नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

हीरोइन की हत्या - आनन्द कुमार सिंह

समीक्षा: हेरोइन की हत्या - आनन्द कुमार सिंह
गुरप्रीत सिंह चंडीगढ़ के निवासी हैं और भारतीय रेलवे में सीनियर सेक्शन इंजिनियर के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उपन्यास पढ़ने और फिल्में सीरीज देखने में उनकी विशेष रूचि है और इन रचनाओं के विषय में अपनी चुटीली भाषा में वह अक्सर अपने फेसबुक अकाउंट से लिखा करते हैं।

हाल ही में आनन्द कुमार सिंह के उपन्यास हीरोइन की हत्या का पेपरबैक संस्करण प्रकाशित हुआ था। गुरप्रीत सिंह ने अपने ख़ास अंदाज में उनके उपन्यास पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। आप भी पढ़िए।

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समीक्षा: हीरोइन की हत्या - आनन्द कुमार सिंह

हीरोइन की हत्या जैसे कि नाम से ही ज़ाहिर है ये एक मर्डर मिस्ट्री है जो कि आनंद कुमार सिंह जो कि पेशे से पत्रकार हैं ने लिखी है। 

ये एक डेढ सौ पन्नों में सिमटा थ्रिलर नॉवल है जो कि तेज़ रफ्तार भी है और बांध कर भी रखता है।

नॉवल के शुरूआत में हस्पताल के बैड पर  एक शख्स हथकड़ी में बंधा हुआ दिखाया गया है जो कि एम्नीसिया से पीड़ित है यानी उस की याददाशत गायब है। फिर पता चलता है कि वो  दरअसल एक प्राईवेट इनवैस्टीगेटर है जिस का नाम यश खांडेकर है जिस पर झंकार मिर्ज़ा नामक हीरोईन की हत्या का आरोप है। 

हकीकतन उसे झंकार मिर्ज़ा हीरोईन ने ही रिटेन किया था कि वो उसे यानी हीरोईन को मिलने वाले धमकी भरे ख़त और फोन कॉल को इनवैस्टीगेट कर के पता लगाये कि इस के पीछे कौन शख्स है जो ऐसी हरकत कर रहा है। 

तभी हस्पताल में ही एक बांब ब्लास्ट के जरिये यश खांडेकर की हत्या की कोशिश होती है जिस के पीछे एक प्रौफेशनल किलर का दिमाग़ होता है। इसी आपाधापी में यश खांडेकर हस्पताल से फ़रार हो जाता है और अपनी सैक्रेटरी के घर पनाह पाता है।

वो इस सारे सिलसिले को समझ कर इस साज़िश को बेनकाब करना चाहता है कि कौन उसे हीरोईन के कत्ल में फंसाना चाहता है। और कौन उस की जान का दुश्मन बना है। 

बहुत जांमारी के बाद वो इस जाल से निकलने के बाद इस मिस्ट्री को सॉल्व करता है जिस में फिल्मी दुनिया की चकाचौंध के पीछे की काली सच्चाई उजागर होती है। 

सस्पैंस शानदार है लेकिन मेरठ के एक स्वर्गवासी  उपन्यासकार की तरह कहानी को घुमाकर कातिल निर्दोष सा देखनेवाला पात्र दिखाया जाता है जबकि कातिल के लिये मेरी निगाह में  एक सूटेबल कैंडीडेट मौजूद होता है।लेकिन ये prerogative लेखक का है कि वो अंत में किसे वो कातिल तस्लीम करता है। क्लाईमैक्स ऐसा है कि आप कातिल का अंदाज़ा भी न लगा पांयेगे। 

कहानी छोटी है इसलिये फास्ट पेस्ड है। पात्रों का विवरण उपयुक्त हैं। कुल मिलाकर लेखक का पहला प्रयास सराहनीय है पठनीय है सुपर हिट है। 

उपन्यास में मुझे जो कमी खली वो ये है कि आमतौर पर एम्नेसिया से पीड़ित व्यक्ति की कहानी के दौरान ही याददाश्त वापिस आ जाती है। लेकिन इस उपन्यास में ऐसा नहीं है।

आनंद कुमार सिंह कैसे आनंद के सिंह बन गये ये भी एक मिस्ट्री है जो इस उपन्यास में रिवील नहीं होती।

किताब लिंक: पेपरबैक

यह भी पढ़ें: किताब परिचय: हीरोइन की हत्या 


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6 Comments
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  1. नमस्कार गुरुप्रीत जी , माफी चाहता हूं। अगर आपको वेद सर से इतनी दिक्कत है। की आप उनका नाम भी नहीं लिख सकते तो अपनी पोस्ट में वेद सर का जिक्र भी ना करे ।

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  2. बढ़िया लिखा गुरप्रीत सर जी।🙏🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻

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  3. बेहतरीन समीक्षा

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