नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

सी आई यू: क्रिमिनल्स इन यूनिफ़ॉर्म | संजय सिंह | राकेश त्रिवेदी

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 269 | प्रकाशक: आर के पब्लिकेशन 

पुस्तक लिंक: अमेज़न 



कहानी 

कुबेर मुंबई ही नहीं एशिया के सबसे अधिक धनाढ्य व्यक्तियों में से एक था। ऐसे में जब उसके घर के बाहर विस्फोटकों से भरी गाड़ी मिली तो हड़कंप मचना लाजिमी था।

पर कौन जानता था कि यह केवल शुरुआत थी। एक ऐसे जलजले की शुरुआत जो अपने भीतर सरकार, पुलिस और कई जाँच एजेंसियों को समेट लेगा।

जब मामले की जाँच शुरू हुई तो सरकारी गठजोड़ों की ऐसी ऐसी बातें सामने आए कि सभी हैरान रह गए।

आखिर कुबेर के बाहर बमों से भरी गाड़ी किसने रखवाई थी?

कौन था इस साजिश के पीछे?


मेरे विचार

एक लोकतंत्र में कानून का पालन हो यह सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और कई जाँच एजेंसियाँ होती हैं। एक आदर्श समाज में तो इन एजेंसियों के अंदर मौजूद ईमानदार, कर्मठ और कानून को मानने वाले होने चाहिए लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। कई मामलों में कानून के रक्षक ही कानून के भक्षक बने दिखते हैं। अपने स्वार्थ, लालच या महत्वांकाक्षाओं को पूरा करने के लिए ये लोग वर्दी की ताकत का गलत प्रयोग करने से भी नहीं हिचकिचाते हैं। उन्हें लगता है क्योंकि वो कानून के पहरेदार हैं तो शायद कानून तोड़कर बच जाएँगे लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता है। कई बार इसी के चलते वो फँस जाते हैं।

प्रस्तुत उपन्यास 'क्रिमिनल्स इन यूनिफॉर्म' ऐसी ही एक एजेंसी क्राइम इन्वेस्टिगेशन यूनिट की कहानी है जो कि क्रिमिनल्स इन यूनिफॉर्म के नाम से बदनाम हो गई। यह लेखक राकेश  त्रिवेदी और संजय सिंह का लिखा हुआ दूसरा उपन्यास है जो आर के पब्लिकेशन मुंबई द्वारा प्रकाशित किया गया है।

लेखक द्वय द्वारा मुंबई में हुई कई सत्य घटनाओं को आधार बनाकर एक ऐसी तेज रफ्तार कहानी को बुना गया है जो आपको शुरुआत से ही बांध लेता है और उपन्यास के पृष्ठों को पढ़ने के लिए मजबूर सा कर देता है।

कुल 15 अध्यायों में मुख्यतः विभाजित इस कहानी में लेखक द्वय ने विभिन्न जाँच एजेंसियों के बीच होने वाले टकराव, राजनीति की उठा पटक और पत्रकारिता की जुड़े ऐसे पहलुओं को दर्शाया जो कि यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि आपको क्या क्या दिखाया जा रहा है और आपसे क्या-क्या छिपाया जा रहा है। 

कहानी की शुरुआत देश के बड़े उद्योपति के घर के बाहर विस्फोटक सामग्री मिलने से होती है। इस घटना की जाँच की जिम्मेदारी क्राइम यूनिट इन्वेस्टिगेशन को दी जाती है लेकिन धीरे धीरे इससे दूसरी एजेंसियाँ जैसे नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी भी जुड़ जाती है। इन दो एजेंसियों के अफसरों बीच की उठापटक, दाँव पेंच कहानी की रोचकता बढ़ा देते हैं। इसके साथ ही इस जाँच का राजनीतिक असर और फिर इसके चलते महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार और केंद्र सरकार की पार्टी के बीच की राजनीतिक उठा पटक भी आपको देखने को मिलती है।  कैसे राजनेता मौका का फायदा उठाते हैं, कैसे पुलिस वाले नेताओं का साथ देकर और उनका संरक्षण पाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं और कैसे कई बार अपनी पूँछ बचाने के लिए यही पुलिस वाले पाला बदलने से भी नहीं हिचकते हैं यह सब आपको दिखता है।

पढ़ते हुए आप यही सोचते हैं कि पैसे, ताकत और स्वार्थ का ये खेल कितना बड़ा है और कैसे हर कोई इसमें अपनी अपनी गोटी फिट करने में लगा हुआ है। 

वहीं जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है आपको पता लगता जाता है कि रक्षक ही भक्षक है और कहीं पर गड़बड़ है। यह गड़बड़ क्या है, किसने की और क्यों की? यह जानने के लिए आप उपन्यास पढ़ते चले जाते हैं। 

उपन्यास तेज रफ्तार है।पंद्रह अध्यायों को भी छोटे छोटे भागो में बाँटा गया है जिससे कहानी तेज रफ्तार से आगे बढ़ती दिखती है। 

अगर आप एक अच्छा थ्रिलर पढ़ने की इच्छा रखते हैं जो कि यथार्थ के काफी नजदीक है तो आपको इस पुस्तक को पढ़कर निराशा नहीं होगी। 

किरदारों की बात करूँ तो उपन्यास के केंद्र में यतीन साठे है जो कि क्राइम इंवेस्टिगेशन यूनिट का हेड है। वह एक पुलिस वाला है जिसे कमिश्नर महावीर तोमर का साथ प्राप्त है। यतीन साठे का सपना एक सुपर कॉप बनने का था और इस महत्वाकांक्षा ने उसे ऐसे दिग्भ्रमित कर दिया कि उसे सस्पेंड होना पड़ा।  इस मामले में उसे वापस बुलाया गया है और वह किसी भी तरह से इस मामले को सुलझाकर अपना सपना हासिल करना चाहता है। अपनी इच्छाओं को पाने के लिए अब वह सही गलत के नैतिक संघर्षों से भी ऊपर उठ चुका है। जैसे जैसे उपन्यास आगे बढ़ता है हमें यह देखने को मिलता है कि वह कौन सा मामला था जिसने यतीन को सस्पेंड करवाया था। साथ ही उसके पुलिस वाले बनने के पीछे के कारण को भी जानने को मिलता है। 

इसके साथ ही उसके समक्ष इस बार भी खड़ा है पत्रकार संजय त्रिवेदी। संजय त्रिवेदी ने पिछली बार यतीन साठे के मामले में हाथ डाला था और खुद का करीयर तो बनाया था लेकिन उसके कारनामें के चलते यतीन का करीयर डूब गया था। अब इस नए मामले में वो फिर आमने सामने हैं। 

जहाँ यतीन और दूसरे पुलिस अफसरों के माध्यम से हम पुलिस और पुलिस अफसरों के बीच की दुनिया को देखते हैं। यह देखते हैं कि उनकी राजनीति क्या है?  कैसे ट्रांसफर करवाए जाते हैं, कैसे कोई जगह पाई जाती है। राजनीति का इसमें कितना दखल रहता है और फिर उस परोपकार का बदला कैसे चुकाया जाता है। हम यह देखते हैं कि कैसे सही गलत को किनारे रखकर यह बस मामले को इस तरह करना चाहते हैं कि अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकें वहीं संजीव त्रिवेदी और उससे जुड़े लोगों के कारण हम मीडिया की असलियत, वहाँ की राजनीति, उनके ऊपर पड़ने वाले दबाव और उनकी महत्वाकांक्षाओं को भी देखते हैं। 

उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप है। इस उपन्यास में कौन नायक है और कौन खलनायक यह तय करना मुश्किल है। सभी के अपने अजेंडे हैं और उन्हें पाने के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं। ताकत का खेल किस तरह से खेला जाता है यह उपन्यास पढ़कर आप जान सकते हैं। 

पुस्तक की कमी की बात करूँ तो उपन्यास में इक्का दुक्का वर्तनी की गलतियाँ हैं जो कि खटकती हैं। साथ ही क्लाइमैक्स तक एक रहस्य बनाये रखने की कोशिश की गई है लेकिन वह रहस्य जब तक खुलता है तब तक पाठक उसके एक हिस्से का अंदाजा लगा लेता है। यह तो पता चल जाता है कि काम किसके लिए किया जा रहा है लेकिन क्यों हो रहा है ये लेखक के राज खोलने के बाद ही पता चलता है। रहस्य के दोनों हिस्से पाठकों के पहुँच से दूर होते तो और अच्छा होता। 

इसके अतिरिक्त उपन्यास पढ़ते हुए कई बार ऐसा लगता जैसे आप न्यूज रिपोर्ट ही पढ़ रहे हैं। किरदारों के संवाद कम हैं। अगर लेखक कहानी को संवादों के माध्यम से आगे बढ़ाते तो बेहतर होता। अभी लेखक द्वय चीजों को दर्शाने के बजाय बताते ज्यादा हैं। इसके अतिरिक्त कई जगह भाषा थोड़ा ग्राफिक हो जाती है। गाली जस की तस रखी गई है। अगर गाली से परहेज है तो यह आपको विचलित कर सकती है। लेकिन यह गाली भी अनावश्यक रूप से मौजूद नहीं है। जरूरत पर ही है।  


इन सब बातों के अतिरिक्त पुस्तक की कीमत भी कई पाठकों को इसे लेने से वंचित कर सकती है। मुझे तो यह पुस्तक लेखकों द्वारा प्रदान की गई थी लेकिन आम हिंदी पाठक के लिए शायद इसकी कीमत थोड़ा अधिक लगे।  अगर पुस्तक की कीमत थोड़ा कम होती तो शायद ज्यादा पाठको तक इसकी पहुँच होती। अभी 269 पृष्ठ की किताब की कीमत 395 है जो कि अमेज़न जैसी साइट में 320 रुपये + 50 रुपये डिलिवरी चार्ज देकर मिल जाएगी। 

अंत में यही कहूँगा कि अगर आप तेज रफ्तार रोमांच कथा पढ़ना चाहते हैं तो आपको यह किताब निराश नहीं करेगी। पढ़ते हुए आपके जहन मुंबई में  हुए कई ऐसे घटनाक्रम घूमने लगेंगे जो खबरों में काफी रहे थे। अगर राजनीति, पुलिस, मीडिया और इनके आपसी गठजोड़, उठापटक इत्यादि में आपको रुचि है तो उपन्यास आपको निराश नहीं करेगा।


पुस्तक लिंक: अमेज़न


Full Disclosure: मैं यहाँ ये बताना अपना कर्तव्य समझता हूँ कि यह पुस्तक मुझे लेखक द्वय द्वारा उपहार स्वरूप दी गई थी ताकि मैं अपनी ईमानदार राय इस पर लिख सकूँ। 


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