परिश्रम और प्रतिभा आप-ही-आप आदमी को अकेला बना देती है। उसे दूसरों का साथ करने का अवकाश नहीं देती है। इतना समय भी नहीं कि वह दूसरों के आलस्य, आराम, शौक, भावुकताओं का हिस्सेदार बन सके। परिश्रम आदमी को भीड़ बनने, और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाजत नहीं देती।
- राजकमल चौधरी, मछली मरी हुई है
जी हाँ विकास जी । सच ही है यह । साझा करने के लिए आभार आपका ।
ReplyDeleteजी आभार....
Deleteउपयोगी सूत्र
ReplyDeleteजी आभार....
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