नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

x-फाइल | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही | तिरंगा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: तिरंगा

टीम

लेखक: तरुण कुमार वाही | सहयोग: विवेक मोहन दिलीप चौबे | चित्र: दिलीप चौबे | चित्र सहयोग: विनीत सिद्धार्थ

पुस्तक लिंक: अमेज़न

x-फाइल | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही | तिरंगा

कहानी 

पाँच दिन में दिल्ली में पाँच बम ब्लास्ट हो चुके थे। जगह  जगह होते बम ब्लास्टों से पुलिस परेशान चल रही थी।

इन सभी बम ब्लास्टों में जो एक बात समान थी वो था ब्लास्ट होने वाली जगहों पर मिला अंग्रेजी के वर्ण 'X' का निशान।

पुलिस ने इस मामले की जो फाइल बनाई थी उसे नाम दिया था X फाइल।

अब यह तिरंगा की जिम्मेदारी हो चुकी थी कि वह न केवल आगे होने वाले बम ब्लास्टों को रोके बल्कि साथ ही यह भी पता लगाए कि यह एक्स कौन था और क्यों दिल्ली को तबाह करने पर तुला था।

आखिर कौन था ये X? क्या तिरंगा उसका पता लगा पाया? X आगे क्या करने वाला था?


मेरे विचार

'X-फाइल' राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित तिरंगा का कॉमिक बुक है। कॉमिक बुक 1998 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। कॉमिक बुक एक दो भाग में विभाजित कहानी का पहला भाग है। यानी 'X-फाइल' से जो कहानी शुरू होती है वह दूसरे भाग 'आरडीएक्स' पर जाकर खत्म होती है। 

प्रस्तुत कॉमिक बुक की बात की जाए तो यह एक तेज रफ्तार कॉमिक बुक है। पहले पृष्ठ में पाठक को पता लगता है कि दिल्ली में लगातार बम ब्लास्ट हो रहे हैं और उस दिन एक बुक स्टॉल पर बम ब्लास्ट हुआ है। इसके बाद कमिश्नर तिरंगा को बुलाते हैं और  x-फाइल के विषय में तिरंगा को बताते हैं जहाँ उन्हें पता लगता है कि तिरंगा इस मामले के पीछे लग गया है। तिरंगा आगे कैसे बढ़ता है यही कथानक बनता है। 

कॉमिक बुक की कहानी ठीक ठाक है। x कौन है यह आप जानना चाहते हैं। वहीं तिरंगा को कैसे पता लगता है कि अगला बम कहाँ है ये भी आप देखना चाहते हैं। कहानी में एक्शन भी है और आगे जाकर कॉमिक बुक का कथानक में कुछ घटनाएँ ऐसी होती है जो कि कॉमिक प्रकाशन से एक साल पहले आई फिल्म 'फेसऑफ' से प्रेरित है। यह बात कॉमिक में बताई भी जाती है। इस चीज को लेकर जो बातचीत किरदारों के बीच होती है वह रोचक होती है।  

कॉमिक बुक चूँकि दो भागों में विभाजित कहानी है तो यह पहला भाग एक भूमिका के तौर पर कार्य करता है। कॉमिक कुछ ऐसे प्रश्न आपके समक्ष छोड़ देता है जिसके उत्तर पाने के लिए आप अगला भाग जरूर पढ़ना चाहेंगे।

कथानक के कमजोर पक्ष की बात की जाए तो कहानी में संयोग काफी होते हैं जिनसे लगा कि लेखक ने कहानी बढ़ाने के लिए आसान रास्ता चुना है। 

पहला संयोग तो तिरंगा के X से टकराव ही होता है। लेकिन इसे एक बार को मान भी लें तो इसके बाद भी संयोग होने रुकते नहीं हैं। 

कॉमिक बुक में प्रसंग है X तिरंगा के हाथ से नदी में गिरकर निकल जाता है और एक नदी में जा गिरता है। दिल्ली पुलिस घंटों वहाँ छान बीन करती है लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगता। पर जब तिरंगा देर रात को यमुना के आस पास का इलाका छानता है तो संयोग से उसे न केवल खलनायक का कोट मिलता है बल्कि उसके पाँव के निशान भी मिल जाते हैं जो उसे बता देते हैं कि वो आस पास कहाँ गया है। यह सब नदी में खलनायक के गिरने के आठ घंटे बाद होता है। आठ घंटे बाद पाँव के निशान मिलना और उसके आधार पर तिरंगा का न केवल बढ़ना बल्कि खलनायक तक पहुँचने को पचाना थोड़ा कठिन हो जाता है। आठ घंटों में तो वो कहीं दूर जा सकता था। 

इसके बाद तिरंगा को न केवल खलनायक मिलता है बल्कि खलनायक के पास उसके बम ब्लास्ट के अगले स्थान की जानकारी वाली फ्लॉपी भी मिल जाती है। यहाँ लेखक ने बड़ी ही खूबसूरती से अगले मिशन की जानकारी भी हीरो को दिला दी जबकि कोई भी व्यक्ति जो ऐसे बम लगा रहा है वो अपने पास उसकी जानकारी किसी भी तरह से नहीं रखेगा। फ्लॉपी में यह जानकारी होना बतलता है कि उसने पहले से प्लान कर रखा है तो ऐसे में फ्लॉपी साथ में लेकर घूमने का कोई तुक नहीं है।  कॉमिक में यह भी बताया जाता है कि एक्स एक संस्था के कहने पर यह कार्य कर रहा है लेकिन फिर यह प्रश्न उठता है कि संस्था अगर ऐसा काम कर ही है तो वह फ्लॉपी डिस्क के माध्यम से यह जानकारी क्यों किसी को देगी और अगर देती भी है तो एक्स क्यों उसे अपने साथ ऐसे रखेगा? वह उसे किसी सुरक्षित स्थान पर नहीं रखेगा! ऐसा भी नहीं है कि वो ब्लास्ट करने से पहले कोई सूचना पुलिस वालों को यह ग्रुप देता था जिसके लिए वह फ्लॉपी बनाई गई हो।  ऐसे में खलनायक की जेब में फ्लॉपी होने का औचित्य फिलहाल समझ नहीं आता है। हाँ, ये जरूर कर सकते थे कि एक बार खलनायक पकड़ा गया तो उसके रहने के ठिकाने का पता लगाकर वहाँ रेड डलवा देते और वहाँ से फ्लॉपी बरामद करवा देते। 

कॉमिक बुक के आर्ट की बात की जाए तो आर्ट औसत है। शारीरिक ढाँचे कुछ पैनल्स में सही नहीं बने हैं और कुछ पैनल में तिरंगा के चेहरे के भाव ऐसे बने हैं जो कि आपको हैरत में डाल देते हैं कि किरदार ने ऐसे भाव क्यों बनाए। यह चित्र पढ़ने के अनुभव को थोड़ा प्रभावित करते हैं। इन पर थोड़ा अधिक काम होता तो बेहतर होता।

कॉमिक बुक का एक शुरुआती पैनल। एक पल को तो लगा कि तिरंगा पागल सा हो गया है। फाइल मिलने पर ऐसा चेहरा बनाने की आवश्यकता क्या थी?

 

अंत में यही कहूँगा 'X-फाइल' एक बार पढ़ सकते हैं। यह कोई बहुत अच्छा कॉमिक नहीं है लेकिन बहुत बुरा भी नहीं है।  चूँकि तिरंगा एक ऐसा हीरो है जो कि जासूस की तरह कार्य करता है तो उसकी कहानी में इतने सारे संयोगों का होना खलता है। अगर बिना संयोगो के कहानी आगे बढ़ाई जाती तो बेहतर हो सकता था। 


पुस्तक लिंक: अमेज़न


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2 Comments
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  1. Your reviews are always good and genuine. I liked the this story and the pointers you mentioned. This helps me to keep them in mind when I write story books.

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