नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की 'झूठी औरत' है नए कलेवर में तैयार

 



सुरेन्द्र मोहन पाठक का अपने पाठकों के बीच अपना एक अलग मुकाम है। वह अपनी अपराध कथाओं के लिए अपने पाठकों के बीच में जाने जाते हैं और उनके उपन्यासों का उनके पाठक बेसब्री से इंतजार करते रहते है। ऐसे में उनके पाठकों के लिए एक खुश खबरी आई है। 

साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक के पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'झूठी औरत' का पुनः प्रकाशन किया गया है। 'झूठी औरत' सुरेंद्र मोहन पाठक की सुनील शृंखला का इक्कीसवाँ उपन्यास है जो पहली बार 1968 में प्रकाशित हुआ था। अब काफी समय से यह उपन्यास दोबारा प्रिंट में आया है। 

वैसे तो साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यास समय-समय पर पुनः प्रकाशित किए जाते रहे हैं लेकिन 'झूठी औरत' का प्रकाशन इन सबसे अलग है। यह इसलिए है क्योंकि इस बार लेखक ने अपने उपन्यास के कथानक में काफी परिवर्तन किया है।

अपने इस पुनः प्रकाशित उपन्यास के विषय में लेखक लिखते हैं:

हाल में कुछ ऐसी मजबूरी आन खड़ी हुई कि मुझे ‘झूठी औरत’ रिवाइज करना पड़ा। इतने सालों के अंतराल में मुझे मोटे तौर पर ही उसकी कहानी याद थी इसलिए सब से पहले तो कहानी से ही मुकम्मल तौर पर वाकिफ होना पड़ा। उपन्यास के मूल संस्करण का कलेवर तब का था जब कि कीमत के मुताबिक पृष्ठ संख्या पूर्वनिर्धारित होती थी और उस में बढ़ोतरी पर पाबंदी होती थी। उपन्यास के मूल संस्करण का मूल्य दो रुपये भी इसलिए था क्योंकि उसका दर्जा ‘विशेषांक’ का था और कीमत डबल थी वरना कीमत एक रुपया होती और पृष्ठ आधे होते। मैंने उसे पढ़ा तो मुझे कथानक में कई तरह की नई संभावनाएँ दिखाई दीं, अंतःप्रेरणा के हवाले जिन्हें अमली जमा पहनाने का फैसला मैंने किया। मैंने उपन्यास को आद्योपांत फिर से लिखा, उसमें नए किरदार जोड़े, नए प्रसंग जोड़े, मर्डर मिस्ट्री को ज़्यादा चुस्त-दुरुस्त बनाया। यूँ जो फिनिश्ड वर्ज़न मेरे सामने आया वो कलेवर में मूल संस्करण से डेढ़ गुणा था, यानी उसके पंद्रह रुपये मूल्य में छपे आखिरी संस्करण से 100 पृष्ठ ज़्यादा थे। तोड़फोड़ के इस काम को अंजाम देने में मुझे तीन महीने लगे जबकि सन् 1968 में उपन्यास मैंने एक महीने से कम समय में लिख लिया था। 

ऐसे में यह उपन्यास उन पाठकों के लिए तो खास हो ही जाता है जिन्होंने इसे पहले नहीं पढ़ा है लेकिन ऐसे पाठक जो पहले इसका आनंद ले पाएँ उनके लिए भी यह उपन्यास खास हो जाता है क्योंकि उन्हें यह एक नये उपन्यास पढ़ने जैसा अनुभव देगा। 

साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा झूठी औरत अभी प्री ऑर्डर के लिए उपलब्ध है। यह हार्ड बैक और पपरबैक दो संस्करणों में पाठको के लिए उपलब्ध है।

झूठी औरत - पेपरबैक | झूठी औरत -हार्डबाउंड 


कौन है सुनील?

सुनील कुमार चक्रवर्ती सुरेन्द्र मोहन पाठक का एक किरदार है जिसे लेकर उन्होंने अब तक 121 उपन्यास लिखें हैं। 
सुनील कुमार चक्रवर्ती एक खोजी पत्रकार है जो कि राजनगर नामक का शहर में रहता है। वह ब्लास्ट नामक अखबार के लिए पत्रकारिता करता है। अपने पत्रकार के पेशे और डैम्सेल इन डिस्ट्रेस को मना न कर पाने के स्वभाव के चलते वह अक्सर ऐसे पचड़ों में पड़ जाता है जहाँ उसे कत्ल की गुत्थियाँ सुलझानी पड़ती है। ऐसे मामलों में अक्सर वो अपने दोस्त रमाकांत की मदद माँगता है जो एक यूथ क्लब का मालिक है और इतना जुगाड़ू व्यक्ति है कि सुनील की तहकीकात के लिए भाग दौड़ करने वाले लोग और कई बार जरूरी जानकारियाँ भी निकलवा देता है। 

सुनील शृंखला का पहला उपन्यास 1963 में प्रकाशित 'पुराने गुनाह नये गुनहागार' था और सबसे ताजा तरीन उपन्यास 'कॉनमैन' 2018 में प्रकाशित हुआ था। 


पाठकों की भारी माँग पर लाए गए पुराने हार्ड बैक संस्करण

साहित्य विर्मश प्रकाशन द्वारा सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यासों के पेपरबैक  संस्करणों के अतिरिक्त हार्डबैक संस्करण भी सीमित संख्या में ही सही प्रकाशित किए जाते हैं। ऐसे में उनके द्वारा पिछले प्रकाशित उपन्यास, 'निम्फोमैनियाक', 'दिवाली की रात' और 'जादूगरनी' के हार्डबैक संस्करण एक बार फिर प्रकाशन ने पाठकों के लिए प्री ऑर्डर के लिए उपलब्ध करवाएँ। यह उपन्यास भी उनकी साइट से उपलब्ध है।

 दीवाली की रात - हार्डबाउंड | जादूगरनी - हार्डबाउंड | निम्फ़ोमैनियाक - हार्ड बाउंड



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