नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

कातिल गुड़िया - धीरज

रेटिंग : 2/5
उपन्यास 9 सितम्बर 2017 से 12 सितम्बर 2017 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक (लुगदी पृष्ठ) | प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स | पृष्ठ संख्या: 240



पहला वाक्य:
'सर! यमराज नाम के कोई साहब आपसे बात करना चाहते हैं।'इयर पीस पर अटेंडेंट की आवाज़ उभरी।

अभिराज सावंत दिल्ली के जाने माने सर्जन थे। जब उनकी उनके घर में ही हत्या कर दी गयी तो हडकंप मचना ही था। एक रसूखदार व्यक्ति की उसके घर में हत्या ने मीडिया और प्रेस को पुलिस के खिलाफ एक तगड़ा मसाला दे दिया था। इस बात से पुलिस की और किरकिरी हुई कि कुछ दिनों पहले ही अभिराज ने पुलिस स्टेशन में एक रिपोर्ट लिखवाई थी जिसके अनुसार एक यमराज नाम के शख्स ने उन्हें अपनी रिसर्च को रोकने को कहा था और न मानने पर जान से मारने की धमकी दी थी।

करन मेघवाल ने हाल ही में  पुलिस फ़ोर्स ज्वाइन करी थी। ये कत्ल उसकी ज़िन्दगी का पहला और आखिरी केस भी हो सकता था क्योंकि कमिश्नर ने उसे इस केस को जल्द से जल्द हल करने को कहा था और असफल होने पर अफसरी गाज करन के सर पर गिरने के इशारे भी किये थे।

आखिर कौन था ये यमराज? अभिराज सावंत की हत्या क्यों हुई थी? क्या करन  हत्या के कारणों का पता लगा पाया?


मुख्य किरदार :

अभिराज सावंत - दिल्ली के एक जाने माने सर्जन
कारन मेघवाल - जनकपुरी थाने का एसएचओ
बेनामसिंह - जनकपुरी थाने का एक हवालदार
यमराज - वो व्यक्ति जिसने अभिराज सावंत को धमकी दी थी कि वो अपनी एड्स के ऊपर किये जारे अनुसनधान को रोक दें वरना उन्हें मौत दे दी जाएगी
जगताप जैकब उर्फ़ जे जे - एक पुराना अपराधी जो अब एक होटल का मालिक बनकर संभ्रांत ज़िन्दगी बसर कर रहा था
प्रोफेसर नरसिंह - दिल्ली मे रहने वाला एक युवा वैज्ञानिक। उनके अनुसन्धान का विषय भी एड्स जैसी लाजावाब बिमारी थी।
कुलदीप बाली - प्रो नरसिंह का अस्सिटेंट
कामिनी - कुलदीप बाली की प्रेमिका
 देवव्रत सिंघानिया - एक प्राइवेट जासूस
मेघना - करन की प्रेमिका
सब इंस्पेक्टर लम्बाड़ी - जनकपुरी थाने का इंस्पेक्टर
गुरुभान - डॉक्टर अभिराज का नौकर
शमशेर और कृपाल सिंह - अभिराज के गार्ड्स
सेठ दातासिंह - एक कपड़े मिल का मालिक
कमिश्नर हटंगडे- पुलिस कमिश्नर


मेरे विचार


पिछले दिनों राज कॉमिक्स की वेबसाइट से कुछ उपन्यास मंगवाए थे तो धीरज का कातिल गुड़िया भी उनमें से एक था। हिंदी के पल्प उपन्यास के तरफ मेरा आकर्षण रहा है और ऐसे लेखको को पढने से मैं हिचकता नहीं हूँ जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं पढ़ा है। धीरज भी ऐसे ही एक लेखक का नाम है या यूँ कहूं एक ब्रांड का नाम है क्योंकि न उपन्यास के पीछे लेखक की तस्वीर है और न उसकी जानकारी। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि ये एक भूत लेखक द्वारा रचा गया उपन्यास है।

कहानी से पहले उपन्यास की गुणवत्ता पर बात करता हूँ। उपन्यास लुगदी कागज पर छपा है और कवर (फ्रंट कवर और बेक कवर) के नाम पर एक महीन ग्लॉसड पेपर उस पर लगा  दिया गया है। वो ऐसा है कि एक दो बार पढ़ते हुए ही मुड गया था और अब सीधा होने का नाम नहीं ले रहा है।

 उपन्यास की बाइंडिंग इतनी बुरी है कि उपन्यास के अंत तक पहुँचते पहुँचते उपन्यास के पृष्ठ उपन्यास से बाहर निकलने को उतारू हो गये थे। और किताब अमीबा की तरह एक से दो तीन होने को मचलने लगी थी। मुझे पूरी उम्मीद है अगली बार पढने पर ये प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।

इसके इलावा उपन्यास की मूल कीमत को पेंट से छुपाकर उसके ऊपर ५० रूपये कीमत दर्ज करी हुई है।

अब शायद ये सब भी कम था तो प्रकाशक द्वारा जो उनकी अधिकृत साईट से जो उपन्यास भेजा गया उसमे २०८ के बाद जो पृष्ठ था उसकी संख्या २२५ थी।  मैं अक्सर उपन्यास खरीदने के बाद उन्हें रख देता हूँ क्योंकि पढने के लिए मेरे पास काफी कुछ मटेरियल रहता है। इसलिए उन पर ध्यान नहीं जाता। लेकिन शायद अब आर्डर के बाद हर किसी की जाँच करनी पड़ेगी। वैसे पृष्ठ गायब वाली बात का अनुभव मैं हार्पर द्वारा प्रकाशित उपन्यास कोलाबा कांस्पीरेसी के साथ भी कर चुका हूँ। पता नहीं प्रकाशक ऑनलाइन वितरण के लिए ऐसी प्रतियाँ क्यों रखते हैं।

बिखरती हुई बाइंडिंग 

फ्रंट कवर 
बेक कवर 



गायब पृष्ठ 

मूल कीमत के ऊपर पेंट से लिखी नई कीमत 

खैर, प्रति के रिव्यु के बाद अब कहानी पर आते हैं। कहानी की शुरुआत एक धमकी भरे फोन से होती है। अभिराज सावंत, जो कि दिल्ली का एक जाना माना सर्जन है,  को जब धमकी भरा फोन आता है तो पहले तो वो उसे किसी का मज़ाक समझता है लेकिन जब फोन करने वाला उसके अतीत के विषय में उसे ऐसा कुछ बताता है जिससे उसके होश उड़ जाते हैं तो वो घबरा जाता है। वो किन्ही अज्ञात लोगों को फोन करता है जो उसे पुलिस में जाने की सलाह देते हैं। इन सब बातों को जानने के बाद पाठक के तौर पर मेरे मन में ये जानने की ललक उत्पन्न हुई थी कि फोन करने वाला कौन था, अभिराज सावंत का इतिहास क्या था और वो अज्ञात लोग कौन थे जिन्हें अभिराज फोन करके सलाह मांगता है।

फिर चूंकि अभिराज की हत्या हो जाती है तो  इन रहस्यों को जानने की उत्सुकता काफी बढ़ जाती है और इसे पढना जरूरी हो जाता है।

कहानी में लेखक ने रहस्य और थ्रिल को बरकरार रखने के लिए ऐसे किरदारों का उपयोग किया है जिन्हें सिचुएशन की पाठक से ज्यादा जानकारी होती है। अक्सर इनके बीच के संवाद रहस्यमय होते है और पाठक की रूचि को बनाये रखते हैं। वहीं कई किरदार खुद रहस्यमयी थे। जैसे मेघना का किरदार। मेघना भले ही उपन्यास के नायक करन की प्रेमिका है लेकिन जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है हम ये जानते हैं कि कई बातें हैं जो करन भी उसके विषय में नहीं जानता।  उपन्यास में कई मोड़ भी आते हैं जो पाठक की रूचि उपन्यास में बरकरार रखते हैं।

किरदारों की बात करूँ उपन्यास के किरदार कथानक के हिसाब से फिट हैं। करन कहीं कहीं मजाकिया था विशेषकर बेनाम सिंह वाला प्रसंग,जो कि मुझे पसंद आया।  ये उसका पहला केस था तो उसका नौसीखियापन भी इधर झलका जो कि किरदार को यथार्थ के करीब लाता है।  हाँ, उपन्यास के अंत ने मुझे थोड़ा दुखी किया।

उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो उपन्यास का एक किरदार अंडरवर्ल्ड डॉन से एक बड़ा स्कॉलर बन जाता है जो एक लाइलाज  बिमारी के ऊपर अनुसन्धान कर रहा है। अब ये कैसे होता है ये मेरी समझ में नहीं आया? लेखक ने जाने क्या सोचकर ये लिखा ये वो ही जाने।

इसके  इलावा उपन्यास के कथानक के अनुसार खलनायक तीन थे लेकिन ज्यादातर उपन्यास एक ही खलनायक के ऊपर फोकस करते हुए लिखा गया। बाकी दो के लिए अंत में कुछ पृष्ठ लिख दिये गये जिसे खानापूर्ती कहा जा सकता है। उनके ऊपर भी थोड़ा वक्त दिया जाता तो कथानक ज्यादा अच्छा बनता। उनकी जान को बचाने के थोड़ी दौड़ भाग होती तो उपन्यास में मौजूद रोमांच बढ़ सकता था।

उपन्यास में एक सीन में एक रेस्टोरेंट में काम करने वाले वेटर का संवाद है जो कि मुम्बैया स्टाइल में लिखने की असफल कोशिश है।
"पता लग गया साहब!"- वो आते ही बोला -"कल बारह के टेम पर जो ग्राहक फोन करने कू माँगा था-उसकूं नाहर यहाँ लाया था"
(पृष्ठ ११४)
अब ऐसी भाषा दिल्ली के रेस्तौरेंट में मैंने कभी नहीं सुनी। मुंबई होता तो चल भी जाता। लेखक ने इसे दिल्ली में क्यों लिखा ये मेरी समझ नहीं आया।

इसके इलावा उपन्यास के अंत के करीब  सत्रह पृष्ठ गायब थे जिनके वजह से भी कहानी में आता मज़ा अवरुद्ध हुआ। उधर ही ज्यादा खुलासे हुए थे तो अगर वो पृष्ठ होते तो एक अधूरेपन का एहसास नहीं होता जो कि हुआ।

अंत, में केवल इतना कहूँगा उपन्यास औसत है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। अगर मिले तो पढ़ लीजियेगा वक्त अच्छा व्यतीत होगा ये मेरी उम्मीद है क्योंकि मेरा तो अच्छा कटा था।  इस उपन्यास को पढने के बाद मैं धीरज के दूसरे उपन्यासों को पढने के विषय में जरूर सोचूंगा।

अगर आपने धीरज के इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा कमेंट करके बताइयेगा। अगर धीरज के और भी उपन्यास पढ़े हैं तो कोई अच्छे उपन्यास का नाम जरूर साझा करियेगा।

उपन्यास राजकॉमिक्स की साईट पर उपलब्ध है :
राजकॉमिक्स 


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