नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

होटल में खून - सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग: 3/5
उपन्यास 6 मई 2016 से 8 मई,2016 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : ई बुक
प्रकाशक: डेली हंट
सीरीज : सुनील #3

पहला वाक्य:
ढलती हुई रात के साथ होटल 'ज्यूल बॉक्स' की रंगीनियाँ भी बढ़ती जा रही थीं।

होटल ज्यूल बॉक्स ने गैरकानूनी जुए का कारोबार चलता था। इसकी खबर तो सबको थी लेकिन ये जुआ कहाँ खेला जाता था इसके विषय में कोई कैसी भी जानकारी नहीं निकाल पाया था। होटल के मालिक माइक ने इस बात को गुप्त रखने के लिए कई पुख्ता इंतजामात किये थे।
'ब्लास्ट' के तरफ से सुनील भी इस राज को जानना चाहता था और इसका पर्दा फाश करना चाहता था। इसलिए वो उस वक्त होटल में मौजूद था जब उसने माइक को होटल में सबके सामने एक युवक का कत्ल करते हुए देखा।
लेकिन जब उसने पुलिस को बुलानी चाहा तो उसे बेहोश कर दिया गया। जब उसे होश आया और उसने पाया सारा मामला ही बदल गया था। अब वह युवक चोर बन गया था जिसे माइक ने बहादुरी से मार गिराया था। सुनील को पता था कि ऐसा कुछ नहीं है।
लेकिन क्या वो इसे साबित कर पायेगा? क्या वो ज्यूल बॉक्स के जुयेघर का राज़ पता कर पायेगा? माइक जो एक क़त्ल कर सकता वो दूसरा करने से भी नहीं हिचकेगा इसलिए माइक से ये दुश्मनी मोल लेना सुनील को कैसा पड़ेगा?
सवाल कई हैं लेकिन जवाब तो केवल उपन्यास पढ़ने के पश्चात ही प्राप्त होंगे।

होटल में खून पढ़ने के बाद सबसे पहले जो बात मन में आती है वो ये कि ये उपन्यास काफी छोटा था। औसतन पाठक सर के उपन्यासों में 4 या 5 चैप्टर होते हैं लेकिन इसका कथानक 2 ही चैप्टर में निपट गया था।
खैर,उपन्यास मुझे पसंद आया। उपन्यास की शुरुआत एक थ्रिलर के तौर पर होती है लेकिन ये आगे चलकर एक मर्डर मिस्ट्री बन जाती है।
उपनय इतना छोटा है कि कहीं भी बोरियत का एहसास नहीं होने देता है। मैंने सुनील के ज्यादा उपन्यास तो नहीं पढ़े हैं लेकिन जितने भी पढ़े हैं उनमे पहली बार उसे जबान के साथ साथ हाथ चलाते हुए देखा। ये देखकर मज़ा आया।
एक और बात जो सुनील के पुराने उपन्यास पढ़ते हुए नोटिस में आती है वो ये है कि पहले के उपन्यासों में रमाकांत के बात करने का तरीका बहुत जुदा है। उसमे पंजाबी का असर कम है और सुनील भी उससे हम उम्र की तरह ही बातचीत करता है। यानी तू तड़ाक ज्यादा है। यही बात प्रभुदयाल के लिए भी लागू होती है। इस उपन्यास में भी सुनील प्रभुदयाल को प्रभु प्रभु कहकर ही पुकार रहा था। उम्मीद है जैसे जैसे इस श्रृंखला के उपन्यास पढता जाऊँगा इन चरित्रों के मौजूदा रूप तक भी पहुँचता जाऊँगा।
उपन्यास में अगर कहीं कोई कमी आती है तो वो इसमें मौजूद संपादकीय गलतियों की वजह से आती है। कहीं में वाक्य विन्यास में गलती है तो कहीं गलत शब्द का उपयोग हुआ है। उदहारण निम्न हैं:
प्रूफरीडिंग की इन गलतियों के ऊपर प्रकाशक को ध्यान देना चाहिए और उम्मीद है वो जल्द ही इन्हें हटवा देंगे। ये छोटी छोटी गलतियाँ उपन्यास का जायका बिगाड़ने का काम करती हैं।इसके इलावा उपन्यास में मुझे कोई कमी नहीं दिखी।
उपन्यास जैसे मैंने पहले भी कहा मुझे पसंद आया। उपन्यास में सब कुछ है: रोमांच, रहस्य, तेज रफ़्तार कथानक और एक्शन। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो जरूर एक बार इसे पढ़िए।
उपन्यास को आप डेली हंट एप्प के माध्यम से पढ़ सकते हैं:
डेलीहंट
और अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो आप इसके विषय में अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करायें।

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