लिया ही और आखिरी में पंचलाइन भी डाल दी कि-‘मैंने अब तक तीन हजार से भी अधिक किताबें पढ़ी हैं, जिनमें से मैं प्रत्येक का आभारी हूँ क्योंकि उन्हीं की वजह से मैं यहाँ बोल पा रहा हूँ।’ शायद उसी लाइन की बदौलत मुझे उस कम्पीटिशन में फर्स्ट प्राइज भी मिल गया। तो लब्बोलुआब यही है कि किताबें पढिय़े, दूसरों को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करिये और सबसे ज्यादा जरूरी जो चीज है, वो ये है कि चाहे किताबें पढ़ने या फिल्में देखिये या मनोरंजन का कोई और साधन अपनाइये लेकिन हमेशा अच्छाई को ही ग्रहण करिये, बुराई को दूर से ही नमस्कार कर दीजिये।
तो यह थी अजिंक्य शर्मा से उनके नव प्रकाशित उपन्यास दूसरा चेहरा से जुड़ी बातचीत। बातचीत के प्रति आपकी राय का इन्तजार रहेगा।
दूसरा चेहरा आप किंडल एप्लीकेशन या अपने किंडल डिवाइस पर पढ़ सकते हैं। उपन्यास आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं। अगर आप किंडल अनलिमिटेड सेवा का प्रयोग करते हैं तो किताब आपको बिना किसी अतिरिक्त खर्च किये पढ़ने को मिल जाएगी।
किंडल अनलिमिटेड की सदस्यता आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते है:
‘एक बुक जर्नल’ पर मौजूद अन्य साक्षात्कार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
लेखक परिचय

अजिंक्य शर्मा ब्रजेश कुमार शर्मा का उपनाम है। ब्रजेश कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ के महासमुन्द नामक नगर में रहते हैं। फिलहाल छत्त्तीसगढ़ में वे एक साप्ताहिक समाचार पत्र में कार्यरत हैं।
बचपन से ही किस्से कहानियों के शौकीन अजिंक्य शर्मा उपन्यासों और कॉमिक बुक्स पढ़ा करते हैं। किस्से कहानियाँ पढ़ते पढ़ते ही वो अब किस्से कहानियाँ गढ़ने लगे हैं।
अजिंक्य शर्मा के अब तक निम्न चार उपन्यास किंडल पर ई-बुक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं:
मौत अब दूर नहीं (किताब के ऊपर मेरा लेख इधर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।)
काला साया (अविनाश भारद्वाज #1)
दूसरा चेहरा (अविनाश भारद्वाज #2)
अजिंक्य शर्मा से आप निम्न माध्यमों से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
आभार विकास भाई. 'मौत अब दूर नहीं' पर आपकी समीक्षा भी बहुत अच्छी लगी थी. आप सबके प्रोत्साहन से ही मुझे अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है.
जी अच्छी साहित्यिक कृतियाँ(फिर वो चाहे गम्भीर साहित्य हो, अपराध साहित्य हो या अन्य किसी और शैली(जॉनर)का हो) ज्यादा से ज्यादा पाठको तक पहुँचे यही 'एक बुक जर्नल' का मकसद रहा है। पाठक के तौर पर आपके उपन्यासों का इंतजार रहता है तो इसके विषय में अन्य पाठकों को बताना मुझे अच्छा लगता है।
वाह ! बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार।
जी आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप" (चर्चा अंक-3805) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चा में मेरी इस पोस्ट को शामिल करने के लिए दिल से आभार, सर।
अंजिक्य शर्मा जी के आरम्भिक तीनों उपन्यास पढे हैं, मुझे बहुत रोचक लगे।
प्रस्तुत साक्षात्कार के लिए हार्दिक धन्यवाद, यह बहुत सराहनीय प्रयास है।
– गुरप्रीत सिंह, राजस्थान
साक्षात्कार आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा गुरप्रीत जी। अजिंक्य जी के अन्य उपन्यासों को भी मैं जल्द ही पढ़ने की कोशिश करूँगा।
बहुत शानदार साक्षात्कार।
लेखक पर बहुत सी जानकारी देती सुंदर पोस्ट।
जी साक्षात्कार और पोस्ट आपको पसन्द आई यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
अच्छी समीक्षा और बातचीत … बहुत बहुत शुभकामनाएँ मेरी …
जी आभार, सर…