नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

किताब परिचय: पोटली किस्से कहानियों की


किताब परिचय

'पोटली किस्से कहानियों की' लेखिका दीप्ति मित्तल की सोलह कहानियों का संग्रह है। इससे पहले उनका बाल उपन्यास ओये मास्टर के लौंडे और उसका दूसरा भाग कट्टी बट्टी पाठकों द्वारा काफी सराहा जा चुका है। 

'पोटली किस्से कहानियों की'  साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। बाल मन को छूती इस संग्रह में मौजूद कहानियाँ अपने अंत में बाल पाठकों को कोई न कोई सीख दे जाती हैं। 

पोटली किस्से कहानियों में दीप्ति मित्तल की निम्न कहानियों को संकलित किया है:

'संता बाबा का जादुई झोला', 'अदनान और फ़रिश्ता' , 'जुगनुओं की रोशनी', 'अनोखी रेसिपी प्रतियोगिता', 'बादाम का हलवा', 'रोहित की किट्टू काइट', 'क्रिसमस का उपहार', 'एक था बांके पेन', 'अनोखा दशहरा पूजन', 'हाईटेक दादाजी', 'गुस्से वाला भूत भागा', 'लौट के राहुल घर को आया', 'गणतंत्र दिवस ऐसे मना','जब जागो तभी सवेरा', 'और रिया जीत गई', 'मुन्नी और छोटा भैया'





पुस्तक अंश



  1


सोनू उस पेन को खरीदने के लिए मचल पड़ा। पापा ने कहा, “वाकई यह पेन देखने में बहुत सुंदर है, पर ज़रा इसे चलाकर तो देख लो कि लिखता कैसा है! तभी लेना।”

मगर नन्हे सोनू के पास इतना सब्र कहाँ था! इतना सुनते ही उसका गोल-मटोल मुँह और फ़ूल कर कुप्पा हो गया। उसे यूँ ज़िद करता देख आखिरकार पापा ने वह पेन खरीदवा दिया।

सोनू जयपुर घूमते हुए और अपने घर वापस आते हुए भी उस पेन को हमेशा सीने से चिपकाए रखता। उसे सूरज की रोशनी में घुमा-घुमाकर देखता। ऐसा करने पर उसके शीशे हीरे से चमकने लगते। यह देख वह बहुत ख़ुश होता। घर पर आकर सोनू ने उस पेन को अपने पेन स्टैंड में बड़े प्यार से रख दिया। 

उस पेन स्टैंड में दूसरे पेन-पेंसिल भी थे जो अपने इस नये साथी की सुंदरता और ठाट-बाट देख हैरान रह गये थे। वह पेन बाकी साधारण पेन-पेंसिलों से ख़ुद को ऊँचा और नायाब समझ रहा था, इसलिए मूँछे तान बड़ा अकड़ कर खड़ा था।

फिर भी सभी पेन-पेंसिलों ने अपने इस नए साथी का स्वागत कर उससे दोस्ती करनी चाही। पेन स्टैंड के सबसे बुजुर्ग फ़ाउंटेन पेन ने उस जयपुरी पेन से कहा- “सोनू के पेन कलेक्शन में तुम्हारा स्वागत है। मैं इस कलेक्शन का सबसे बुजुर्ग और मुखिया पेन हूँ, सभी मुझे फ़ादर फ़ाउंटेन कहकर बुलाते हैं। तुम भी बुला सकते हो।”

जयपुरी पेन बड़े रौब से बोला, “मेरा नाम बाँके पेन है। मैं तुममें से किसी को अपना फादर-ब्रदर नहीं मानता, क्योंकि मैं तुम सबसे बेहतर, निराला और खानदानी हूँ। सोनू को भी मैं ही सबसे प्यारा हूँ”, कहते हुए बाँके पेन सभी से मुँह फ़ेरकर खड़ा हो गया। 

उसकी इस बदतमीज़ी पर पप्पू पायलेट पेन को बड़ा गुस्सा आया। वह बोला, “फादर! कहो तो इसे एक ज़ोरदार टक्कर मारकर स्टैंड से बाहर पटक दूँ?” 

मगर फादर फ़ाउंटेन ने उसे और बाकी पेन को समझा-बुझाकर शांत कर दिया।

सोनू बाँके पेन को कुछ ज्यादा ही भाव दे रहा था। उसे डर था कि कहीं उसके प्रिय पेन के शीशे और जड़ाऊ मोती निकल न जाएँ। इसलिए वह उससे न ख़ुद लिखता, न किसी को लिखने देता। सोनू का यह विशेष प्रेम पाकर बाँके पेन की अकड़ दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। बाकी पेन इस बात से बहुत दुखी थे।

आज सोनू का बहुत अच्छा दोस्त चुलबुल उसके घर आया। सोनू उसे अपना प्रिय पेन दिखाने लगा। चुलबुल ने उसकी ख़ूबसूरती देख दाँतो तले उंगलियाँ दबा लीं। वह उस पेन को हाथ में लेने के लिए सोनू की मिन्नतें करने लगा मगर वह नहीं माना। आखिरकार चुलबुल ने सोनू को चाकलेट का लालच देकर राजी कर लिया। 
चुलबुल ने बाँके पेन को हाथ में लिया, बड़ी उत्सुकता से घुमा-घुमा कर देखा और फिर अपनी नोटबुक पर चलाने लगा।

- संग्रह में मौजूद कहानी 'एक था बाँके पेन' से



2

आज जब राहुल स्कूल गया हुआ था तो उसके कमरे में बड़ी जरूरी मीटिंग चल रही थी। राहुल का कैरमबोर्ड, लूडो, बैडमिंटन रैकेट, क्रिकेट बैट, फुटबॉल, बिजनेस गेम,किताबें, कॉमिक्स, क्राफ्टवर्क किट आदि सभी उस मीटिंग में शामिल थे। मीटिंग का एजेंडा था पिछले कुछ महीनों से राहुल की उन सबके प्रति की जा रही उपेक्षा और लापरवाही। 

“पता नहीं, हमारे राहुल भैया को क्या हो गया है, जब से सातवीं कक्षा में आए हैं, उनका रंग ही बदल गया। पहले मुझे पढ़े बिना उन्हें नींद नहीं आती थी और अब मेरी ओर देखते तक नहीं।”, राहुल की पसंदीदा कॉमिक बुक ने सबके बीच में अपनी बात रखी।

 “सच, हम पर भी कितनी धूल जम गई है, धूल के कारण हमें खाँसी रहने लगी है।” कहानियों की किताबों ने शिकायत की। 

“मेरी तो एक कोने में खड़े-खड़े कमर अकड़ गई। पहले राहुल के साथ रोज शाम घंटे भर खेल कर मेरी भी एक्सरसाइज हो जाती थी, मगर अब तो मैदान में जाना जैसे सपना बनकर रह गया है।”, राहुल के क्रिकेट बैट ने अपना दुखड़ा रोया तो बैडमिंटन रैकेट ने भी हाँ में हाँ मिलाई।

“पहले छुट्टी के दिन इस कमरे में कितनी रौनक लगती थी। राहुल भैया अपने दोस्तों संग कभी लूडो, कभी बिजनेस गेम, कभी कैरम खेलते, कितना मजा आता था।” बोर्ड गेम भी पुराने दिनों को याद करने लगे।

“तुम सबको अपनी चिंता है, मगर राहुल के बारे में कोई नहीं सोच रहा।”, राहुल की सबसे पुरानी साथी फुटबॉल बोली, “क्या तुम सबने नोटिस नहीं किया कि आजकल राहुल कैसा खोया-खोया, और थका-सा रहने लगा है? वह अकेले रहना पसंद करने लगा है। आँखें मिचमिचाने लगा है, मम्मी से अक्सर सिरदर्द की शिकायत करता है, और तो और, उसके पापा भी उसे परीक्षा में कम मार्क्स लाने पर डाँट रहे थे, जबकि पहले तो वह कक्षा में प्रथम आता था। तुम सबको नहीं लगता कि वह मुसीबत में हैं और हम सबको मिलकर उसकी मदद करनी चाहिए?”

 “मदद तो कर दें, मगर पहले उसका मर्ज़ तो समझ आए। आखिर उसमें ये बदलाव आए कैसे?” सभी एक स्वर में बोले।

“मुझे उसके मर्ज़ यानि बीमारी का कुछ कुछ अंदाजा हो रहा है।”, सबने मुड़ कर देखा तो आवाज मेज़ पर रखे कंप्यूटर से आ रही थी, जिसे राहुल के पापा उसके लिए लाए थे। “राहुल के रवैये से जितने दुखी तुम सब हो, उतना मैं भी हूँ। पहले वह मुझ पर डाक्यूमेंट और प्रेजेंटेशन बनाना सीखता था, प्रोग्रामिंग करना सीखता था, मगर अब कितने दिनों से उसने मुझे ऑन ही नहीं किया।”, कंप्यूटर रूआंसा होकर बोला।

“वो तो ठीक है मगर वो मर्ज़ क्या है, ये तो बताओ?” 

“ये मुआ स्मार्ट फोन, और कौन! यही है उसका मर्ज़ जिसे उसके अमेरिका वाले चाचा जी तीन महीने पहले गिफ्ट करके गए थे। अब यही फोन राहुल का दिन रात का साथी बन चुका है। खाते-पीते, उठते-बैठते हमेशा इसी की स्क्रीन पर उसकी आँखें गड़ी रहती हैं...उंगलियाँ इस पर गिटपिट करती रहती हैं...”, कंप्यूटर ने गुस्से से कहा।

“हाँ, बिल्कुल ठीक पकड़ा, जब से स्मार्ट फोन आया है, राहुल शाम को बाहर खेलने नहीं जाता, मोबाइल पर ही गेम खेलता रहता है...” क्रिकेट बैट भी बोला।

“जरा देखो तो इसे, अभी भी चार्जिंग पाइंट पर पड़े-पड़े कैसे सुस्ता रहा है...जैसे कहीं का राजकुमार हो...” कंप्यूटर स्मार्ट फोन को देख गुस्से से बोला।

उन सबकी बातें सुन स्मार्ट फोन ने जोर से अंगड़ाई ली और फिर शिकायती लहज़े में बोला, “सुस्ताऊँ ना तो और क्या करूँ? सारा दिन खाली पड़ा बोर होता रहता हूँ, सिर्फ गेम खेलने के लिए हाथ में उठाया जाता हूँ, जिंदगी बर्बाद हो गई यहाँ आकर मेरी, उंह...” स्मार्ट फोन ने मुँह बिचकाया। 

उसकी बातें सुन सबको बड़ा आश्चर्य हुआ, अरे! ये तो आजकल राहुल का पसंदीदा साथी बना हुआ है, सबसे ज्यादा इसी की पूछ हो रही है, राहुल के मम्मी-पापा भी उसे यहीं कहते रहते हैं, बहुत मँहगा फोन है, संभाल के प्रयोग करना, इसको खो मत देना...फिर इसे क्या दुख हो सकता है?

“क्यों भई! तुम किस वज़ह से इतने उदास हो जबकि आजकल हम सबसे ज्यादा तुम्हारी ही पूछ हो रही है?” फुटबॉल ने पूछा।

यह सुनकर फोन सुबकते हुए अपना दुखड़ा रोने लगा,..... 

- संग्रह की कहानी 'लौट के राहुल घर को आया' से


पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श | अमेज़न


लेखिका परिचय

दीप्ति मित्तल

पिछले पंद्रह सालों से निरंतर लेखन। सभी प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक भास्कर, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दिल्ली प्रेस, नई दुनिया, प्रभात खबर, हरिभूमि, मेरी सहेली, वनिता, फ़ेमिना, नंदन, बाल भास्कर, बालभूमि आदि में लगभग 400 कहानियाँ,  बाल कहानियाँ, लेख, व्यंग्य प्रकाशित। 

वनिका पब्लिकेशन, बिजनौर से 2018 में पहला कहानी संग्रह ‘मेरे मन के सोलह मनके’ प्रकाशित ।
बाटला पब्लिकेशन, मेरठ से कम्प्यूटर विज्ञान विषय(हाई स्कूल, इंटरमीडियेट यूपी बोर्ड) की चार पुस्तकें प्रकाशित।

वर्ष 2021 में केडीपी पेन टू पब्लिश में लघु-उपन्यास ओए मास्टर के लौंडे के लिए प्रथम पुरस्कार। 

अमेज़न पर मौजूद लेखिका की अन्य पुस्तकें: अमेज़न - दीप्ति मित्तल



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