नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

हफ्ते में पढ़ी गयी कहानियाँ (अप्रैल 6 - अप्रैल 12)

अप्रैल के महीने की शुरुआत हो चुकी है।  पिछले महीने में मेरे साहित्य को पढ़ने के स्रोतों में भी फ़र्क़ आया है। जहाँ पहले केवल मैं उपन्यास और कहानी संकलन पढता था, वहीं अब मैंने साहित्यिक पत्रिकाओं को भी पढ़ना शुरू कर दिया है। इसके इलावा न्यूज़ हंट में मौजूद कुछ एकल कहानियों को भी पढ़ने लगा हूँ।  तो इसलिए मैंने ये सोचा है कि इस हफ्ते से मैं उन कहानियों  या लेखों का ज़िक्र करूँगा जिन्हे विभिन्न स्रोतों से मैंने पढ़ा। आशा है, आप सभी को मेरा ये प्रयास पसंद आएगा और शायद आपको भी साहित्य के सागर से कुछ मोती पढ़ने को मिल जाएँ।
इस पोस्ट में अप्रैल ६ से अप्रैल १२ की कहानियों के विषय में मैं लिखूंगा।



 १) मैं राम की बहुरिया - राजेंद्र राव
रेटिंग :३.५/५
स्रोत :हँस मार्च २०१५,शब्दांकन

 पहला वाक्य :
 सुखदेव प्रसाद अपनी मारुती-८०० में पहुँचे।

सुखदेव प्रसाद और देवप्रिय मिश्र बचपन के दोस्त हैं। जहाँ सुखदेव प्रसाद एक मामूली शिक्षक है और एक साहित्यकार है वहीं देवप्रिय मिश्र अब जाना माना बिल्डर है जिसकी राजनीति में भी अच्छी सांठ गाँठ है। इसका असर ये है कि जहाँ सुखदेव प्रसाद को ज़िन्दगी भर साहित्य साधना करते हुए जो सम्मान नहीं मिलता वो ही सम्मान देव को अपनी राजनीतिक पहचान के बाद मिल जाता है।
कहानी अच्छी लिखी गयी है। यह साहित्यिक अकादमियों के चलने के ढर्रे को दिखलाती है जहाँ राजनीति, पैसा और चापलूसी का बोल बाला है। ईनाम आपस में बाँट कर एक दूसरी की पीठ थपथपा ली जाती है और खुश हो लिया जाता है। सुखदेव को इसका एहसास तब होता है जब देव दोस्ती कि खातिर उसे भी एक पुरूस्कार दिला देता है। सुखदेव पुरूस्कार पाकर खुश तो होता है लेकिन वह उसे ये बात ज्ञात है कि शायद वो इस पुरूस्कार को पाने के लायक नहीं था इसलिए वो एक ग्लानी से पीड़ित हो जाता है।
अक्सर साहित्यिक मंडलियों के विषय में कहा जाता रहा है कि कैसे उधर साहित्य के ऊपर नहीं कभी कभी लेखक की व्यगित्गत पहचान के ऊपर ही उसे पुरस्कारों से नवाज़ा जाता रहा है। यह कहानी भी उसी समाज का चित्रण करती है जहाँ एक व्यापारी किस तरीके से अपनी जान पहचान के कारण न केवल बड़े भव्य तरीके से अपने पहली रचना का लोकार्पण करवाता है बल्कि अपने रुतबे के कारण उस समिति का अध्यक्ष भी बन जाता है। इसके बाद वो पहला काम जो करता है वो होता है अपने दोस्त को एक पुरस्कार दिलवाना। इस बात को यूँ बयान करता है :

बुरा मत मानना अगर मैं कहूँ कि तुम्हे अपने लेखक होने पर बहुत घमंड था। सच कहना, तुम मन ही मन मुझे धनपशु से अधिक कुछ न समझते थे न ? तुम्हे अपनी गरीबी पर बड़ा नाज़ था मगर मुझे यह देखकर बहुत दुःख होता था कि तुम्हारी साहित्य साधना की कोई कद्र नहीं है। एक बार भी पुरस्कारों में तुम्हारा नाम नहीं आया जबकि थर्ड रेट और घटिया कलमघिस्सू बाजी मारते रहे।

कहानी मुझे अच्छी लगी। अगर आप भी इसे पढ़ना चाहें तो आप इसे हँस के मार्च के विशेषांक के पढ़ सकते हैं।


२) सी यू - गीताश्री 
रेटिंग :३/५
स्रोत :हँस , मार्च २०१५ में प्रकाशित

पहला वाक्य :
सोचा नहीं था कि ज़िन्दगी फिर से इस तरह रि-कनेक्ट हो जायेगी।

अभिसार और सुषमा के रिश्ते को टूटे हुए चार महीने हो चुके हैं। तब से अभिसार ने सोशल मीडिया में अपनी मौजूदगी ख़त्म ही कर दी है। जब उसके दोस्त वरुण द्वारा उसे पता चलता है कि कैसे उसके वाल पर सुषमा के अजीब से सन्देश हैं तो अभिसार दोबारा से अपने फेसबुक अकाउंट पे जाता है। वहाँ जाकर सुषमा के द्वारा किये गये पोस्ट्स के माध्यम से दोबारा उस वक़्त में पहुँच जाता है जब उनका रिश्ता बना था और कैसे आखिरकार उनके रिश्ता टूट गया था। अब इन पोस्ट्स को पढ़कर उसे इस बात का एहसास होता है कि शायद उसे थोड़ा और कोशिश करनी चाहिए थी और इसी बात को पूरा करने के लिए वो सुषमा से मिलने का फैसला करता है। इस मुलाकात का अंजाम क्या होता है, इस बात का पता तो आपको इस कहानी को पढ़ कर ही पता चलेगा।
कहानी एक महत्वपूर्ण प्रश्न को उठाती है। सुषमा एक पढ़ी लिखी लड़की है जो नहीं चाहती कि कोई मर्द उस पर अपना वर्चस्व स्थापित कर पाए। इसी कारण उसके पहले दो रिश्ते भी टूट चुके थे। अभिसार के साथ उसका रिश्ता टूटने का कारण भी यही था। क्या रिश्ते बिना किसी शर्त के हो सकते हैं ? जब दो लोग मिलकर जीवन साझा करने का निर्णय लेते हैं तो क्या उसमे मैं के लिए जगह बच सकती है? क्या बिना शर्तों के प्यार हो सकता है? ये ऐसे प्रश्न है जिनका जवाब काफी मुश्किल है। सिद्धांतवादी जवाब तो हम दे सकते हैं लेकिन असल जिंदगी में उसको अपने जीवन में प्रयोग में लाना शायद ही मुमकिन हो । खैर, कहानी अच्छी थी। अप भी पढ़िएगा।

३) मिसेज गुप्ता का क़त्ल - सुरेन्द्र मोहन पाठक 
रेटिंग : ३/५
स्रोत :न्यूज़हंट अप्प

पहला वाक्य :
छुट्टी का दिन था।


'मिसेज गुप्ता का क़त्ल' सुरेन्द्र मोहन पाठक जी कि एक लघुकथा है। अक्सर मैं न्यूज़ हंट अप्प का इस्तेमाल काफी कम करता हूँ। मोबाइल की स्क्रीन काफी छोटी है और इससे पढ़ने में वो मज़ा नहीं आता जो कि एक पूरी किताब से पढ़ने में आता है। लेकिन फिर भी मैं इसमें कुछ लघुकथायें या उपन्यास डाउनलोड करके रखता हूँ। ऐसा इसलिए कि दफ्तर जाते समय अगर लोकल में काफी गर्दी (भीड़) हो और उस भीड़ में उपन्यास निकालना संभव न हो तो मोबाइल में मौजूद रचनायें इस डूबते के लिए तिनके का सहारा बनती हैं। और एक ऐसे ही दिन मैंने कई दिनों से मोबाइल में पड़ी हुई लघु कथा को पढ़ा। ये तो मैंने आपको अपने हालात से वकिफ कराया और अब थोड़ा लघु कथा के विषय में भी बताता हूँ।

तो दोस्तों ये लघुकथा एक मर्डर मिस्ट्री है।  इसमें किरदार पाठक साहब और उनके दोस्त पुलिस इंस्पेक्टर एन एस अमीठिया हैं। इससे पहले इस जोड़ी के एक और किस्से को पढ़ चुका हूँ। वो लघु कथा थी 'शतरंज की मोहरे'। इस लघुकथा के विषय में अधिक जानकारी आप इस लिंक से पा सकते हैं ।
शतरंज की मोहरे
अब  इस लघु कथा पे आते हैं। छुट्टी के दिन पाठक साब अपने उपन्यास के ऊपर काम करने कि तैयारी में होते हैं कि उनके दोस्त पुलिस इंस्पेक्टर एन एस अमीठिया का फ़ोन आता है कि वो एक केस के सिलसिले में दरियागंज पहुँच रहे हैं और अगर पाठक साब आना चाहे तो आ सकते हैं। पाठक साब तैयार हो जाते हैं और घटनास्थल के तरफ चल देते हैं। वहाँ पहुँच कर उन्हें मिसेज गुप्ता की लाश मिलती है। और तहकीकात से पता चलता है कि मिसेज गुप्ता के जेवरात गायब हैं। तो किसने किया मिसेज गुप्ता का क़त्ल? क्या चोरी इस क़त्ल का कारण थी या फिर कोई अपनी व्यग्तिगत दुश्मनी में किये गये क़त्ल को चोरी के दौरान किये क़त्ल का अमलीजामा पहनाना चाहता था। ये सब बातें तो इस लघुकथा को पढने के बाद ही पता चल पायेगा। तो पढ़िएगा ज़रूर।

लघुकथा बेहद रोचक थी और पठनीय थी। पढ़कर मज़ा आया और वक़्त का पता ही नहीं लगा। आपको भी ज़रूर पढनी चाहिए।


४) वह रात - सुरेन्द्र मोहन पाठक
रेटिंग : २/५
स्रोत:न्यूज़हंट अप्प 



पहला वाक्य :
हमारे धंदे में कई बार ऐसा होता है कि कई केस अनसुलझे ही हमारी फाइलों में दफ़न हो जाते हैं लेकिन उनकी उलझन भरी बातें दिमाग में प्रश्न चिन्ह बनकर घूमती रहती हैं और फिर कई महीनों या वर्षों बाद कोई ऐसी घटना घटित हो जाती है, कोई ऐसा तथ्य सामने आ जाता है जो सारे केस को सहज ही सुलझाकर रख देता है।

ये लघु कथा भी मैंने उसी दिन पढ़ी जिस दिन 'मिसेज गुप्ता का क़त्ल' पढ़ी थी। इंस्पेक्टर जगतपाल के पास एक दिन एक दयावती नाम कि महिला आती है। बातचीत के दौरान वो बताती है कि वो अपनी किरायेदार मिसेज स्मिथ की तरफ से उनसे मिलने आई है और अब्बास परवा की घटना के विषय में बताना चाहती है। इंस्पेक्टर जगतपाल हैरान है कि सात साल पहले हुई घटना के लिए अब उससे वो क्यों मिलना चाहती है? क्या हुआ था सात साल पहले ? ऐसा क्या था कि इंस्पेक्टर जगतपाल अपनी उत्सुकता को काबू में न रख पाया और मिसेज स्मिथ से मिलने चला गया? क्या चाहती थी मिसेज स्मिथ? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल कौन थी यह औरत और जगतपाल से ही क्यों मुखातिब होना चाहती थी? ऐसे ही सवाल मेरे दिमाग में आये जिनके उत्तर इस कहानी को पढ़कर ही प्राप्त हुए।
कहानी एक रहस्यकथा नहीं है इसलिए ये इतनी रोमांचक भी नहीं बन पायी। हाँ, कहानी पठनीय ज़रूर है लेकिन इसमें राज को बताने कि जगह उसके ऊपर से पर्दा उठता तो ज्यादा बेहतर होता।

न्यूज़हंट वाली कथाओं को आप न्यूज़ हंट अप्प डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं। रही बात हँस में प्रकाशित कहानियों की, इसके लिए या तो आपको पत्रिका खरीदनी पड़ेगी जो आप स्टाल से या निम्न वेबसाइट पर जाकर खरीद सकते हैं:
हंस पत्रिका

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