किन्तु उन दिनों मैं बच्चा था और मुझे ज्ञात न था कि जो सत्य की राह पर चलते हैं, उनके लिए कोई घर नहीं होता और कोई शरण स्थल नहीं होता और कोई सायादर वृक्ष उनकी राह में नहीं होता; और वे एक दृढ निश्चय अपने ह्रदय में लिए इस राह से गुजरते जाते हैं और अपने पीछे यादों के चिनार छोड़े जाते हैं; जो आग के शोलों की तरह धरती से निकलते हैं और आकाश की तरफ सर ऊँचा करके उनकी शहादत की गवाही देते हैं।
कृश्न चन्दर, मेरी यादों के चिनार
© विकास नैनवाल 'अंजान'
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