नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

किताब परिचय: हीरोइन की हत्या - आनन्द कुमार सिंह

किताब परिचय:  हीरोइन की हत्या - आनन्द कुमार सिंह

किताब परिचय:

हीरोइन की हत्या - आनन्द कुमार सिंह

यश खाण्डेकर को जब होश आया तो उसने खुद को हॉस्पिटल के वार्ड में पाया। वह चोटिल था और पुलिस की हिरासत में था। लोगों का कहना था कि उसने मशहूर बॉलीवुड अदाकारा झंकार मिर्जा का कत्ल किया था। 

लेकिन क्या असल में ऐसा हुआ था?

यश को कुछ पता न था। क्योंकि वह तो यह भी नहीं जानता था कि वह कौन था। वह यश खाण्डेकर है यह भी उसे दूसरों के बताये पता चला था। उसे यह भी बताया गया था कि वह एक प्राइवेट डिटेक्टिव हुआ करता था। लेकिन यश को यह सब बातें याद नहीं थी। 

तो क्या उस पर लगाये इल्जाम सही थे?
क्या यश खाण्डेकर ने असल में हीरोइन झंकार मिर्जा का कत्ल किया था?
अगर ऐसा नहीं था, तो झंकार मिर्जा का कत्ल किसने किया था?

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पुस्तक अंश

उसने खुद पर नजर डाली। उसे चादर से ढँका गया था। बायें हाथ में प्लास्टर, दायाँ हाथ हथकड़ी से जकड़ा। प्यास से उसका गला सूख रहा था। 

“हैलो....’ उसने आवाज दी.. “कोई है? कोई है क्या?”

उसे अपनी ही आवाज अजीब सी लगी। जैसे कभी सुनी ही न हो। 

दरवाजा खुला। भीतर प्रवेश करने वाली एक युवती थी। नर्सों वाला ड्रेस पहना था। वो बेड के करीब पहुँची। खूबसूरत, गोरी रंगत। चेहरे पर कोई मेकअप नहीं। होंठों पर लिपस्टिक का हल्का टच। 

“तुम जाग गये?”

आवाज जैसे कहीं दूर से आ रही थी..

“मुझे प्यास लगी है”

नर्स ने टेबल रखे जग से पानी गिलास में डाला, सहारा देकर उसे पिलाया। 

“मुझे और चाहिए”

नर्स ने पानी पिलानी की अपनी प्रक्रिया को फिर दोहराया। 

“मैं कहाँ हूँ। यहाँ कैसे आ गया?” उसने पूछा...

नर्स ने उसे घूरा। घूरने में कठोरता और नफरत का मिला जुला स्वरूप दिखाई पड़ा। कुछ देर तक निगाहों से ही उसे घायल करने की कोशिश की। 

पहले ही क्या वो कम घायल था....

“ इसका जवाब तुम्हें इस्पेक्टर बलदेव नारंग देंगे।”

फिर और कुछ कहे बिना वह तेजी से बाहर निकली और दरवाजा बंद कर दिया। 

क्या गड़बड़ है भई...हो क्या रहा है.....इंस्पेक्टर...क्या किया है उसने..

उसने बीती घटनाओं को फिर याद करने की कोशिश की। लेकिन सिर का तेज दर्द भी पक्का साथी था। वापस लौट आया। 

उसने याद करने की कोशिश छोड़ दी। 

*****

बलदेव नारंग बार में बैठा था। दिन का वक्त होने की वजह से बार तकरीबन खाली था। पुलिस की वर्दी में न होने पर भी कोई अंधा भी बलदेव को देखकर पुलिसवाला बता सकता था। भारी चेहरा, सख्त  और चौड़ी हथेलियाँ, चेहरे पर नाराजगी का स्थायी भाव। उसके सामने बैठा था दिनेश मेहता। यूँ तो दिनेश मेहता कहने को एक एंटीक डीलर था। लेकिन मूल रूप से वह चोरी का माल खरीदने वाला जरायमपेशा था और साथ ही वह बलदेव का खबरी भी था। दिनेश के छोटे-मोटे एडवेंचर्स को वह उससे मिलने वाली खबरों की एवज में ढील दे देता था। दिनेश के सामने मुश्किल यह रहती थी कि वह बलदेव से बैर भी नहीं मोल सकता था और उसे अपना धंधा भी चलाना रहता था। 

“अशफाक ने तलवार तुम्हें बेची थी?” बलदेव की आवाज भले धीमी थी लेकिन दिनेश को लगा उसपर कोड़ा चलाया गया हो। 

“कैसी तलवार?” 

बलदेव मुस्कराया और बड़े सब्र से कहा, “ देख भाई..मुझे जल्दी है..कहीं जाना है..इसलिए जल्दी कर..” 

“मुझे सच में नहीं मालूम साहब, किस तलवार के बारे में आप कह रहे हैं।”

बलदेव का सब्र अभी भी कायम था, “ देख भाई, तलवार मंत्री जी की है। मुझे जाती तौर पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि पांच सौ साल पुरानी तलवार मंत्री जी के घर में रहे या फिर वाया तुम्हारे, दुबई के किसी सेठ के घर के एंटीक कलेक्शन की शोभा बढ़ाये..लेकिन फर्क तब पड़ता है अगर डेपुटी कमिश्नर मेरी क्लास ले.. मुझे मेरे मातहतों के सामने फटकार लगाये... तलवार की जल्द बरामदगी का अल्टीमेटम दे.... तब मेरे भाई मुझे बहुत फर्क पड़ता है। इसलिए तलवार तो मुझे चाहिए... तो..अशफाक ने तुम्हें बेची थी तलवार?”

“ साहब मुझे सच में किसी तलवार के बारे में नहीं पता” दिनेश मिमियाया। 

बलदेव ने कुछ सोचने की मुद्रा बनायी। लगा जैसे किसी गूढ़ प्रश्न के बारे में विचार कर रहा हो।  

“ तुम्हें मेरे बारे में पता है? चल फिर भी बता देता हूँ..तू भी क्या याद करेगा। मेरी उम्र पैंतीस साल है..अभी तक मैंने शादी नहीं की है। पता है क्यों...क्योंकि मेरा शौक, मेरा जुनून तुम जैसे हरामियों की नकेल कसना है। शादी कर लूँगा न फिर आटे-दाल में उलझ जाऊँगा...और तू मुझे पट्टी पढ़ा रहा है? यार पट्टी ही पढ़ानी है तो ढंग की पढ़ाते..है न? ”

“ सच में मेरा विश्वास करो साहब...मैंने क्या कभी झूठ बोला है आपसे?” 

बलदेव मुस्कुराया....

फिर सबकुछ जैसे बिजली की गति से हुआ। दिनेश को सिर्फ इतना दिखा कि बलदेव कुर्सी पर बैठे बैठे  नीचे झुका था। मानों अपने जूते के फीते बांधना चाहता हो...फिर अगले ही पल बलदेव के पंजे में उसका वह अंग था जहां पीड़ा सर्वाधिक होती है। 

असहनीय दर्द...जिसे शब्दों में बयान करना असंभव था। 

बलदेव अब कुछ नहीं पूछ रहा था। केवल उसके पंजों का दबाव बढ़ता जा रहा था। बलदेव की ताकत पूरे पुलिस महकमे में मशहूर थी। एकबार तो उसके केवल एक घूँसे से एक कुख्यात अपराधी की मौत हो गयी थी। विभागीय जाँच हुई थी.. बलदेव पर कार्रवाई की तलवार बड़ी मुश्किल से हट सकी थी, और इस वक्त उसके विशाल पंजे में दिनेश की जान अटकी थी। 

दिनेश को लग रहा था इस दर्द से मौत बेहतर है। 

“बताता....हूँ....साहब...” दिनेश की आवाज फँस-फँस कर बदली हुई आ रही थी। 

फिर भी बलदेव का दबाव जरा भी कम न हुआ। उसने कुछ न कहा। केवल प्रश्नवाचक नजरों से दिनेश की तरफ देखा। 

बार में बैठे इक्का-दुक्का लोगों को ये इल्म भी न था कि कोने की टेबल पर क्या हो रहा है। उनकी नजरों में तो दो भले लोग अपने माथे को करीब लाकर कोई राज की बात कर रहे थे।  

“अशफाक...तलवार..लेकर .. मेरे पास..आया था... मैंने... मना कर दिया...” दिनेश की आवाज फँसी -फँसी और बेहद धीमी सी आ रही थी। 

“क्यों मना किया?”

“ खतरा..था...पता था.. मंत्री की तलवार..”

“ अशफाक कहाँ मिलेगा?”

“तलवार ..के साथ...वो..अपने ससुराल”

“कहाँ है अशफाक की ससुराल?”

“राजपुर बस्ती..खोली नंबर 103..”

बलदेव ने अपना पंजा खोला, वापस सीधा होकर बैठा..

दिनेश को लगा दुनिया जैसी थम सी गयी है। वो पसीने में डूबा था।  

“ठीक हो जायेगा भाई थोड़ी देर में! घबरा मत..पहले ही बता देना चाहिए था न। ख्वामखाह मुझसे जहमत करायी। पहले ही कहा मुझे जल्दी जाना है। पूछताछ करनी है " फिर फुसफुसाया मानों कोई राज की बात कहना चाह रहा हो, "एक हत्यारे से….अस्पताल जाना है मुझे। तू चाय पीयेगा? खैर यहाँ चाय कहाँ?”

बलदेव उठा। अपने मोबाइल से उसने अशफाक की बाबत संबंधित थाने को सूचना दी और बार से निकल गया। 

पीछे दिनेश उस हत्यारे की सलामती की दुआ कर रहा था जिससे बलदेव पूछताछ करने जा रहा था। 

*****

लेखक परिचय:

आनन्द कुमार सिंह

आनन्द कुमार सिंह प्रभात खबर अखबार में सीनियर रिपोर्टर हैं। वह कोलकता में रहते हैं। उन्होंने अब तक दो किताबें : 'हीरोइन की हत्या' और 'रुक जा ओ जाने वाली' लिखी हैं। जहाँ 'हीरोइन की हत्या' एक रहस्यकथा है वहीं 'रुक जा ओ जाने वाली' एक रोमांटिक लघु-उपन्यास है।

वह अब अपने तीसरे उपन्यास के ऊपर काम कर रहे हैं। जब वह रिपोर्ट या उपन्यास नहीं लिख रहे होते हैं तो उन्हें किताबें पढ़ना, शतरंज खेलना, संगीत सुनना और फिल्में देखना पसंद है। वह पिछले तीन वर्षों से कोलकता प्रेस क्लब के चेस चैंपियन हैं।

अगर आप उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो उन्हें  निम्न ई मेल अड्रेस पर मेल करके उनके साथ सम्पर्क कर सकते हैं:
anand.singhnews@gmail.com

लेखक की किताबें:
हीरोइन की हत्या
रुक जा ओ जाने वाली


©विकास नैनवाल 'अंजान'

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