ज़िन्दगी में हर चीज नहीं मिलती। आदमी को चुनाव करना पड़ता है कि उसे क्या चाहिए... इस चुनाव में जो चीजें छूट जाती हैं, उनके लिए दुःख नहीं करना चाहिए! तुमने जो ठीक समझा...उसे चुन लिया था। मैंने जो ठीक समझा, वह चुन लिया था। अब पछताना कैसा?
...
- पछताने में कुछ नहीं रखा है, जीतनेवाला तो जीतता ही है, हारने वाला भी एक दिन जीत जाता है... लेकिन पछताने वाला हमेशा पछताता ही रह जाता है।
किताब लिंक: किंडल
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हाँ विकास जी । ठीक कहा कमलेश्वर जी ने । सच यही है कि कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता । कुछ खोना है, कुछ पाना है, जीवन का खेल पुराना है । पछताने से कभी कोई लाभ नहीं होता ।
ReplyDeleteजी आभार....
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-03-2021) को "योगदान जिनका नहीं, माँगे वही हिसाब" (चर्चा अंक-4005) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, सर....
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी आभार..
Deleteकमलेश्वर जी की मैं भी फैन हूंं विकास जी, आपने काली आंधी का पता भी दे दिया...धन्यवाद
ReplyDeleteकमलेश्वर के उपन्यासों में काली आँधी का अपना विशिष्ट स्थान है। इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में इसकी रचना हुई और इसका मुख्य चरित्र उन्हीं का प्रतिनिधित्व करता है...
जी आभार... आपने सही कहा यह उपन्यास उन्हीं पर आधारित था....
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteजी आभार...
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