नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

खून मेरा जहरीला - रजतराज वंशी | सूर्या पॉकेट बुक्स | योगेश मित्तल

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 240 | प्रकाशक: सूर्या पॉकेट बुक्स | शृंखला: मानसी मदान



कहानी 

तनुजा दम्माणी दिल्ली के मशहूर उद्योगपति शिव कुमार दम्माणी की इकलौती पुत्री थी। 

इकत्तीस दिसंबर की उस रात को वो अपनी दोस्त मानसी मदान के साथ डिनर करके रेड स्टार रेस्त्रां से बाहर निकली लेकिन अपने घर नहीं पहुँची। 

आखिर कहाँ गई तनुजा दम्माणी?


मुख्य किरदार

 
राजन, जोगी, शौकत, टोनी - चार यार 
मानसी मदान - एक युवती 
तनुजा दम्माणी - मानसी की दोस्त और उद्योगपति शिव कुमार दम्माणी की बेटी
शेर खान - तनुजा का ड्राइवर
बिमला पाटिल - मनोज की प्रेमिका
जग्गी जुगराफिया - एक दादा
विलायती राम - एक शराबी जो शौकत के रोहिणी के फ्लैट के नजदीक रहता था
जयंत मखीजा - दिल्ली का नामी गिरामी डॉन
फिक्सी, टिक्सी, पिक्सी, बिक्सी - जयंत के आदमी
जोरावर - जयंत मखीजा का दायां हाथ
शेर सिंह बब्बर - एक बड़ा अपराधी
बैंजो - शेर सिंह बब्बर का दायां हाथ
सलोनी - शेर सिंह बब्बर के होटल की कैबरे डांसर
गोविंद राम साहनी - नेता पूर्व मुख्य मंत्री
चन्द्र प्रकाश साहनी - गोविंद राम का बेटा
रोबो चार्ली - मानसी का चीफ रोबोट
दिलावर - शेर सिंह बब्बर का पी ए
सायरा सूजी सीमा - बिमला की दोस्त 
गॉड मदर - अपराध की दुनिया का एक बड़ा नाम 
कौतुक मीमाणी - तनुजा का मंगेतर 
चिदंबरम - गोविंद राम साहनी का बॉडी गार्ड और चीफ सिक्योरिटी वाला


मेरे विचार

लेखक योगेश मित्तल (Yogesh Mittal) ने अपने जीवन में कई नामों से लेखन किया है। कुछ नामों के साथ उनकी तस्वीर चस्पा होती थी और कुछ के साथ किसी और की ही तस्वीर होती थी। प्रस्तुत उपन्यास 'खून मेरा जहरीला' (Khoon Mera Jehreela) में वैसे तो रजत राजवंशी (Rajat Rajvanshi) का नाम दिया गया है लेकिन तस्वीर योगेश मित्तल (Yogesh Mittal) की ही इधर मौजूद है। इसलिए यह निर्बाध रूप से कहा जा सकता है कि योगेश मित्तल ही रजत राजवंशी हैं।

खून मेरा जहरीला और उस पर् प्रकाशित रजत राजवंशी यानी योगेश मित्तल जी की तस्वीर



'खून मेरा जहरीला' (Khoon Mera Jehreela) सूर्या पॉकेट बुक्स (Surya Pocket Books) से आया मानसी मदान सीरीज (Mansi Madan Series) का पहला उपन्यास है। मानसी मदान एक बीस पच्चीस वर्षीय युवती है जो कि वैसे तो आम शहरी आधुनिक युवतियों जैसी दिखती है लेकिन आम युवतियों से बिल्कुल अलग है। अपराध की दुनिया से संबंधित लोग उसके नाम से वाकिफ हैं और वह उसके नाम से काँपते भी हैं। 

उपन्यास की शुरुआत दिल्ली के कनॉट प्लेस से होती है। 31 दिसंबर की रात है और लोग नशे में हैं। सब नए साल का जश्न मनाना चाहते हैं। कुछ दोस्तों के साथ और कुछ शराब शबाब के साथ। इस रात को मानसी मदान की दोस्त तनुजा का अपहरण हो जाता है।  तनुजा के अपहरण से शुरू हुआ ये सिलसिला कई चौंकाने वाले मोड़ लेता है और पाठक को मानसी मदान, डॉन शेर सिंह बब्बर, जग्गी जुगराफिया, डॉन जयंत मखीजा मखीजा, नेता गोविंद राम साहनी, गॉड मदर और बड़े पापा जैसे किरदारों से मिलवाता है। 

उपन्यास की कहानी एक तरफ घूमती दिखती है तो लेखक उसे ऐसा मोड़ दे देते हैं कि पाठक आगे पढ़ने के लिए विवश हो जाता है। कहानी में एक्शन भरपूर है जो कि पाठक को बोर होने का मौका नहीं देते हैं। कहानी में कहीं कहीं फंतासी का तत्व आता है और कई जगह फाइट सीन्स में अतिशयोक्ति भी दिखती है लेकिन क्योंकि लेखक शुरुआत में ही कह चुके हैं कि इसे खाली मनोरंजन के लिए पढ़ें तो वो इतना खलता नहीं है। यहाँ ये बता दूँ कि इधर फंतासी उन्नत तकनीक को लेकर की गई है जिसमें मुख्य किरदार के पास ऐसे रोबोट दर्शाये गए हैं जो कि आज के समय में भी कोरी कल्पना ही हैं। 

चूँकि यह उपन्यास शृंखला का पहला भाग है तो कई सवाल भी कथानक पाठक के लिए छोड़ जाता है। मानसी मदान कौन है? बड़े पापा जी से उसका क्या रिश्ता है? तनुजा को छुड़ाने वालों को तनुजा के विषय में कैसे पता चला? गॉडमदर ने मानसी के साथ जो किया उसका बदला मानसी ने कैसे लिया। सोने के अंडे का क्या राज था और वह इतना महत्वपूर्ण क्यों था? इत्यादि। 

उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो सभी कथानक के अनुरूप गढ़े गए हैं। उपन्यास की मुख्य किरदार मानसी मदान है और वह एक रोचक किरदार है। उसकी दूसरे किरदारों से की जाने वाली चुहुलबाजी मनोरंजन करती है और कई बार चेहरे पर् हँसी भी ले आती है। उसकी चुहल बाजी का उदाहरण देखिए:

"व्यंग्य कर रही हैं आप?"
"नहीं तारीफ- वैसे मेरे बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?"
"क्या मतलब?" मनोज हड़बड़ाया और जल्दी जल्दी उसने व्हिस्की का पैग उठा एक घूँट सिप किया। 
"मतलब यह है कि मैं कैसी लगती हूँ, तुम्हें?"
"अच्छी! बहुत अच्छी हैं आप।"
"मेरे होंठ कैसे हैं?"
"सुंदर! अति सुंदर।"
"आँखें!"
"बहुत ही सुंदर!"
"नाक?"
"अ-अच्छी है।"
"चेहरा?"
"कहा ना बहुत सुंदर हैं आप।" मनोज परेशान होकर बोला। 
"थैंक्यू! इसका मतलब है मेरा चेहरा कोई खास ज्यादा बुरा नहीं है।" मानसी मदान ने व्हिस्की का एक सिप लिया और बोली। 
"यह 'ज्यादा बुरा' क्या कहती हैं आप... आप का चेहरा बुरा है ही नहीं- बहुत सुंदर हैं आप - बहुत ही सुंदर।"
"कितनी सुंदर?"
"बहुत-बहुत ज्यादा सुंदर।"
"बहुत ज्यादा कितनी?"
"इतनी कि किसी का भी ईमान खराब हो जाए।"
"तुम्हारा तो नहीं हुआ ना।" मानसी मदान तुरंत ही बोली। आखिरकार वह मनोज से वही कुछ कहलवाने में कामयाब हो गई - जो कहलवाना चाहती थी। 
(पृष्ठ 24)

 

और फिर - खुद को छुड़ाने के लिए मानसी मदन अपने शरीर को अधिक तेज हरकत में लाती-उससे पहले ही तीसरे बदमाश ने रिवॉल्वर उसकी कनपटी पर रख दिया था। 
"बस! अब जरा भी हिलने-डुलने की आवश्यकता नहीं है।" - वह तीसरा- बेहद हिंसक भाव से गुर्राया। 
"तो क्या मैं साँस भी नहीं लूँ?"- खुद को छुड़ाने के लिए कोई भी प्रयास करने का इरादा छोड़ - मानसी मदान ने बड़ी मासूमियत से पूछा।  (पृष्ठ 70)

"सो रही हो बेबी चाइल्ड?" दूसरी ओर से उभरने वाला स्वर - मानसी मदान के लिए नया न था। 
यह स्वर गॉड मदर का था। क्राइम जगत की बेताज मल्लिका कहलाने वाली गॉड मदर का। 
"तुम्हारी आँख में पिस्सू पड़े हैं क्या?" मानसी मदान गुर्राई। 
"क्या मतलब?"
"मतलब यह है मम्मी डीयर तुम्हें आँख झपकाने में कोई परेशानी होती है क्या?"
"अगर होती हो तो?"
"तो अर्ज यह है - मम्मी डियर कि दाईं आँख में सो ग्राम मोबिल ओयल और बाईं में पचास ग्राम फिनायल - डेढ़ महीन तक- बिना एक भी नायगा किए रोज इस्तेमाल करो। भगवान ने चाह तो कोर्स पूरा होने से पहले तुम्हें इस गंदी- बेशर्म दुनिया को देखने की हर तकलीफ से मुक्ति मिल जाएगी...!" (पृष्ठ 181)

वह एक तेज तर्रार युवती है जो जैसी दिखती है वैसी नहीं है। कई राज उसने अपने अंदर छुपाये हैं। अपने दुश्मनों के दाँत खट्टे करने का माद्दा वो रखती है। अपराध की दुनिया के लोग क्यों मानसी से घबराते हैं यह भी इधर दिखता है। 


मानसी के अलावा चिदंबरम, गॉड मदर, और बड़े पापा जी ऐसे किरदार हैं जो कि प्रभावित करते हैं। वैसे तो यह एक रोमांचकथा है लेकिन विलायती राम के रूप में कॉमेडी का तड़का भी इधर मिलता है। विलायती राम एक नशेड़ी है और उसको लेकर जो भी प्रसंग लेखक ने लिखे हैं वह हास्यजनक हैं। इनके अतिरिक्त बिमला और उसकी टीम भी उत्सुकता जगाती है। उन्होंने जो किया वो क्यों किया और क्या उनका गॉड मदर से कोई रिश्ता हो सकता है ये प्रश्न भी उन्हें देखकर उठता है। 

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो पहली कमी यह है कि इसमें कुछ कामोत्तेजक विवरण हैं जिसने बचा जा सकता था। वो कहानी में न भी होते तो चल जाता। दूसरा चूँकि उपन्यास भाग में है तो खत्म खत्म होते होते कई प्रश्न छोड़ जाता है। इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पाठक को गॉड मदर पढ़ना पड़ेगा और लेखक से मुझे ये पता चला है कि गॉड मदर शायद कभी प्रकाशित नहीं हुआ था और उसकी स्क्रिप्ट उनके पास नहीं है। 

अंत में यही कहूँगा कि खून मेरा जहरीला एक रोचक उपन्यास है जो मनोरंजन करने में सफल होता है। लेखक ने मानसी मदान के रूप में एक चुलबुली नायिका पाठकों को दी हैं जिसके और कारनामें पाठक पढ़ना चाहेगा। उम्मीद है लेखक गॉड मदर जल्द ही प्रकाशित करेंगे और ये भी उम्मीद है कि मानसी मदान को लेकर उपन्यास ही नहीं बल्कि कुछ कहानियाँ भी लिखेंगे। मानसी मदान पर् लिखी और रचनाएँ मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा। 

कानपुर की वो रात

कानपुर की वो रात उपन्यास में मौजूद लेखक की कहानी है जिसमें एक किरदार कानपुर में अपने साथ हुए एक वाकये को बताता है। प्रथम पुरुष में लिखी इस कहानी का कथावाचक एक लेखक है और ऐसा व्यक्ति है जो घर में तो साधु बनकर रहता है लेकिन बाहर जाते ही वह अय्याशियाँ करने से नहीं चूकता है। इन्हीं अय्याशियों की तलाश उसे एक दिन कैसे अनुभव करवाती है यह कहानी बनती है। 

कहानी में राज भारती, सूर्या पॉकेट बुक्स का भी जिक्र है जो कि इसे कहानी कम संस्मरण सरीखा अधिक बना देता है। लेखक को जो अनुभव होते हैं वह ऐसे हैं जिसका प्रयोग आज भी लोग पैसे उगाहने के लिए कर रहे हैं। यहाँ बस इतना ही कहूँगा। हाँ कहानी में थोड़ी नाटकीयता अधिक होती और कथावाचक का आखिरी बार खलनायकों से सामना होता तो बेहतर होता। अभी यह कहानी कम किसी खबर किसी संस्मरण सरीखी लगने लगती है। 


नोट: कुछ माह पहले मुझे लेखक से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उस मुलाकात में लेखक द्वारा मुझे अपनी इस पुस्तक के अलावा कई और पुस्तकें भी दी गई। उस मुलाकात का वृत्तांत आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

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