आज इतना सारा सत्य-भण्डार एकत्र हो चुका है कि हर दिन सत्य का भंडारा लगाया जा सकता है। और लगाया जा सकता है क्या, लगाया ही जा रहा है। टीवी चैनल यही तो कर रहे हैं। हर शाम सत् प्रसाद की तरफ बँटता है और श्रद्धालु उसे पूर्ण आस्था से ग्रहण करते हैं। इस विपुल सत्य सम्पदा को देखकर स्त्यान्वेषियों को साँप सूँघ गया है। वे सोच नहीं पा रहे कि किस सत्य को खोजें और कहाँ खोजें। नतीजा ये हुआ है कि वे मीडिया में ही सत्य खोजने में लगे रहते हैं।
- मुकेश कुमार, सत्य देखने का रंगीन चश्मा (नया ज्ञानोदय फरवरी 2020 में प्रकाशित)
बिल्कुल सही व सटीक विचार।
ReplyDeleteजी आभार....
Delete