नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

एक गलतफहमी से उपजे अकेलेपन की दास्तान है निमाई भट्टाचार्य का उपन्यास गलतफहमी

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 134 | प्रकाशक: डायमंड बुक्स | अनुवादक: कुमार नीलभ | मूल भाषा: बांग्ला 

पुस्तक लिंक: अमेज़न



कहानी 

डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद सैकत ने अपने लिये काफी बातें सोच कर रखी थीं। लेकिन वो सब धरी की धरी रह गईं। 

सैकत अब पढ़ाई खत्म करके कोलकता से बहुत दूर निकलना चाहता था। वह उन लोगों से दूर चला जाना चाहता था जो उसे अपने गुजरे जीवन की याद दिलाएं। 

यही कारण था कि जब उसे आसाम के मार्घेरिटा  में मौजूद कोयला की खदानो में जाने का मौका मिला तो उसने हामी भरने में पल भर भी नहीं गंवाया। 

सैकत अपने पिछले जीवन से दूर क्यों जाना चाहता था?

क्या मार्घेरिटा जाकर उसे वह मिल पाया जो उसने सोचा था?

विचार

हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा जिस भाषा का साहित्य मैंने सबसे अधिक पढ़ा है वह बांग्ला से हिन्दी में अनूदित बांग्ला साहित्य ही होगा। हर साल ऐसा कोई न कोई बांग्ला लेखक मुझे मिल जाता है जिसे पहले मैंने पढ़ा नहीं है और फिर उस लेखक के लिखी रचनाओं को पढ़ने का लोभ मन में जाग जाता है। निमाई भट्टाचार्य भी ऐसे बांग्ला लेखक हैं जिनकी इससे पहले मैंने कोई रचना नहीं पढ़ी थी। उपन्यास में दर्ज जानकारी के अनुसार गलतफहमी लेखक निमाई भट्टाचार्य के बांग्ला में लिखे उपन्यास ईशानी का हिंदी अनुवाद है। उपन्यास का अनुवाद कुमार नीलभ ने किया है और यह अनुवाद अच्छा हुआ है। पढ़ते हुए लगता नहीं है कि आप अनुवाद पढ़ रहे हैं। 

उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो प्रथम पुरुष में लिखा यह उपन्यास डॉक्टर सैकत बनर्जी की कहानी है।  उपन्यास का पहला अनुच्छेद ही पाठक को यह बता देता है कि सैकत को कोई दुख है और वह उससे निजात पाकर केवल एक सुखी जीवन जीना चाहता है। जैसे-जैसे कथानक आगे बढ़ता जाता हमें पता लगता है कि सैकत के जीवन में कभी ईशानी नाम की लड़की हुआ करती थी जिससे वह अब अलग हो चुका है। उसके दुखी होने का भी यही कारण है। सैकत सुख की तलाश में क्या करता है? ईशानी उससे दूर क्यों गयी? सैकत के जीवन में आगे क्या होगा? ये कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके उत्तर पाने के लिए पाठक सैकत की कहानी सुनने लग जाता है। एक तरफ जहाँ पाठक को सैकत के वर्तमान जीवन और उसका खालीपन दिखता है वहीं बैकफ्लैश के माध्यम से उसे सैकत की गुजरी जिंदगी और ईशानी का उसमें महत्व का पता चलता जाता है। यह सब बातें आपको इस कथानक को पढ़ते चले जाने के लिए विवश सी कर देती हैं। 

एक व्यक्ति अपने साथ क्या क्या लेकर चलता है उससे कई बार उसके नजदीकी भी कितने अंजान हो सकते हैं यह भी हम इस उपन्यास में देखते हैं। एक तरफ तो सैकत के खाली जीवन से पाठक उसके कथनों के कारण वाकिफ होता है वहीं दूसरी तरफ वह देखता है कि किस तरह वह अपने परिवार वालों और जानकारों के साथ हँसी ठट्ठा करता है। कैफ़ी आजमी की गजल का शेर 'तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसे छुपा रहे हो' सैकत पर फिट बैठता है। कोई भी व्यक्ति उसे देखकर ये शायद ही जान पाए कि वह अंदर से इतना दुखी है। ऐसे कई लोग हमारे आस-पास रहते हैं जिनके दुख से हम वाकिफ नहीं होते है और ऐसे ही लोगों की याद वो दिलाता है।   

कई बार हम लोग अपने दुखों से बचने के लिए भाग जाना चाहते हैं। लेकिन क्या भागकर उससे निजात पा सकते हैं? इस प्रश्न का उत्तर शायद सैकत की हालत देखकर जाना जा सकता है।  

दिल के रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं और कई बार इनके बीच आई गफलत और अहम इन रिश्तों से जुड़े लोगों को दुखी कर उनका क्या हाल कर देती है यह बात प्रस्तुत उपन्यास गलतफहमी पढ़कर जाना जा सकता है। सैकत और ईशानी एक दूसरे से प्रेम करते थे लेकिन एक गलतफहमी और फिर अहम के चलते उन्होंने क्या भोगा ये भी इस उपन्यास को पढ़कर जाना जा सकता है।

 उपन्यास की भाषा शैली और कहानी कहने का तरीका ऐसा है कि यह आपको पृष्ठ पलटते चले जाने के लिए मजबूर सा कर देता है। वहीं चूँकि सैकत डॉक्टर है तो एक डॉक्टर के व्यस्त जीवन की झलक और उसके डॉक्टरी जीवन के छोटे छोटे रोचक संस्मरण न केवल पाठक को एक डॉक्टर के जीवन से अवगत करवाते हैं बल्कि साथ ही वह कथानक को रोचकता भी प्रदान करते हैं। सैकत स्वभाव से एक खिलंदड़ व्यक्ति है और उपन्यास में मौजूद उसके संवाद भी इसे दर्शाते हैं। यह संवाद रोचक हैं।  

उपन्यास की एकलौती कमी बस इसका कलाईमैक्स है। जब आप सैकत और ईशानी के बीच के अलगाव के विषय में पढ़ते हैं तो आपको लगता है कि जरूर इनके बीच में कोई बड़ी बात हुई होगी। लेकिन कारण पता चलने पर खोदा पहाड़ और निकली चुहिया जैसा अहसास आपको कहीं न कहीं होता है। सैकत और ईशानी दोनों पढ़े लिखे लोग थे और उनका इतनी छोटी सी बात को न सुलझा पाना हैरत में डालता है।  यह थोड़ा निराश तो करता हैलेकिन हो सकता है कि लेखक ने जानबूझ कर यह कारण इतना बेतुका रखा हो। शायद वह दर्शाना चाहते हो कि कभी समझदार व्यक्ति भी छोटी सी बात को अपने अहम् के चलते समझ नहीं पाते हैं।  

वहीं चूँकि ईशानी और सैकत का अलगाव इनके जीवन में आए इतने बड़े बदलावों की वजह था तो पाठक को अपेक्षा रहती है कि यह हिस्सा कथावाचक तफ़सील से पाठकों के समक्ष रखेंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं है। यह जल्द बाजी में निपटाया हुआ लगता है जो कि असंतुष्टि का भाव पैदा करता है। अगर यह न होता तो यह उपन्यास एक अच्छा उपन्यास बन सकता था। 

चूँकि मुझे उपन्यास की भाषा और निमाई भट्टाचार्य का कहानी कहने का तरीका पसंद आया तो मैं उनके दूसरे उपन्यास जरूर पढ़ना चाहूँगा। ऊपर लिखी जो कामियाँ मुझे लगी उन्हें अगर अलग रख दें तो उपन्यास पठनीय है और एक बार पढ़ा जा सकता है। 

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह उपन्यास कैसा लगा? अपनी राय से मुझे अवगत जरूर करवाइएगा। 

उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आये

मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ, मौत एक-न-एक दिन हर किसी की जिंदगी में जरूर आयेगी। इस दुनिया में हर इंसान को एक-न-एक दिन मौत के आगोश में खो जाना है। मृत्यु के हाथ से मुक्ति नहीं है... लेकिन फिर भी अपनों को खोकर हम सभी को दुख होता है। हम सभी शून्यता की जलन महसूस करते हैं और अगर कोई समय से पहले इस दुनिया को छोड़कर कर चला जाता है, तो वह दु:ख सच में सहन नहीं होता है। (पृष्ठ 19)


इस धरती को एक बार घूम आने से आसमान की शुरुआत और अंत भी दिखाई देते हैं। सिर्फ माँ की ममता ही एक ऐसी चीज है... जिसकी कोई सीमा नहीं होती है। हेमंत ऋतु की ओस की बूँद की तरह माँ की ममता हमेशा ही अपनी सन्तान के कल्याण के लिए टूट पड़ती है। इस दुनिया में किसी साधू बाबा के पास नहीं... सिर्फ माँ के पास ही मिलता है नि: स्वार्थ प्यार। सिर्फ माँ के पास ही अपने आपको समर्पित करने पर मन सुख से, खुशी से भर उठता है।  (पृष्ठ 25)


उसके बाद गंगा-यमुना नदी होकर पता नहीं कितना पानी बह गया। हम दोनों एक साथ हँसें हैं, एक साथ सपने देखे हैं। कभी सोचा भी नहीं था कि हमारे सारे सपने आँधी में टूटकर चूर-चूर हो जायेंगे। अच्छा, इंसान की जिंदगी में क्या हेमंत-बसंत ऋतु हमेशा के लिए स्थायी नहीं हो सकतीं? इंसानों को दुख ना पहुँचाकर क्या विधाता पुरुष अपना आधिपत्य प्रकट नहीं कर पाते? पृष्ठ 43


अगर इंसानों के मन के अंदर अहम् और जलन न रहे तो इंसानों के साथ इंसानों का विरोध कभी भी नहीं होगा, हो ही नहीं सकता। कोयला खान के एक डॉक्टर के नाते मैं भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों, विभिन्न इलाकों के लोगों से मिल चुका हूँ। मेरी नजर में तो कहीं कोई विरोधी नहीं आया। विरोध सिर्फ अखबार के प्पनों पर और राजनीति के लोगों के मन के अंदर है। (125)


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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6 Comments
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  1. वाह!....... बहुत सुन्दर वर्णन..... विकास जी....... आपकी तरह मुझे भी बंगला से हिंदी अनुदित नॉवेल्स पसंद हैं....... 😊😊😊😊😊😊😊..... आपने अब तक कितने बंगला राइटर्स को पढ़ा है....... 🤔🤔🤔🤔🤔🤔...... मैंने समरेश बसु, रविंद्र नाथ, शरत चंद, ताराशंकर बन्दोंपाध्याय, बिमल मित्र, महाश्वेता देवी, आशा पूर्णा देवी, देवेश ठाकुर, सुनील गंगोपाध्यय....... की कृतियाँ पढ़ी हैं........

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  2. Indeed a great review done in a very cool format which excites a lot to read!! Thanks for sharing
    Blogging Generation

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  3. किताब दिलचस्प मालूम पड़ती है, और कहानी ऐसी जो शायद जीवन के बारे में सोचने पर मजबूर कर दे। मैंने भी बांग्ला साहित्य का बहुत सारा अनुवाद पढ़ा है, खास तौर पर शरत चन्द्र की किताबें और कहानियां।

    कवर बहुत सुंदर है, जैसे कोई पेंटिंग हो। और हमेशा की तरह, बहुत अच्छी समीक्षा।

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    1. जी आभार..किताब अच्छी है। कम से कम इसने निमाई भट्टाचार्य की अन्य कृतियों को पढ़ने के लिए मुझे प्रेरित कर दिया है। कवर वाकई खूबसूरत है। आभार।

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