जीवन टुकड़ों में बिखरा था। कतरनों को सी-सीकर एक समूची कथरी सिलने जैसा उपक्रम था। सोचती थी कि जीवन को समझने के लिये लोगों की कहानी जान लूँगी, जितना जानती जाऊँगी, उतना समझती जाऊँगी, पर ज्यादातर जीवन कहानियों के बाहर फैला था। चिंदी चिंदी में बिखरा... चिंदी चिंदी में सजा-सँवरा...तमाम-तमाम रंगों में डूबा।
- अल्पना मिश्रा, अन्हियारे तलछट में चमका
सत्यता से ओतप्रोत।
ReplyDeleteजी आभार....
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