नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

साक्षात्कार: मोहन मौर्य से उनके नवीन उपन्यास 'मैं गुनहगार हूँ' पर बातचीत

'मैं गुनहगार हूँ' लेखक मोहन मौर्य का नवप्रकाशित उपन्यास है। यह उनका पाँचवा उपन्यास है जो कि सूरज पॉकेट बुक्स (Sooraj Pocket Books) से प्रकाशित हुआ है। उनके इस उपन्यास के प्रकाशन के उपलक्ष्य में हमने उनसे एक छोटी सी बातचीत की है जिसमें हमने उपन्यास और उनकी लेखन प्रक्रिया के ऊपर बातें की। आशा है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 

*****


साक्षात्कार: मोहन मौर्य - मैं गुनहगार हूँ  | Author Interview: Mohan Mourya- Main Gunahgar Hoon



प्रश्न: नमस्कार मोहन, एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है।  सर्वप्रथम तो आपको आपकी आने वाली पुस्तक नवप्रकाशित पुतस्क 'मैं गुनहगार हूँ' के लिए हार्दिक बधाई। अपने इस नवीनतम उपन्यास के विषय में कुछ बताएँ? 

नमस्कार विकास। आपकी बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। जैसा कि आपको पता है ' मैं गुनहगार हूं', राहुल वर्मा की कहानी है जो आईटी कंपनी में कार्यरत है और जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौकीन है। और 'वो बेगुनाह थी' मैं आपने पढ़ा ही होगा कि अपने इस शौक के चलते वो ड्रग्स केस में फँसी हुई एक बहुत ही खूबसूरत लड़की को बचाने निकल पड़ा था। पर इस दौरान अंजाने में उससे ऐसी कुछ गलतियाँ हो गई थी जिसकी वजह से एक बेगुनाह हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार था। अब ऐसे में वो किस तरह उसके हत्या के इल्जाम से बरी करवाता और इसके चलते अपनी जान पर आए खतरे से बच पाता है इसी पर मैं गुनहगार हूँ आधारित है। 


प्रश्न: यानी  ‘मैं गुनाहगार हूँ’ का आनंद उठाने के लिए पाठकों को ‘वो बेगुनाह थी’ पढ़ने की जरूरत है?

जी, सही कहा। जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि  'वो बेगुनाह थी' में उपन्यास के नायक की गलतियों या कहे उसकी जासूसी की बेवकूफी से एक बेगुनाह हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ था। वो सब कैसे हुआ ये विस्तार से जानने के लिए पाठको को 'वो बेगुनाह थी' पढ़ना ही चाहिए।


प्रश्न: आपके उपन्यास ‘मैं गुनहगार हूँ’ के प्लॉट का विचार आपके मन में कैसे आया? क्या शुरुआत से ही 'वो बेगुनाह थी' के राहुल को लेकर इसे लिखने की योजना थी?

नही, जब मैंने 'वो बेगुनाह थी' लिख कर पूरा किया तो उसका अंत कुछ और था। उपन्यास प्रकाशक को देने से पहले मैं खुद उसे पाठक की नजर से 2- 3 पढ़ता हूँ। जब मैंने वो बेगुनाह थी पढ़ा तो मुझे लगा पाठको को इस तरह का अंत पसंद नहीं आयेगा इसलिए मैंने उसके क्लाइमेक्स में कई बार बदलाव किया और उपन्यास की सफलता ये बताने के लिए काफी है कि वो बदलाव पाठको को बहुत पसंद आया। उनमें से कई पाठको ने बोला कि ये कहानी आगे भी चलनी चाहिए तो बस उसके बाद आगे की कहानी पर काम करना शुरू किया और इस तरह से 'मैं बेगुनहगार हूं' तैयार हुई।


प्रश्न: आपके इस उपन्यास में एक किरदार राहुल वर्मा फिर से रीपीट हो रहा है? क्या लेखक के तौर पर पिछले उपन्यासों के किरदारों पर लिखना आसान होता है या नए किरदारों को लेकर कथानक लिखना? आपको क्या पसंद है?

सच कहूँ तो पहले जब मैं सिर्फ पढ़ता था तो मुझे लगता था कि एक लेखक के लिए पुराने किरदार को लेकर लिखना आसान होता है। उस किरदार की सारी खूबियाँ लेखक को पता होती है इसलिए उस पर कलम तेजी से चलती है। पर जब मैंने लिखना शुरू किया तो पता चला कि यह उतना आसान भी नहीं है। कोई किरदार अगर सफल हो जाता है तो पाठको की उससे अपेक्षाएँ बढ़ जाती है और अगले उपन्यास में अगर वो किरदार मजबूत नहीं है, उसकी कहानी मजबूत नहीं है तो फ्लॉप होने में देर नहीं लगती। वैसे देखा जाए तो मेरे उपन्यासों में हर बार नया किरदार आया है। मेरे आगामी उपन्यास में भी एक नया किरदार है। बाकी पुराने किरदारों को लेकर भी कहानी के प्लॉट सोच रखे है जिसमे सबसे पहले इंस्पेक्टर धीरज का नंबर है।


प्रश्न: वाह! यह तो अच्छी बात है। धीरज को लेकर लिखे उपन्यास को लोग पढ़ना चाहेंगे। प्रस्तुत उपन्यास पर आयें तो क्या राहुल को लेकर आप कोई सीरीज बनाने का इरादा रखते हैं? एक सीरीज किरदार को लिखने में एक नवीन किरदार लिखने के मुकाबले क्या चीज आसान और क्या मुश्किल होती है?

राहुल को लेकर सीरीज बनाने का इरादा तो नहीं है, बाकी पाठको की पसंद नापसंद के ऊपर है। वैसे राहुल वर्मा मेरे दिल के काफी करीब है। वह लगभग मेरी ही आयु का है, मेरी ही तरह आईटी सेक्टर से जुड़ा हुआ है और सबसे बड़ी बात मेरी तरह ही जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौकीन है इसलिए इसे लिखने में मुझे ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। रही बात सीरीज किरदार को नवीन किरदार के मुकाबले लिखने में उसके चरित्र को विकसित करने का काम नहीं करना पड़ता जबकि नए किरदार के लिए उसे ऐसा बनाना पड़ता है कि वो ना सिर्फ आपके बल्कि दूसरे उपन्यासकारो के किसी चरित्र से मिलता हुआ न हो। बाकी पुराने किरदार के लिए लिखने में मुश्किल मैं ऊपर बता ही चुका हो कि उसकी कहानी पहले से मजबूत होनी चाहिए क्योंकि पाठको से लेखक से उस किरदार से अपेक्षाएँ बढ़ जाती है। 


प्रश्न: प्रस्तुत उपन्यास में मुख्य किरदार को छोड़कर ऐसा कौन सा किरदार था जिसे लिखने में सबसे ज्यादा मज़ा आया और ऐसा कौन सा किरदार था जिसे लिखते वक्त आपको परेशानी हुई?

मुझे सबसे ज्यादा रश्मि माथुर के चरित्र को लिखने में सबसे ज्यादा मजा आया और पाठको ने भी ' वो बेगुनाह थी' में मुख्य किरदार राहुल से ज्यादा रश्मि माथुर को पसंद किया। 'मैं गुनहगार हूँ' में भी पाठको को रश्मि माथुर का अंदाजे बयां पसंद आएगा। इसके अलावा इस कहानी में एक और नया पात्र है, आयशा। मुझे पूरी उम्मीद है पाठको को यह आयशा का पात्र भी बहुत पसंद आएगा। सबसे ज्यादा परेशानी मुझे एक नए पात्र तनवीर को लिखने में हुई जिसका बैकग्राउंड हैदराबादी है। ऐसा इसलिए क्योंकि 'वो बेगुनाह थी' लिखते समय मैं विजाग में था तो पात्रों द्वारा तेलगु में डायलॉग लिखने में मदद मुझे मिल गई थी पर 'मैं गुनहगार हूँ' मैने मुंबई आकर पूरा किया। अब जो पात्र तनवीर है वो लोकल हैदराबादी बोलता है पर उसके  डायलॉग लिखते समय हैदराबादी के साथ मुंबईया भाषा मिल रही थी। तो दोनों को कैसे अलग करू उसमे बहुत ज्यादा समस्या आई थी। बाकी तनवीर का पात्र बहुत अच्छा बन पड़ा है।


 प्रश्न: एक उपन्यास के लिए एक अच्छे शीर्षक का होना आप कितना जरूरी मानते हैं? 

एक अच्छा उपन्यास का शीर्षक पाठको को पहली नजर में अपनी और आकर्षित कर लेता है लेकिन वह पहला आकर्षण ही होता है। अगर कहानी में बिल्कुल भी दम नही है तो शीर्षक आपकी बिल्कुल भी मदद नहीं करेगा। पाठक सर (सुरेन्द्र मोहन पाठक) अक्सर कहते है कि वो अपने उपन्यासों के अच्छे नाम नहीं सोच पाते पर सब जानते है कि उनका कथानाक सबसे ज्यादा बिकने वाला है।


प्रश्न: अच्छा, अक्सर लेखक अपने उपन्यासों के शीर्षक खुद ही चुनते हैं लेकिन आपने यह शीर्षक एक प्रतियोगिता करवाकर हासिल किया। क्या ऐसे में शीर्षक और कथानक के न मिल पाने का खतरा नहीं रहता है? क्या दिया गया शीर्षक कथानक पर फिट बैठता था या फिर आपने शीर्षक के अनुरूप कोई बदलाव कहानी में किया?

नए उपन्यास के मैने कई शीर्षक सोचे थे पर उनमें से मुझे कोई पसंद नही आ रहा था। इसलिए मैंने सोचा क्यों ना पाठको से ही उपन्यास का शीर्षक पूछ लिया जाए, बस इसलिए मैंने एक छोटी सी प्रतियोगिता रखी थी। बाकी 'वो बेगुनाह थी' पढ़ने के बाद पाठको को ये तो पता था कि राहुल वर्मा का अगला मिशन क्या होगा इसलिए प्राप्त होने वाले शीर्षक भी कथानक से मिल रहे थे। बाकी उपन्यास पढ़ कर आप खुद बताइए दिया गया शीर्षक कहानी से न्याय कार्य है या नही।


प्रश्न: अक्सर अपराध कथाओं को समाज से कटा हुआ साहित्य मान लिया जाता है लेकिन आपके उपन्यासों में अक्सर किसी न किसी समाजिक मुद्दे पर भी बातें होती रही है। क्या आप ऐसा जानबूझकर करते हैं या कथा के कारण ऐसा होता है? क्या आगे भी कुछ और मुद्दों पर लिखने की ख्वाहिश है?

जानबूझ करने की तो कोई बात नहीं है। बस मन में कभी कभी यह ख्याल आता है कि हमारे समाज में जो हो रहा है वो सही या गलत। वैसे गलत सही की परिभाषा हर किसी के लिए अलग अलग है इसलिए मैं ये पाठको पर छोड़ता हूँ कि वो क्या सोचते है। अब ऑपरेशन ट्रिपल ए और चक्रव्यूह में मैंने आज की राजनीति में होने वाला बहुत बड़ा मुद्दा उठाया था पर कई पाठको को ये लगा कि वो सब बाप-दादा के समय की बात है। जबकि हम आज भी देखते है तो कुछ अंतर नहीं पाते। बाकी लिखने को बहुत से मुद्दे है, देखे कब लिख पाता हूँ। 


 प्रश्न: कुछ अपराधकथा लेखक अंत से शुरुआत की तरफ बढ़ते हैं, कुछ पहले पूरा प्लॉट तैयार कर लेते हैं और फिर लिखना शुरू करते हैं और कुछ शुरू कर देते हैं और फिर अंत तक पहुँचते हैं? एक लेखक के तौर पर आपकी लेखन प्रक्रिया क्या है?

मैं कहानी की शुरुआत और अंत पहले सोच लेता हूँ, उसमे क्या-क्या किरदार रहेंगे वो लिख लेता हूँ फिर बाद में बीच की घटनाएँ इस तरह से लिखना शुरू करता हूँ कि वो अपने अंत की तरफ बढ़ती जाती है। पर ऐसा भी हुआ है कि मुझे अंत बदलना पड़ा जैसा कि वो बेगुनाह थी में किया था।


प्रश्न: आपके उपन्यास ‘चक्रव्यूह’ के पश्चात वो बेगुनाह थी को आने में काफी वक्त लगा था लेकिन यह उपन्यास उस समय की तुलना में जल्दी आ रहा है। क्या अब पाठक जल्द-जल्द से आपके उपन्यासों के आने की उम्मीद लगा सकते हैं?

उम्मीद तो मुझे भी पूरी है पर मेरे साथ ऐसा होता है कि अगर मैं किसी पॉइंट पर अटक जाता हूँ तो फिर उससे बाहर निकलने में काफी समय लग जाता है। वैसे अगला उपन्यास का सितंबर मध्य तक खत्म करने का इरादा है, देखो इस बार कितना सफल होता हूँ।


प्रश्न: आखिर में कृपया पाठकों को बताएँ कि आपका यह उपन्यास उन्हें क्यों पढ़ना चाहिए?

अगर पाठक मर्डर मिस्ट्री के रूटीन से हटकर अलग कुछ अपराध कथा पढ़ना चाहते है तो उन्हें यह उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास भी पिछले उपन्यास की तरह एक अलग लीक पर लिखा गया है जो पाठक को पिछले उपन्यास से भी ज्यादा पसंद आएगा।


*****

तो यह थी उपन्यास 'मैं गुनहगार हूँ' के लेखक मोहन मौर्य से हमारी एक छोटी सी बातचीत। यह बात चीत आपको कैसी लगी यह हमें बताना न भूलिएगा। 

मैं गुनहगार हूँ सूरज पॉकेट बुक्स की वेबसाईट पर जाकर खरीदा जा सकता है। उपन्यास का लिंक ये रहा:

मैं गुनहगार हूँ: लिंक


यह  भी पढ़िये



FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल