नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बोनसाई कथाएँ - मोहित शर्मा

किताब 27, अगस्त 2020 से 30, अगस्त 2020 के बीच पढ़ी गयी 

संकरण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक 
प्रकाशक: डेली हंट


बोनसाई कथाएँ नाम से तो लघु-कथा संग्रह लगता है लेकिन असल में यह एक रचना संग्रह है। इस संग्रह में मोहित शर्मा की 17 रचनाओं को संकलित किया है। इन रचनाओं में कुछ लेख हैं, कुछ लघु-कथाएँ हैं और कुछ कवितायें हैं। यह रचनाएँ निम्न है:

1. मासूम ममता 

पहला वाक्य:
"हद है यार...कुतिया ने परेशान करके रखा है।"

मिस्टर गर्ग ने जब उस कुतिया को अपने घर में घुसते हुए देखा तो उसे देखते ही उनके मन में एक खीज सी उत्पन्न हो गयी। उन्होंने उसी वक्त कुछ ऐसा किया जिससे उन्हें और उनकी पड़ोसन मिसेज सिन्धी को यह यकीन हो गया कि अब यह कुतिया दोबारा तो उनकी जिंदगी में कभी नहीं आएगी।

पर क्या यह सच था?

कई बार जब तक हमें अपनी गलती का अहसास होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। उस वक्त हम अपने हाथों को मलने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते हैं।  बस एक ग्लानि मन में रहकर टीस बन जाती है। संग्रह की यह पहली कहानी इसी बात को दर्शा रही है। सुंदर कहानी है जो कि एक संदेश देती है। हमे जितना हो सके कमजोरों के प्रति क्रूर बनने से बचना चाहिए। तब भी जब यह जरूरी लगे। क्या पता जिसके प्रति हम क्रूर हो रहे हैं वो किस स्थिति में है और कहीं हमारी क्रूरता उसे किसी ऐसे खाई में न धकेल दे जिससे वह कभी न उभर पाए।

दिल को छूती लघु कथा।

2.भोजपुरी एंटरटेनमेंट सिंड्रोम 

पहला वाक्य:
ये लोग इतनी घर से इतनी दूर काम की तलाश में आते हैं और फिर इन्हें भोजपुरी फिल्में बिगाड़ देती हैं।

भोजपुरी एंटरटेनमेंट सिंड्रोम लघु-कथा नहीं है। यह एक लेख है या समाज के ऊपर एक टिप्पणी है। 

हम सभी जानते हैं कि बिहार और यूपी से काफी सारे प्रवासी आकर कम आय वाला काम दूसरे राज्यों में करते हैं। ऐसे लोगों पर भोजपुरी फिल्मो का क्या असर होता है और फिल्मो का क्या परिणाम होता है वह एक टिप्पणी के माध्यम से दर्शाया गया है। 

यह एक रोचक लेख है क्योंकि ऊपरी तौर पर तो इसमें दिखता है कि लेखक या वाचक भोजपुरी लोगों पर टिप्पणी कर रहा है लेकिन असल में यह टिप्पणी हमारे समाज और उसमें मौजूद गैर बराबरी के ऊपर है। समाज के लोग किस तरह कमजोरों को दबाते हैं इसमें यह दिखाया गया है। यह लेख यह भी दर्शता है कि कैसे इस समाज में न्याय पाना कमजोर वर्ग के लिए किसी फंतासी सरीका ही है।  ऐसी फंतासी जिससे वह फ़िल्मी पर्दे पर देखते हुए ताली पीटकर मनोरंजित तो हो सकता है लेकिन अगर वह उस चीज को असल जिंदगी में दोहराने की कोशिश भी करेगा तो असफल ही होगा। सिवाय पिटने के उसके हाथ में कुछ नहीं रहेगा। 

लेख की यह पंक्तियाँ देखें:

जोश में आकर ये लोग लड़ बैठते हैं और अपना ही नुकसान करवाते हैं। दूसरी पार्टी चाहे गलत भी हो वो इन लोगों के अनपढ़, नासमझ होने की दुहाई सी देकर हमेशा गलती इन लोगों की बताकर इनको नपवा देते हैं। वैसे तो इनकी जरा बहस ही काफी है, बहस के आगे बात इन बेचारों की तरफ से कम ही जाती है। एक मजदूर को दिहाड़ी कम मिली वो बहस करने को हुआ उस से पहले ही जैसे पूरी कॉलोनी ने उसको हपक के पेल दिया। 

एक रोचक लेख जिसे पढ़ा जाना चाहिए।

3. अहमियत 

अहमियत संग्रह में मौजूद पहली कविता है। रमजान का वक्त है और नन्हे शौकत का पहला रमजान है और इस दौरान ही ऐसा कुछ हो जाता है कि सब परेशान हो जाते हैं। 

सब परेशान क्यों होते हैं और नन्हा शौकत अब क्या करेगा? 

इन्हीं सब प्रश्नों का उत्तर कविता पढ़कर आप जान पाएंगे। 

कविता अच्छी है और मन को छू जाती है। कविता खत्म होने पर कई सवाल भी छोड़ जाती है। शीर्षक अहमियत है और इस वजह से कविता में जीवन में अहम क्या है यह तो दर्शाया गया है लेकिन आगे क्या हुआ यह प्रश्न आपके मन में खटकता रहता है। 

कविता की दो पंक्तियाँ हैं :
अभी तो इसने जिंदगी को शुरू भर किया,
फिर भी मजहब को कई 'बड़ों' से बेहतर समझ लिया 

यह बेहतर समझने वाली बात थोड़ा और साफ़ होती तो शायद अच्छा रहता। 

4. मदद 

मदद एक महत्वपूर्व विषय पर लिखी गयी कविता है। शहरों में 'मुझे क्या' की प्रवृत्ति बहुत बढ़ रही है। सभी को अपने से मतलब  और हर कोई सोचता है कि कोई न कोई तो मदद कर ही देगा। इसमें स्वार्थ तो है ही लेकिन कुछ गलती सिस्टम की भी है जो कि मददगार का शोषण करने लगता है। यही बात लेखक निम्न पंक्तियों, जो कि एक पत्नी अपने पति को कह रही है, में दर्शाते हैं:

ए जी, आप गाड़ी आगे बढ़ाइये 
एक्सीडेंट बड़ा है...
जो जिंदा है वो शायद नहीं बचेंगे,
ये भी पक्का नहीं की हॉस्पिटल वाले इन्हें भर्ती करेंगे 
उल्टा हम लोग पुलिस के चक्कर में फँसेंगे 

यह स्वार्थ, खुद पर जिम्मेदारी न लेकर किसी और पर जिम्मेदारी डालने की सोच और सिस्टम का डर मिलाकर एक अकर्मणीय समाज बना रहे हैं। इस पर विचार करने की आवश्यकता है और लेखक इस कविता के माध्यम से पाठको को इस पर विचार करने को प्रेरित करते हैं।

5. युद्धवीर

पहला वाक्य:
टीचर ने कहा है कि अगर बोर्ड्स में किसी को नाम बदलवाना है तो अभी बदलवा ले।

युद्धवीर की कक्षा में ऐसा कुछ हुआ कि उसने फैसला कर दिया कि वह एक बार परीक्षा होने पर अपने स्कूल को छोड़ देगा और नये स्कूल में जायेगा।  वहीं उसे अपने घर वालों से भी काफी शिकायत है। 

अब उसने एक रेडियो चैनल पर फोन लगाया है और वह इधर अपने मन में चल रहे इस झंझावत को उड़ेलना चाहता था।

युद्धवीर कहानी की शूरूआत तो अच्छी हुई थी लेकिन फिर यह मुद्दे से भटक सी गयी लगती है। मुझे लगा था कि नाम को लेकर ही कई तरह के हास्य परिस्थितयाँ इस लघु-कथा में आएँगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद युद्धवीर के टिप्पणी अपने घर की स्थिति पर होने लगी जहाँ लोग रूढ़ियों के चलते एक तरह के पौधे को तो पानी देते हैं लेकिन दूसरे के प्रति उनका वैसा भाव नहीं है। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। प्रकृति प्रेम बराबर होना चाहिए लेकिन हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ बस खानापूर्ती ही करने को लोग अपना धर्म मानते हैं। 

यह स्थिति हर जगह दिखाई देती है। अगर ऐसा न होता तो मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारों की जगह हमारे आस पास का इलाका भी साफ़ होता लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि हम सफाई को सफाई के लिए पसंद नहीं करते हैं। बस धर्म के आड़ में कुछ पुण्य कमाने के लिए यह उधर रखी जाती है। दूसरी जगह चूँकि पुण्य नहीं मिलता तो सफाई के प्रति उतना ध्यान भी नहीं दिया जाता है। लेखक ने इसी प्रवृति पर चोट की है।


हाँ, कहानी चूँकि छोटी है तो अगर एक बार में एक ही बात पर ध्यान रखा जाता तो बेहतर होता। लेकिन चूँकि कथावाचक बच्चा है, और अगर आपने बच्चों को बोलते हुए देखेंगे तो वह यूँ ही एक विषय से दूसरे विषय में कूदते रहते हैं, तो किरदार के हिसाब से कहानी सही है। पर एक पाठक के रूप में यही चीज थोड़ा सा अंसतुष्ट करती है।

6. ध से धानी 

पहला वाक्य:
'ए दाता-माता! देय दे...'

धानी रेलवे स्टेशन में भीख माँगकर अपना गुजारा करती है। आज उसका मूड खराब है। ऐसे में एक व्यक्ति जब उसे बिन मांगे सलाह देकर उसकी बेइज्जती करता है तो आगे धानी क्या करती है यही लघु-कथा का कथानक बनता है। 

बिन माँगे ज्ञान देने की आदत कई लोगों को होती है। अक्सर यह ज्ञान लोग उन लोगों को ज्यादा देते हैं जो पलटकर जवाब इसलिए नहीं दे सकते हैं क्योंकि वह आर्थिक या सामाजिक रूप से कमजोर होते हैं। उन्हें पता रहता है कि व्यक्ति पलटकर जवाब नहीं देने वाला है और इसलिए वह जो चाहे जो उसे कह सकते हैं। पर कभी कभी उन्हें धानी जैसे लोग भी मिल जाते हैं और फिर जो होता है वह देखना बड़ा रोचक होता है। 

एक रोचक लघु-कथा।

7. कलेवरता मतलब चालाकी!

पहला वाक्य:
गर्मियों की छुट्टी पड़ी है इस बार खूब सारे दोस्त बनाऊँगा।

कथावाचक एक स्कूल जाने वाला बच्चा है जिसकी गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ गयी हैं। छुट्टी के पहले दिन ही जब वो बाजार जा रहा होता है तो उसे अपने मोहल्ले का एक मित्र मिलता है। 

कथावाचक अपने मित्र को कुछ गूढ़ ज्ञान दे रहा है। यह ज्ञान क्या है यह तो आप इस लघु-कथा को पढ़कर ही जान पाएंगे।

क्लेवरता मतलब चालाकी एक रोचक लघु कथा है। घर पर जब मेहमान आते थे तो बचपन में हम कैसी कैसी हरकतें करते हैं उसे इसमें सटीकता से दर्शाया गया है। पढ़ते हुए बरबस ही चेहरे पर हँसी आ जाती है। यह संग्रह में मेरी प्रिय लघु-कथाओं में से एक है।

8.पान की पीक को खून मत समझो!! मैडम 

पहला वाक्य:
"अरे अरे मैं रो नहीं रहा हूँ..."

यह लघु-कथा एक ऐसी व्यक्ति की कहानी है जो अपने हस्तशिल्प उत्पाद(हैण्डी क्राफ्ट आइटम्स) सड़क पर बेच रहा है और एक ग्राहक उसे थप्पड़ मार कर चला जाता है। अब एक महिला उसे दया की दृष्टि से देख रही है। उस महिला के उसे इस तरह देखने से क्या होता है यही लघु-कथा में दर्शाया गया है।

सड़कों के किनारे छोटे-छोटे उत्पाद बेचने वाले लोग जीवन के प्रति कितने उदासीन हो जाते हैं यह इस कहानी से साफ़ झलकता है। उन्हें बस अपने लिए दो जून की रोटी की तलाश रहती है।  इसे कमाने के चक्कर में उनकी बेइज्जती हो या कोई उन्हें मारे भी तो भी वो इस चीज को दिल पर लगाकर नहीं बैठते हैं।

 वह जानते हैं कि इज्जत उस व्यक्ति का गहना होती है जिसका पेट भरा हुआ है। कमजोर और भूखे व्यक्ति के लिए खाने का इंतजाम करना ही सबसे जरूरी चीज होती है। ऐसे में शायद वो उन लोगों से चिढ़ने लगते हो जो उन्हें कोरी संवेदनाएं दे रहे हैं। यही इस कहानी में दिखता है।

रोचक कहानी।

9. दहेज़ डील 

पहला वाक्य:
कस्बे का लड़का लग गया मोबाईल टावर लगाने और उसकी मरम्मत करने वाली कम्पनी में। 

आज भी भारत में शादी किसी डील से कम नहीं है। कितना लिया जायेगा कितना दिया जायेगा इसके ऊपर बैठकर लड़के और लड़की के अभिभावक ऐसे बातें करते हैं जैसे कि कोई कम्पनी के मालिक पार्टनरशिप का दस्तावेज बना रहे हो। यह लघु-कथा भी पाठक को एक ऐसी ही डील दिखाती है। इस डील में आगे क्या होता है यह तो आपको इस लघु-कथा को पढ़कर ही पता चलेगा।

भारतीय समाज का चेहरा दर्शाती एक रोचक लघु-कथा।

10.स्वयंसेवी श्रीमती आई ए एस

पहला वाक्य:
मैडम - "देखो तो जी, कितनी चालाक औरत है अपने और अपने परिवार वालों के नाम से पहले ही तीन एन जी ओ रजिस्टर करवा रखे हैं।"

भारत में स्वयं सेवी संस्थाओं की कमी नहीं है। हर रोज कई ऐसी संस्थाएं और एन जी ओस खुलते रहते हैं। इन सभी संस्थाओं का कागजों में तो उद्देश्य समाज सेवा होता है लेकिन ये 'स्वयं की सेवा' पर अधिक ध्यान देते दिखाई देते हैं। ऐसी संस्था बनाने में ऐसे कई लोग भी आगे रहते हैं जो कि इसे एक तरह के तमगे की तरह उपयोग में लाते हैं। वह इसे समाज में खुद की इज्जत को बढ़ाने के लिए उपयोग में लाते हैं। ऐसी ही एक घटना को यह लघु कथा दर्शाती है। 

शीर्षक से जाहिर है कि यहाँ स्वयं सेवा का भूत एक आईएएस की पत्नी जी को चढ़ा है जो कि अपनी दोस्तों के बीच अपनी इज्जत बढ़वाने के लिए इसका उपयोग करना चाहती है। ऐसे लोगों को समाज सुधार या जिस विषय में यह संस्था वो बना रहे हैं उससे कोई लेना देना नहीं होता है। यह इस लघु-कथा में दिखाई देता है। वहीं सरकारी सिस्टम ऐसी जगहों पर कैसे ताकत के सामने सर नवाता हुआ सा दिखता है यह भी इस लघु-कथा में दर्शाया गया है। 

अक्सर ऐसी जगहों पर जो असल में कार्य करना चाहते हैं उन लोगों का तिरस्कार होता है और जो ताकतवर हैं उनका सम्मान। आखिर की दो पंक्तियाँ ही सरकारी तन्त्र की सच्चाई को दिखा देते हैं।

"मैं हफ्तों से अपनी अनाथ बच्चों के लिए एक संस्था के रजिस्ट्रेशन के लिए यहाँ के चक्कर काट रहा हूँ और यह अपने कुछ मिनटों में 2 रजिस्ट्रेशन कर दिए। क्या आप मेरे साथ ऐसा बर्ताव नहीं कर सकते?"
क्लर्क - "हाँ जी! कर सकते हैं बर्शते आप किसी नेता, सेठ, सेलिब्रेटी या बड़े अफसर की बीवी बनकर आओ।"

11. तोडू न्यूज़ 

पहला वाक्य:
आप देख रहे हैं प्रीतमपुर से लाइव कवरेज स्थानीय पार्टी की रैली से जहाँ बीच रैली से पार्टी के संस्थापक और कद्दावर नेता श्री अंकुर जायसवाल कन्या धन में गरीब बच्चियों को चेक वितरण समारोह से 'पोकर फेस' दिखाते हुए मंच से निकल गये।

आज के 24 घंटे न्यूज़ और कुकुरमुत्तों से उग आये न्यूज़ चैनल के वक्त में हर चैनल की यही कोशिश रहती है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यानाकर्षण कर सके। इस कार्य के लिए वो साम,दाम,दंड,भेद किसी का प्रयोग करने से नहीं चूकते हैं। छोटी सी खबर को बड़ा बनाकर बताना तो उनके लिए आम बात है। वहीं घटना घटित होने से पहले ऐसे ऐसे कयास वो लगाने लगते हैं कि कई बार जिस व्यक्ति के विषय में कयास लगाये जाते हैं उसे लेने के देने पड़ जाते हैं। 

ऐसे ही घटना को इसमें बड़ी रोचकता से लेखक ने दर्शाया है। आज की न्यूज़ मीडिया पर यह व्यंग्य/हास्य कथा करारा प्रहार करती है।

12. युग परिवर्तन 

पहला वाक्य:
पहले संचार, तकनीकी साधनों की कमी कि वजह से काफी चीजों में समय लगता होगा जिन्हें हम जरा सी देर में पूरा कर लेते हैं।

युग परिवर्तनएक लेख है। जैसा ही पहले ही वाक्य से साफ होता है यह लेख इस पर विचार करता है कि जैसे जैसे हम तकनीकी रूप से विकसित हुए हैं वैसे वैसे हमारी उत्पादकता बढ़ी है। यह उत्पादकता हर क्षेत्र में है फिर वो चाहे कला हो, विज्ञान हो या आम जन जीवन। ऐसे में इस लेख में यह कल्पना की गयी है कि आज कलाकारों या विचारकों को क्या दिक्कत होती है और अगर उसका हल आगे जाकर मिल जाता है तो भविष्य की पीढ़ी पर इसका क्या फर्क पड़ेगा।

यह एक रोचक लेख है। 

यहाँ मैं ये जोड़ना चाहूँगा कि भले ही कार्य करने की गति में कितनी ही तेजी आये लेकिन एक ढर्रा कभी नहीं बदलेगा। वह यह की किसी भी वक्त के बुजुर्गो हो उन्हें यही लगेगा कि उनकी पीढ़ी ही अच्छी थी और नई पीढ़ी तो बेकार है, उसे कुछ आता जाता नहीं। क्यों सही कह रहा हूँ न?

13.Procrastination vs भोले शंकर 

पहला वाक्य:
कक्षा नौ का छात्र शुभम कल होने वाले मैथ्स के एग्जाम को लेकर चिंतित था।

शुभम का अगले दिन गणित की परीक्षा थी। उसे एक थियोरम जब समझ नहीं आई तो उसने इंटरनेट से इसके विषय में जानकारी लेने की सोची। आगे क्या हुआ यही यह लघु-कथा दर्शाती है। 

अगर आप पिछले आठ दस सालों की में कभी भी छात्र रहे हैं तो आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि शुभम के साथ आगे क्या हुआ होगा। यह चीज मेरे ख्याल से हर छात्र के साथ हुई है। मेरे साथ तो हुई है। आपके साथ हुई है या नहीं ये जरूर बताइयेगा। 

14. करण उस्ताद 

पहला वाक्य:
"पहले जब भीख माँगी तो सब जणे यह कहते थे कि भगवान ने हाथ पैर दिए हैं, कुछ काम क्यों नहीं करता?"

करण उस्ताद रेलवे प्लेटफार्म पर भीख माँगा करता है। ऐसा नहीं है कि उसने धंधा करने की कोशिश नहीं की लेकिन वह सफल नहीं हुआ। उसका एक भाई भी हुआ करता था जो कि अब जेल में है। यह करण की ही कहानी है। 

आखिर करण का धंधा सफल क्यों नहीं हुआ? करण के भाई को जेल क्यों हुई?

हमारे आस पास न जाने कितने अदृश्य लोग रहते हैं। यह लोग दिन भर बाज़ार में या बस स्टेशनों में दिखाई दे जाते और रात को गायब हो जाते हैं। 

ये कौन लोग हैं? कहाँ से आते हैं? और कहाँ से गायब हो जाते हैं? 

इन सवालों  से आम आदमी का कोई लेना देना नहीं होता है। अगर वो भीख माँगते दिखते हैं तो वह अपने मूड के हिसाब से उन्हें कभी भीख दे देता है और कभी नहीं भी देता है। अगर वह कुछ चीज बेच रहे होते हैं तो अपनी जरूरत के हिसाब से वो चीज लेता है या फिर इन्हें नजरअंदाज कर देता है। यह लघु-कथा ऐसे ही एक व्यक्ति पर प्रकाश डालती है। उसे पाठक को दिखाने का प्रयास करती है।

रोचक लघु-कथा।

15. आप और खाप 

पहला वाक्य:
नये सेशन में एक बड़े कॉलेज के परास्नातक कोर्सेज में दाखिला लेकर वहाँ के होस्टल में एक रूम में आईं दो अजनबी लड़कियाँ मिली।

कई बार हम लोग अखबारों की खबरों और न्यूज़ चैनल की बढ़ा चढ़ाकर दिखाई जा रही खबरों को पूरा सच मानकर एक समूह या समाज के प्रति अपनी धारणा बना देते हैं। अक्सर यह धारणा बहुत ही संकुचित होती है। अहमदाबाद की श्रुति ने भी हरियाणा और खाप के विषय में ऐसी ही धारणा बना ली थी। इस कारण जब वो हरियाणा की अदिति से मिली तो उसका अदिति से इस विषय में पूछना लाजमी ही था। 

आगे क्या हुआ यही इस लघु-कथा का कथानक है।

एक रोचक कहानी जो दर्शाती है कि जमे जमाए रंगों के चश्मों से चीजों को देखने पर चीजें अक्सर साफ नहीं बल्कि धुंधली ही दिखते हैं। हाँ, कहानी थोड़ा बड़ी होती तो बेहतर होता। यहाँ अगर अदिति श्रुति को अपने घर लेजाकर उसे अपना महौल दिखाकर बात समझाती दिखती तो यह लघु-कथा कहानी बन जाती और ज्यादा सशक्त हो जाती। अभी अदिति की बातें केवल एक भाषण सरीखा ही लगती हैं।

16. भूखा अन्नदाता 

किसानों की हालत आजकल किसी से भी छुपी नहीं है। सरकारें उनके उत्थान के लिए इतनी पोलिसियाँ निकालती हैं लेकिन फिर भी उन तक शायद ही कुछ पहुँच पाता है। ऐसे ही एक कृषक की कहानी दर्शाती यह कविता है जिस तक जब मदद पहुँचती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

कविता की यह पंक्तियाँ किसानों का सारा दर्द बयान कर देती हैं:

ढूँढों से ढूँढो मेरा भाग कहाँ है?
कर्जे में डूबा मेरा सारा जहाँ है 
सूखे ये सूखे पत्ते कहते क्या हैं?
कितने बरस बीते बदरा कहाँ है?
बंजर ये धरती खुद को क्यों कहती माँ है?
बच्चे तड़प रहे...ममता कहाँ है?

17. मुझे घर जाने से डर लगता है 

मुझे घर जाने से डर लगता है एक कविता है जो कि एक ऐसे व्यक्ति की मनोदशा दर्शाती है जिसे पढ़ने लिखने के बाद भी नौकरी नहीं मिल पा रही है। यह परिस्थिति कई भारतीय युवकों ने देखी होगी। यदि उन्होंने खुद भोगी नहीं होगी तो उन्होंने अपने आस पास किसी न किसी को इसे भोगते हुए देखा होगा। जिम्मेदारियों का अहसास, आस-पास के लोगों के ताने और घरवालों की आँखों में दिखते उनके टूटते सपने अक्सर उस व्यक्ति को  अवसाद की ओर ले जाते हैं। ऐसे में उस व्यक्ति का घर जाने से डर लगना लाजमी है।  

ऐसा व्यक्ति किस पीड़ा से गुजरता है इसे लेखक ने इस छोटी सी कविता के माध्यम से बाखूबी दर्शाया है।

******

तो यह थी मोहित शर्मा के रचना संग्रह 'बोनसाई कथाएँ' पर मेरे विचार। यह एक रोचक रचना संग्रह है जिसमें लेखक ने कई महत्वपूर्ण विषयों के ऊपर लिखी रचनाओं को संकलित किया है। यह रचनाएँ काफी कुछ आपको सोचने के लिए दे जाती हैं। मुझे यह संग्रह पसंद आया। 

संग्रह में मौजूद रचनाओं में से ध से धानी, भोजपुरी एंटरटेनमेंट सिंड्रोम, क्लेवरता मतलब चालाकी, तोडू न्यूज़, Procrastination vs भोले शंकर मुझे विशेष रूप से पसंद आईं 

अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो पढ़िए। संग्रह डेलीहंट के ई-बुक एप्लीकेशन पर अभी भी मौजूद है। 

 रेटिंग: 3/5

मोहित शर्मा के कुछ नये कहानी संग्रह हाल ही में रिलीज़ हुए हैं। यह संग्रह किंडल में आये हैं। संग्रह आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:
कलरब्लाइंड बालम
कुछ मीटर पर जिंदगी

डेली हंट में मौजूद कई ई-पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
डेलीहंट

© विकास नैनवाल 'अंजान'

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