नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

अटैची रहस्य - सत्यजित राय

किताब फरवरी 1 से फरवरी 2,2020 और मार्च 3 से मार्च 5 2020 में पढ़ी गयी

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 102 | प्रकाशक: रेमाधव पब्लिकेशन्स | आई एस बी एन: 9788189850616 | 
श्रृंखला: फेलूदा #7 | अनुवादक: मुक्ति गोस्वामी




पहला वाक्य:
कैप्टन स्कॉट की ध्रुव अभियान पर लिखी रोंगटे खड़ी करने वाली एक पुस्तक मैंने हाल ही में समाप्त की है।

कहानी:
दीननाथ लाहिड़ी कलकत्ता के जाने माने रईस थे और अपनी एक छोटी सी परेशानी के चलते फेलूदा के पास आये थे।

दीननाथ जब दिल्ली से कलकक्ता लौट रहे थे तो तो उनके पास एक आम सी नीली अटैची थी। यह एक ऐसी अटैची थी जो कि अक्सर एयर इंडिया अपनी सवारियों को उस वक्त मुफ्त दिया करती थी। अपने सफर के दौरान उनकी यह अटैची अपनी बर्थ के किसी यात्री से बदल गयी थी। दीननाथ की माने तो उनकी अटैची में ऐसा कुछ कीमती सामान तो नहीं था लेकिन उन्हें लग रहा था कि जिसके साथ उनकी अटैची बदली थी कहीं उसे अपनी अटैची की जरूरत न पड़े। यही कारण था कि दीननाथ चाहते थे कि फेलूदा अटैची के असली मालिक को ढूँढे और उसे अटैची लौटा दे।

वैसे तो फेलूदा ऐसे साधारण मामले नहीं लेता था लेकिन चूँकि फेलूदा के पास कुछ करने को नहीं था तो उसने यह मामला अपने हाथ में ले लिया। लेकिन फिर जैसे जैसे तहकीकात आगे बढ़ती गयी फेलूदा को लगने लगा कि मामला वैसा नहीं है जैसे दिख रहा है। दीननाथ की अटैची में एक ऐसी पांडुलिपि भी थी जो कि इस वक्त काफी कीमती साबित हो सकती थी।वहीं दीननाथ द्वारा कही गयी काफी बातें भी तहकीकात में पता लगी बातों से मेल नहीं खा रही थी।

इस मामले से जुड़ा कोई ऐसा व्यक्ति भी था जो नहीं चाहता था कि फेलूदा इस मामले की जाँच करे। जब धमकी भरे फोन से भी फेलूदा इस मामले से नहीं डिगा तो उस रहस्यमय व्यक्ति ने फेलूदा पर हमला करने की भी योजना बना डाली।

आखिर कौन था यह व्यक्ति?
वह क्यों नहीं चाहता था कि फेलूदा इस मामले की जाँच करे? 
आखिर दीननाथ लाहिड़ी की अटैची में ऐसा क्या था?
क्या दीननाथ लाहिड़ी सच कह रहे थे? या उनका यह मामला फेलूदा को देने के लिए पीछे कोई अन्य कारण था?


मुख्य किरदार:
प्रदोष सी मित्र उर्फ़ फेलुदा - एक प्राइवेट जासूस
तोपसे रंजन मित्र उर्फ़ तोपसे - फेलुदा के चाचा का लड़का
दीननाथ लाहिड़ी - एक धनाढ्य बंगाली सज्जन जो अपना मामला लेकर फेलूदा के पास आये थे
श्रीनाथ - फेलूदा का नौकर
एन सी पाकड़ासी - एक व्यक्ति जिन्होंने दिल्ली से कलकत्ता का सफर दीननाथ लाहिड़ी के साथ किया था
सिद्ध्वेश्वर बोस - फेलूदा के ताऊ जी
शम्भूचरण बोस - एक यात्रा वृत्तांत लेखक जिसकी पाण्डुलिपि दीननाथ लाहिड़ी की अटेची में थी
सतीनाथ लाहिड़ी - दीननाथ लाहिड़ी के ताऊजी
बृजमोहन केडिया - दीननाथ लाहिड़ी के साथ कालका मेल से दिल्ली से कोलकत्ता आने वाले एक और सज्जन
 जी सी धमीजा - शिमला में रहने वाले एक सज्जन
मिस्टर दासगुप्ता - ग्रैंड होटल का रिसेप्शनिस्ट
प्रवीर लाहिड़ी उर्फ़ अमर कुमार - दीननाथ लाहिड़ी का भतीजा जो कि फिल्मों में एक्टर बनना चाहता था
लालमोहन गाँगुली उर्फ़ जटायु - एक ख्यातिप्राप्त रोमंचक उपन्यासों के लेखक
अरविन्द, हरविलास - शिमला के टैक्सी ड्राइवर

मेरे विचार:
अटैची रहस्य फेलूदा श्रृंखला का सातवाँ उपन्यास है। उपन्यास को मुक्ति गोस्वामी ने हिन्दी में अनूदित किया है। अनुवाद अच्छा हुआ है और पढ़ते हुए ऐसा नहीं लगता है कि आप कोई अनूदित रचना पढ़ रहे हैं।

उपन्यास पर बात करने से पहले मैं इस श्रृंखला की खासियत आपके से साझा करना चाहता हूँ।अगर आप फेलूदा श्रृंखला के उपन्यास पढ़ते रहे हैं तो आप जानते होंगे कि  फेलूदा के उपन्यासों की एक खासियत यह भी होती है कि उन्हें पढ़ते वक्त पाठक फेलूदा और उसके साथियों के साथ अलग अलग जगहों की सैर भी करता है। कभी आप लखनऊ के इमामबाड़ा घूमते हो तो कभी महाराष्ट्र के कैलास मंदिर। कभी सोने के किले की यात्रा करते हो तो कभी बनारस के घाटों में घूमते हो। इस उपन्यास में भी फेलूदा के साथ पाठक को शिमला के बर्फीले मौसम का मजा लेने का मौका मिलता है।

उपन्यास रोचक है। एक साधारण से दिखने वाले मामले को जब फेलूदा अपने हाथ में लेता है तो उसको भान भी नहीं रहता है कि यह मामला तहकीकात के साथ साथ और पेचीदा हो जायेगा। अक्सर जब कई यात्री एक जैसा सामान लेकर चलते हैं तो कई बार चीजों की अदला बदली होना सामान्य है। जब मैं मुंबई में रहता था तो बैग्स की ऐसी अदला बदली कई बार मैंने मुंबई लोकल में होती देखी है। ज्यादातर लोगो के बैग काले होते थे और इस कारण दिन में कई बार बैग के अदला बदली होने की बातें पता चल जाती हैं। एक आध बार तो मुझे यह भी सुनने को मिला था कि कई चोर ऐसे काले बैग लेकर चलते हैं और भीड़ में से बैग की अदला बदली कर देते हैं। कुछ हाथ लगा तो ठीक और बैग वाले ने पकड़ लिया तो गलती से लेने का बहाना बना सकते हैं। इस उपन्यास में भी ऐसा ही होता है।


उपन्यास का घटनाक्रम कलकत्ता, दिल्ली और शिमला में घटित होता है।इस दौरान फेलूदा और उसके साथियों की जिंदगी में कई रहस्यमय संदिग्ध व्यक्ति और कई रोमांचक परिथितियाँ आ जाती हैं कि पाठक उपन्यास पढ़ता चला जाता है।

जिस अटैची के लिए फेलूदा इतनी भागदौड़ कर रहा है वो खुद तो सामान्य होती ही है लेकिन उसके अंदर भी कोई ज्यादा महत्वपूर्ण सामान नहीं होता है।  इसलिए जब फेलूदा को इस सम्बन्ध में धमकी मिलती है तो पाठक के तौर पर आपका दिमाग झन्ना जाता है। आपको यह तो पता रहता है कि कुछ रहस्य है इस अटैची में लेकिन वो रहस्य क्या है वो आप तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक लेखक आप पर वह उजागर नहीं करता है। रहस्य जानने की यह उत्सुकता आपसे किताब के पृष्ठ पलटने पर मजबूर कर देती है।

इस रहस्य के बीच में एक यात्रा वृत्तांत की पाण्डुलिपि भी है। यह पाण्डुलिपि तिब्बत की एक साहसिक यात्रा को दर्ज करती हुई होती है। मैं खुद अपने दूसरे ब्लॉग में यात्रा वृत्तांत लिखता हूँ तो उपन्यास में ऐसी पाण्डुलिपि का होने से मेरी रूचि कथानक में और बढ़ गयी थी। कई लोग किताबें इक्कठा करने के लिए दीवाने होते हैं और इस उपन्यास में भी हमे ऐसे दो व्यक्ति मिलते हैं : एक तो फेलूदा के सिधू ताऊ जी और दूसरे नरेश पाकड़ासी। दोनों ही दीवाने हैं और किताब पाने की इच्छा जाहिर करते हैं। किताब की प्रति को हर कीमत पर पाने की यह दीवानगी से भी मैं भली भाँती परिचित हूँ। आजकल व्हाट्सएप्प में दुर्लभ किताबें, जिनका पुनःप्रकाशन नहीं होता है, काफी ऊँची कीमतों में बेचीं जाती हैं। इसलिए कई बार लोग ऐसी किताबों की प्रतियाँ दूर दराज से सस्ते में खरीद लेते हैं क्योंकि ये अच्छा मुनाफ़ा उन्हें देती हैं। इस उपन्यास में भी सिधू और नरेश पाकड़ासी यात्रा वृत्तांत के लिए चार पाँच हजार रूपये देने के लिए आसानी से तैयार हो जाते हैं। और यह उपन्यास तब लिखा गया था जब चार पाँच हजार की कीमत आज के लाखों में रही होगी। यह बतलाता है कि दुर्लभ किताबों के प्रति यह दीवानगी हमेशा से ही रही है।

उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो वह चुस्त है और पाठक को बाँध कर रखता है। कहीं भी ऐसा कुछ नहीं है जो अनावश्यक हो। 100 पृष्ठों में फैला यह उपन्यास एकदम कसा हुआ है।उपन्यास में ऐसी घटनाएँ लगातार होती रहती हैं जिससे एक तरह का रोमांच कथानक में बरकरार रहता है। एक तनाव सा बना रहता है जो कि पाठक को विवश करता है कि वह उपन्यास पढ़ता जाए।उपन्यास हम तोपसे की नज़र से देखते हैं तो कई बार उसकी टिप्पणियों को भी हम पढ़ते हैं। विभिन्न परिस्थितियों में तोपसे की टिप्पणियाँ पढ़कर मुझे तो मजा आता है। तोपसे की नजर से घटनाओं को होते देखना मुझे अच्छा लगता है।

इस उपन्यास में जटायु भी हैं। जटायू का कथानक में होना यह तय कर देता है कि उपन्यास में हँसी मजाक होता रहेगा। हाँ, अक्सर फेलूदा के उपन्यासों में हम यह पढ़ते आये हैं कि जटायु प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं तो इस उपन्यास में हमे यह भी देखने को मिलता है कि जटायु ने उपन्यास लिखते हुए काफी समृद्धि हासिल कर ली है। फेलूदा की एक टिप्पणी के जवाब में वो उसे गर्व से बताते हैं कि उन्होंने अपने उपन्यासों के कारण तीन मकान बनाये हैं और उनके पास इतना धन रहता है कि उन्हें खर्चे की कोई फ़िक्र नहीं होती है। लेखक अपने लेखन  से इतना कमा सकता है यह देखकर अच्छा ही लगता है। जटायु मुझे बहुत पसंद है। अगर वो उपन्यास में न हो तो उपन्यास थोड़ा फीका फीका लगने लगता है।

हाँ, उपन्यास में मुख्य अभियुक्त कौन है इसका हल्का अंदाजा तभी हो जाता है जब अटैची के रहस्य के विषय में पाठक को पता लगता है। लेकिन कहानी में दो रहस्य हैं। एक का अंदाजा हो भी जाये लेकिन दूसरे का अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल है।

उपन्यास में वैसे कोई कमी तो नहीं है लेकिन इक्का दुक्का जगह पर प्रूफ की गलतियाँ हैं। उदाहरण के लिए:

उपन्यास  की पहली पंक्ति में अभियान को अधियान लिखा हुआ था।
शुरुआत में पाकड़ासी का नाम एम सी पाकड़ासी लिखा है लेकिन आगे चलकर उस व्यक्ति को नरेश पाकड़ासी (पृष्ठ 36) बुलाया गया है। इस हिसाब से शुरुआत में एन सी होना चाहिए था।
पृष्ठ  33 'अरे कौन है' कि जगह 'अरे कोई है' होना चाहिए था
पृष्ठ 34 'नहीं-नहीं, नहीं लाहिड़ी बाबू' की जगह शायद 'नहीं-नहीं, नहीं मित्र बाबू' होगा

अंत में यही कहूँगा कि अटैची रहस्य पढ़ना मुझे तो बहुत भाया। मैंने इसे दो बार पढ़ा और दोनों ही बार इसने मेरा भरपूर मनोरंजन किया। उम्मीद है रेमाधव प्रकाशन वाले फेलूदा की और भी कहानियों को हिन्दी में प्रकाशित करेंगे।

रेटिंग: 4.5/5

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार जरूर इसे पढ़ें। उपन्यास आप निम्न लिंक पर जाकर मँगवा सकते हैं:
अमेज़न
राजकमल प्रकाशन

अब प्रिय पाठकों आपके लिए कुछ प्रश्न:
प्रश्न 1: क्या आपका सामान भी कभी किसी से बदला है? वह सामान क्या था और क्या आपको वह फिर वापस मिल पाया? 
प्रश्न 2: इस उपन्यास में जटायू अपने साथ बूमरेंग लेकर चलते हैं। क्या आपने बूमरैंग चलाया है? अगर हाँ तो किधर और वो अनुभव कैसा था?
प्रश्न 3: उपन्यास के केंद्र में एक यात्रा वृत्तांत भी है। क्या आप यात्रा वृत्तांत पढ़ते हैं? अगर हाँ, तो आपके पसंदीदा पाँच यात्रा वृत्तांत कौन से हैं?

आपके उत्तरों को पढ़ने के लिए मैं उत्सुक रहता हूँ। इससे एक संवाद हमारे बीच कायम हो जाता है। उम्मीद है आप ऊपर दिए गए प्रश्नों के उत्तर देंगे और हम इस बातचीत को और ज्यादा रोचक बना पाएंगे। 

सत्यजित राय जी की दूसरी कृतियों को भी मैंने पढ़ा है। उनके प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
सत्यजित राय

फेलूदा श्रृंखला की दूसरी कृतियों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
फेलूदा

मैं अक्सर रहस्य कथाएँ पढ़ता रहता हूँ उनके प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़  सकते हैं:
रहस्यकथाएँ
जासूसी कथाएँ

©विकास नैनवाल 'अंजान'


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4 Comments
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  1. लाजवाब समीक्षा । प्रश्नावली के साथ एक रोचक शुरुआत । यात्रा वृतांत अक्सर आपकी घुम्मकड़ी वाले ही पढ़े हैं कई बार स्वयं लिखने की सोची भी लेकिन एकाग्रता नहीं बनी ।

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    1. जी आभार। फेलूदा श्रृंखला बहुत रोचक होती हैं। युवा पाठकों के लिए यह एक बेहतरीन श्रृंखला होती है। अगर मौका लगे तो अनिल यादव जी का लिखा वह भी कोई देस है महाराज और अजय सोडानी जी का दर्रा दर्रा हिमालय जरूर पढ़ियेगा। उन्होंने ही मुझे यात्रा वृत्तांत लिखने के लिए प्रेरित किया था।

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  2. मार्ग दर्शन के लिए आभार विकास जी । ये किताबें जरूर
    पढ़ूंगी । वैसे भी पर्वतीय इलाकों का रहन-सहन बेहद अच्छा लगता है ।

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    1. जी आभार। पढ़कर बताइयेगा कैसी लगी यह कृतियाँ??? आपके विचार जानने का इन्तजार रहेगा।

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