जीवन में उलझने न आयें, तो जीवित रहने का आनन्द ही खत्म हो जाएगा। दुःख है, दुश्चिन्ताएँ हैं, दरिद्रता और अभाव है, इसलिए तो जीवन अब तक नीरस और अर्थहीन नहीं हुआ है।
- शंकर, चौरंगी
जब भी किताबों के पन्ने पलटता हूँ , कई किरदारों से रूबरू हो जाता हूँ , कुछ में अपनों को कुछ में दूसरों को पाता हूँ, एक किताब के जरिये न जाने कितनी जिंदगियाँ जी जाता हूँ। - विकास 'अंजान'
जीवन में उलझने न आयें, तो जीवित रहने का आनन्द ही खत्म हो जाएगा। दुःख है, दुश्चिन्ताएँ हैं, दरिद्रता और अभाव है, इसलिए तो जीवन अब तक नीरस और अर्थहीन नहीं हुआ है।
- शंकर, चौरंगी
सार्थक सनेदेश।
ReplyDeleteजी आभार....
Delete