नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पुस्तक अंश: शालीमार

ब्रिटिश लेखक जेम्स हेडली चेज का हिन्दी अपराध साहित्य में एक ख़ास मुकाम है। यह ऐसे लेखक हैं जिनकी रचनाओं का अनुवाद कर कई हिन्दी अपराध लेखकों ने लेखन की दुनिया में अपना कदम रखा है। 

अब लेखक हसन अलमास ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरूआत जेम्स हेडली चेज के उपन्यास दी वल्चर इस अ पेशंट बर्ड के अनुवाद से की है। 

यह अनुवाद शालीमार के नाम से पाठकों के समक्ष उपलब्ध है। उपन्यास रवि पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है।


शालीमार
शालीमार- दी वल्चर इज़ ए पेशेन्ट बर्ड 

एक  

फेनल.

न की किसी अज्ञात भावना से प्रेरित हो वो तत्काल जागा और तकिये से सिर उठाकर किसी आहट की अपेक्षा में सतर्क हुआ.   

किनारे के पास बंधी खड़ी बोट के सतह से टकराने वाले पानी के थपेड़ों की धीमी-धीमी आवाज़ गहन अन्धकार से उभर रही थी। फिर उसे ऊपरी डेक पर पड़ती बारिश का शोर सुनाई दिया। 

मगर ये सभी आवाजें सामान्य थीं। 
वह सोचने लगा कि क्यूँकर यूं यकायक ही उसकी नींद खुल गई थी !!
वो पिछले एक महीने से अपनी मौत को छकाता फिर रहा था और शायद उसी मृत्यु-भय की वजह से उसकी अन्तः प्रेरणा पूर्णरूप से सजग हो चुकी थी। 

उसे खतरे का एहसास हो रहा था। 

पहले ही सतर्क हुए फेनल की उंगलियां बिस्तर के नीचे - छोटे लेकिन बेहद मजबूत - डंडे पर पहुंची और स्वयं ही उस पर कस गई। गौरतलब था कि डंडे के एक सिरे पर साइकिल की चेन जड़ी हुई थी और इस अतिरिक्त जुगाड़ की वजह से वह कहीं बेहतर और खतरनाक हथियार बन गया था।

साथ में सोयी हुई औरत की नींद में ज़रा भी बाधा पहुंचाये बगैर, वह बिस्तर से नीचे उतरा और नीम अन्धेरे के बावजूद – उसने, वहीं नजदीक बिछी कुर्सी से उठाकर अपनी पतलून और जूते पहने। 

वह इस किस्म के कामों में अब उसे खूब तजुर्बा हो चुका था। 

उसने अपने दायें हाथ में डंडा थामा, दबे पांव दरवाज़े पर पहुंचा और बेआवाज चिटकनी गिराकर ज़रा सा दरवाज़ा खोल, वहाँ बन आई झिर्री में से बाहर झांका। 
बोट से टकराने वाले समंदर कि लहरों के थपेड़ों और बारिश के शोर में हालांकि बाकी सभी आवाज़ें दब गईं थीं लेकिन फेनल धोखा नहीं खा सकता था। 

कोई था, कोई तो खतरा था, जो वहाँ मौजूद घटाघोप अन्धकार में ही छिपा हुआ था।
कौन !!

उसने अतिरिक्त सतर्कता के साथ दरवाजा और चौखट की उस झिर्री को और बढ़ाया। नतीजतन किनारे पर मौजूद स्ट्रीट लाइट का मद्धम-सा प्रकाश उस बोट के लम्बे डेक पर पड़ने लगा। बायीं ओर लंदन के वैस्ट-एन्ड एरिये की रोशनी जुगनुओं की मानिंद चमकती दिखाई दे रही थी।  

सतर्क फेनल ने पुनः किसी आहट की अपेक्षा की लेकिन - कुछ सुनाई नहीं दिया। 
बावजूद इसके उसका मन चीख-चीखकर कह रहा था कि वहीं कहीं खतरा मौजूद था। 
एक गहरी सांस ले वो बेहद सावधानी के साथ नीचे झुककर बाहर वहाँ से बाहर निकला और ठंडे एवं गीले डेक पर आगे की ओर रेंगने लगा। इस प्रक्रिया में उसके नंगे मजबूत कंधों से बारिश की मोटी-मोटी बूंदें टकराती रहीं।

फिर यकायक उसके चेहरे पर हिंसक भेडिये जैसे भाव उत्पन्न हुए। 
उसे लगभग पचास मीटर दूर, अपनी ओर आती हुई एक बोट दिखाई दी जिसमें चार तगड़े मुश्टंडे किस्म के सवार मौजूद थे। दूर से आने वाली धूमिल रोशनी में उनके सिरों और कंधों के आकार से से ही यह अंदाजा लगा लिया था। उसने गौर किया कि बोट पर मौजूद एक आदमी चप्पू चलाता हुआ बाकी तीनों को बेहद सतर्कता और खामोशी के साथ अपने हाथों के इशारों से ही कोई हुक्म दे रहा था।

कौन था !!
क्या पता. 

फेनल ने डंडे के दस्ते पर अपनी उंगलियों की पकड़ और बेहतर की और डेक पर आगे की ओर रेंग गया।

अगले कुछ पल खामोशी में बीते। 
फेनल किसी घटनाक्रम के होने का इंतजार करता रहा। 
फेनल – जो आदतन चीते की तरह तरह फुर्तीला और तेज था – को गर वहाँ से बच निकलने का रास्ता मिलता तो बेशक वो भाग खड़ा होता लेकिन अब घिर जाने के बाद उसपर एक किस्म का जुनून सवार था जिसमें वह पहले से ज्यादा खूंखार साबित हो रहा था। 

उसे एहसास था कि देर-सवेर वे उसे ढूंढ ही लेंगे और अब इस वजह से भाग निकालने के ऑप्शन खत्म थे। अब तो वो वैसे भी धीरे-धीरे खामोशी से उसकी तरफ बढ़ ही रहे थे। लेकिन उनके आगमन के वक़्त भी फेनल डरा हुआ नहीं था बल्कि उसका डर तो उस वक़्त ही खत्म हो गया था जब उसे खबर लगी थी कि मोरनी उसे ठिकाने लगा देने को दृढ़ प्रतिज्ञ था। 

फेनल की आंखें धीरे-धीरे नज़दीक आती बोट पर स्थिर हो गई।

उधर - आने वाले जानते थे कि फेनल कितना खतरनाक था और इसीलिए वो भी कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं थे। आगे बढ़ती टीम चाहती थी कि एक बार फेनल की बोट पर पहुंचकर वो तेजी से सीधे उसके बैडरूम में जा घुसें और आगे उसे सम्भलने का मौका दिये बगैर अपने-अपने चाकूओं से उसका बदन उधेड़ दें।

अगले कुछ पलों में आगे बढ़ती बोट फेनल की बोट से आ लगी. 

अन्धेरे में घात लगाये औंधा पड़ा फेनल उन्हें दिखाई नहीं दिया और इसीलिए – खास इसीलिए - आगंतुक अपनी पोजीशन से पूरी तरह संतुष्ट थे। फिर वहाँ पहुंची बोट में से एक आदमी खड़ा हुआ और छलांग लगाकर फेनल की बोट पर आ चढ़ा। उसने बारिश और अंधकार में आगे डेक पर एक सतर्क निगाह डाली और संतुष्टह हो वापिस पलटकर पीछे दूसरे आदमी को ऊपर चढ़ाने के लिये हाथ का सहारा देने के ख्याल से मुड़ा।  
ठीक इसी पल फेनल ने उठकर आगंतुक पर डंडे का भरपूर वार किया। ऊपर चढ़ आए शख्स के चेहरे से चेन टकराई और नतीजतन एक भयंकर चीख के साथ वह लड़खड़ाते हुए समंदर में जा गिरा।

तभी दूसरा आदमी – जो अब तक डेक पर ऊपर चढ़ आया था – हाथ में चाकू थामे वार करने के खतरनाक इरादे से तेजी से मुड़ा और आगे फेनल की दिशा में लपका। फेनल ने फूरती से हाथ चलाया तो चेन का प्रहार आगे बढ़ते आदमी की गार्डन पर जा लगा। 
वो तत्काल चीखा। 

उसे एहसास हुआ कि उतने भाग की जैसे खाल ही उधेड़ दी गई हो। उसने दर्द से बिलबिलाते हुए सम्भलने का असफल प्रयास किया और आखिरकार लड़खड़ाते हुए पानी में जा गिरा। 

फेनल पुनः अन्धकार में सरक गया। 
उसका चेहरा क्रूरतापूर्ण था। 
वह जानता था नाव में बैठे बाकी दोनों आदमियों ने उसे नहीं देखा होगा क्योंकि रोशनी उनके पीछे की ओर थी।

अगले कई पल असमंजसता में गुज़रे। फिर यकायक वहाँ पहुंची बोट के सवारों को असलियत का आभास हुआ। तत्काल चप्पू वाला बोट को वापिस घुमाने लगा और उसकी बगल में बैठा चौथा शख्स अपने साथियों को नाव में चढ़ाने की हड़बड़ी में पड़ गया।
फेनल शांत खड़ा देखता रहा।

पानी में पड़े दोनों आदमियों को खींच-खांचकर नाव में लादा गया और नाव तेजी से वापस लौटने लगी।

जब नाव अन्धकार में गायब हो गई तो फेनल अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ. उसमे नीचे झुककर चेन में लगे खून को समंदर की ऊंची उछलती लहरों के पानी से धोया और सीधा हुआ और तब पहली बार उसे मौसम की  मार का अंदाजा हुआ। 

सर्दी कि वजह से उसे अपना जिस्म बर्फ की तरह जमता महसूस हुआ।


***

तो यह था जेम्स हेडली चेज के उपन्यास दी वल्चर इस अ पेशेंट बर्ड के हिन्दी अनुवाद शालीमार का एक अंश। अगर आपको यह पुस्तक अंश पसंद आया तो आप इसे रवि पॉकेट बुक्स से आर्डर कर सकते हैं। 

किताब रवि पॉकेट बुक्स के संचालक मनीष जैन से निम्न नम्बर पर सम्पर्क स्थापित कर मँगवाई जा सकती है:

फोन नम्बर: 9412200594


हसन अलमास 
लेखक परिचय:

हसन अलमास मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले है। 

इन्होने स्नातक करने के बाद दिल्ली से मास कम्युनिकेशनस की डिग्री हासिल की और सम्प्रति दिल्ली में ही एक नेशनल मीडिया ग्रुप के सेल्स विभाग में कार्यरत हैं। 

जासूसी कथानकों में सुरेन्द्र मोहन पाठक को सर्वोत्तम मानाने वाले हसन अलमास का अनुवाद के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास है।



© विकास नैनवाल 'अंजान'
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4 Comments
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  1. सार्थक और सुन्दर।
    दूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।
    आपके यहाँ भी कमेंट अधिक आयेंगे।

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    Replies
    1. जी आभार। जब वक्त मिलता है तो पढ़कर टिप्पणियाँ भी करता हूँ परन्तु आजकल वक्त थोड़ा कम लग रहा है।

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  2. आपका हार्दिक आभार विकास जी तथा मेरे अज़ीज़ हसन अलमास जी को बहुत-बहुत मुबारकबाद ।

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