नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

रैना उवाच: निर्मल वर्मा

निर्मल वर्मा हिन्दी के ऐसे लेखक रहे हैं जिनकी भाषा ने पाठकों को ही नहीं बल्कि लेखकों को भी मोहा है। कई नये लेखक उन्हें पढ़ने के बाद उनके जैसा लिखने की कोशिश भी करते है। आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए निर्मल वर्मा और उनके लेखन पर गजानन रैना की दो टिप्पणियाँ। यह संक्षिप्त टीप अलग अलग समय पर सोशल मीडिया में की गई थीं। 


निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा

 

(1)


बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता 

जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता 


खालीपन और एक सुन्न उदासी निर्मल वर्मा के लेखन के स्थायी भाव हैं।

एक विदुषी मित्र ने आब्जर्व किया था कि निर्मल के पात्र एक धुँधली उदासी और मोहन राकेश के पात्र भ्रम/ उलझन ( उन्होंने कनफ्यूज्ड शब्द का प्रयोग किया था) के शिकार दिखते हैं। 

निर्मल की कहानियों में नीरवता का एक साँय-साँय करता स्वर, एक निर्जन किस्म की भुतैली आभा और एक वीराने किस्म का प्रवासीपन सदा उपस्थित होता है।

वे चेखव की एक कहानी का अक्सर जिक्र करते हैं। 

गाँव की एक मास्टरनी एक शाम घर लौटते हुये लेवल क्रासिंग पर ट्रेन के गुजर जाने के इंतजार में खड़ी होती है, ढलती शाम के गमगीन से धुँधलके में एक सूनेपन, एक नाउम्मीदी की छाँव में।

कुछ देर बाद ट्रेन  गुजरती है और  मास्टरनी देखती है, ट्रेन की एक खिड़की में,  अपनी बरसों पहले मर चुकी माँ को। 

वही झुर्रियों भरा चेहरा,  आँखों का वही पहचाना  हुआ, भीगा आलोक।

यहाँ कहानी के इस पड़ाव पर पाठक को सहसा यह सत्य छू जाता है कि निर्जन स्टेशन पर अपने एकांत में लिपटी उस ,बीत चुकी सी , मास्टरनी की उजाड़ आँखों से चेखव ही अपनी, ट्रेन सी गुजरती, गुजर चुकी गुजश्ता जिंदगी को देख रहे हैं ।

बीते वक्त की एक टिमटिमाती झलक पकड़ पाना ही निर्मल का अभीष्ट होना है।


(2)


निर्मल वर्मा की कहानी 'परिंदे' और उपन्यास 'वे दिन' ने अपने समय में साहित्य के परिदृश्य में खासी लहरें उठाई थीं।

वे एक अपूर्व भाषा ले कर आये थे, उनकी कहानियों में गुलाबी धूप थी, बारिश की उड़ती बूँदें थीं, निर्जन प्रांतर थे , वंशी की मीठी धुन सा अवसाद था और थे सन्नाटे के स्पेस।

यह कथाकार अपने विशिष्ट रूपक और अनोखे बिम्ब ले कर आया था। पहली बार एक लेखक कविता के औजारों से गद्य रच रहा था। 

'परिंदे' के साथ याद आते है, जनजीवन के कोलाहल से दूर पहाड़ियों में स्थित एक रेजीडेंशल स्कूल, जहाँ तीन अजनबी पात्र आ जुटे थे।

पात्र यहाँ अपने अपने एकांत के , स्मृतियों के कैदी हैं । पूरी कथा में, पृष्ठभूमि में, सूनेपन का एक सुर बजता रहता है।

इस कहानी को पढ़ते एहसास होता है कि जैसे किसी निर्जन ग्राम में खड़े हों, निरुद्देश्य,अनिश्चित।

*****

टिप्पणीकार परिचय

गजानन रैना



गजानन रैना बनारस से हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं। 

एक बुक जर्नल में मौजूद उनके अन्य आलेख: गजानन रैना

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2 Comments
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  1. निर्मल वर्मा जी के सृजन के विषय में बहुत कुछ सुना है। गजानन जी के विचार जानकर अच्छा लगा।

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    1. पोस्ट आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा सर।

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