नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बोरी का पुल | सुरेखा पाणंदीकर | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

संस्करण विवरण 

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 80 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्रांकन: शशि शेट्ये

पुस्तक लिंक: अमेज़न | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास




कहानी 

जोजे एक दस बारह वर्षीय बालक था जो कि मछुआरा बस्ती में रहता था। समुद्र तट में सीपियों को इकट्ठा कर अपने खजाने में उसे जोड़ना और अपने मछुआरे माता पिता का ख्याल रखना ही उसकी दिनचर्या का हिस्सा होता था। वह जब स्कूल जाते बच्चों को देखता था एक हूक सी उसके दिल में उठती लेकिन वो जानता था कि पढ़ाई लिखाई उसकी किस्मत में नहीं थी। वह इतने गरीब थे कि उसके माता पिता उसे स्कूल नहीं भेज सकते थे।

लेकिन तट में घूमते हुए एक बार उसके साथ ऐसी घटना हो गई जिससे उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई।

जोजे को न केवल पढ़ाई करने का मौका मिला बल्कि उसे स्वतंत्रता के उन जननायकों के विषय में भी जानकारी मिली जो कि गोवा पुर्तगालियों के शासन से मुक्त करवाने का बीड़ा उठाए हुए थे। 

आखिर क्या थी यह घटना जिसने जोजे की जिंदगी बदल दी?

जोजे पर पढ़ाई लिखाई और मिली नई जानकारी का क्या असर पड़ा?

बोरी के पुल की बात क्या थी और जोजे से इसका क्या संबंध था?


किरदार 

जोजे - एक दस बारह वर्षीय बच्चा 
मारिया - जोजे की माँ 
पेड्रो -जोजे के पिता 
श्यामा दीदी - बाणावली के न्यू एरा स्कूल की एक शिक्षिका 
गोपू - श्याम का छोटा भाई 
साहिबा - जोजे का एक दोस्त 
राणे - भारतीय फौज के एक हवलदार 
नंदा - भारतीय फौज के कमांडर ले कर्नल 

 

मेरे विचार

'बोरी का पुल' (Bori Ka Pul) सुरेखा पाणंदीकर (Surekha Panandiker) द्वारा लिखा बाल उपन्यास है। यह उपन्यास उनके अंग्रेजी उपन्यास 'द ब्रिज एट बोरिम' (The Bridge At Borim) का हिंदी अनुवाद है और अनुवाद उनके द्वारा ही किया गया है। अनुवाद अच्छा हुआ है। 

उपन्यास राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा पहली बार 2001 में प्रकाशित किया गया था।

उपन्यास के केंद्र में एक दस से बारह वर्षीय बच्चा जोजे है। जोजे के माता पिता मछुआरे हैं और मछुआरे बस्ती में वह रहता है। पढ़ाई लिखाई से दूर वह एक आम मछुआरे का जीवन जी रहा है। लेकिन फिर एक दिन ऐसा कुछ होता है कि उसका जीवन बदल जाता है। उसके स्कूल जाने का सपना पूरा हो जाता है। स्कूल जाना उसके जीवन में क्या बदलाव लाता है यह भी उपन्यास का केंद्र बनता है।

उपन्यास के शुरुआती भाग में गोवा के मछुआरों की जीवन शैली, उनकी संस्कृति, उनकी परेशानियाँ, उनकी लोक कथाएँ इत्यादि पाठकों को देखने को मिलती है। वहीं बाद के अध्यायों  के माध्यम से मछुआरों से इतर लोगों के जीवन शैली के विषय में भी पता लगता है।

गोवा को पुर्तगालियों से 19 दिसंबर 1961 में आजादी मिली थी और इस दिन वह भारत में विलय हुआ था।

यह उपन्यास 1959 से लेकर 1961 के समय के गोवा का चित्रण जोजे की ज़िंदगी के माध्यम से करता है। वहाँ की संस्कृति और लोगों की स्थिति दर्शाता है। इसके अतिरिक्त पुर्तगाली सैनिक आम जनता के साथ कैसा व्यवहार करते थे इसकी झलक भी इधर देखने को मिलती है। उपन्यास जोजे की जिंदगी के इन दो सालों को तो दिखलाता है लेकिन साथ ही गोवा के आजादी की लड़ाई, उसमें शामिल लोग और उनके योगदान को भी रेखांकित करता है। उपन्यास में आज़ादी के लिए लड़ने वाले युवा भी दिखते हैं। उनका जीवन कैसा रहता था और किस तरह के खतरे उन्हें उठाने पड़ते थे यह भी इधर दिखता है। यहाँ तक कि जोजे भी आजादी की इस लड़ाई में अपना योगदान देते दिखता है। उपन्यास के आखिर में यह हिस्सा आता है और यह उपन्यास उपन्यास को रोमांचक बना देता है।

चूँकि उपन्यास का मुख्य किरदार एक बालक है तो उसके और उसके संपर्क में आते अन्य बच्चों के माध्यम से लेखिका बाल मन को दर्शाने में भी कामयाब होती है। वह एक दूसरे से कैसे व्यवहार करते हैं। कैसे कई बार कुछ बच्चे अपने से कम आर्थिक वर्ग के लोगों के साथ वह क्रूर हो सकते हैं और कैसे एक नेह जुडने पर बिना किसी भेद भाव के किसी को भी अपना देते हैं। 

क्योंकि मुझे किताबों का शौक है और ऐसे में अगर किसी किताब में अन्य किताबों का जिक्र पढ़ने को मिलता है तो इसमें मुझे आनंद आता है। प्रस्तुत उपन्यास में भी ऐसा पढ़ने को मिलता है। अक्सर जब पुस्तकों की बात आती है तो लोग उन्हें ज्ञान तक ही सीमित रखते हैं। लेकिन पुस्तकें न केवल ज्ञान का भंडार होती है बल्कि वह मनोरंजन का बेहतरीन साधन होती हैं। वह प्रेरणा का स्रोत भी होती हैं। और पुस्तकों के इन सभी पहलुओं को उनकी खूबी के रूप में रेखांकित किया जाना चाहिए जो कि अक्सर नहीं किया जाता है। इस उपन्यास की अच्छी बात मुझे यह लगी कि उपन्यास के छोटे से ही हिस्से में लेखिका ने पुस्तकों के इन सभी पहलुओं को दर्शाया है। 

पुस्तकालय उसका प्रिय स्थान बन गया। पुस्तकालय के श्री चिटणीस उसका मार्गदर्शन करते थे। उसने साने गुरुजी की लिखी पुस्तकें 'दुखी', 'गोड गोष्टी', 'श्यामची आई' और अन्य कई पुस्तकें पढ़ डाली। श्याम उसे अपना सा लगता। श्याम को उसकी ही तरह मुसीबत का सामना करना पड़ा था। पुस्तक में वर्णित कोंकण की भूमि तो बिल्कुल गोवा जैसी ही लगी। वैसा ही समुद्र, नारियल, आम और कटहल के पेड़। जब वह पुस्तक पढ़ रहा था तो उसे लगा कि सब गोवा में ही हो रहा है। 'श्यामची आई' पुस्तक पढ़ने के बाद वह अपने माता-पिता से अधिक समझदारी और सम्मान से पेश आने लगा।  (पृष्ठ 50)

पुस्तक 'गोट्या' का तो वो दीवाना हो गया। गोट्या के 'क्रिकेट मैच'  और उसका 'नाटक खेलना' पढ़कर वह लोट-पोट हो गया।... अब्राहम लिंकन की जीवनी पढ़ने के बाद उसे गर्व हुआ कि वह भी एक सामान्य मछुआरे का बेटा है... (पृष्ठ 50)

जब कक्षा में भारतीय इतिहास पढ़ते समय मराठों के बारे में पढ़ा तो जोजे ने ह. ना आप्टे का 'उषाकाल' तथा बाबसाहब पुरंदर के 'रायगढ़' तथा 'प्रतापगढ़' ऐतिहासिक उपन्यास पढ़ डाले। उसका जी चाहता - काश! वह ये सब किले देख सकता जहाँ 'गोरिल्ला' यद्ध हुए थे। किताबों के कारण बरसात के मौसम में स्कूल के दिन मजेदार बन जाते थे। (पृष्ठ 51)

  

उपन्यास के यह अंश पढ़ते हुए इन किताबों के प्रति रुचि जागृत हो गई थी। मैंने श्यामची आई का काफी नाम सुना है लेकिन बाकी नामों से मैं इतना वाकिफ नहीं था। ये अंश पढ़ते हुए मेरा मन इन पुस्तकों को भी पढ़ने का करने लगा था। मुझे अगर ये रचनाएँ मिली तो मैं जरूर इन्हें पढ़ना चाहूँगा।

उपन्यास का शीर्षक बोरी का पुल है। बोरी का पुल का क्या महत्व है यह उपन्यास के आखिर के दो अध्यायों में दिखता है। जहाँ शुरुआत में उपन्यास जोजे के आम जीवन पर केंद्रित होता ही है वहीं उपन्यास के आखिरी के अध्यायों में जोजो भी स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़ जाता है और उपन्यास में रोमांच बढ़ जाता है।

उपन्यास के किरदार जीवंत हैं। फिर चाहे बच्चे और उनका जोजे का प्रति व्यवहार हो। जोजे का दोस्त साहिबा हो और उसका व्यवहार हो या जोजे की श्यामा दीदी हो। श्यामा दीदी जैसी अध्यापिकाएँ कम होती हैं लेकिन जहाँ भी होती हैं वहाँ के छात्रों से वरदान सरीखी होती हैं ।

उपन्यास की भाषा सहज और सरल है। अध्याय छोटे छोटे हैं और कथानक ऐसा है कि आगे क्या होगा ये आप जानना चाहते हैं। विशेषकर आखिर के कुछ अध्यायों में कथानक अपनी पकड़ पाठक पर बना लेता है और आखिर तक पढ़ते जाने के लिए मजबूर कर देता है। उपन्यास यथार्थ के निकट ही रहता है।

हाँ, उपन्यास पढ़ते हुए एक बात एक बात की कमी लगी। उपन्यास में लेखिका ने उपन्यास में कोई लेखकीय नहीं दिया है। अगर उपन्यास में ऐसा लेखकीय होता जिसमें उन्होंने इस उपन्यास के पीछे की प्रेरणा और उसकी लेखन प्रक्रिया पर बात की होती तो बेहतर होता। उपन्यास पढ़ने के बाद मैं यह चीज जरूर जानना चाहता था। 

अंत में यही कहूँगा कि सुरेखा जी का लिखा हुआ उपन्यास मुझे पसंद आया।  उम्मीद है बाल पाठकों को भी यह पसंद आयेगा।


पुस्तक लिंक: अमेज़न | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास


नोट: यह उपन्यास मैंने नई दिल्ली पुस्तक मेला 2023 में खरीदा था।  मेले के मेरे अनुभव आप यहाँ पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 


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