नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

लेखिका दीप्ति मित्तल से उनके नवीन बाल-कथा संग्रह पर बातचीत


लेखिका दीप्ति मित्तल से उनके नवीन बाल-कथा संग्रह पर एक बातचीत


दीप्ति मित्तल पिछले पंद्रह सालों से अनवरत लेखन कार्य कर रही हैं। इस दौरान उनकी 400 से ऊपर कृतियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2021 में केडीपी पेन टू पब्लिश की वो विजेता भी रह चुकी हैं। हाल ही में उनका बाल कथा संग्रह 'पोटली किस्से कहानियों की' साहित्य विमर्श प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। उनके इस नवीन बाल-कथा संग्रह पर हमने उनसे बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 


यह भी पढ़ें: किताब परिचय: 'पोटली किस्से कहानियों की'



*****



प्रश्न: नमस्कार दीप्ति जी, आपको ‘पोटली किस्सों कहानियों की’ के लिए हार्दिक बधाई। इस संग्रह के विषय में पाठकों को कुछ बताएँ।

उत्तर:  हमारी पीढ़ी के सभी बच्चों की तरह मैंने भी अपना बचपन नंदन, चंपक, पराग, चंदामामा, लोटपोट जैसी पत्रिकाएँ पढ़ते हुए बिताया है। 2018 के आरंभ की बात है, एक दिन मैं इंटरनेट पर यूँ ही सर्फिंग कर रही थी तो नंदन का डिजिटल अंक मिला। बहुत दिनों बाद अपनी प्रिय पत्रिका देख कर मैं खुश हो गई। बचपन की यादें आँखों के सामने घूमने लगी। मैंने उसे पढ़ा। कुछ और पिछले अंक भी पढ़े। क्योंकि मैं पहले से ही कहानियाँ लिख रही थी तो उस समय मेरे भीतर बाल कहानियाँ लिखने की इच्छा जागृत हुई। 

उस समय मेरा बेटा 8-9 वर्ष का था। उसे मैं सोते हुए बाल कहानियाँ बनाकर सुनाया करती थी जिसमें उसकी भी भागीदारी रहा करती थी। फिर मैंने उन कहानियों को कलमबद्ध करना आरंभ कर दिया। 2018 से लेकर 2020 तक मैंने 17- 18 बाल कहानियाँ लिखी जिनमें से सोलह कहानियाँ देश के प्रतिष्ठित बाल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। जैसे नंदन, बाल भास्कर, बाल भूमि, रविवारी जनसत्ता, प्लूटो, देवपुत्र आदि। मेरे पहले बाल कहानी संकलन 'पोटली किस्से कहानियों की' में ये कहानियाँ शामिल हैं।

क्योंकि ये कहानियाँ मैं बेटे को सुनाया करती थी इसीलिए उसी उम्र के बच्चों (8 से 12 साल) को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं। इन कहानियों की भाषा सहज एवं सरल है। विषय भी ऐसे हैं जिनसे आजकल के बच्चे जुड़ सकें। इसमें मस्ती है, हास्य है, रोमांच है, संवेदनाएँ हैं, सामाजिक मूल्य और जागरूकता भी है। यह कहानियाँ बच्चों को संवेदनशील होने के लिए प्रेरित करेंगी।


प्रश्न: संग्रह में मौजूद कहानियों में से सबसे नवीन कहानी कौन सी है और इस संग्रह की सबसे पुरानी कहानी कौन सी है? 

उत्तर:  मैंने जो पहली कहानी लिखी थी,  वह थी 'अदनान और फ़रिश्ता' जो इस संकलन में भी शामिल है। आगे चलकर यह कहानी 'जनसत्ता रविवारी' में प्रकाशित हुई। वैसे मेरी पहली प्रकाशित कहानी थी 'और रिया जीत गई' है जो नंदन में प्रकाशित हुई थी। मेरी अभी तक सबसे नवीन कहानी 'अनोखी रेसिपी प्रतियोगिता' है। इसकी शब्द संख्या पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के हिसाब से अधिक थी इसलिए मैंने इसको कहीं नहीं भेजा। वह भी इस पुस्तक का हिस्सा है। मुझे व्यक्तिगत रूप से वह बड़ी मज़ेदार कहानी लगती है।


प्रश्न: अक्सर हर कहानी की के पीछे कोई रोचक कहानी होती है। क्या इस संग्रह की किसी कहानी के पीछे ऐसी कोई रोचक कहानी है जिसे आप अपने पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगी?

उत्तर: एक नहीं, ज्यादातर कहानियों के पीछे कोई ना कोई रोचक कहानी छिपी है। जैसे मैं अपने बच्चों को 'जरूरत' और 'चाहत' का अंतर समझाना चाहती थी। बताना चाहती थी कि हर वह चीज जिसको पाने का मन करे, उसे खरीदने से पहले खुद से पूछें, क्या वह चीज़ वाकई तुम्हारी जरूरत है या बस मन की चाहत? अगर वाकई केवल चाहत है तो खरीदने से पहले खुद से पूछें, क्या उसे छोड़ा जा सकता है और उससे बदले किसी जरूरतमंद के लिए कुछ खरीद कर उसे दिया जा सकता है?  'जरूरत' और 'चाहत' में फर्क करना और किसी के लिए कुछ अच्छा करने के सुख को जानना, इसी उद्देश्य से 'सांता बाबा का जादुई झोला' और 'क्रिसमस का उपहार' लिखी गई। मेरी ये दोनों ही कहानियाँ पाठकों को और संपादकों को बहुत पसंद आई। मेरे बच्चें भी इनके माध्यम से संवेदशील बने। 

ऐसे ही 'अनोखी रेसिपी प्रतियोगिता' बचपन के एक किस्से को ध्यान में रखकर लिखी गई। मेरे एक रिश्तेदार जो सब्जियों की खेती किया करते थे उनके घर में सीजन की सब्जियाँ बहुतायात में आ जाया करती थी और उन्हें निपटाने में उनकी पत्नी के पसीने छूट जाते थे। उसी बात को याद करते हुए इस कहानी ने जन्म लिया जो कि एक मजेदार कहानी बनी। 

आजकल के बच्चे हमारे रीति रिवाज और परंपराओं से ज्यादा नहीं जुड़ पाते हैं क्योंकि बच्चो को उनके पीछे का कारण नहीं बताया जाता। सीधा फरमान जारी कर दिया जाता है, इस दिन फँला फँला काम करने हैं, पूजा करनी है...। बच्चे पलट कर कारण जानना चाहते हैं तो उनको डांट पड़ जाती है। कुछ की तो पूजा-पाठ से जुड़ा कोई सवाल पूछने पर पिटाई भी हो जाया करती है क्योंकि उन सवालों के जवाब बड़ो को भी पता नहीं होते। मेरे बचपन के ऐसे ही अनुभव रहे।

हर परंपरा के पीछे कोई ना कोई उद्देश्य था जो समय के साथ खो गया। 'अनोखा दशहरा पूजन' में उसी कारण, उसी उद्देश्य पर बात करने की कोशिश की गई है। व्यक्तिगत रूप से हमारे घर में जब भी कोई ऐसा धार्मिक अनुष्ठान होता है तो हम बच्चों को एक-एक बात का मतलब समझाते हैं, तब विधि आगे बढ़ाते हैं। ऐसा ही कुछ इस कहानी में लिखने का प्रयास किया गया। बच्चों की शंकाओं को आदेश या डाँट के नीचे दबाना नहीं चाहिए। उनको सॉल्व करना चाहिए ताकि बच्चे हर काम समझ के साथ करें, नासमझी से नहीं। परंपराएँ तभी निभेगी वरना एक-दो पीढ़ी के बाद खो जाएँगी।


प्रश्न: कहानी लिखते हुए कई बार ऐसे कई किरदारों से आप दो चार होते हैं जिन्हें एक कहानी में लिखने के बाद भी मन नहीं भरता है। आप उनसे दोबारा मिलना चाहते हैं। क्या इस कहानी संग्रह में भी ऐसे कोई किरदार हैं जिनसे आप दोबारा मिलना चाहेंगे? अगर हाँ, तो वह कौन सी कहानी का कौन सा किरदार है?

उत्तर: 'अदनान और फ़रिश्ता' कहानी मेरी पहली बाल कहानी थी और मैं इस कहानी के दोनों किरदारों अदनान और उसके अध्यापक से इमोशनली बहुत ज्यादा जुड़ी हुई हूँ। मैं अदनान की आगे की पढ़ाई और जीवन की यात्रा को कलमबद्ध करना चाहूँगी। गाँव से आगे की पढ़ाई करने के लिए जब वह शहर गया तो उसके क्या अनुभव रहे, क्या संघर्ष रहे, कैसे उसने उन पर विजय पाई और आगे बढ़ता गया। यही सब लिखना चाहूँगी।


प्रश्न: इस संग्रह में एक कथा 'क्रिसमस का उपहार' है जो एक रोमांच कथा की तरह लिखी गयी है। अक्सर बाल पाठकों को रोमांचकथाएँ पसंद आती हैं। क्या ऐसी और कहानियों को आप लिखने का इरादा रखती हैं?

उत्तर: बाल कहानियाँ हो या व्यस्को की कहानियाँ,  मैं किसी का भी कुछ पूर्वनिर्धारित लेखन नहीं करती। यानी कुछ प्लानिंग नहीं होती की एक रोमांच कथा लिखनी है या प्रेम कथा लिखनी है.... जिस समय जैसा विचार आता है वही लिख देती हूँ। विक्टर की कहानी लिखने में मज़ा आया था। वापस से ऐसा कोई प्लॉट दिमाग में आएगा तो जरूर लिखूँगी।

प्रश्न: आप वयस्कों के लिए भी लिखती हैं और बाल कथाएँ भी लिखती हैं। दोनों के लेखन में आपको क्या फर्क लगता है?

उत्तर: सचमुच बच्चों के लिए लिखना, बड़ों के लिए लिखने से कठिन कार्य है। मेरी अब तक की सबसे छोटी कहानी जो एकतारा प्रकाशन की 'प्लूटो'  पत्रिका में छपी थी, वह ५-६ साल के बच्चों के लिए लिखी गई थी। उस दो पैराग्राफ की कहानी को लिखने में मुझे सबसे ज्यादा सोचना पड़ा, सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। और यह सच्चाई है कि मैं चाह कर भी उसके बाद वैसी दूसरी कहानी नहीं लिख सकी। बाल कहानियाँ लिखते समय बच्चों के 'शूज' में जाना पड़ता है। यानि उनके दृष्टिकोण से दुनिया देखनी पड़ती है, चीजों को समझना पड़ता है जो कि आसान काम नहीं। बाल साहित्य लेखन एक चैलेंजिंग जॉब है। जो अच्छा बाल साहित्य लिख पा रहे हैं उनको मेरा सलाम है। 


प्रश्न: बाल साहित्य की बात चल ही रही है तो आपने 80 के दशक में बसाया हुआ लघु-उपन्यास 'ओए मास्टर के लौंडे' लिखा था जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया था और उसने केडीपी में इनाम भी जीता था। क्या ऐसे और बाल उपन्यास लिखने का इरादा आप रखती हैं?

उत्तर: जी अभी तो 'ओए मास्टर की लौंडे' की कहानी भी पूरी नहीं हुई। दो भाग आ चुके हैं तीसरा लिखना बाकी है। उसे लिखने में जितना मुझे मजा आया, उतना ही पाठकों को पढ़ने में आया। यह देख कर लगता है, मेहनत सफल हो गई। जैसा कि मैंने पहले भी कहा मैं लेखन में कोई प्लानिंग करके नहीं चलती। ईश्वर मुझसे वैसा उपन्यास वापस लिखवाना चाहेगा तो मुझे थॉट भी देगा और लिखवा भी लेगा। मैं कुछ भी लिखने के लिए ओपन हूँ।


प्रश्न: वर्तमान बाल साहित्य के प्रति आपका क्या नजरिया है? कुछ दिनों पहले बाल साहित्य की कई पत्रिकाएँ बंद हुई हैं। वहीं हिंदी का बाल साहित्य केवल लेखको तक ही सीमित लगता है।  आपको इस चीज के पीछे क्या कारण लगते हैं और  इस परिस्थिति में किस तरह का सुधार किया जा सकता है?

उत्तर: बाल साहित्य तो अच्छा लिखा जा रहा है। एकतारा की पत्रिकाएँ  'प्लूटो' और 'साइकिल' तो गज़ब हैं। नंदन  का स्थान 'पायस' डिजिटल पत्रिका ने भरा है। रोचक किताबें भी प्रकाशित हो रही हैं। जहाँ तक बाल साहित्य के केवल लेखकों तक ही सीमित होने का सवाल है तो देखिए,  मैं इसे सत्य नहीं मानती। प्रिंट बाल पत्रिकाओं की रीडरशिप कम हो सकती है लेकिन बाल साहित्य का प्रसार नहीं। 

बात सिर्फ इतनी सी है कि, बड़ो की हों या बच्चों की, कहानियों के माध्यम बदलने लगे हैं। प्रिंट पत्रिकाएँ बंद हो रही हैं लेकिन कहानियों के डिजिटल वर्जन जैसे ऑनलाइन पत्रिकाएँ, ऑनलाइन कॉमिक, कार्टून, ऑडियो बुक, वीडियो स्टोरीज एप्स... सभी बढ़ते जा रहे हैं। प्रिंट का यूजर दूसरे मीडियम पर शिफ्ट हो रहा है। 

आजकल बच्चे भी माता पिता की तरह टेकी होते जा रहे हैं। जब माँ-बाप सब कुछ फोन पर या लैपटॉप पर ही पढ़ रहे हैं तो बच्चे कैसे पीछे रहेंगें। इंटरनेट की वजह से पूरे विश्व का साहित्य अलग अलग माध्यमों द्वारा बच्चों की अप्रोच में आ गया है। उनके लिए विकल्प बढ़ गये हैं। मेरा बेटा कहानियों के पोडकॉस्ट सुनना बहुत इंज्वाय करता है। रोज कोई ना कोई कहानी सुन कर ही सोता है।

कंटेंट अच्छा होगा, बच्चों के लिए रुचिकर होगा और उनके पसंद के माध्यम पर होगा तो वह उन्हें अपनी ओर खींच ही लेगा। बच्चों को किताबों की ओर वापस ले जाने की शुरूआत माता-पिता को अपने से करनी पड़ेगी। मैं और मेरे पति किताबें पढ़ते हैं तो हमारे बच्चों को भी आदत बनी है।


*****

तो यह थी लेखिका दीप्ति मित्तल से उनके नवीन बाल कथा संग्रह 'पोटली किस्से कहानियों की' पर एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। बातचीत के विषय में अपनी राय से हमें अवगत करवाना नहीं भूलिएगा। 

लेखिका का यह संग्रह अमेज़न पर उपलब्ध है। आप निम्न लिंक पर जाकर इसे मँगवा सकते हैं: 

पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श | अमेज़न



लेखिका परिचय

दीप्ति मित्तल

पिछले पंद्रह सालों से निरंतर लेखन। सभी प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक भास्कर, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दिल्ली प्रेस, नई दुनिया, प्रभात खबर, हरिभूमि, मेरी सहेली, वनिता, फ़ेमिना, नंदन, बाल भास्कर, बालभूमि आदि में लगभग 400 कहानियाँ,  बाल कहानियाँ, लेख, व्यंग्य प्रकाशित। 

वनिका पब्लिकेशन, बिजनौर से 2018 में पहला कहानी संग्रह ‘मेरे मन के सोलह मनके’ प्रकाशित ।
बाटला पब्लिकेशन, मेरठ से कम्प्यूटर विज्ञान विषय(हाई स्कूल, इंटरमीडियेट यूपी बोर्ड) की चार पुस्तकें प्रकाशित।

वर्ष 2021 में केडीपी पेन टू पब्लिश में लघु-उपन्यास ओए मास्टर के लौंडे के लिए प्रथम पुरस्कार। 

अमेज़न पर मौजूद लेखिका की अन्य पुस्तकें: अमेज़न - दीप्ति मित्तल


यह भी पढ़ें


नोट: अगर आप लेखक हैं और एक बुक जर्नल से अपनी पुस्तक के ऊपर बात करना चाहते हैं तो contactekbookjournal@gmail.com पर हमसे संपर्क स्थापित कर सकते हैं।


  
FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

4 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. बहुत बढ़िया , अगर हिंदी साहित्य को पुनः लोकप्रिय बनाना है तो बाल पाठक बनाना ही सर्वोत्तम तरीका है। दीप्ति जी बधाई की पात्र है।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा साक्षात्कार

    ReplyDelete
    Replies
    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा, सर। आभार।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल