नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बी प्रीपेयर्ड - उमा आनंद

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्र: सत्यसेवक मुखर्जी | भाषा: अंग्रेजी

पुस्तक लिंक: Be Prepared- English | तैयार रहो


Be Prepared | Uma Anand | Review


कहानी 

परीक्षाएँ खत्म हो गई थी और छुट्टियाँ शुरू हो चुकी थी। कपिल खुश था। वह एक स्काउट था जो कि अक्सर छुट्टियों में कैम्पिंग के लिए जाता था। लेकिन इस बार की छुट्टियों में वह अपने विजय चाचा के यहाँ तारा जा रहा था। 

नवीन कपिल था दोस्त था और एक पढ़ाखू छात्र था। वह हमेशा पढ़ाई में ही लगा रहता था। खेल कूद से उसका दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। पर अब उसके पास भी करने को कुछ नहीं था। ऐसे में जब कपिल ने उसे अपने चाचा के यहाँ आने का न्यौता दिया तो उसने भी आने की हामी भर दी और उसके अभिभावकों ने भी उसे जाने की इजाजत दे दी।  

कपिल का कहना था कि उनकी यह छुट्टियाँ बहुत रोमांचक होने वाली थी। 

कपिल और नवीन की यह छुट्टियाँ कैसी बीतीं?

तारा में इन दोस्तों ने क्या क्या किया?

मेरे विचार

पिछले साल मैं शिमला बुक फैयर गया था और वहाँ से बाल साहित्य की कुछ किताबें ले आया था। उमा आनंद द्वारा लिखित 'बी प्रीपेयर्ड' भी उन्हीं किताबों में से एक थी। चूँकि किताब के पीछे किताब के बारे में कुछ लिखा नहीं था तो मैंने वहाँ पर इसके पन्ने पलटकर देखे और किताब में मौजूद चित्रों को देखकर यह अंदाजा लगाया कि ये मुझे पसंद आएगी और इसे खरीद लिया। अब चूँकि मैं इसे पढ़ चुका हूँ तो कह सकता हूँ कि अच्छा ही हुआ कि ये किताब मैंने खरीदी। मुझे यह किताब पसंद आई है। 
 
'बी प्रीपेयर्ड' उमा आनंद द्वारा लिखी उपन्यासिका है जो कि पहली बार 1975 में प्रकाशित हुई थी। यह किताब भारत में मौजूद स्काउट और गाइड संस्था को प्रोमोट करने के लिए लिखी गई है। मुझे याद है जब मैं स्कूल में पढ़ा करता था तो मेरे फुफेरे भाई, जो कि सरकारी स्कूल में थे, एन सी सी के सदस्य होते थे लेकिन मैं चूँकि कान्वेन्ट स्कूल में था तो हमारे पास ये विकल्प नहीं होता था। उनके अनुभवों से मुझे यह तो पता चल गया था कि आप एनसीसी में रह कर काफी कुछ सीख सकते हैं लेकिन अब ये किताब पढ़कर यह जान गया हूँ कि स्काउट बनकर भी काफी कुछ सीखा जा सकता है। 
 
उस वक्त मैंने अपने भाइयों को देखता था और उनके एन सी सी में हुए अनुभवों और कैम्प की कहानियों को सुनता तो लगता था कि उधर रहना कितना मजेदार होगा। लेकिन उस वक्त मुझे ये मौका मिला ही नहीं और इस कारण मुझे उनसे रश्क भी होता था। 

खैर, बचपन की यादों से किताब पर वापस आए तो 'बी प्रीपेयर्ड' का शीर्षक भारत स्काउट और गाइड संस्था के मोटो यानी सिद्धांत से आता है। स्काउट और गाइड का सिद्धांत 'बी प्रीपेयर्ड' यानी तैयार रहो होता है जिसका अर्थ है कि अपनी ज़िंदगी में आपको हमेशा परिस्थितियों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिए। कहानी में कपिल भी यह बात एक व्यक्ति को बताता है। 

कहानी के केंद्र में कपिल और नवीन नाम के दो युवा है जो कि दोस्त हैं। उनकी परीक्षाएँ खत्म हो चुकी हैं। कपिल एक स्काउट है लेकिन नवीन नहीं है क्योंकि एक तो उसकी पढ़ाई में ज्यादा रुचि है और फिर क्योंकि उसे अपनी पिता की दुकान में उनकी मदद करनी पड़ती है और इस कारण उसे समय नहीं मिल पता है। परीक्षा खत्म होने पर कपिल नवीन को अपने साथ अपने चाचा के घर तारा आने का न्यौता देता है। जब नवीन को अपने अभिभावकों की अनुमति भी मिल जाती है तो वह दोनों तारा के लिए निकल पड़ते हैं। वह दोनों अपनी छुट्टियाँ तारा में कैसे बिताते हैं यही पुस्तक की कहानी बनती है। वो लोग तारा में क्या क्या करते हैं? कैसे नवीन को इस यात्रा और छुट्टी के दौरान यह पता लगता है कि एक स्काउट क्या क्या कर सकता है? नवीन एक आम शहरी लड़का है जिसको न फर्स्ट एड के बारे में पता है, न ही वह औजारों का उपयोग कर चीजों को जोड़ना या ठीक करना जानता है और न ही प्रकृति में रहने और वहाँ गुजारा करने के विषय में कोई जानकारी रखता है। इस छुट्टी में उसे ऐसे अनुभव होते हैं जो कि उसे यह अहसास करवाते हैं कि जीवन में किताबी ज्ञान के अतिरिक्त इन सब बातों का ज्ञान होना भी जरूरी है। उसे यह भी पता लगता है कि स्काउट और गाइड प्रोग्राम के माध्यम से व्यक्ति यह सब ज्ञान आसानी से प्राप्त कर सकता है। 

पुस्तक छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित हैं और कपिल और नवीन के अनुभवों से यह दर्शाती है कि एक स्काउट बनना क्यों जरूरी है और कैसे स्काउट के रूप में अर्जित किया गया कौशल हमारे काम आ सकता है। इसके अतिरिक्त क्योंकि तारा एक पहाड़ी गाँव है तो वहाँ के जीवन को भी इसमें दर्शाया गया है। मैं खुद गढ़वाल से आता हूँ तो मैं इस जीवन से खुद को जोड़ पाया था। 

यह एक सीधी सादी कहानी है जो कि सरल और सुलभ भाषा में कही गई है। 12-14 साल एक बच्चों को ध्यान में रखकर यह लिखी गई है और मुझे लगता है यह उन्हें पसंद आएगी। मैं तो इन बच्चों से काफी बढ़ा हो चुका हूँ लेकिन मुझे फिर भी इसे पढ़ने में मजा आया। कपिल और नीवन के साथ छुट्टियाँ बिताना मुझे तो अच्छा लगा। 

हाँ, मुझे ये जरूर लगा कि किताब छोटी जरूर थी लेकिन ये मेरे उम्र के कारण ही था। इसके अलावा चूँकि मुख्य किरदार लड़के हैं तो किताब में स्काउट के ऊपर ज्यादा ध्यान दिया गया है। कहानी में एक बुलबुल (5 से 10 साल तक की बच्चियाँ बुलबुल बनती हैं और 5-10 साल के लड़के कब्स बनते हैं) और कपिल की बहन रेखा के रूप में एक गाइड जरूर है लेकिन उन पर इतना ध्यान नहीं दिया गया है। अगर वह भी लड़कों के साथ उनके कारनामों का ज्यादा हिस्सा होती तो मुझे लगता है बेहतर होता। ऐसे में पाठक गाइड के विषय में भी जान पाता और यह देख पाता कि यह चीज उन्हें कैसे लाभ पहुँचाती है। थोड़ा बहुत तो अभी भी पता चलता है लेकिन उतना नहीं है। मुझे लगता है रेखा के किरदार को कहानी में थोड़ा और जगह देनी चाहिए थी। 

कहानी में सत्यसेवक मुखर्जी द्वारा बनाए गए चित्र भी हैं जो कहानी पढ़ने के अनुभव को बढ़ा देते हैं। मुझे ऐसी किताबें पसंद आती हैं जिनमें चित्र होते हैं तो मेरे लिए तो यह रोचक ही था। 

Be Prepared - Uma Anand | National Book Trust
किताब में मौजूद सत्य सेवक मुखर्जी के कुछ चित्र

अंत में यही कहूँगा कि मुझे बी प्रीपेयर्ड को पढ़ने में मज़ा आया। यह स्काउट्स और गाइड्स को प्रोमोट करने के लिए लिखी गई किताब है और अपने इस काम को पूरा भी करती है। मुझे किताब पढ़ने से पहले केवल एनसीसी के बारे में ही पता था लेकिन अब स्काउट और गाइड के बारे में भी जानता हूँ। मुझे लगता है अगर कोई 12-14 साल की उम्र का बच्चा पढ़ता है और वह स्काउट नहीं है तो इसे पढ़ने के बाद जरूर बनना चाहेगा। 

वैसे तो यह किताब मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई थी और मैंने भी अंग्रेजी में ही इसे पढ़ा लेकिन इसका हिंदी संस्करण 'तैयार रहो' भी  मौजूद है। आप राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से इसका हिंदी संस्करण भी ले सकते हैं। 

पुस्तक लिंक: Be Prepared- English | तैयार रहो



FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल