नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

रहस्य - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

उपन्यास 24 जून 2020 से 27 जून 2020 के बीच पढ़ा गया 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 254 | प्रकाशक: तुलसी पॉकेट बुक्स

रहस्य - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा
रहस्य - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

तुलसी पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ओम प्रकाश शर्मा जी की इस किताब में उपन्यास रहस्य के अलावा एक 50 पृष्ठों से ऊपर की उपन्यासिका 'टार्जन का गुप्त खजाना' भी मौजूद है। इस पोस्ट में मैं इन दोनों की कृतियों के विषय में बात करूँगा।

रहस्य

पहला वाक्य:
वैसे बात यह चौंकाने वाली ही थी।

कहानी:
विनय एक व्यापारी था जिसे अपनी सौतेली माँ वासंती देवी के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था। सभी 
सबूत इस तरफ इशारा कर रहे थे कि वासंती देवी के कत्ल में विनय का हाथ था। 

वहीं विनय का कहना था कि वह निर्दोष था। इसी कारण उसने एक चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट को लिखी थी। यह उसकी चिट्ठी का ही कारनामा था कि सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय खूफिया विभाग को इस मामले की तहकीकात करने के लिए दिशा निर्देश दे दिए थे।

आखिर विनय की चिट्ठी में ऐसा क्या था कि सुप्रीम कोर्ट को केन्द्रीय खूफिया विभाग को इस मामले में शामिल करना पड़ा?
क्या सचमुच विनय निर्दोष था?
अगर विनय निर्दोष था तो वासंतीदेवी के कत्ल के पीछे किसका हाथ था?
क्या केन्द्रीय खूफिया विभाग के जासूस इस रहस्य को सुलझा पाए?


मुख्य किरदार:
विनय कुमार - एक व्यक्ति जिसे अपनी सौतेली माँ के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था 
वासंतीदेवी - विनय की सौतेली माँ 
कमला - विनय की पत्नी 
अनुराधा - विनय की सौतेली बहन 
राजेश - केन्द्रीय खूफिया विभाग का जासूस 
विजय - विनय का छोटा भाई 
शोभा - विजय की पत्नी 
जगन-  केन्द्रीय खूफिया विभाग का जासूस
बंदूक सिंह - केन्द्रीय खूफिया विभाग का जासूस 
पचिया - केन्द्रीय खूफिया विभाग का जासूस
रामेश्वर - अनुराधा का पति
मलखान सिंह - एक गुंडा 
भोला  सेठ - जेवरों की दूकान का मालिक 
शीतल - एक कॉल गर्ल 
बेगम मुमताज उर्फ़ मैडम मुसीबत - केन्द्रीय खूफिया विभाग की जासूस 
इरफ़ान - केन्द्रीय खूफिया विभाग की जासूस 
श्याम किशोर - उस स्टेशन का स्टेशन ऑफिसर जिसके अंतर्गत वासंती देवी का मर्डर केस आता था 
जमील - खूफिया विभाग का डिप्टी चीफ 
जगत - एक अंतरराष्ट्रीय ठग जो कि गाहे बगाहे खूफिया विभाग की मदद कर दिया करता था 
सूरजप्रकाश - एंटीक चीजों का एक व्यापारी
जयंत - खूफिया विभाग का जासूस 
मोहन कुमार - विनय का वकील 
नमिता - जगन की पत्नी 
फरमान अली - चीफ का चपरासी 
शेरू - एक जूनियर जासूस 
भोला खलीफा - एक कॉन्ट्रैक्ट किलर 

मेरे विचार:
समाज में होने वाले पारिवारिक अपराधों के प्रतिशत देखेंगे तो पायेंगे कि ज्यादातर अपराध दौलत के लालच के चलते होते हैं। प्रस्तुत उपन्यास रहस्य में हो रहे घटनाक्रमों के मूल में यही लालच मौजूद है। 

ओम प्रकाश शर्मा जी ने केन्द्रीय खूफिया विभाग के जासूसों को लेकर काफी रचनाएँ लिखी हैं। इस विभाग का नेतृत्त्व राजेश करते हैं जो कि अपने जूनियर जासूसों के साथ मिलकर कई पेचीदा मामलों की तहकीकात करते हैं। इन उपन्यासों में जासूसों के साथ कई बार अंतरराष्ट्रीय ठग जगत भी इन मामलों से उलझता दिखाई देता है। 
प्रस्तुत उपन्यास में भी केन्द्रीय खूफिया विभाग को एक रहस्य के ऊपर से पर्दा उठाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाता है और वह यह कार्य कैसे करते हैं यही उपन्यास का कथानक बनता है।

केन्द्रीय खूफिया एजेंसी  के जासूस किस तरह इस तहकीकात को अंजाम देते हैं यह देखना रोचक रहता है। इस तहकीकात को बंदूक सिंह और जगन की जोड़ी को दिया जाता है और दोनों की जोड़ी कमाल की है। बीच बीच में हास्य का तड़का लगा हुआ है जो कि आपको बोर नहीं होने देता है। उपन्यास में अंतरराष्ट्रीय ठग जगत का भी मह्त्वपूर्ण किरदार है और वह जो तिकड़म लगाकर कार्य करता है वह उपन्यास में रोचकता बरकरार रखते हैं। ठग जगत की ठगी के कारनामें पढ़ने में मजा आयेगा। अगर आपने ऐसे उपन्यासों को पढ़ा है तो आप मुझे इनके विषय में जरूर बताइयेगा। 

उपन्यास भले ही जासूसी से जुड़ा हो लेकिन ओम प्रकाश शर्मा जी पात्रों के माध्यम से कई तरह की सामाजिक टिप्पणियाँ करते दिखाई देते हैं। यह टिप्पणियाँ भारतीय समाज पर तो है ही वहीं एक बातचीत में ईरान में शुरू हुए कट्टरवाद पर भी उन्होंने एक विचार करने योग्य टिप्पणी की है जो कि हमे सोचने को काफी कुछ दे जाती है। उपन्यास चूंकि अपराध से जुड़ा है तो पुलिस भी कथानक में रोल निभाती दिखती है। पुलिस की कार्यप्रणाली और किस तरह वह अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करते हैं यह भी उपन्यास में कई बार शर्मा जी ने रेखांकित किया है।

केन्द्रीय खूफिया विभाग में मौजूद राजेश हमेशा की तरह ही प्रेरक है। उसे देखकर कभी कभी लगता है कि ऐसे ही अफसर अगर कानून की विभन्न एजेंसियों में हों तो समाज में कितना बदलाव आ जाए। लेकिन शायद ओम प्रकाश शर्मा जी भी जानते हैं यह होना मुमकिन नहीं है क्योंकि उन्होंने जो रचना संसार बनाया है उसमें भी दूसरे किरदार चारित्र के मामले में उसके नजदीक नही पहुँच पाते हैं। पर फिर भी यह उसी के नेतृत्व का नतीजा है कि उसके मातहत कई बार न चाहते हुए भी मानवता को तरजीह देते दिखते हैं। इस संसार में वह एक तरह से पुरषोत्तम है। 

अगर रहस्यकथा के तौर पर इस उपन्यास को देखें तो यह उपन्यास रहस्य के मामले में थोड़ा कमजोर लगता है। कहानी की शुरुआत अच्छी है और आप हो क्या रहा है यह जानने के लिए उपन्यास पढ़ते चले जाते हैं। एक तरफ विनय है जो कि स्वभाव में संत जैसा है वहीं उसके भाई बहन हैं जो कि उसके खिलाफ झूठ बोल रहे हैं। इन बातों को देखें तो एक तरफ आप सोचते हैं कि विनय और उसके भाई बहनों के बीच मसला क्या है? ऊपर से सभी एक दूसरे की तरफ मीठे बनते हैं  लेकिन उनके ब्यान कुछ और दर्शाते। आप जब यह पढ़ते हैं तो बरबस ही यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि उनके इस व्यवहार के पीछे कोई पेंच होगा। पर जब उपन्यास खत्म होता है यह पेंच जो होता है वह इतना जटिल नही होता है जितनी की आप पढ़ते वक्त कल्पना कर रहे थे। इस कारण पाठक को थोड़ी निराशा का अनुभव होता है। वहीं कई बार ऐसा भी लगता है कि मामले से ज्यादा तरजीह खूफिया विभाग की अंदरूनी राजनीति और गतिविधि को दी गयी। यह रोचक तो है लेकिन कई बार थोड़ा उबाऊ भी लगती है। कथानक को कसा हुआ बनाने के लिए इसे कम किया जा सकता था।

उपन्यास में केन्द्रीय खूफिया विभाग की एंट्री तब होती है जब विनय एक चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट को लिखता है।  उपन्यास पढ़ते हुए आपके मन में यह ख्याल हमेशा रहता है  कि एक कत्ल के जुर्म में पकड़ा गया आदमी ऐसा क्या सुप्रीम कोर्ट को लिख देता है जिससे वह एक सरकारी एजेंसी को उसका मामला सौंप देती है। पाठक के रूप में आपकी अपेक्षा रहती है कि इसके ऊपर भी प्रकाश लेखक डालेंगे लेकिन ऐसा कुछ जब  नहीं होता है तो एक तरह तो एक तरह के अधूरेपन का अहसास आपको होता है।

मुझे लगता है अगर सुप्रीम कोर्ट वाला मामला साफ किया होता तो एक तरह का उपन्यास में जो अधूरा पन है वह कम होता। वहीं रहस्य थोड़ा और पेचीदा या घुमावदार होता तो ज्यादा बढ़िया होता। 

जब उपन्यास के आवरण चित्र को मैंने देखा था तो इसे लेकर मन में कुछ प्रश्न उठे थे और एक लेख मैंने लिखा था। अब पढ़कर कह सकता हूँ कि मेरा अंदाजा काफी सही था। 

अंत में यही कहूँगा कि यह एक रोचक प्रोसीज़रल उपन्यास है। भले ही रहस्य के मामले में थोड़ा कमजोर है लेकिन पढ़ते हुए आपका मनोरंजन अवश्य करता है। एक बार उपन्यास पढ़ा जा सकता है।

उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आई:

'वैसे तुम क्या सोचते हो बन्दूक?'
'जी, मैं कुछ नहीं सोचता।'
'सचमुच...।'
'जी हाँ, हर समय सोचते रहने से दिमाग की मशीन पर जोर पड़ता है।'
'वैसे तुम दोनों का फार्मूला बढ़िया है।'
'फार्मूला...'
'हाँ- यही कि गुरु-गुरु कहकर खुद तो मजे में रहो और गुरु साला...'
'नहीं मान सकता।'
'क्या?'
'आपकी बात, गुरु यह क्यों भूल जाते हैं कि जब भी जरूरत होती है, मुंडन संस्कार चेलों का ही हुआ करता है।' (पृष्ठ 11)

'एक बात बता सकते हो उस्ताद..नौकर आदमी में और चमगादड़ में क्या फर्क है?'
'हाँ सोचते तो ठीक ही हो, चमगादड़ को उल्टा लटकना पड़ता है, और नौकर आदमी को हर वक्त उल्टा लटकने के लिए तैयार रहना पड़ता है।' (पृष्ठ 47)

'गुरु' - जगन बोला।
'कहो।'
'यहाँ सवाल बच्चे का नहीं है।'
'मैं जानता हूँ, परन्तु यह सब सुनकर भी अगर तुम दोनों ड्रामा तैयार न कर सको तो नौकरी छोड़ दो...और साधु हो जाओ।'
'सुझाव तो सचमुच अच्छा है, परन्तु गुरु हम दोनों नालायक अच्छे साधु भी तो नहीं बन पाएंगे?'
'उधर सब चलता है-अच्छे-बुरे साधु को क्या सभी पहचान लेते हैं...मेरा अनुमान है बुरे साधु अच्छा बिजनेस कर लेते हैं।'
जगत की बात पर दोनों ही हँसने के लिए विवश हुए। (पृष्ठ 71)

बंदूक ने पूछा-'तो गुरु तेहरान में क्या देखा?'
'जो हेरात और काबुल में देखा।'
'क्या?'
'यह कि मजहब के नाम पर किस तरह इनसान उल्लू बन जाते हैं।'
'हाँ बन तो गए ही हैं।'
'अभी और बनेंगे। इसलिए कि जब धर्म व्यक्तिगत चीज न होकर समूह के जुनून का बहाना बन जाता है तो कुछ भी अच्छा होने की उम्मीद नहीं रहती।' (पृष्ठ 72)

यह दुनिया है। यूँ कहने को लोग पूजा भी करते हैं, तीर्थ करने भी जाते हैं। परन्तु वास्तव में वह भगवान से भी केवल धन माँगते हैं। मानो भगवान....भगवान न होकर रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया हो....। (पृष्ठ 118)

शहरी जिंदगी में पचास प्रतिशत रुपया ही रहस्य है....यह भी कह सकते हैं कि हमारा मुल्क तेजी से अमरीका बनता जा रहा है। जहाँ बुजुर्गों के आदर का प्रश्न ही नहीं है, उन्हें अपने साथ घर में रखना भी पसंद नहीं किया जाता...वहाँ अलग से वृद्ध गृह बनाए जा रहे हैं (पृष्ठ 188)

'सोचने की बात यह है कि नए-नए वैज्ञानिक आविष्कारों से हम अच्छे मनुष्य बने हैं या जानवर?'
'जानवर कम खतरनाक भी हो सकता है। हम दुर्भाग्य से धन के उपासक ऐसे मनुष्य बनते जा रहे हैं कि परिवारों के टूटने पर भी मानो अलग-अलग शतरंज की बिसात बिछी रहती है। प्रत्येक दूसरे को मात देने के लिए तैयार है। परिवार में जब स्नेह ही समाप्त हो जाए तब कुछ भी अच्छे की आशा नहीं की जा सकती।'
'और जो हो रहा है उसे रोका नहीं जा सकता।'
'जो हो रहा है वह स्थिर नहीं है। निरंतर असीम की ओर बढ़ रहा है।' (पृष्ठ 188)

टार्जन का गुप्त खजाना 

पहला वाक्य:
जब से भारत गणराज्य बना और विकास के लिए पार्लियामेंट ने सुनियोजित योजनायें बनानी आरम्भ की, तभी से भारत और अमेरिका के बीच सम्बन्ध दिनों-दिन गहरे होने लगे।

कहानी:
साप्ताहितक अखबार घंटाकरण आजकल प्रसिद्धि की नयी ऊँचाई गढ़ रहा था। इस अचानक से हुई प्रसिद्धि का कारण था उसमें सिलसिलेवार प्रकाशित हुई खबरे। इन खबरों के अनुसार केन्द्रीय खूफिया विभाग के जासूस राजेश आजकल लीना डेविड नाम  की विदेशी युवती के प्रेम में गिरफ्त थे। इन्हीं खबरों के अनुसार राजेश ने लीना के साथ काफी समय किसी अज्ञात स्थान में बिताया था।

राजेश, जो कि अपने सद्चरित्र के लिए जाने जाते थे, के विषय में ऐसी  खबरे और तस्वीरों का होना सभी के लिए आश्चर्यजनक और कोतुहल का विषय था। वहीं राजेश की ओर से इन खबरों का खंडन न करना मामले को और पेचीदा बना रहा था।

क्या सचमुच राजेश लीना डेविड के प्रेम में गिरफ्त था?
यह लीना डेविड कौन थी? उसका राजेश से क्या रिश्ता था?
आखिर राजेश और लीना किधर गये थे?

मुख्य किरदार:
राजेश - केन्द्रीय खूफिया विभाग के जासूस
लीना डेविड - एक अंग्रेज युवती जिसका राजेश से रिश्ता बताया जा रहा था 
स्वामी तिकड़मचंद - एक साप्ताहिक अखबार घंटाकरण के सम्पादक 
रिचर्ड थोमसन - एक अंग्रेज पत्रकार 
टार्जन - एक शिशु जिसे वनमानुषों द्वारा पाला गया था 
डॉक्टर डेविड डीन - टार्जन का डॉक्टर 
जॉनसन - एक शिकारी
ऑस्कर - एक केमिस्ट्री प्रोफेसर 
हेवात - टार्जन बस्ती का मुखिया 

मेरे विचार:

'टार्जन का गुप्त खजाना' शीर्षक ही यह इल्म दे देता है कि यह उपन्यासिका एक रोमांचकथा होने वाली है और यह काफी हद तक सही है। एडगर राइस बुर्रो के किरदार टार्ज़न की कहानी को आधार बनाकर यह उपन्यासिका लिखी गयी है। 

यह उपन्यासिका बेहद रोमांचक है और इसने मेरा भरपूर मनोरंजन किया।

इस कहानी की अलग बात यह है कि कहानी आपको न्यूज़पेपर रिपोर्ट्स के माध्यम से पता चलती है। क्योंकि इसका फॉर्मेट अख़बारों की रिपोर्ट है इसलिए लेखक ने इस बहाने से पत्रकारिता के गिरते स्तर पर भी प्रहार किया है। 

अमेरिकन बुराइयों में एक बुराई है, हवाबाज अखबार नवीसी अर्थात बेपर की पत्रिकारिता। खून, बलात्कार , डाका  और ठगी के विषय में वहाँ ढेरों दैनिक, साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाएँ प्रकाशित होते हैं। भारत में जहाँ आदर्श और देशभक्त पत्रकारों ने ऊँचे दर्जे की पत्रकारिता से भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दिया था...अब सनसनीपूर्ण समाचार पत्रों का प्रकाशन तेजी से बढ़ता जा रहा है।
पृष्ठ(206)

क्योंकि कहानी अखबारों में प्रकाशित लेखों के माध्यम से कही गयी है तो इसे पढ़ना एक रोमांचक यात्रा वृत्तान्त पढ़ने सरीखा लगता है। चूँकि मैं घुमक्कड़ी का शौक़ीन हूँ तो पढ़ते हुए मुझे यही लग रहा था कि कितना अच्छा होता अगर मैं ऐसी किसी यात्रा का भाग होता। पढ़ते पढ़ते मैं भी खुद को ऐसी यात्रा का भाग समझने लगा था जिसने उपन्यासिका पढ़ने के मेरे अनुभव को काफी अच्छा बना दिया था। 

इस उपन्यासिका के केंद्र में राजेश है और यह उपन्यासिका ऐसी पहली कृति है जिसमें मैंने राजेश को खुद कुछ करते हुए पाया। अभी तक ओम प्रकाश शर्मा जी के मैंने दो उपन्यास पढ़े हैं और उनमें राजेश एक मेंटर की भूमिका में ही दिखा था। राकेश का खुद एक्शन में ऐसे शामिल होते देखना अच्छा लगा। राजेश को जो जानते हैं उन्हें मालूम होगा कि वह जनप्रिय जी के संसार में राजेश पुरषोत्तम ही है। ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ यह बात आप इस उपन्यासिका को पढ़ेंगे तो जान पाएंगे। 

मुझे तो इस उपन्यासिका को पढ़ने में बहुत मजा आया। कहानी शुरुआत से ही आपको बाँधकर चलती है। एक बार शुरू करेंगे तो पढ़कर ही इसे रखेंगे। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आपको जरूर इसे पढ़ना चाहिए। 

रेटिंग: 4/5

ओम प्रकाश शर्मा जी के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय:

हिन्दी पल्प के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

©विकास नैनवाल 'अंजान'
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8 Comments
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  1. अच्छी समीक्षा. रहस्य नहीं पढ़ा पर टार्जन का खजाना बेजोड़ है. कई बार पढ़ा है. ऐसे ही उपन्यासों की वजह से जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी हिंदी उपन्यास जगत के सिरमौर हैं.

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    1. जी, अच्छी बात यह है कि इसमें राजेश मुख्य एक्शन करते हुए दिखता है। ऐसे और उपन्यासों के नाम आपको पता हों तो जरूर साझा कीजियेगा।

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  2. मैंने अभी जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा जी का क्लब में हत्या नमक उपन्यास समाप्त किया है और राजेश के बारे में आपके विचार रिलेट कर पा रहा हूं। मौका मिलने पर में जनप्रिय जी के और भी उपन्यास पढ़ना चाहूंगा। समीक्षा हमेशा की तरह बेहतरीन.......

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    1. जी आभार। मैं भी उनके अन्य उपन्यास पढ़ने की कोशिश करूँगा।

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  3. जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश जी के उपन्यास की समीक्षा.. हमेशा की तरह बेहतरीन । अवसर मिला तो जरूर पढ़ना चाहूँगी ।

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  4. विकास जी , क्र्पया यह बता सकते हैं कि ओम प्रकाश शर्मा के नोवेल्स कहाँ से मिल सकते हैं ? विशेष रूप से पेपरबेक संस्कारण

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    1. जी अभी हाल फिलहाल में जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा का उपन्यास नीलम जासूस कार्यालय द्वारा पुनः प्रकाशित किये जा रहे हैं। इस विषय में अधिक जानकारी आपको निम्न पोस्ट से मिल जाएगी:
      नीलम जासूस का नया सेट प्रकाशन के लिए तैयार

      मुझे लगता है कुछ ही दिनों में यह उपन्यास अमेज़न में भी उपलब्ध होंगे।

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