ज़िन्दगी की घास खोदने में जुटे हुए हम जब कब कभी चौंककर घास, घाम और खुरपा तीनों भुला देते हैं, तभी प्यार का जन्म होता है। या यों कहना चाहिए कि वह प्यार ही है जो हमें चौंका कर बाध्य करता है कि घड़ी दो घड़ी घास, घाम और खुरपा भूल जाएँ।
- मनोहर श्याम जोशी, कसप
हाँ भई, विकास जी । सच्चे प्यार या उसके अहसास के लिए जोशी की यह बात एकदम मौजू है । उनकी इस गहरी मगर बेशकीमती बात को हमारे साथ बांटने के लिए शुक्रिया ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-02-2021) को "ज़िन्दगी भर का कष्ट दे गया वर्ष 2021" (चर्चा अंक-3966)
ReplyDeleteपर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुंदर कथन । -- ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteवाह छोटा सा कथन कितनी गहराईयां समेटे।
ReplyDeleteगागर में सागर ।
बहुत सुंदर पोस्ट।