दादी उन्हें 'पुत्रवती' होने को आशीषतीं, लेकिन आशीर्वाद लगता नहीं। आशीर्वाद लगने की प्रतीक्षा जरूर होती। इस प्रतीक्षा में लड़कियों के पैदा होने की सूची लम्बी होती चली गई। पाँच लड़कियाँ हो गईं। छठी होकर मर गई। पर आशीर्वाद लगने की प्रतीक्षा न दादी के लिए घूमिल हुई, न पिताजी के लिए। माँ के लिए जरूर यह व्यर्थ हो गई।
- अल्पना मिश्र, अन्हियारे तलछट में चमका
©विकास नैनवाल 'अंजान'
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