रेटिंग : 4/5
जगंल में लाश जासूसी दुनिया श्रृंखला की दूसरी किताब है। किताब शुरुआत से लेकर आखिर तक आपका मनोरंजन करती है। उपन्यास पहले पन्ने से ही रहस्यमयी रूप अख्तियार कर देता है और उसके बाद ऐसी घटनाएं होने लगती हैं कि पाठक पन्ने पलटने पर मजबूर हो जाता है।
उपन्यास में रहस्य और रोमांच तो है ही लेकिन बीच बीच में किरदारों के बीच ऐसे संवाद हैं, विशेषकर हमीद और फरीदी के जो आपको मुस्कुराने पे विवश कर देते हैं। जिस हिसाब से फ़रीदी और हमीद के किरदार लिखे गये हैं वो एक दूसरे को कॉम्प्लीमेंट करते हैं। उनके एक दूसरे कि टांग खींचने की कोशिश करते रहना उनके बीच के संवाद को जीवंत और रोचक बना देता है।
इसके इलावा फरीदी जिस हिसाब से अपने दुश्मनों के साथ व्यवहार करता है वो भी पढने लायक है। विशेषकर डॉक्टर सतीश और फरीदी के बीच के संवाद। वो अकसर मुजरिमों से हँसी मज़ाक करता है जो कि पढने में आनन्द आता है।
अगर व्यक्ति में सेंस ऑफ़ ह्यूमर हो तो वो व्यक्ति ज्यादा मनोरंजक हो जाता है। अगर ये गुण जासूसी उपन्यास के नायक में हो तो उपन्यास का मज़ा दुगना हो जाता है।
अगर मैं ये कहूं कि इस उपन्यास को दी गयी मेरी रेटिंग में जितना हिस्सा इसके मिस्ट्री कोशेंट का है उतना ही हिस्सा इसके इनकी मज़ाकिया संवादों का भी है तो कुछ गलत नहीं होगा। अगर आपने कई मिस्ट्री उपन्यास पढ़े हैं तो कहानी आपको औसत लग सकती है लेकिन जिस वक्त पे लिखी गयी थी और जिस तरह से लिखी गयी है वो इसे यूनिक बनाते हैं।
उपन्यास के कुछ रोचक संवाद
"मगर साहब! न जाने क्यों मेरा दिल कह रहा है कि यह शख्स मुजरिमों का साथी है।" हमीद ने कहा।
"भई, यह है जासूसी का मामला... इश्क का मसला तो है नहीं कि दिल की आवाज़ पे काम किया जाये। यहाँ तो सिर्फ दिमाग की बातें ही मानी जाती हैं। " फरीदी ने बुझे हुए सिगार को सुलगाते हुए कहा।
"अब आपने क्या सोचा है। " हमीद ने कहा।
"अभी कुछ नहीं सोचा। अभी तो फ़िलहाल मुझे सरोज को रिहा कराके जलालपुर पहुँचाना है।"
"है- है... इश्के-अव्वल दर्दे दिल ... ले लिया!" हमीद ने कव्वाली की तर्ज पे झूमते हुए कहा।
"क्या बकते हो!" फ़रीदी बैचैन हो कर बोला।
"अरे, क्या पूछते हैं हुज़ूर ... बस यह समझ लीजिये कि पुराने लेखकों के शब्दों में वह कहते हैं न हसीना, नाज़नीना, मलायक फ़रेब, परी, महजबीं, जोहरा जबीं, सरापा खाँसी -ओ-बुख़ार की घड़ियाँ कभी गिनती होगी और कभी रख देती होगी ओ हो... ओ हो। "
"बस बस, बकवास बन्द... वरना!"
"वरना आप मेरा हक़ भी मार लेंगे। बहुत बहुत शुक्रिया।" हमीद ने हँस कर कहा।
"तुम हो अच्छे ख़ासे गधे। " फ़रीदी ने उकता कर कहा और आँखे बन्द कर के आराम कुर्सी पे टेक लगा कर बैठ गया।
"क्या बूढ़ी औरतों की सी बातें कर रहे हो।"
"काश, मैं बूढ़ी औरत ही होता, मगर जासूस न होता। हर वक्त ज़िन्दगी रिवाल्वर की नाल पर रखी रहती है। या फिर जासूसी हो अंग्रेजी तर्ज की कि जासूस ने किसी क़त्ल की खबर सुनते ही एक आँख बन्द की, कन्धों को ज़रा- सा हिलाया, दो चार बार कान हिलाये, एक बार मुँह बिसूरा और अचानक मुस्कुराते हुए क़ातिल का नाम और पता बता कर अपना फ़र्ज़ पूरा किया और चलता बना। एक हम हैं कि दिन रात भूतों की तरह.... !" हमीद रुक कर कुछ सोचने लगा।
"देखो, मैं फिर कहता हूँ कि मेरे हाथ खोल दो।" डॉक्टर सतीश ने गुस्से में कहा।
"और मैं तुमसे हाथ जोड़कर कहता हूँ कि बार बार तुम यही एक जूमला दोहराते रहो। " फरीदी ने मुस्कुरा कर कहा।
"तुम अजीब गधे के बच्चे हो। " डॉक्टर सतीश ने चीख कर कहा।
"ज़रा इस बात को साफ़ कर दो कि मैं गधे का बच्चा होने के वजह से अजीब हूँ या अजीब होने की वजह से गधे का बच्चा हूँ.... या... फिर.... !" फरीदी ने संजीदगी से कहा।
"तुम्हारा सिर!" डॉक्टर जोर से चीखा।
"हाँ, हाँ, मेरा सिर!" फरीदी ने घबराहट में अपना सिर टटोलते हुए कहा। "क्या हुआ मेरे सिर को.... मौजूद तो है। "
फरीदी के विषय में हमे इस उपन्यास में कई नयी जानकारी मिलती हैं। वो जासूसी क्यों करता है और इसके पीछे उसका उद्देश्य क्या है ये भी वो एक वक्त पे हमे बताता है।
हाँ,उपन्यास में एक जगह एक प्रसंग आता है जिसमे फ़रीदी को साँपों को दूध पिलाता हुआ दिखाया गया है। ये भारतीय समाज में फैली हुई भ्रान्ति है कि साँप दूध पीते हैं। ऐसा असल में होता नहीं है।
साँपों से जुड़ी कई भ्रांतियाँ है। आप इधर क्लिक करके इसके विषय में अधिक जान सकते हैं। (लेख अंग्रेजी में है।)
अंत में केवल इतना ही कि यह उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो एक बार जरूर इसे पढ़े। मैंने तो ये दूसरी बार पढ़ा। अगर पढ़ा है तो इसके विषय में जो आपकी राय है उसे कमेन्ट में जरूर लिखियेगा।
उपन्यास आप निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
उपन्यास 14 जनवरी 2017 से 17 जनवरी 2017 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : ई बुक
प्रकाशक: डेली हंट, हार्पर इंडिया
पृष्ठ संख्या : १३१
श्रृंखला : जासूसी दुनिया #२
आवरण : रज़ा अब्बास
आई एस बी ऐन : 978-81-7223-881-0
इ आई एस बी ऐन : 978-93-5136-729-1
आवरण : रज़ा अब्बास
आई एस बी ऐन : 978-81-7223-881-0
इ आई एस बी ऐन : 978-93-5136-729-1
पहला वाक्य :
गर्मियों की अँधेरी रात थी।
धर्मपुर के जंगल से गुजरते वक्त एक युवक को जब एक औरत की लाश दिखी तो वो इस सूचना के साथ पुलिस थाने पे पहुँचा। उसकी बात सुनकर वहाँ के दरोगा को थाने के इनचार्ज, इंस्पेक्टर सुधीर, को बुलाना ही उचित लगा। इंस्पेक्टर ने युवक की बात सुनी और पुलिस टीम लेकर उस लाश की तलाश में निकले।
लेकिन जब वो उस जगह पे पहुँचे जहाँ लाश होनी चाहिए थी तो उधर कुछ भी न था। फिर गोलियाँ चलनी शुरू हुई और पुलिस दल को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।
इस भगदड़ में वो युवक भी गायब हो गया जिसके कहने से पुलिस वाले उधर आये थे।
आखिर कौन था वो युवक? क्या उसने सचमुच लाश देखी थी? और अगर हाँ, तो वो लाश किसकी थी? पुलिस दल पे गोलियाँ किन लोगों ने चलाई थी? वहाँ के लोगों का कहना था कि उस जंगल में भूत प्रेत भी रहते थे। क्या ये सब उनकी कारस्तानी थी ?
इन सब सवालों के जवाब जब पुलिस वाले दे नहीं पाए तो इस केस को सुलझाने के लिए खुफिया विभाग के इंस्पेक्टर फरीदी और सार्जेंट हमीद को बुलाया गया। अब ये केस उनके सुपुर्द था।
क्या वे रहस्यों से पर्दा उठा पाये ?
जानने के लिए आपको इस उपन्यास को पढना पड़ेगा।
जानने के लिए आपको इस उपन्यास को पढना पड़ेगा।
जगंल में लाश जासूसी दुनिया श्रृंखला की दूसरी किताब है। किताब शुरुआत से लेकर आखिर तक आपका मनोरंजन करती है। उपन्यास पहले पन्ने से ही रहस्यमयी रूप अख्तियार कर देता है और उसके बाद ऐसी घटनाएं होने लगती हैं कि पाठक पन्ने पलटने पर मजबूर हो जाता है।
उपन्यास में रहस्य और रोमांच तो है ही लेकिन बीच बीच में किरदारों के बीच ऐसे संवाद हैं, विशेषकर हमीद और फरीदी के जो आपको मुस्कुराने पे विवश कर देते हैं। जिस हिसाब से फ़रीदी और हमीद के किरदार लिखे गये हैं वो एक दूसरे को कॉम्प्लीमेंट करते हैं। उनके एक दूसरे कि टांग खींचने की कोशिश करते रहना उनके बीच के संवाद को जीवंत और रोचक बना देता है।
इसके इलावा फरीदी जिस हिसाब से अपने दुश्मनों के साथ व्यवहार करता है वो भी पढने लायक है। विशेषकर डॉक्टर सतीश और फरीदी के बीच के संवाद। वो अकसर मुजरिमों से हँसी मज़ाक करता है जो कि पढने में आनन्द आता है।
अगर व्यक्ति में सेंस ऑफ़ ह्यूमर हो तो वो व्यक्ति ज्यादा मनोरंजक हो जाता है। अगर ये गुण जासूसी उपन्यास के नायक में हो तो उपन्यास का मज़ा दुगना हो जाता है।
अगर मैं ये कहूं कि इस उपन्यास को दी गयी मेरी रेटिंग में जितना हिस्सा इसके मिस्ट्री कोशेंट का है उतना ही हिस्सा इसके इनकी मज़ाकिया संवादों का भी है तो कुछ गलत नहीं होगा। अगर आपने कई मिस्ट्री उपन्यास पढ़े हैं तो कहानी आपको औसत लग सकती है लेकिन जिस वक्त पे लिखी गयी थी और जिस तरह से लिखी गयी है वो इसे यूनिक बनाते हैं।
उपन्यास के कुछ रोचक संवाद
"मगर साहब! न जाने क्यों मेरा दिल कह रहा है कि यह शख्स मुजरिमों का साथी है।" हमीद ने कहा।
"भई, यह है जासूसी का मामला... इश्क का मसला तो है नहीं कि दिल की आवाज़ पे काम किया जाये। यहाँ तो सिर्फ दिमाग की बातें ही मानी जाती हैं। " फरीदी ने बुझे हुए सिगार को सुलगाते हुए कहा।
"अब आपने क्या सोचा है। " हमीद ने कहा।
"अभी कुछ नहीं सोचा। अभी तो फ़िलहाल मुझे सरोज को रिहा कराके जलालपुर पहुँचाना है।"
"है- है... इश्के-अव्वल दर्दे दिल ... ले लिया!" हमीद ने कव्वाली की तर्ज पे झूमते हुए कहा।
"क्या बकते हो!" फ़रीदी बैचैन हो कर बोला।
"अरे, क्या पूछते हैं हुज़ूर ... बस यह समझ लीजिये कि पुराने लेखकों के शब्दों में वह कहते हैं न हसीना, नाज़नीना, मलायक फ़रेब, परी, महजबीं, जोहरा जबीं, सरापा खाँसी -ओ-बुख़ार की घड़ियाँ कभी गिनती होगी और कभी रख देती होगी ओ हो... ओ हो। "
"बस बस, बकवास बन्द... वरना!"
"वरना आप मेरा हक़ भी मार लेंगे। बहुत बहुत शुक्रिया।" हमीद ने हँस कर कहा।
"तुम हो अच्छे ख़ासे गधे। " फ़रीदी ने उकता कर कहा और आँखे बन्द कर के आराम कुर्सी पे टेक लगा कर बैठ गया।
"क्या बूढ़ी औरतों की सी बातें कर रहे हो।"
"काश, मैं बूढ़ी औरत ही होता, मगर जासूस न होता। हर वक्त ज़िन्दगी रिवाल्वर की नाल पर रखी रहती है। या फिर जासूसी हो अंग्रेजी तर्ज की कि जासूस ने किसी क़त्ल की खबर सुनते ही एक आँख बन्द की, कन्धों को ज़रा- सा हिलाया, दो चार बार कान हिलाये, एक बार मुँह बिसूरा और अचानक मुस्कुराते हुए क़ातिल का नाम और पता बता कर अपना फ़र्ज़ पूरा किया और चलता बना। एक हम हैं कि दिन रात भूतों की तरह.... !" हमीद रुक कर कुछ सोचने लगा।
"देखो, मैं फिर कहता हूँ कि मेरे हाथ खोल दो।" डॉक्टर सतीश ने गुस्से में कहा।
"और मैं तुमसे हाथ जोड़कर कहता हूँ कि बार बार तुम यही एक जूमला दोहराते रहो। " फरीदी ने मुस्कुरा कर कहा।
"तुम अजीब गधे के बच्चे हो। " डॉक्टर सतीश ने चीख कर कहा।
"ज़रा इस बात को साफ़ कर दो कि मैं गधे का बच्चा होने के वजह से अजीब हूँ या अजीब होने की वजह से गधे का बच्चा हूँ.... या... फिर.... !" फरीदी ने संजीदगी से कहा।
"तुम्हारा सिर!" डॉक्टर जोर से चीखा।
"हाँ, हाँ, मेरा सिर!" फरीदी ने घबराहट में अपना सिर टटोलते हुए कहा। "क्या हुआ मेरे सिर को.... मौजूद तो है। "
फरीदी के विषय में हमे इस उपन्यास में कई नयी जानकारी मिलती हैं। वो जासूसी क्यों करता है और इसके पीछे उसका उद्देश्य क्या है ये भी वो एक वक्त पे हमे बताता है।
हाँ,उपन्यास में एक जगह एक प्रसंग आता है जिसमे फ़रीदी को साँपों को दूध पिलाता हुआ दिखाया गया है। ये भारतीय समाज में फैली हुई भ्रान्ति है कि साँप दूध पीते हैं। ऐसा असल में होता नहीं है।
साँपों से जुड़ी कई भ्रांतियाँ है। आप इधर क्लिक करके इसके विषय में अधिक जान सकते हैं। (लेख अंग्रेजी में है।)
अंत में केवल इतना ही कि यह उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो एक बार जरूर इसे पढ़े। मैंने तो ये दूसरी बार पढ़ा। अगर पढ़ा है तो इसके विषय में जो आपकी राय है उसे कमेन्ट में जरूर लिखियेगा।
उपन्यास आप निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
इब्ने सफी को पहली बार इसी उपन्यास से पढा है। बहुत ही रोचक उपन्यास है।
ReplyDeleteउपन्यास की एक विशेषता यह भी है की उपन्यास का अनावश्यक विस्तार नहीं है।
एक रोचक, मनोरंजक और जासूसी उपन्यास है।
इब्ने सफी जी की जासूसी दुनिया श्रृखंला मुझे उनके इमरान श्रृंखला से काफी ज्यादा पसंद है।जानकार ख़ुशी हुई कि आपको ये पसंद आई। हाँ, इब्ने सफी की कृतियों में ये बात तो होती है कि अनावश्यक विस्तार नहीं होता है।
Deleteब्लॉग पर टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया।