नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

स्क्रिप्टिड मर्डर - संतोष पाठक

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 228 | प्रकाशक: थ्रिल वर्ल्ड 

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

समीक्षा: स्क्रिप्टिड मर्डर - संतोष पाठक  | Book  Review: Scripted Murder - Santosh Pathak


कहानी 

अमलीघाट त्रिपुरा का एक छोटा सा दूरस्थ इलाका था जो दूर से देखने में तो शांतिपूर्ण लगता था लेकिन यहाँ दो बाहुबलियों समीर राव और विप्लव देव बर्मन का राज चलता था। वहाँ मौजूद किसी की भी हिम्मत उनसे बाहर जाने की नहीं हो सकती थी फिर वह चाहे पुलिस हों या आम जनता। और ये दोनो अपने गैर कानूनी धंधों को बाखूबी बिना रोक-टोक अंजाम देते रहते थे। 

लेकिन अब वहां ऐसा कुछ हो गया था जिससे इन दो बाहुबलियों की नाक में दम हो गया था। रातों रात वहाँ का पुलिस विभाग बदल दिया गया था और कुछ नई मुसीबतें इन दोनों बाहुबलियों पर आ गई थीं। 

शैफाली बर्मन की इकलौती बेटी थी जिसका नाम अमलीघाट में हुए एक खून से जोड़ा जा रहा था। वहाँ 15 वर्षीय युवक का खून किया गया था और उसकी बहन का कुछ अता-पता नहीं था। पुलिस को लगता था कि उसका कत्ल शैफाली ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर नशे की अतिरेक में किया था।

सारे सबूत शैफाली के खिलाफ थे और पुलिस का नया दरोगा हर्षित मजूमदार अभी तक विप्लव देव बर्मन से सेट नहीं हो पाया था।

क्या सचमुच शैफाली ने खून किया था?

आखिर उसे और उसके दोस्तों को पंद्रह वर्षीय बच्चे का खून करने की नौबत क्यों आई?

क्या पुलिस जो अब तक इन बाहुबलियों से डरती आई थी वो अब इनके खिलाफ कुछ कर पायेगी?


मुख्य किरदार 

समीर राव - अमलीघाट का एमएलए 
विकास राव उर्फ विक्की - समीर का इकलौता बेटा जो 24 साल का था 
अनील उर्फ अक्की और सुशील उर्फ सुल्तान - विक्की के दोस्त 
शोभित दास - समीर का गुरु 
संगीता - समीर की पत्नी 
कल्पित उर्फ कल्ली - नेता का दायाँ हाथ 
अमर चाँद - अमलीघाट का दरोगा  
विप्लव देव  बर्मन - अमली घाट का एक बाहुबलि जो कि एमएलए का पार्टनर था और उसका ड्रग का धंधा संभालता था
शंकर जमाटिया - विप्लव देव बर्मन का दायाँ हाथ 
शेफाली - बर्मन की बेटी 
रूबी, अंकिता - शेफाली के दोस्त 
विश्वजीत साहा - हैड कांस्टेबल 
अमन रियांग, रुद्रा त्रिपुरी - विप्लव देव बर्मन के आदमी 
उल्फत हसन - समीर का प्रतिद्वंदी 
हर्षित मजूमदार - अमलीघाट चौकी का नया इंचार्ज 
बृजेश भौमिक - सिपाही 
दाता मण्डल - मुखिया 
सौरभ दास गुप्ता - अमलीघाट का एक युवक जिसने युवती और उसके भाई को देखा था 
सुरभि दास गुप्ता - हैड कांस्टेबल 

मेरे विचार

90 के दौरान बॉलीवुड में एक तरह की एक्शन फिल्मों का चलन था जिसमें एक कस्बा या गाँव होता था और वहाँ एक व्यक्ति का एक छत्र राज चलता था। इस कस्बे के लोग उस व्यक्ति और उसके बिगड़ैल बेटे से त्रस्त रहते थे लेकिन वह उससे पार पाने में खुद को असमर्थ पाते थे और उसके जुर्म सहने के लिए मजबूर थे। यह इसलिए भी होता था क्योंकि उस बाहुबली की सरकार और पुलिस में गहरी पैठ होती थी और इसलिए उसके खिलाफ कोई भी किसी भी तरह का एक्शन लेने से कतराता था। तभी वहाँ हीरो पहुँचता था। यह हीरो या तो कोई पुलिसवाला होता था या कोई आम आदमी। यह इन बाहुबलियों के निजाम के खिलाफ खड़ा होता था और सबको आजाद करा देता था। 

ये तो हुई फिल्म की बातें लेकिन आज भी ऐसी कई जगहें हैं जहाँ ऐसे बाहुबलियों का राज चलता है। ये बात शहर में बैठे लोगों अकल्पनीय लगे लेकिन गाहे -गाहे ऐसे लोगो के किस्से आपको देखने सुनने को मिल जाते हैं।अकसर ऐसे लोगों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है और कई बार तो वह लोग खुद राजनीति में दखल रखते हैं और पावर में होते हैं तो इस दौरान  पुलिस हो या कोई भी सरकारी अमला उन पर हाथ डालने की जुर्रत  नहीं कर पाता है।

अपने प्रस्तुत उपन्यास स्क्रिप्टेड मर्डर में लेखक संतोष पाठक अपने पाठको को भारत के उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा के एक छोटे से कस्बे अमलीघाट में ले चलते हैं। बाहर से देखने में अमलीघाट एक शांत इलाका दिखता है जहाँ प्रकृति ने अपनी अकूत संपदा बिना झिझक के लुटाई है लेकिन अंदर आने पर आपको पता चलता है कि यहाँ एमएलए समीर राव और उसके साथी विप्लव देव बर्मन का राज चलता है। यहाँ के लोग इनसे इतना घबराते हैं कि इनके गैरकानूनी धंधों को तो नजरंदाज करते ही हैं लेकिन इसके साथ साथ इनके एमएलए के लड़के द्वारा अपनी बहु बेटियो की इज्जत को तार तार होने को भी खून के घूँट पीकर बर्दाश्त कर लेते हैं। यहीं आपको पता चलता है कि इन बाहुबलियों के आपसी रिश्ते में भी दरारे हैं लेकिन स्वार्थ के चलते ये अभी साथ-साथ हैं। 

इसी शहर में जब एक 15 वर्षीय बच्चे का कत्ल होता है। वहीं शहर का नया दरोगा हर्षित मजूमदार जब इस कत्ल की तहकीकात करता है तो उसे ऐसे सबूत मिलते हैं जो कि उसे इन बाहुबलियों के आमने-सामने खड़ा कर देते हैं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है आपको पता लगता है कि यहाँ जो चीज जैसी दिख रही है वैसी नहीं है। एक तगड़ा चक्कर चल रहा है जिसके चलते समीर राव और विप्लव के बीच की दरारे और चौड़ी हो रही हैं और दरोगा के लिए एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई वाली कहावत चरितार्थ होती दिखती है। यह चक्कर क्या है? दरोगा की इसमें क्या भूमिका है?  किस मकसद से इसे चलाया जा रहा है? कौन इसे चला रहा है और अमलीघाट के लोगों पर इसका क्या असर पड़ने वाला है? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिसके उत्तर जाने के लिए आप इस कथानक को पढ़ते चले जाते हैं। जैसे जैसे आप पढ़ते जाते हैं वैसे वैसे कुछ प्रश्नों के उत्तर का अंदाजा लगाने में आप सफल होते हैं लेकिन फिर भी काफी कुछ ऐसा रहता है जिसका पता लगाने के लिए आप उपन्यास पढ़ते चले जाएँगे।  कथानक आपको बाँध कर रखता है और आपका मनोरंजन करने में सफल होता है। 

चूँकि लेखक ने यह कहानी त्रिपुरा में बसाई है तो वहाँ का जीवन, वहाँ की कानून व्यवस्था और वहाँ की जीवन शैली के ऊपर भी वह उपन्यास में टिप्पणी करते रहते हैं। यह टिप्पणियाँ उस इलाके के विषय में आपको काफी जानकारी प्रदान करती है। लेखक खुद ऐसी जगहों पर जाकर रह चुके हैं तो वह अनुभव इधर दिखता है। उम्मीद है लेखक ऐसे ही अन्य नए नए शहरों में अपने कथानक बसाएँगे और पाठकों को इस माध्यम से उधर घुमाएँगे। 

उपन्यास में रहस्य रोमांच तो है ही साथ में बीच बीच में हास्य का तड़का भी लेखक ने डाला है। उपन्यास में बीच बीच में कई ऐसे प्रसंग आते हैं जो आपके चेहरे पर हँसी ले आते हैं। अमर चाँद द्वारा शराबी का इन्टरव्यू लेना वाला प्रसंग हो या फिर विप्लव देव बर्मन के आदमी अमन रियांग का प्रसंग या रूबी की हरकतें ये सब आपको हँसने पर मजबूर कर देते हैं। 

लेखक संतोष पाठक की एक खासियत उनके द्वारा रचित किरदार रहे हैं। इस उपन्यास में भी ऐसे किरदार हैं जो कि प्रभावित करते हैं। रूबी बागची का किरदार जहाँ कई लोगों को शॉक दे सकता है वहीं सुरभि दास गुप्ता का किरदार ऐसा लिखा गया है जो कि पाठक को न केवल रोमांच प्रदान करता है वरन कई बार उसके जहन में डर भी पैदा करता है। सुरभि एक खतरनाक किरदार है जिसे लेकर अगर लेखक कोई अन्य उपन्यास लिखें तो उसे मैं जरूर पड़ना चाहूँगा। 

उपन्यास में हर्षित मजूमदार का करिदार भी रोचक है। वो अलग बात है लेखक इसके लिए थोड़ा निष्ठुर हो गए थे। उनकी इस निष्ठुरता का कारण क्या था यह मैं जरूर जानना चाहूँगा। 

उपन्यास में लेखक ने बाहुबलियों का जो खाका खींचा है वह रोचक है। वह फिल्मी तो लगते हैं लेकिन अगर आप व्यक्तिगत रूप से ऐसे बाहुबलियों के संपर्क में आए हैं तो जानते हैं कि आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं। कानपुर के एक बाहुबली के किस्से तो उसकी गाड़ी पलटने के बाद उजागर हुए ही थे। उपन्यास में मौजूद बाहुबलियों के दाएँ हाथ कल्ली और जमाटिया रोचक बन पड़े हैं। कहानी जहाँ पर खत्म होती है वहाँ पर इन बाहुबलियों की आखिरी प्रतिक्रिया पाठकों को देखने को नहीं मिलती है। मुझे लगता है लेखक को अमलीघाट में इस घटना के बाद क्या-क्या हुआ इसे लेकर एक उपन्यास लिखना चाहिए जिसमें सुरभि को भी डाला जा सकता है। मैं ऐसे कथानक को जरूर पढ़ना चाहूँगा। 

उपन्यास का शीर्षक 'स्क्रिप्टिड मर्डर' पाठक के मन में कोतूहल जगाता है और उपन्यास खत्म होने पर यही कहूँगा कि कथानक से न्याय भी करता है। इससे ज्यादा कहना उपन्यास के स्पॉइलर देना होगा तो बस यही कहूँगा कि ये कैसे कथानक पर फिट बैठता है यह आप उपन्यास पढ़कर ही जानें तो बेहतर होगा। 

उपन्यास में कमी तो मुझे विशेष तौर पर कुछ नहीं लगी। हाँ, ई संस्करण में कुछ जगह प्रूफिंग की गलतियाँ हैं और एक आध जगह नाम का हेर-फेर हुआ है लेकिन वह इतना कम है कि इतना अधिक खटकता नहीं है। 

अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास मुझे पसंद आया। अगर आपने  नहीं पढ़ा तो पढ़कर देख सकते हैं। उपन्यास पाठक का मनोरंजन करने में पूरी तरह सफल होता है। 


उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आये:

आज के वक्त में कौन अच्छा है और कौन बुरा, इसको मापने का हर किसी के पास एक ही पैमाना है और वह ये कि ऐसे लोगों को हमेशा अपने मतलब के तराजू में तौल कर देखा जाता है। वह काम आ गया तो अच्छा, नहीं आया तो बुरा। बाकियों के साथ उसके कैसे रिलेशन हैं, इस बात से किसी को कोई लेना-देना नहीं है। 

औरत के प्यार से ज्यादा खतरनाक विष इस दुनिया में दूसरा कोई नहीं होता, वह मर्द को जन्नत की सिर करा सकती है तो दोजख में ले जाकर दफ्न भी कर सकती है। 

“कैसी बात कर रहे हैं सर, ये तो हर नागरिक का फर्ज बनता है कि वह पुलिस का सहयोग करे।”

“मगर तुम्हारी तरह अपना फर्ज निभाने कोई पुलिस चौकी नहीं पहुँच जाता। वरना किसी भी अपराध को सॉल्व होते देर ही न लगे। ऐसे तमाम मामलात में सबसे बड़ी रुकावटें आम लोगों की चुप्पी ही बनती है। जो कभी खुद को बखेड़े से दूर रखने के लिए तो कभी किसी के दबाव में आकर अपनी जुबान बंद कर लेते हैं।”


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