संतुष्टि जीवन में शायद ही मिलती हो कभी। अनजानी चाह भटकाती रहती है। जिसे खोजने के लिए जिंदगी के हर कोने को तलाश लिया जाता है। दिखता तो है कि जीवन भरपूर जीया जा रहा है। पर दरअसल वह एक नामालूम सी हसरत को पूरी करने की चाह होती है।
- लखी बरनवाल, फेसबुक पृष्ठ तस्वीरें बतियाती सी से
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शत-प्रतिशत सच है यह। इस अनमोल विचार को साझा करने के लिए हृदय से आपका आभार विकास जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर....
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-04-2021) को "आदमी के डसे का नही मन्त्र है" (चर्चा अंक-4033) पर भी होगी।
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सत्य कहूँ तो हम चर्चाकार भी बहुत उदार होते हैं। उनकी पोस्ट का लिंक भी चर्चा में ले लेते हैं, जो कभी चर्चामंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं। कमेंट करना तो बहुत दूर की बात है उनके लिए। लेकिन फिर भी उनके लिए तो धन्यवाद बनता ही है निस्वार्थभाव से चर्चा मंच पर टिप्पी करते हैं।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चा अंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हृदय से आभार सर....
Deleteअनमोल विचार साझा करने के लिए हार्दिक आभार । अक्सर प्रेरक बातें चिंतन को दिशा प्रदान करती हैं।
ReplyDeleteआपने सही कहा मैम। आभार।
Deleteशत प्रतिशत सत्यकथन!
ReplyDeleteजी आभार.....
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