नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

रहस्यमय झील - एस सी बेदी

किताब 3 मार्च 2018 से 4 मार्च 2018 के बीच में पढ़ा गया
रेटिंग: 3.5/5

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 40
प्रकाशक: राजा बाल पॉकेट बुक्स



पहला वाक्य:
किशोर व असरानी ने चाय का कप खाली करके मेज पर रखा, फिर टुकुर-टुकुर हॉल में देखने लगे। 

गुप्तचर विभाग के सीक्रेट एजेंट किशोर और असरानी उस वक्त क्लब से लौट रहे थे जब उनकी गाड़ी खराब हो गई। वो गाड़ी से उतरकर गाड़ी का मुयाना कर ही रहे थे कि गोली की आवाज ने उनका ध्यान आकृष्ट किया।

वे आवाज की तरफ भागे तो उन्होंने पाया कि कुछ लोग एक व्यक्ति को गोली मारकर भाग रहे थे। हमलावर तो भाग गये लेकिन वो व्यक्ति अभी भी ज़िन्दा था।

उसी व्यक्ति के चलते उन्हें मालूम हुआ कि वो विस्तारपुर का प्रिंस राजसिंह था। उसका पुश्तैनी खज़ाना एक झील में  छुपा हुआ था। वो अपने पुश्तैनी खज़ाने के नक्शे को भारतीय सरकार को सौंपने आया था जबकि उस पर हमला हो गया। कुछ लोग उस खजाने को खुद हथियाना चाहते थे।

राज सिंह तो  गोली लगने के कारण मर गया लेकिन मरने से पहले उसने असरानी और किशोर से ये वायदा लिया कि वे लोग उस खजाने का पता लगायेंगे और उसे भारतीय सरकार को सौंप कर देश की मदद करेंगे।

राजसिंह को मारने वाले लोग कौन थे और उनका अगला कदम क्या होने वाला था?

क्या खजाना सचमुच उस झील में मौजूद था?

क्या किशोर और असरानी राज सिंह को दिये अपने वादे को निभा पाये? इसके लिए उन्हें किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?


मुख्य किरदार :
किशोर - गुप्तचर विभाग का एजेंट
असरानी - गुप्तचर विभाग का एजेंट और किशोर का साथी
सलीमा - गुप्तचर विभाग की एजेंट और किशोर-असरानी की साथी
एसपी श्याम कपूर - पुलिस के अफसर और किशोर के चाचा
राजसिंह - विस्तारपुर का प्रिंस
लोहासिंह - राज सिंह के स्वर्गवासी पिता
रामसिंह - लोहा सिंह के मंत्री
नफीसखन ठेकेदार करोड़पति - राजन इकबाल का दोस्त और एक कुँवारा जिसको अपने लिए एक अदद बेगम की तलाश है
चमन असरानी - असारनी के चाचा जो कि विस्तारपुर में रहते थे
गिरजू - विस्तारपुर का एक छटा हुआ बदमाश
शीला - गिरजु कीसमय  प्रेमिका
सेठ हरपाल - विस्तारपुर का एक धनाढ्य व्यक्ति
हारमन - एक अंतरराष्ट्रीय कुख्यात अपराधी जिसे खजाने की तलाश थी
मीना डेविड - हारमन की साथी

कुछ दिनों पहले जब मैंने देखा कि राज कॉमिक्स एस सी बेदी जी के लिखे कुछ बाल पॉकेट बुक्स दोबारा बेचने लगा है तो मैंने उन्हें झट से खरीद लिया। दो सेट में २७ उपन्यास मिल रहे थे तो मुझे लगा कि ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा। उनके बाल उपन्यासों एक विषय में मैंने काफी सुना था तो मेरे लिए उन उपन्यासों को पढने का अच्छा अवसर था। रहस्यमय झील भी इन्ही दो सेट में मिला था।

रहस्यमय झील की बात करूँ तो उपन्यास मुझे पसंद आया। ये एक रहस्यकथा नहीं है अपितु रोमांचक कथा है। सब कुछ तेजी के साथ घटित होता है और पाठक को अंत तक बाँध कर रखता है। उपन्यास में एक्शन और हँसी मजाक है बेहतरीन ताल मेल है।

इधर ये बताना जरूरी है कि यह उपन्यास राजन-इकबाल श्रृंखला का नहीं है। उपन्यास के मुख्य किरदार किशोर,असरानी और सलीमा हैं। किशोर और असरानी राजन इकबाल की याद दिलाते हैं बस फर्क ये है कि दोनों ही मजाकिया हैं जब कि राजन इक़बाल के मामले में राजन काफी संजीदा व्यक्ति है। इधर ख़ास बात ये हैं कि सलीमा भी दोनों के साथ काफी मजाक करती है। और कई बार उन्हें सजा भी देती है। ऐसी तेज तर्रार महिला पात्र का होना मुझे पसंद आया। उपन्यास में राजन इकबाल का जिक्र भी होता है क्योंकि उनका एक आपसी मित्र नफीसखान इस कहानी का पात्र है। यानी हो सकता है कभी इन सबकी यानी राजन इकबाल, सलमा शोभा कि मुलाक़ात किशोर-असरानी और सलीमा से हुई हो। अगर ऐसा कभी हुआ होगा तो उस उपन्यास को मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा।


उपन्यास के संवाद चुटीले हैं और उन्होंने पढ़कर हँसी बरबस ही निकलती है। एस सी बेदी जी का सेंस ऑफ़ ह्यूमर कमाल का है और ये हर उपन्यास में झलकता है। ये बात मुझे काफी अच्छी लगती है।
उदहारण  के लिए:

'असरानी!' दोनों में से एक बोला- 'अगर तुमने कोई भी गलत हरकत की तो तुम्हें गोलियों से छलनी कर दिया जायेगा।'
'मुझे गलत हरकत करनी आती ही नहीं।'
'तुम कौन हो?'
'भगवान का मैं बेटा हूँ, जिसने मुझे बनाया है।
ताकतवर वह ऐसा, जिसने सारी दुनिया को नचाया है।'

ऐसे संवादों से ये लघु उपन्यास भरा हुआ है जो पढ़ने वाले के चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है।

उपन्यास में कमी की बात करूँ तो कथानक में इक्के दुक्के गलतियाँ हैं। जैसे किशोर और असरानी गाड़ी खराब होने के बाद रुकते हैं और बोनट खोलने वाले होते है कि तभी गोली की आवाज सुनाई देती है और वो आवाज़ की तरफ भागते हैं। फिर कहानी में वो उसके कुछ देर बार उस गाड़ी से हॉस्पिटल जाते हैं। गाड़ी ठीक कैसे हुई। इसका कोई जिक्र नहीं है।

'जब कारबोरेटर में कचरा फँस जाता है तो कार ही क्या, हर वाहन डांस करता है।' किशोर ने कहा और कार को सड़क के किनारे खड़ा किया, फिर नीचे उतरकर उसका बोनट खोलने लगा।
तभी धांय धांय की आवाज से वो क्षेत्र गूँज उठा।(पृष्ठ 6)

पृष्ठ  दस में लिखा है कि श्याम कपूर किशोर के  चाचा हैं  और पृष्ठ छत्तीस में श्याम को किशोर का पिता बोला गया है। इससे मैं थोड़ा शंका में पड़ गया था कि श्याम कपूर क्या किशोर का चाचा था या पिता।

एस पी श्याम कपूर दरअसल किशोर कपूर के अंकल थे।(पृष्ठ 10 )
किशोर उसी समय शहर में जाकर डीआईजी गुप्ता से मिला।....साथ ही उन्होंने बताया उसके डैडी एसपी श्याम भी इसी केस के सिलसिले में यहाँ आये हुए हैं।(पृष्ठ ३६)

ये दो छोटी बातें पढ़ते हुए मेरी निगाह में आई तो उनके विषय में इस लेख में लिख दिया।

अंत में यही कहूँगा कि यह बाल लघु-उपन्यास मनोरंजक है और एक बार पढ़ा जा सकता है। मैंने तो इसका भरपूर लुत्फ़ उठाया। अगर आपने इसे पढ़ा है तो आप इसके विषय में अपनी राय से मुझे टिपण्णी के माध्यम से अवगत करवा सकते हैं।

अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है और इसे लेना चाहते हैं तो राज-कॉमिक्स की साईट से इसे अपने लिए मंगवा सकते हैं। लिंक निम्न है:

राज कॉमिक्स

एस सी बेदी जी एक दूसरे उपन्यासों के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
एस सी बेदी
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2 Comments
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