नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

ब्लडी गेस्ट: द एडवेंचर ऑफ अलीशा अटवाल - संतोष पाठक | थ्रिल वर्ल्ड

संस्कार विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 260 | प्रकाशक: थ्रिल वर्ल्ड 

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

ब्लडी गेस्ट - संतोष पाठक | अलीशा अटवाल

कहानी 

डॉक्टर लवलेश भाटिया की बीवी कोमल का कत्ल हो चुका था। यह कत्ल शादी की सालगिरह की रात को ही किया गया था।

डॉक्टर भाटिया की माने तो शादी की सालगिरह की पार्टी में आए मेहमानों के जाने के बाद वो आकर अपने बिस्तर पर लेट गए थे और सुबह उठे तो उन्होंने अपनी बीवी को मरा हुआ पाया था। हालात कुछ ऐसे थे कि पुलिस आती तो उन्हें ही अपनी पत्नी के कत्ल का जिम्मेदार ठहराती। 

उनका शक था कि उनकी पत्नी की हत्या के पीछे उस दबंग नेता चरण सिंह का हाथ था जिसने उनसे प्रोटेक्शन मनी की डिमांड रखी थी और उन्होंने वो देने से मना कर दिया था। भाटिया का मानना था कि पुलिस, जो कि नेता की जेब में थी, अपना काम सही से नहीं करने वाली थी।

ऐसे में उन्होंने प्राइवेट डिटेक्टिव अलीशा चटवाल को अपनी पत्नी के कातिल का पता लगाने के जिम्मा सौंपा था।

आखिर किसने किया था कोमल का कत्ल? 
क्या डॉक्टर सच बोल रहा था? 
क्या अलीशा कातिल का पता लगा पाई?

किरदार 

कोमल भाटिया - मकतूल
लवलेश भाटिया - मकतूल का पति
अलीशा चटवाल - एक प्राइवेट डिटेक्टिव
गजानन चौधरी - अलीशा का असिस्टेंट 
चरण सिंह - एक दबंग एमएलए
ओमकार सिंह - चरण का दायां हाथ
जलाल खान उर्फ जल्ली और निशांत सिंह उर्फ निन्नि - ओमकार के खास जिनका रुतबा ओम कार के ऊपर सबसे ज्यादा था
राशिद, नूरजहां - पार्टी में आए पति पत्नी
अमन सिंह, मीनाक्षी, स्वराज - पार्टी में आए पति पत्नी और पुत्र
जयंत शुक्ला - पुलिस सब इंस्पेक्टर
मुकुल देसाई - एक पत्रकार
अविनाश निगम - एक एडिटर
मोहित साहा - गार्ड
मुक्ता और अनिकेत त्रिपाठी - पार्टी में आए मेहमान
हर्षदेव खट्टर - एमपी जिसकी चरण सिंह से ठनी रहती थी
मंजीत सिंह - थाना इंचार्ज



मेरे विचार 

'ब्लडी गेस्ट: एडवेंचर ऑफ अलीशा अटवाल' लेखक संतोष पाठक की लिखी रहस्य कथा है। इस रहस्य कथा के माध्यम से वो अलीशा अटवाल के रूप पाठकों के समक्ष एक नवीन किरदार पेश कर रहे हैं। अलीशा एक प्राइवेट डिटेक्टिव है जो कि फॉक्सी सर्विसेज नाम से इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी चलाती है। ब्लडी गेस्ट में पाठक उसे एक मामले को सुलझाते दिखती है। 

यह मामला अलीशा के एक क्लाइंट डॉक्टर लवलेश भाटिया के कॉल के आने से शुरू होता है। डॉक्टर अलीशा को बताता है कि किसी ने उसकी पत्नी का खून कर दिया है और लवलेश जब उठा तो उसे इस बात का पता चला कि उसकी पत्नी की हत्या हो गई है। अब चूँकि दरवाजा अंदर से बंद था तो लवलेश को डर है कि कहीं पुलिस उसे ही इस हत्या के मामले में न लपेट ले और इसलिए वो चाहता है कि अलीशा इस मामले को देखे। अलीशा इस मामले की तहकीकात किस तरह करती है। इस तहकीकात में डॉक्टर, उसकी पत्नी और उसके दोस्तों के बीच के कौन से रिश्ते उजागर होते हैं और किस तरह असल कातिल का पता लगता है यह उपन्यास का एक हिस्सा बनता है। चूँकि पार्टी के बाद कत्ल हुआ रहता है तो नायिका के पास संदिग्ध कई सारे होते हैं। ऐसे में वो किस तरह असल कातिल तक पहुँचेगी यह देखने के लिए आप पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। 

उपन्यास में डॉक्टर लवलेश भाटिया की एक दबंग नेता से अदावत भी चल रही होती है। इसी आदावत के चलते डॉक्टर को अपनी बीवी की हत्या के पीछे उसका हाथ दिखाई देता है। क्या असल में ऐसा होता है? नेता, जिसकी जेब में लोकल पुलिस भी है, के खिलाफ क्या डॉक्टर कुछ कर पाता है? नेता क्या करता है? ये भी उपन्यास का अच्छा खासा भाग बनता है जो कि उपन्यास के एंटरटेनमेंट कोशेंट को बढ़ाने में मदद करता है।

उपन्यास रोमांचक है और कथानक आपको बांध कर रखता है। 15 जनवरी से शुरू हुआ कथानक 19 फरवरी पर जाकर खत्म होता है।  कथानक तेज रफ्तार है। सबूतों के आधार पर आगे बढ़ते हुए किस तरह से चीजें साफ होती हैं यह देखना रोचक रहता है। नेता वाला कोण कथानक को और अधिक मनोरंजक बनाता है। पुलिस की छवि अकसर भ्रष्ट अफसरों के कारण मलिन होती है। कई बार अगर आपके अफसर भ्रष्ट हों तो किस तरह ईमानदार पुलिस वाले भी गलत चीजों को सहने के लिए मजबूर से हो जाते हैं यह भी इधर दिखता हैं। वहीं ईमानदार व्यक्ति अगर चाहे तो कैसे वो कान को घुमाकर पकड़ कर अपने कार्य को कर सकता है यह भी जयंत शुक्ला के किरदार से देखने को मिल जाता है।

शादी का रिश्ता बड़ा नाजुक होता है। इसमें कई बार लोग अपने साथी की जरूरत का ख्याल नहीं रखते हैं। इसके चलते कई बार विवाहेतर संबंध स्थापित होते हैं। कई बार इसका क्या असर व्यक्ति के जीवन में पड़ सकता है यह भी इधर दिखता है। वही आज भी औरत को एक तरह से जागीर की तरह समझा जाता है। मर्दों की यह सोच होती है। ऐसे में जब वो किसी तरह का चुनाव करती हैं तो किस तरह से मर्द उसे अपने अहम पर चोट मानकर प्रतिक्रिया दिखाते हैं यह भी इधर दिखता है। लेखक इस प्रवृत्ति पर भी टिप्पणी करते दिखते हैं। 

रहस्य कथा में एक पहलू कातिल की पहचान का होता है। वही रहस्यकथा सफल मानी जाती है जिसमें जब तक लेखक न बताए तब तक पाठक कातिल की पहचान न पता कर सके। प्रस्तुत उपन्यास के अधिकतर हिस्से में लेखक कातिल की पहचान को पाठक की नजर से छिपाकर रखने में सफल होते हैं। ऐसे संदिग्ध भी पैदा कर देते हैं कि आपका ध्यान थोड़ा सा भटक जाता है लेकिन अगर आप मेथड ऑफ एलिमिनेशन लगाएँगे तो अलीशा द्वारा कातिल का नाम बताए जाने से पहले उसका अंदाजा सही सही लगा पाएँगे। ऐसे में वो सरप्राईज एलिमेंट उधर नहीं रहता है। पर ये अंदाजा आपको भी इतनी देरी में लगता है कि कथानक के मनोरंजन पर इसका इतना फर्क नहीं पड़ता है। पर लेखक इसकी भरपाई उपन्यास में दूसरा कोण जोड़कर कर देते हैं जो कि मनोरंजन की कमी नहीं होने देता है। 

उपन्यास का यह दूसरा कोण नेताओं की दबंगई के ऊपर है। लेखक इस कोण को जोड़कर अलीशा के किरदार के कई पहलुओं को उभारने में सफल होते हैं। वहीं राजनीति, मीडिया और पुलिस के गठ जोड़ भी दर्शाने में सफल होते हैं। किस तरह से सौदेबाजी होती है और खबरे दिखाई या दबाई जाती हैं यह भी दिखाने की लेखक ने कोशिश की है। वहीं कैसे पुलिस राजनीति के आगे नतमस्तक रहती है यह भी इधर दिखता है। ऐसे में लेखक अपनी लेखनी के माध्यम से इन पहलुओं पर भी टिप्पणी करते हैं जो काफी कुछ सोचने के लिए आपको दे जाता है और हल्का सा भय भी आपके भीतर पैदा कर देता है। 

किरदारों की बात करूँ तो अलीशा अटवाल के रूप में एक रोचक किरदार लेखक ने खड़ा किया है। हिंदी अपराध कथाओं में महिला मुख्य नायिकाओं को एक विशेष तरीके से दिखाया गया जाता रहा है। लेखक उस परिपाटी  में जाने से बचे हैं जो कि अच्छी बात है। अलीशा अटवाल 28 वर्षीय प्राइवेट डिटेक्टिव है।  वो एक मजाकिया, जिसे कई बार लोग क्रैक भी कहते हैं, लड़की है जो अपनी क्लाइंट को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है। क्लाइंट सही है या गलत इससे उसे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे में उसके अंदर कई ग्रे शेड्स हैं। अगर घी सीधे उंगली से न निकले तो वो उसे टेढ़ी करना भी जानती है। 

वहीं लेखक यह भी बताते हैं कि उसके अंदर भावनाएँ न के बराबर हैं। ऐसा क्यों है यह वो नहीं बताते। उम्मीद है आगे जाकर पाठकों को पता चलेगा कि उसके साथ ऐसा क्या हुआ कि उसकी भावनाएँ मर गई थीं।

अलीशा की गुजरी जिंदगी और उसके आने वाले कारनामों के बारे में अगर लेखक लिखते हैं  पढ़ने की कोशिश रहेगी। वैसे भी इस तरह से उपन्यास को अंत किया गया है कि नए भाग की गुंजाइश लेखक ने पैदा कर दी है।

उपन्यास में जयंत शुक्ला एक ईमानदार पुलिस अफसर है। उसके और अलीशा के बीच का समीकरण रोचक बन पड़ा है। उम्मीद है आगे के भागों में भी वह दिखेगा। 

उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप है। नेता के दायें हाथ के रूप में ओंकार सिंह का किरदार अच्छा बन पड़ा है। एक ही बार वो ढंग से दिखता है। अगर उसकी मौजूदगी थोड़ा और होती तो मज़ा अधिक आता। 

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो प्रूफरीडिंग की त्रुटियों के अतिरिक्त कोई ज्यादा कमी इसमें नहीं है।

अगर आप एक मनोरंजक अपराध कथा पढ़ना चाहते हैं तो आपको इसे एक बार पढ़कर देखना ही चाहिए। उम्मीद है इसने जितना मेरा मनोरंजन किया उतना ही आपका भी करेगी। 



पुस्तक लिंक: अमेज़न 


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2 Comments
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  1. रोचक...।.. 😊😊😊😊😊😊😊😊

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    1. जी लेख आपको पसंद आया ये जानकर अच्छा लगा। आभार।

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