हमारे देश में सबसे आसान काम आदर्शवाद बघारना है और फिर घटिया से घटिया उपयोगितावादी की तरह व्यवहार करना है। कई सदियों से हमारे देश के आदमी की प्रवृत्ति बनाई गई है अपने को आदर्शवादी घोषित करने की, त्यागी घोषित करने की। पैसा जोड़ना त्याग की घोषणा के साथ ही शुरू होता है।
-हरिशंकर परसाई, सिद्धांतों की व्यर्थता, संग्रह: आवारा भीड़ के खतरे
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (20-12-2020) को "जीवन का अनमोल उपहार" (चर्चा अंक- 3921) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
जी चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
Delete