नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

ख़ूबसूरत जासूस - एस सी बेदी

रेटिंग: 3/5
किताब 15 अक्टूबर 2018 को पढ़ी गई 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या: 48
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स 
श्रृंखला: राजन-इकबाल 

खूबसूरत जासूस - एस सी बेदी
खूबसूरत जासूस - एस सी बेदी

इस किताब में एस सी बेदी जी के लघु-उपन्यास ख़ूबसूरत जासूस के अलावा उनकी एक लघु-कथा लुटेरे भी हैं। इस पोस्ट में मैं दोनों के ऊपर ही बात करूँगा।

खूबसूरत जासूस 3/5

पहला वाक्य:
अमरीका का जासूस वाल्टर होटल के कमरे में इस तरह टहल रहा था - जैसे बहुत बैचेन हो। 


इकबाल आजकल एक केस में व्यस्त था। भारत में अमरीका का जासूस जॉन वाल्टर और रुसी जासूस ओतानोव पहुँच चुके थे। इकबाल को पता था कि इन दोनों का आना यहाँ अच्छी खबर नहीं थी।

वहीं उसके शक की सुई आशा ब्रेगंज़ा नामक लड़की पर भी अटकी थी। यह एक खूबसूरत युवती थी जिसकी हरकतों से इकबाल को लग रहा था कि वह विदेशी जासूस हो सकती है।

आखिर क्यों अमेरिका और रूस के जासूस भारत आये थे? 

उनके आने का मकसद क्या था? 

आशा ब्रेगेंजा कौन थी? और वह क्या चाहती थी?

क्या इकबाल इन सब प्रश्नों के उत्तर तलाश कर पाया?

ऐसे ही कई प्रश्नों का उत्तर आपको इस  लघु उपन्यास को पढ़ने के पश्चात मिलेगा। अब लघु-उपन्यास के प्रति मेरी राय पढ़िए।

मुख्य किरदार
इक़बाल - बाल सीक्रेट एजेंट  
सलमा - बाल सीक्रेट एजेंट 
लिनी और येस्तीन - दो विदेशी कैब्रे डांसर 
सूरज - एक गिरहकट और इक़बाल का दोस्त 
आशा ब्रेगेंजा - एक युवती 
 टोनी - आशा का साथी 
जॉन वाल्टर - एक अमेरिकी जासूस 
ओतानोव - एक रूसी जासूस 
नोस्ती - ओतानोव की प्रेमिका 
चेरी - एक रहस्यमय लड़की जिसने ओतानोव को अपने पास बुलाया था 
वेली - एक रहस्यमय लड़की जिसने जॉन वाल्टर को अपने पास बुलाया था 

एस सी बेदी जी का लघु उपन्यास खूबसूरत जासूस पढ़ा। वैसे तो उपन्यास के आवरण चित्र पर राजन इकबाल श्रृंखला लिखा गया है परन्तु इस उपन्यास में राजन इकबाल की जोड़ी में से केवल इकबाल दिखता है। इकबाल का साथ सलमा और सूरज दे रहे हैं।

उपन्यास की ख़ास बात यह है कि यह दो भागों में बंटा हुआ है। मैंने उपन्यास शुरू करने से पहले इसके आखिरी पृष्ठ को देखा था। उधर  राजन का नाम और समाप्त था तो सोचा एक ही किताब में पूरा उपन्यास है लेकिन यहीं मुझ से चूक हो गई। दरअसल  वह एक लघु कथा लुटेरा थी जिसमें केवल राजन और बलबीर हैं।

इस उपन्यास का दूसरा भाग खूनी खेल है। और बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि मेरे पास यह दूसरा भाग नहीं है। खैर, तब तक के लिए इसी के ऊपर अपनी राय दे देता हूँ।

खूबसूरत जासूस का जितना भी कथानक है वह रोचक है। एक बड़े षड्यंत्र का पता इसमें चलता है और कथानक अपने अंत में कई प्रश्नों को पाठकों के मन में खुला छोड़ देता है। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद इसका दूसरा भाग पढ़ने की इच्छा मन में बलवती हो जाती है। यह इस कथानक की खूबी है इसलिए मैं यही कहूँगा कि यह मुझे पसंद आया।

इस लघु उपन्यास में केवल इकबाल है तो मुझे यह उपन्यास रोचक लगा। जब राजन होता है तो इकबाल पर वह हावी लगता है और सोचने समझने का काम ज्यादातर राजन ही करता है। ऐसे में इकबाल का काम केवल कॉमिक रिलीफ देना ही रह जाता है। पर इधर ऐसा नहीं है। इधर उसे दोनों काम करने हैं। अभी तक तो दोनों ही जिम्मेदारियों को उसने बखूबी निभाया है।

पूरी कहानी के विषय में तो मैं कुछ नही कह सकता हूँ। लेकिन यह भाग मुझे रोचक लगा। अगर इसका दूसरा भाग खूनी खेल मुझे पढ़ने को मिलता है तो मैं जरूर उसे पढ़ना चाहूँगा। अगर आपके पास दोनों उपन्यास मौजूद हैं तो जरूर पढ़िए।


लुटेरे 2/5

पहला वाक्य:
रमा बहुत परेशान थी। 

रमा बहुत परेशान थी। उनका एकलौता बेटा बंटी स्कूल से वापस नहीं आया था।  स्कूल से छुट्टी हुए भी काफी वक्त हो चुका था। यही बात उसे चिंतित कर रही थी।

रमा चन्दन नगर की धनाढ्य महिला थी। जब उन्होने अपनी चिंता से इंस्पेक्टर बलबीर को अवगत करवाया तो पास बैठे राजन के मन में खटका हुआ।

शहर में अपहरणों का सिलसिला चल रहा था। राजन को शक था कि बंटी का वापस न आना भी इसी सिलसिले की एक कड़ी हो सकती थी।

आखिर बंटी घर क्यों नहीं आया था? क्या राजन का शक सही था? आखिर शहर में हो रही अपहरण की घटनाओं के पीछे किसका हाथ था? क्या राजन अपराधी को पकड़ पाया?

ऐसे ही सवालों के  जवाब आपको इस कहानी को पढ़कर पता चलेंगे।

मुख्य किरदार :
राजन - बाल सीक्रेट एजेंट 
इंस्पेक्टर बलबीर - चन्दन नगर का इंस्पेक्टर 
रमा - शहर की एक धनाढ्य महिला 
बंटी - रमा का पुत्र 
काला शेर - एक गैंग का सरगना जो बच्चो का अपहरण कर देता था 

लुटेरे एक साधारण सी कहानी है। यह उपन्यास में एक फिलर की तरह प्रकाशित की गई थी और पढ़कर इसका अहसास होता है। कहानी में आगे जो होने वाला है उसका अनुमान आप आसानी से लगा सकते हैं। कहानी में रहस्य नहीं है। थोड़ा बहुत रोचकता तब आती है जब रमा किसी भी तरह की मदद लेने से इनकार कर देती है।

कहानी का अंत भी ऐसा लगता है जैसे जल्दबाजी में लिखा हो या भी खाली निपटाने के लिए लिखा हो। कहानी में एक प्रसंग है जब हेलीकाप्टर आता है। पर खलनायक को हेलीकाप्टर से कूदते लोग तो दिखते हैं लेकिन हेलीकाप्टर की आवाज नहीं सुनाई देती है। यह मुझे अटपटा लगा। ऐसा लगा जैसे बस निपटाने के लिए लिखी है। जबकि अगर एक वाक्य ऐसे लिख दिया जाता कि हेलीकाप्टर में मौजूद लोग दूर ही उतर गये थे। फिर रमा के जाने के बाद ही उन्होंने हमला किया तो कहानी में तुक रहता। और कहानी और अच्छी हो सकती थी।

अभी के लिए तो यही कहूँगा कि एक साधारण कहानी है। एक बार पढ़ सकते हैं। लेकिन इसमें कुछ विशेष बात नहीं है।

अगर आपने इस किताब को पढ़ा है तो किताब आपको कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। 

एस सी बेदी जी के मैंने दूसरे उपन्यास पढ़े हैं। आप उनके विषय में मेरी राय निम्न लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं:
एस सी बेदी

राजन इकबाल श्रृंखला के दूसरे उपन्यासों के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं:
राजन-इकबाल


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल