प्रेम ही शायद एकमात्र विशुद्ध भावना है इसलिए नहीं कि उसमें दूसरी भावनाएँ होती नहीं। वे होती हैं बल्की बाकी भावनाओं की तुलना में वे यहाँ कुछ ज्यादा ही बड़ी संख्या में होती हैं पर वे सब की सब प्रेम में प्रवेश करते ही अपने रंग को छोड़कर प्रेम के ही रंग में रंग जाती हैं।
- उदयन वाजपेयी, कयास
किताब लिंक: पेपरबैक | हार्डकवर
प्रेम की महत्ता दर्शाता सुन्दर सन्देश।
ReplyDeleteजी आभार....
Deleteउदयन जी की बात यूं तो ठीक लगती है पर यह भावुक व्यक्तियों पर ही लागू होती है । जो दुनियादारी के रंग में अच्छी तरह रंग गया, उस पर प्रेम का रंग चढ़ना ज़रा मुश्किल ही होता है । ऐसे व्यक्ति की प्रेमभरी बातें भी विश्वास करने योग्य नहीं होतीं । आजकल विशुद्ध प्रेम करने वाले बहुत कम होते हैं ।
ReplyDeleteजी उदयन जी ने प्रेम की ही बात की है। प्रेम भरी झूठी बातें करने वाला तो आडम्बर कर रहा है। उन पर तो यह लागू ही नहीं होती है। आभार।
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