नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

वो कौन था? | गजानन रैना | रैना उवाच

गजानन रैना साहित्यानुरागी हैं। साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखते रहते हैं।आज वह अपने खास अंदाज में एक लेखक के विषय में बता रहे हैं? बताइए तो वह कौन था?

 

वो कौन था? | गजानन रैना | रैना उवाच
Image by Arek Socha from Pixabay

 

आयीं चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना मेरे कमरे में आसमान भी था

वो पाँच जनवरी, सन उन्नीस सौ उनसठ में देहरादून में पैदा हुआ। बहुत अच्छे अंकों से इंजीनियरिंग पास की। प्रांतीय नागरिक सेवा में सलेक्शन होने के बाद भी उसने ज्वाइन नहीं किया।

वो कहता था कि वो बोर हो रहा है। उसने फोटोग्राफी सीखी, बेहतरीन फोटो खींचे और बहुत से पुरस्कार जीते। फिर चित्रकारी करने लगा और शानदार तस्वीरें बनाई। मन नहीं लगा, फिर बढई का काम करने लगा, लेकिन आधा समय वो बच्चों के खिलौने बनाने में लगाता था जो वो मुफ्त बाँटता था।

एक दिन उसे एक लड़की मिली, किसी गजल सी खूबसूरत।

लड़की ने बहुत चाहा कि वो किसी किनारे लग जाये, लेकिन उसने नहीं सुनी।

लड़की निराश हो कर उसे छोड़ गयी। फिर वो कविताएँ लिखने लगा।

स्वीडिश लेखक, लार्स एंडरसन उससे इतना प्रभावित हुये कि अपने उपन्यास Berget ( पर्वत) में उसे शामिल किया। उन्होंने बीस हजार रुपए महीने की वृत्ति उसको देने का फैसला किया था, लेकिन फक्कड़ फकीर कवि ने इंकार कर दिया था, "ऊब गया हूँ, इस सबसे। सब जला देना चाहता हूँ लेकिन यार लोग बुरा मान जाते हैं, कहने पर। अगर मेरे बाद यह छपवाना चाहें ये लोग तो तुम भी मदद कर देना। सब चुप रहें तो तुम बात न उठाना।"

हिंदी के दुर्वासा, किसी की तारीफ न करने वाले, विष्णु खरे जी ने कहा कि हिंदी को दूसरा दुष्यंत कुमार मिल गया है।

दुर्भाग्य आसमान के किसी अँधेरे कोने में बैठा हँस रहा था। 

इससे पहले कि वो हिन्दी कविता के आकाश में चमक पाता, उसकी उम्र का आसमान छोटा पड़ गया।

बाइस अप्रैल, सन उन्नीस सौ निन्यानबे की एक ऊँघती दोपहर, महज चालीस साल की उम्र में उसने एक जम्हाई ली और बोर हुये कवि ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

उसका नाम हरजीत सिंह था।


हरजीत सिंह स्रोत: पुस्तक 'मुझसे फिर मिल: हरजीत सिंह की शायरी' का बैक कवर 


हरजीत सिंह जी की एक गजल 

रेत बनकर ही वो हर रोज बिखर जाता है

चंद गुस्ताख हवाओं से जो डर जाता है


इन पहाड़ों से उतर कर ही मिलेगी बस्ती

राज ये जिसको पता है वो उतर जाता है


बादलों ने जो किया बंद सभी रस्तों को

देखना है कि धुआं उठके किधर जाता है


लोग सदियों से किनारे पे रुके रहते हैं

कोई होता है जो दरिया के उधर जाता है


घर की इक नींव को भरने में जिसे उम्र लगे

जब वो दीवार उठाता है तो मर जाता है।



हरजीत सिंह की अन्य गजलें और उनके विषय में अन्य जानकारियाँ निम्न लिंक्स पर जाकर पढ़ी जा सकती है:

मेरे कमरे में आसमान भी था- हरजीत की गज़लें
हरजीत सिंह की पाँच महशूर गजलें 


हारजीत सिंह की शायरी का संकलन:

मुझसे फिर मिल हरजीत सिंह की शायरी


- संपादक





लेखक परिचय:

गजानन रैना

गजानन रैना बनारस से हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं। 

एक बुक जर्नल में मौजूद उनके अन्य आलेख: गजानन रैना

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