tag:blogger.com,1999:blog-66242761453622455992024-03-19T14:17:56.709+05:30एक बुक जर्नलविकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.comBlogger1681125tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-61402595223855095782024-03-14T09:00:00.001+05:302024-03-14T09:00:00.339+05:30किताब परिचय: अपराजिता: कुंती की गाथा<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br /> <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7vBeRNfj9rVbE1iy92EzJjU1gqfd-Gf2h2rHljRzVy42ufBfbJZjcs9FGF_G0FiGuhe3-oBSdQbw7ZBAGS7JqxOua5JYtlvm-oCL0ICJuRzDlAhJyKG1MtTiKWWSz4UMuG9ZElrxtN3JM2no2162OZad_V68c8yPujmEP7wpMiYP7BhYN52u3fyNxSsA/s1422/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF%20-%20%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="800" data-original-width="1422" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7vBeRNfj9rVbE1iy92EzJjU1gqfd-Gf2h2rHljRzVy42ufBfbJZjcs9FGF_G0FiGuhe3-oBSdQbw7ZBAGS7JqxOua5JYtlvm-oCL0ICJuRzDlAhJyKG1MtTiKWWSz4UMuG9ZElrxtN3JM2no2162OZad_V68c8yPujmEP7wpMiYP7BhYN52u3fyNxSsA/w400-h225/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF%20-%20%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE.jpg" width="400" /></a></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">किताब परिचय</h4><p>यह पुस्तक सिर्फ महाभारत की कथा का पुनर्पाठ भर नहीं है, अपितु महाभारत के एक प्रमुख महिला पात्र, पांडवों की माता 'कुंती' के साथ तात्कालिक समय की मनोयात्रा भी है। पुस्तक बताती है कि कुंती समस्त कथा में पर्दे के पीछे रहकर भी इतनी महत्वपूर्ण क्यों है। </p><p>.. </p><p>कुंती अपराजिता इसलिए नहीं हैं कि वे कभी पराजित नहीं हुईं, बल्कि वे अपराजिता इसलिए हैं कि उन्होंने किसी भी पराजय को स्वयं पर आरोहित नहीं होने दिया, कैसी भी पराजय उनको पराजित नहीं कर पाई। कुंती के साथ-साथ यह पुस्तक कृष्ण की धर्मनीति की भी विवेचना करती है, जो कहती है - धर्म का उद्देश्य एक है, परंतु समय के साथ पथ में सुधार अवश्यंभावी है; पथ-विचलन नहीं होना चाहिए, परंतु पथ-सुधार आवश्यक है। </p><p>यह पुस्तक तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, गुप्तचर व्यवस्था व युद्धनीति की भी झलक प्रस्तुत करती हैं।</p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3SX7Jzh" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><p><br /></p><h3 style="text-align: center;">पुस्तक अंश</h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMZL69YT4mLympUKhynGP8cVz7AiU4IUYj_CB-R-aO0amTCJVhpP5-U4a2QKqZebPztmvHp7zlqiorUMJMYW6V6WQ4DJND6uc1dx8KOcMOvjTRmwo63dMHQwdPSRhEalDsyAjK7ajuZ30at0SNPY1Puen3hCv8YBNCC5KldwPT8MUEy0ON3tlzYue7Rhs/s320/aparajita-original-imagxsyj5y28zvtv.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="320" data-original-width="207" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMZL69YT4mLympUKhynGP8cVz7AiU4IUYj_CB-R-aO0amTCJVhpP5-U4a2QKqZebPztmvHp7zlqiorUMJMYW6V6WQ4DJND6uc1dx8KOcMOvjTRmwo63dMHQwdPSRhEalDsyAjK7ajuZ30at0SNPY1Puen3hCv8YBNCC5KldwPT8MUEy0ON3tlzYue7Rhs/s320/aparajita-original-imagxsyj5y28zvtv.webp" width="207" /></a></div><br /><p>मैं झंझावात में बही जा रही थी, बेसुध सी,अधूरी सी..."जल", "जल" मैंने धीमे से कहा, ना जाने रात्रि की कौन सी बेला थी, मुझे नहीं ज्ञात होता कि आवाज मेरे अधरों से बाहर भी निकली होगी परंतु तभी पार्वती जल लेकर आ गयी और मेरे सिर के नीचे हाथ लगाकर मुझे पान कराया। मेरे अधरों पर एक क्षीण सी मुस्कान प्रकट हुई और फिर धुल गयी। आखिर क्यों सब कुछ इतना क्षणिक! आखिर क्यों सब इतना भुरभुरा! अकेले चलते जाने की पीड़ा से बड़ी पीड़ा है त्यागे जाने की पीड़ा, आखिर त्यागे जाने में अपमान जुड़ा हुआ है एवं सर्वाधिक पीड़ाजनक है कि कारण का ज्ञात ना होना... चक्रवर्ती राजा से कुछ पूछना भी तो उचित नहीं। ना जाने किस बात पर नृप कुपित हो जाएँ। पांडु जब तक राजभवन में रहे, मेरे लिए नृप ही रहे एवं वन में सन्यासी। मैं उनकी भार्या तो बनी ही नहीं। मेरे समान ही पीड़ा माद्री की भी थी... माद्र देश की राजकुमारी... मुझसे अधिक युवती, मुझसे अधिक सुंदरी एवं शायद मुझसे अधिक चरित्रवान। पांडु रण में थे, मैं माघ मेले में और भीष्म माद्र देश में... आर्यावर्त में लगभग समाप्तप्राय धन लेकर पुत्री देने की प्रथा माद्र में अभी जीवित थी और हस्तिनापुर में धन का भंडार... माद्री हस्तिनापुर आ गयी। परंतु हस्तिनापुर में देवता स्वरूप पूजे जाने वाले भीष्म के सभी अनुमान व्यर्थ साबित हुए। माद्री के आने के बाद भी ना पांडु की जय यात्राएँ रुकीं और ना ही वन यात्राएँ। अब पांडु का मेरे ग्रहभाग में आना सर्वथा समाप्त ही हो गया था, आरम्भ में मुझे लगता रहा कि भले ही पटरानी का पद मेरे पास है परंतु पांडु माद्री के पास हैं परंतु एक दिन सहसा दासी ने आकर सूचित किया "महारानी, आपसे छोटी रानी मिलना चाहती हैं।" मैं अवाक रह गयी, क्या मुझे और अधिक प्रताड़ित करने आई है अथवा मेरी दुर्दशा पर हँसने मेरे पास आई है... मैं कुछ कहती इससे पहले ही पार्वती बोल पड़ी "रानी को हस्त प्रक्षालन के लिए जल दो, महारानी स्वयं उनकी आगवानी करेंगी।" "जो आज्ञा" कहकर दासी चली गयी। मैं क्रोध में पार्वती से कुछ कहती कि पहले वही बोल पड़ी "महारानी सदैव स्मरण रखें अपने से बली को कभी क्रोध करके पराजित नहीं किया जा सकता। अपने से बली को सिर्फ भेद से ही पराजित किया जा सकता है और वैसे भी अभी सत्य वास्तुस्थिति क्या है इसको जाने वगैर यदि आप नयी रानी का अपमान करेंगी तो संभव है कि व्यर्थ ही हास्य का विषय बन जाएँ। छोटी रानी जब स्वयं चलकर आपके पास आई हैं तो आपका भी दायित्व बनता है कि बड़प्पन दिखाएँ।" पार्वती की बातों में सच्चाई थी। मैं बाहर की ओर कदम बढ़ाती इससे पहले ही माद्री अंदर आती हुई दिखाई दी। मुझे सत्य नहीं ज्ञात था कि पांडु इस पर मोहित हैं या नहीं परंतु यदि ऐसी रूपवती इंद्र को भी प्राप्त हो तो वो अपने को सौभाग्यशाली माने। प्रकृति ने अपनी संपदा माद्री पर खूब लुटाई थी। सुंदरता के साथ-साथ उसकी चाल में, व्यवहार में एक अल्हड़पन था जो पुरुषमन को अतिशीघ्र आकर्षित करता। यह संभवतः माद्र देश की खुली जलवायु का परिणाम था। आते ही माद्री हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी और बोली "लगता है दासी से कुछ भूल हुई है!!" मेरे अंतः को झटका लगा। कहाँ मैं विचार कर रही थी कि कोई झंझावात आकर मेरे समस्त अस्तित्व को हिलाने वाला है और कहाँ माद्री का करुण स्वर... मैं कुछ बोल नहीं पायी । माद्री ही बोली "सत्य ही मैं अशुभकारक हूँ, भ्राता ने कुल परंपरानुसार मुझे विक्रय कर दिया, पति की मुझमें रुचि नहीं, देवी समान दीदी मुझसे बात करना भी उचित नहीं समझतीं। दीदी मैं तो बस आपसे यह आग्रह करने आयी हूँ कि मुझे भी अपने समान आचरण व पतिसेवा की शिक्षा दें जिससे कि मैं भी आपकी भाँति पतिप्रेम व सानिध्य प्राप्त कर सकूँ।” मैं अब भी कुछ नहीं समझ पायी थी। क्या माद्री का यह स्वर एवं बनावट दिखावा था। क्या माद्री मेरी दशा पर ठिठोली करने आई थी। माद्री ही पुनः बोली “मैं मानती हूँ कि महाराज पर प्रथम अधिकार आपका ही है परंतु महाराज तो मुझे ऐसे विस्मृत किए बैठे हैं जैसे मैं उनकी विवाहित स्त्री ना करके युद्धविजित रण दासी हूँ।” माद्री का करुण स्वर मुझे अंदर से हिलाये दे रहा था, तो यह थी सत्यता। “बहन आओ उद्यान में चलते हैं, वहाँ इस विषय पर मुक्त कंठ से चर्चा कर पाएँगे।” यह कहकर मैं बिना माद्री के उत्तर की प्रतीक्षा किए कक्ष से बाहर की ओर चल दी । मैं नहीं चाहती थी कि कक्ष में ऐसी कोई वार्ता हो जो दासियों के माध्यम से सम्पूर्ण हस्तिनापुर में प्रचारित हो और फिर पति पत्नी के बीच की वार्ता तो पूर्ण गोप होने ही चाहिए। माद्री भी मेरे पीछे पीछे चली आ रही थी। दासियों को साथ आने से मैंने मना कर दिया था बस पार्वती हमारे साथ ही थी। हम कुछ दूर आकर रुक गए, सूर्य देव अपनी प्रतिदिन की यात्रा के अंतिम चरण में थे। उनकी रश्मियाँ पीतवर्ण होकर धरा पर क्रीड़ा कर रही थीं, बाग बसंत के उन्माद से पूर्णपूरित था। सामान्य स्थितियों में वर्तमान अवस्था का असर अवश्य हमारे हृदय पर हुआ होता परंतु वर्तमान स्थिति में यह बसंत कुंठा रूप धारण करके हृदय में स्थित हुआ जाता था। पार्वती अपने साथ दो भृत्य ले आयी थी वो बाग में उचित स्थान पर दो चौकियाँ रखकर चले गए। हम दोनों ही कुछ देर शांत बैठे रहे, फिर मैं बोली "बहन माद्री हम दोनों ही एक ही कश्ती के सवार हैं। हम एक ऐसी राह के राही हैं जिसपर प्रत्येक राही को दूसरे राही से रहजनी की शंका रहती है। स्त्री सब कुछ सहन कर सकती है यहाँ तक कि पतिप्रेम का बँटवारा भी परंतु अपने स्त्रीत्व का अपमान उसके लिए असह्य होता है। स्त्री नहीं सह सकती कि उसमें अपने पति को आकर्षित करने की पर्याप्त क्षमता नहीं था अतः पति दूसरी स्त्री की ओर आकर्षित हुआ। आम अवस्था में प्रत्येक स्त्री पति के बहुविवाह को अनेकों प्रकार से किसी कारण के तहत मानकर हृदय को समझाती है परंतु तुम जानती हो कि हमारा जीवन असामान्य है और हम इस प्रकार से नहीं सोच सकते बस इसी संकोच ने मुझे तुमसे मिलने से रोके रखा। तुम स्व पर विजय प्राप्त कर मेरे पास आयी हो सो तुम धन्य हो।"</p><p>"दीदी मैं जब दिव्यभवन के लिए निकली तो मेरे मन में संकोच विराजमान था परंतु आपने जिस प्रकार से मुझे अपनाया है, मैं अनुग्रहित हूँ।"</p><p style="text-align: left;">"बहन, जीवन एक दृश्यमान परा प्रपात है। हम ना किसी को अपनाते हैं, ना किसी को छोड़ते हैं। जीवन की धारा सदैव प्रवाहमान है, हम बस, कभी उस प्रवाह में प्रवाहित होकर आनंदित होते हैं और कभी भय से सहारा ढूँढते हैं। कुछ देर सहारे के भरोसे चलते हैं, फिर प्रवाह के थपेड़े हमें कहीं और ले जाते हैं। यही मिलना विलगना चलता रहता है। हमारा दुख एक समान है। तुम जिस रोग की दवा के लिए मेरे पास आई हो, मैं स्वयं उसी व्याधि में दिन-रात जल रही हूँ।"</p><p style="text-align: left;">"अर्थात.. अर्थात।"</p><p style="text-align: left;">"यही सत्य है बहन।"</p><p style="text-align: left;">"फिर कारण!"</p><p style="text-align: left;">"अज्ञात... अभी तक मुझे स्वयं से विरक्ति सी हो गई थी कि आखिर किस कारण से मैं अपने स्वामी का मन बाँधने में सक्षम नहीं, परंतु अब..."</p><p style="text-align: left;">"दीदी, महाराज कल प्रातः पुनः मृगया हेतु प्रस्थान कर रहे हैं। हम कुछ नहीं कर सकते, परंतु उनको साथ लेकर चलने का आग्रह तो कर ही सकते हैं।"</p><p style="text-align: left;">"हाँ, आग्रह ही तो कर सकते हैं!"</p><p style="text-align: left;">"नहीं, दीदी, आप मेरे साथ रहें, पति का कर्तव्य है धर्म एवं लोकसम्मत पत्नी की इच्छा की पूर्ति करना।"</p><p style="text-align: left;">"बहन, अभी अनुभव की पूर्ति होना शेष है। धर्म एवं लोकसम्मत क्या है, पता है तुम्हें?"</p><p style="text-align: left;">"दीदी, मुझे तो बस, यह ज्ञात है कि पत्नी की ऐसी इच्छा, जिसकी पूर्ति से धर्म अथवा समाज के किसी नियम की अवहेलना ना हो रही हो, को पूरा करना पति का कर्तव्य है।"</p><p style="text-align: left;">"बहन, क्षत्रिय के लिए मृगया और युद्ध धर्मसंगत है, हमारा साथ मृगया में बाधा उत्पन्न करेगा, यही धर्मबाधा हो जाएगी। माद्री स्त्री के अधिकार अतिसंकुचित हैं इस समाज में। मैं जानती हूँ कि माद्र देश में सामाजिक व्यवस्था खुलेपन पर आधारित है, पर स्त्री के लिए चाहे जो भी समाज हो, इतने बंधन हैं कि उनके अधिकार सत्यता के धरातल पर नहीं उतर पाते। स्त्री के अधिकार सदैव ही किंतु, परंतु से ग्रसित रहते हैं और फिर हमारे धर्मसंगत अधिकारों पर भी समाज का पहरा है।"</p><p style="text-align: left;">"दीदी, मैं आपकी बातों से सहमत हूँ, परंतु हम एक बार अपने पति से साथ ले चलने का आग्रह तो कर ही सकते हैं!"</p><p style="text-align: left;">"हाँ, क्यों नहीं!"</p><p style="text-align: left;">"चलो प्रभु का आभार, मुझे तो लगा था, आप इस पर भी धर्म,समाज और अधिकार का ऐसा ताना-बाना बुन देंगी कि यह इच्छा भी धरातल पर नहीं आ पाएगी।" इतनी देर में ही मैं यह समझ गई थी कि माद्र देश के खुले समाज का ही असर था कि माद्री कई ऐसी बातें बहुत सहजता से कह जाती थी, जो कि सामने वाले को असह्य गुजरें और उसके बाद भी उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव नहीं था कि ग्लानि प्रकट हो। </p><p style="text-align: left;">पांडु अपने प्रिय घोड़े तमान के पास में थे, चाहे मृगया हो अथवा युद्धक्षेत्र महारज का और तमान का सदैव साथ था। हम दोनों को देखकर उनकी भृकुटि पर बल पड़ गए और बोले, "राजभवन छोड़कर तुम दोनों यहाँ!"</p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: center;">*****</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;"><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3SX7Jzh" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p style="text-align: left;"><br /></p><p style="text-align: left;"><br /></p><h4 style="text-align: left;">लेखक परिचय</h4><p style="text-align: left;"><br /></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgR9Ggvbzi59PApo4rgkFgXlYoHmCzqkX0ayHUoHtjI9l7grl6OpXLtLzWckV-oi1fQ0yFm67TxqaazQuG8R8y3g6S2CLOQkYUEc52qKd7Xd1FfrWyXBt1_PS0cvDYVkScuaJRodwJxsM/s786/IMG-20200811-WA0022.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="703" data-original-width="786" height="286" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgR9Ggvbzi59PApo4rgkFgXlYoHmCzqkX0ayHUoHtjI9l7grl6OpXLtLzWckV-oi1fQ0yFm67TxqaazQuG8R8y3g6S2CLOQkYUEc52qKd7Xd1FfrWyXBt1_PS0cvDYVkScuaJRodwJxsM/w320-h286/IMG-20200811-WA0022.jpg" width="320" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">अंकुर मिश्रा</td></tr></tbody></table><div></div><div><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">अंकुर मिश्रा कानपुर उत्तर प्रदेश के हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के पश्चात बैंकिंग क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का विचार किया। अब वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक के पद पर कार्यरत हैं। </div></div><p>उनकी कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। </p><p>लेखक से आप निम्न माध्यमों के द्वारा सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:</p><p><a href="mailto:mynameankur@gmail.com" rel="nofollow" target="_blank">ईमेल</a> | <a href="https://www.facebook.com/ankur.mishra.79230" rel="nofollow" target="_blank">फेसबुक </a>| <a href="https://www.instagram.com/mynameankur/" rel="nofollow" target="_blank">इंस्टाग्राम </a>| <a href="https://amzn.to/2DBuLcF" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न पेज</a></p></div><div><br /></div><div><p><b><u>नोट:</u></b> <span><b><span style="color: red;">'किताब परिचय'</span></b> <b><span style="color: #2b00fe;">एक बुक जर्नल</span></b> की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:<br /></span></p><p><span>contactekbookjournal@gmail.com</span></p><p><span><br /></span></p><p><span><br /></span></p></div>एक बुक जर्नलhttp://www.blogger.com/profile/04777788548338715954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-49114780282726628612024-03-13T10:36:00.001+05:302024-03-18T09:34:36.509+05:30बैरिस्टर का प्रेत - ओम प्रकाश शर्मा | नीलम जासूस कार्यालय<p><b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपर बैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 104 | <b>प्रकाशक:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/NJK" rel="nofollow" target="_blank">नीलम जासूस कार्यालय</a> </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3PkzbWH" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8ApNMFNMbt7ch2HqjwOlXmj3HecZDm-i5J9DEoW5BgOh9Zc5w14trR4JqePIPW6brmpBAKlApkw8PvkKFGFh3SY6DJme_MtLtJSdGMTgnZEmsulmNKMIlOm2OFZOIqMGb9NwzL0VcunzvKhvm5q-Bdab1grUwOgBY0JgLw3Eyyp9p-8yUUMPNtrrEdgo/s500/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A4.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="500" data-original-width="332" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8ApNMFNMbt7ch2HqjwOlXmj3HecZDm-i5J9DEoW5BgOh9Zc5w14trR4JqePIPW6brmpBAKlApkw8PvkKFGFh3SY6DJme_MtLtJSdGMTgnZEmsulmNKMIlOm2OFZOIqMGb9NwzL0VcunzvKhvm5q-Bdab1grUwOgBY0JgLw3Eyyp9p-8yUUMPNtrrEdgo/s320/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A4.jpg" width="212" /></a></div><br /><p><br /></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>कृष्ण दास लखनऊ के एक नामी वकील थे। लखनऊ और इलाहाबाद में उनकी धाक थी। वहीं धार्मिक व्यक्ति होने के चलते उनका काफी सम्मान भी था। लोग जानते थे कि वो जब लखनऊ में रहते तो रोज प्रातः चार बजे गोमती में जाकर स्नान करते थे।</p><p>उस दिन भी वो स्नान करने गए लेकिन लौट कर नहीं आए। </p><p>पुलिस का कहना था कि वो शायद किसी दुर्घटना के शिकार हो गए थे।</p><p>वहीं उनका सहायक दिनेश चंद्र इस बात को मानने को तैयार नहीं था।</p><p>फिर जब कृष्ण दास की कोठी में उनका प्रेत देखा जाने लगा तो मामले ने नया मोड़ ले लिया।</p><p>अब दिनेश ने प्राइवेट जासूस कमल को इस गुत्थी को सुलझाने बुलाया था।</p><p>आखिर कृष्ण दास कहाँ गायब हो गए थे?</p><p>क्या सचमुच उनका प्रेत भटक रहा था या ये कोई साजिश थी?</p><p>कमल किस तरह से मामले की जड़ तक पहुँचा?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><p><br /></p><div style="text-align: left;">कृष्ण दास - लखनऊ के नामी वकील<br />लता - कृष्णदास की दूसरी पत्नी<br />जानकी - लता की मां<br />दिनेश चंद्र - वकील और कृष्ण दास का सहायक<br />कमल - प्राइवेट जासूस<br />शीला - कमल की सेक्रेट्री<br />नवाब बेअसर - दिनेश के दोस्त जो एक शौकिया जासूस थे<br />दुपई और महाराजिन - नौकर<br />रामलाल - कृष्ण दास का ड्राइवर <br />अरुण - एक प्रोफेसर <br />राजेश - खुफिया विभाग का बड़ा अफसर <br />बाकर अली - गोमती फॉरेस्ट रेंज के रेंजर <br />रोशन सिंह - सब इंस्पेक्टर</div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">विचार </h4><p><b>बैरिस्टर का प्रेत</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/जनप्रिय लेखक" rel="nofollow" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा</a> का उपन्यास है। यह उपन्यास <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/NJK" rel="nofollow" target="_blank">नीलम जासूस कार्यालय</a> द्वारा प्रकाशित किया गया। </p><p>उपन्यास का घटनाक्रम लखनऊ में घटित होता है। यह एक जासूसी उपन्यास है जिसमें प्राइवेट डिटेक्टिव कमल को इस बात का पता लगाने के लिए नियुक्त किया जाता है कि कृष्ण दास की कोठी में दिखते कृष्ण दास के प्रेत के पीछे क्या रहस्य है? कमल अपनी सेक्रेटरी शीला के साथ मिलकर इस मामले की क्या जाँच करता है। इस दौरान क्या बात उजागर होती है। जाँच का नतीजा क्या निकलता है और कैसे असल बात का पता चलता है? यह सब ही उपन्यास का कथानक बनता है। </p><p>जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यासों की बात करें तो उनके जासूसी उपन्यासों में भी सामाजिक बात होती है। वह केवल मनोरंजन के लिए लिखे गए नहीं होते हैं। हमारे समाज में बेमेल विवाह की रवायत रही है। अक्सर कम उम्र की लड़कियाँ अमीर अधेड़ पुरुष से ब्याही जाती है। कई बार लड़की की सहमति भी नहीं ली जाती है। फिर इस लेनदेन के बाद जो जोड़ी बनती है उसमें प्रेम कम सौदे का भाव अधिक होता है। ऐसे विवाह से किस तरह से अनेक ज़िंदगियाँ बर्बाद हो सकती है यह भी इधर दिखता है। वहीं कई बार स्त्रियाँ भी पैसों के खातिर विवाह कर लेती हैं। वहीं कई स्त्रियाँ दो नाव की सवारी कर रही होती हैं। ऐसे में स्त्रियों का यह कृत्य जीवन पर असर डाल देता है यह भी दिखता है। उपन्यास में दो किरदार हैं और दोनों ही पीड़क और पीड़ित हैं। अक्सर ऐसे मामले आस पास देखने को मिल जाते हैं लेकिन फिर भी समाज इनसे सीख नहीं लेता है। ऐसे में कैसे कई ज़िंदगियाँ बर्बाद हो जाती हैं यह इधर दिखता है। </p><p>उपन्यास के विषय में बात करूँ तो इसमें जासूस जरूर है लेकिन जासूसी काफी कम दिखती है। आखिर में भी नायक को एक बात पता चलती है और वह अपने साथियों के साथ एक जगह पर पहुँचता है। फिर कुछ रोमांचक घटनाओं के बाद प्रेत के पीछे के व्यक्ति की पहचान उजागर होती है। उपन्यास का यह हिस्सा रोचक बन पड़ा है। </p><p>उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो बैरिस्टर के प्रेत की हकीकत जिस तरह से उजागर होती है उसमें जासूसी का उतना लेना देना नहीं होता है। अगर नायक जासूसी करके प्रेतों का रहस्य उजागर करता तो शायद कथानक और अधिक रोमांचक बन सकता था।</p><div>कहानी के अंत में एक नवीन किरदार भी आता है जो लेखक द्वारा कहानी को आगे बढ़ाने के लिए गढ़ा गया लगता है। अगर इस किरदार को कहानी के लगभग अंत में लाने के अलावा शुरुआत या बीच में भी इक्का दुक्का बार ले आया जाता तो यह रहस्य के तत्व को और बढ़ा सकता था।</div><div><br /></div><div>उपन्यास का अंत दुखांत होता है। एक तरह से लेखक ने यह दर्शाया है कि ऐसे किरदारों के साथ नियति भी क्रूर हो जाती है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि उस अंत के बजाय दोनों किरदारों द्वारा बेहतर जीवन जीने की राह का चुनाव होते दर्शाया जाता तो शायद बेहतर होता। लेकिन यह मेरी व्यक्तिगत सोच ही है। </div><p>किरदारों की बात की जाए तो यहाँ जासूस के रूप में कमल है। कमल एक प्राइवेट जासूस है जो अपनी सेक्रेटरी शीला के साथ मामले सुलझाता है। कमल और शीला के बीच का समीकरण रोचक है। उनकी बीच की नोक झोंक मनोरंजक है। कमल और शीला को लेकर अगर जनप्रिय जी ने और भी उपन्यास लिखे होंगे तो उन्हें भी मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा। </p><p>उपन्यास में नवाब बेअसर नाम का एक किरदार है जो कि एक धनाढ्य परिवार से है और शौकिया जासूस भी है। यह किरदार भी रोचक बन पड़ा है और उपन्यास में हास्य पैदा करने में सबसे आगे रहता है। नवाब बेअसर जितने दृश्यों में आयें हैं उनमें मज़ा आया है। </p><p>उपन्यास में राजेश भी मौजूद हैं। राजेश जिस तरह की समझदारी और शांत स्वभाव के लिए जाने जाते हैं वह इधर दृष्टिगोचर होती है। बस एक बार उनका शांत स्वभाव डगमगाता है और वो गुस्से में आते दिखते हैं। यह आप पढ़कर जाने तो मज़ा आएगा। </p><p>उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप हैं। </p><p>उपन्यास की भाषा की बात की जाए तो भाषा सहज सरल है। नवाब बेअसर के वजह से थोड़ी मज़ाकिया शायरी भी उपन्यास में पढ़ने को मिलती है जो कि मनोरंजन करती है। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि यह उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। हाँ, रहस्य और जासूसी के तत्व थोड़ा और अधिक मजबूत होते तो बेहतर होता लेकिन उसकी भरपाई लेखक रोचक किरदारों से कर देते है जो कि उपन्यास को पाठक के लिए मनोरंजक बनाकर रखते हैं। अपने रोचक किरदारों के लिए यह उपन्यास एक बार पढ़कर आप देख सकते हैं। </p><p><br /></p><p><b>उपन्यास का अंश जो पसंद आया</b></p><p></p><blockquote><p>मानव मन की तुलना अगर हम दुर्गम चट्टान से करें तो अनुपयुक्त न् होगा। वज्र की तरह कठोर होता है मानव मन। वज्र की तरह कठोर मन का नियंत्रण होता है मानव स्मृति पर और मानव स्मृति प्रियजन की मृत्यु तक को भुला देती है। (पृष्ठ 43-44)</p><p></p></blockquote><p><b><br /></b></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3PkzbWH" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><h4 style="text-align: left;"><br /></h4><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2024/02/book-review-bloody-guest-santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक के उपन्यास 'ब्लडी गेस्ट' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/04/kaan-ka-bunda-yogesh-mittal.html" target="_blank">योगेश मित्तल की उपन्यासिका 'कान का बुंदा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/12/review-of-devta-ka-haar-by-ved-prakash-kamboj.html" target="_blank">वेद प्रकाश काम्बोज का उपन्यास 'देवता का हार' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/09/book-review-kabristan-ka-shadyantra-janpriya-lekhak-om-prakash-sharma.html" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास 'कब्रिस्तान का षड्यन्त्र' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/06/book-review-aatank-ke-saaye-anil-mohan.html" target="_blank">अनिल मोहन के उपन्यास 'आंतक के साये' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-76588721022657389832024-03-08T16:34:00.003+05:302024-03-08T16:34:55.432+05:30किताबी बातें #1: उपन्यास 'अभिशप्त रूपकुंड' के लेखक देव प्रसाद के साथ उनके उपन्यास पर चर्चा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBCR4fb7BkpEggXptWxxaXoy4M1dqRZJXgvEYs1xYH-YtzCErRrLUKFQAg1oCnnB2c7M1xHjcm8CnRQesOqGyApcifQFmkgRqhxXR9f5ECYs0bu6RCJLG3FS9Mqc-S7k1CnaZ36vB11gBTITwtimOttPTJI1p1Ox2ycrI2snaKS6fHuVbtSME74GTOaQY/s940/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="किताबी बातें #1: उपन्यास अभिशप्त रूपकुंड के लेखक देव प्रसाद के साथ उनके उपन्यास पर चर्चा" border="0" data-original-height="788" data-original-width="940" height="335" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBCR4fb7BkpEggXptWxxaXoy4M1dqRZJXgvEYs1xYH-YtzCErRrLUKFQAg1oCnnB2c7M1xHjcm8CnRQesOqGyApcifQFmkgRqhxXR9f5ECYs0bu6RCJLG3FS9Mqc-S7k1CnaZ36vB11gBTITwtimOttPTJI1p1Ox2ycrI2snaKS6fHuVbtSME74GTOaQY/w400-h335/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82.jpg" title="किताबी बातें #1: उपन्यास अभिशप्त रूपकुंड के लेखक देव प्रसाद के साथ उनके उपन्यास पर चर्चा" width="400" /></a></div><br /><p><br /></p><p> वर्ष 2024 में एक बुक जर्नल विडिओ कंटेन्ट की तरफ भी अग्रसर हो रहा है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए हमने लेखक देवेन्द्र प्रसाद के साथ दिनांक <b>3 मार्च 2024</b> को एक विडिओ चर्चा की थी। यह एक लाइव चर्चा थी जिसका प्रसारण फेसबुक पृष्ठ पर भी हुआ था। </p><p>अभिशप्त रूप कुंड की बात की जाए तो यह उपन्यास फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह लेखक देवेन्द्र प्रसाद की तेरहवीं पुस्तक है और छठवी ऐसी पुस्तक है जो कि फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक पर बातचीत करते हुए हमने देवेन्द्र से पुस्तक के विषय, पुस्तक के किरदारों और उनकी लेखन प्रक्रिया पर बातचीत की थी। बातचीत को हम यहीं पर एम्बेड कर रहे हैं ताकि आप आसानी से इस बातचीत को सुन सकें। </p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen="" class="BLOG_video_class" height="266" src="https://www.youtube.com/embed/cyaeyyDwxdg" width="320" youtube-src-id="cyaeyyDwxdg"></iframe></div><br /><p><br /></p><p>यह हमारा पहला प्रयास है तो पता है गलतियाँ काफी हुई होंगी। आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी ताकि और बेहतर हो सकें। </p><p><br /></p><p><b>अभिशप्त रूपकुंड</b> अमेज़न पर उपलब्ध है। आप निम्न लिंक पर जाकर उसे पढ़ सकते हैं:</p><p><a href="https://amzn.to/3ItvTwt" rel="nofollow" target="_blank">अभिशप्त रूपकुंड - अमेज़न</a></p><p><br /></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-40288446086558497882024-02-29T19:32:00.004+05:302024-03-01T10:42:26.563+05:30हिम्मत सवार - अमिताभ शंकर राय चौधरी | चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट<p><b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 112 | <b>प्रकाशक:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/CBT" rel="nofollow" target="_blank">चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट </a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhR872REhn1q3-MH3SqYJFiV-3vpZKzbcwbQGp5e4gHmVYjJGqajo3BEuOtqNSRp6tmS4iiRXpHIrRXLrq8krOKbmeZiM6Z5TUd9LKaMPSp7EiS_TWXc4Uq0o7C_QpOro6Zup8Ws0bgGk2G_0RHH1zNjRA5x9m6g2VaZu8QwSeAWZkBzZJ01YWHuVOkNf0/s600/himmatsawar.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="394" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhR872REhn1q3-MH3SqYJFiV-3vpZKzbcwbQGp5e4gHmVYjJGqajo3BEuOtqNSRp6tmS4iiRXpHIrRXLrq8krOKbmeZiM6Z5TUd9LKaMPSp7EiS_TWXc4Uq0o7C_QpOro6Zup8Ws0bgGk2G_0RHH1zNjRA5x9m6g2VaZu8QwSeAWZkBzZJ01YWHuVOkNf0/s320/himmatsawar.jpg" width="210" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>हरजोत के पिता जोगिंदर केदारनाथ में श्रद्धालुओं को अपने घोड़े के माध्यम से यात्रा कराने का कार्य करते थे। उस दिन भी उन्हें किसी को यात्रा ले जाना था जब उन्हें अचानक उनकी बेटी के ससुराल जाना पड़ा।</p><p>अब उन श्रद्धालुओं को यात्रा पर ले जाने की जिम्मेदारी हरजोत की थी।</p><p>हरजोत यात्रा पर श्रद्धालुओं को लेकर अपने घोड़े सुलतान के साथ निकला था। वह अपना काम करके लौटकर या रहा था कि फिर जमीन थरथराने लगी और फिर उसी दिन केदारनाथ का वह भीषण हादसा हुआ जिसने सबकी साँस अटका दी। वहाँ अब बाड़ आ चुकी थी और हरजोत अपने घोड़े सुलतान के साथ कहीं खो गया था।</p><p>आखिर हरजोत और सुलतान के साथ इस बाढ़ में क्या हुआ?</p><p>हरजोत कहाँ गायब था?</p><p>गायब रहने के दौरान उसके साथ क्या क्या हुआ?</p><p>क्या वो वापस अपने घर लौट पाया?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मुख्य किरदार </h4><div style="text-align: left;">हरजोत - एक बालक <br />फूलदेई - हरजोत की माता <br />जोगिंदर - हरजोत के पिता <br />लखेड़ा - हरजोत के दादाजी <br />संतों - हरजोत की दादी <br />गौंण - हरजोत का छोटा भाई <br />देवली - हरजोत की बहन <br />मोती - एक झबरा कुत्ता <br />इन्द्रनाथ - एक तीर्थयात्री <br />अमृत - इंद्रनाथ का पुत्र <br />नाथु, पान्याल, सेमवाल, बस्तीलाल - एक व्यक्ति जो कि घोड़े से तीर्थयात्रियों को दर्शन करवाते थे </div><div style="text-align: left;">चक्रधारी - एक फौजी</div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार</h4><p>अमिताभ शंकर चौधरी का बाल उपन्यास <b>हिम्मत सवार</b> सन 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी की पृष्ठ भूमि पर लिखा गया है। उपन्यास <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/CBT" rel="nofollow" target="_blank">चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट</a> द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह बात भी उल्लेख करने योग्य है कि <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/CBT" target="_blank">चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट</a> द्वारा आयोजित बाल साहित्य की प्रतियोगिता में हिम्मत सवार को द्वितीय पुरुस्कार मिला था। </p><p>उपन्यास की बात की जाए तो उपन्यास के केंद्र में हरजोत नाम का एक बालक है। हरजोत के पिता श्रद्धालुओं को घोड़े पर केदारनाथ तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। जब वह किसी कारणवश यह कार्य नहीं कर पते हैं तो हरजोत इस कार्य में उनकी मदद करता है। यह काम वह अपने पालतू घोड़े सुलतान की मदद से करता है जिसका वो परिवार के सदस्य की तरह ख्याल रखता है। दुर्घटना वाले दिन भी हरजोत सुल्तान की मदद से श्रद्धालुओं को छोड़कर आ रहा होता है कि वह हृदय विदारक घटना हो जाती है जिसने इतने श्रद्धालुओ और स्थानीय लोगों को हताहत किया था। मंदाकनी नदी का पानी उफान पर चला जाता है और हरजोत अपने घोड़े सुलतान के साथ उफनते पानी की लहरों में खो जाता है। हरजोत के साथ इसके बाद क्या होता है? वह और सुलतान किन किन मुसीबतो से जूझकर बच निकलते हैं और इस दौरान उन्हें क्या क्या अनुभव होते हैं? यह वह सवाल हैं जिसका जवाब यह उपन्यास देता है। </p><p>उपन्यास में हरजोत के साथ साथ एक बालक अमृत भी है। अमृत अपने परिवार के साथ केदारनाथ आया था और हरजोत के घोड़े में बैठकर केदारनाथ गया था। अमृत और उसका परिवार भी इस त्रासदी के दौरान फँस जाता है और किस तरह वह अपनी परेशानी से उभरते हैं। वहीं अमृत और हरजोत की जो दोस्ती थोड़े ही वक्त में हो गई थी उसकी लाज वो कैसे रखता है। यह भी उपन्यास पढ़कर पाठक जान पाते हैं। </p><p>सरल सहज भाषा में लिखा गया यह उपन्यास हरजोत और अमृत की कहानी तो कहता ही है साथ ही इस कहानी की मदद से पर्यावरण पर पड़ते इंसानी दखल के दुष्प्रभाव, पहाड़ के जीवन और उनकी परेशानियाँ, पहाड़ी लोगों की संस्कृति, केदारनाथ और उसके आस पास के दर्शनीय स्थलों की कहानियाँ भी दर्शाता है। चक्रधारी के माध्यम से फौजी और उनके जीवन के कई पहलुओं को भी यह उपन्यास दर्शाता है। जहाँ एक तरफ जब मनुष्य पर मुसीबत आती है तो कई लोग इकट्ठा हो जाते हैं लेकिन कई लोग किस तरह से भेद भाव करने लगते हैं यह भी इधर दिखता है। हरजोत के परिवार और अमृत के परिवार के बीच के हँसी मज़ाक के दृश्य भी बड़े रोचक बन पड़े हैं। हरजोत के छोटे भाई गौंण और अमृत की दादी की बातें चेहरे पर मुस्कराहट ले आती हैं।</p><p>उपन्यास रोचक शैली में लिखा गया है। हरजोत और अमृत किस तरह से अपनी अपनी मुसीबतों से निकलेंगे यह देखने के लिए आप पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। चूँकि मैं खुद गढ़वाल सेआता हूँ तो केदारनाथ की संकृति हमारी संस्कृति ही है। ऐसे में लेखक द्वारा उनका प्रयोग करते देखना अच्छा लगा। इसने मुझे कथानक के साथ और अधिक जोड़ा। उपन्यास में एक गुलदार वाला प्रसंग है वो अत्यधिक रोमांचक बन पड़ा है। </p><p>उपन्यास में ऐसी कोई कमी मुझे विशेष तौर पर नहीं दिखी। हाँ, आखिर में जब हरजोत को बचा लिया जाता है तो यह भी दर्शाते कि उसके घावों की मरम्पट्टी की गई तो सही रहता। गुलदार के नाखून से लगे घाव इतनी आसानी से नजरंदाज नहीं हो पाते हैं। पर इधर उनकी बात नहीं होती है। </p><p>ऊपर लिखी छोटी सी बात छोड़ दी जाए तो मुझे यह पठनीय उपन्यास लगा। चूँकि असल त्रासदी को आधार बनाकर लिखा गया है तो लेखक ने कल्पना के घोड़ों को थोड़ा थाम कर रखा है। पर यह ठीक भी है। उपन्यास पढ़कर देख सकते हैं। बाल पाठकों को यह पसंद आना चाहिए। </p><p><b>नोट:</b> मैंने यह उपन्यास नई दिल्ली पुस्तक मेला 2023 में खरीदा था। उस मेले के संस्मरण आप <a href="https://www.duibaat.com/2023/04/ndwbf-2023-meeting-people-buying-books.html" target="_blank">यहाँ क्लिक</a> करके पढ़ सकते हैं। </p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/book-review-pakya-aur-uska-gang-gangadhar-gadgil.html" target="_blank">गंगाधर गाडगील के बाल उपन्यास 'पाक्या और उसकी गैंग' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-golden-five-ke-karnamein.html" target="_blank">नेहा अरोड़ा के रचना संग्रह 'गोल्डन फाइव के कारनामे' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/09/book-review-mitti-mere-desh-ki-sanjeev-jaiswal-sanjay.html" target="_blank">संजय जायसवाल संजय के बाल उपन्यास 'मिट्टी मेरे देश की' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/08/book-review-of-surekha-panandiker-s-talash.html" target="_blank">सुरेखा पाणंदीकर के बाल उपन्यास 'तलाश' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/08/book-review-fatikchand-hindi-satyajit-ray.html" target="_blank">सत्यजित राय के बाल उपन्यास 'फटिकचंद' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-14907891480866597002024-02-28T19:48:00.002+05:302024-02-28T19:53:26.500+05:30किताब परिचय: अभिशप्त रूपकुंड - देवेन्द्र प्रसाद<p> <b>अभिशप्त रूपकुण्ड </b>लेखक<b> देवेन्द्र प्रसाद </b>का नवीनतम उपन्यास है। उपन्यास <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/fdp" rel="nofollow" target="_blank">फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन</a> द्वारा प्रकाशित किया गया है। </p><p><b><br /></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs-NRR2WbFjcs2W5lHPP7GGAwlzDdYjoYvOG5pPY2eOdDpxEO0OezbsgH0tN3PkJbyVNquQu8UnEUopTH0Xgp5W90U5KhcHvd4FCxM3YlY_Lw6LXf9PuBZn4Q4nWfpmOfRl6OzL1TCoSGIyEdu8_2GcPic1Lg7TORZA-Nzjd31IciqKdHgix4IV_cPvSs/s1422/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="किताब परिचय: अभिशप्त रूपकुण्ड - देवेन्द्र प्रसाद" border="0" data-original-height="800" data-original-width="1422" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs-NRR2WbFjcs2W5lHPP7GGAwlzDdYjoYvOG5pPY2eOdDpxEO0OezbsgH0tN3PkJbyVNquQu8UnEUopTH0Xgp5W90U5KhcHvd4FCxM3YlY_Lw6LXf9PuBZn4Q4nWfpmOfRl6OzL1TCoSGIyEdu8_2GcPic1Lg7TORZA-Nzjd31IciqKdHgix4IV_cPvSs/w400-h225/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1.jpg" title="किताब परिचय: अभिशप्त रूपकुण्ड - देवेन्द्र प्रसाद" width="400" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">किताब के विषय में</h4><p>क्या मौत जिंदगी का अंत है? </p><p>क्या वास्तव में मृत्यु के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है? यदि नहीं तो फिर इस रुपकुण्ड में अटल क्या करने आया था? </p><p>रुपकुण्ड का अर्थ यहाँ किसी रूपवती या बेहद ही मनोरमा सी दिखने वाली स्त्री से नहीं हैं बल्कि हड्डियों से लबरेज झील से हैं, जहां मुर्दे वास करते हैं और कंकालों से पटी पड़ी इस झील को बनाती हैं, रूपकुण्ड झील। </p><p>आखिर यह सारे मुर्दे हर अमावस की रात कैसे फिर से जागृत हो जाते थे? रूपकुण्ड झील में तैरते नरकंकालों का क्या रहस्य है? </p><p>आखिर किस उद्देश्य के लिए पिशाचिनी ने इन नरकंकालों को 200 वर्षों से बंधक बनाया हुआ था? </p><p>आखिर ऐसा कौन सा राज था जिसे जानने अटल इस मुर्दों के झील तक आने को विवश होना पड़ा था?</p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3uHD7dg" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a> </p><p><br /></p><h3 style="text-align: center;">पुस्तक अंश </h3><p style="text-align: left;"><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjU06vzSpvqy7ZUnsWkIjo6x3Se7tF9k51rp7cval1ig29f40HqtQ2WYDQwy3UXt49z_4uZtktcGaDXW_B9a2e5T4DJ7CFx8CtTsdjpFgp-KVXb9hquRZhz5_Uv-VUhg3-dPzf11DIdBKLk6-Qwb7Aueg1Tfeb4so48QFk1UmGVuOsMYMLV0F0TgBpUl6k/s466/61i9ksL8VaL._SY466_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="466" data-original-width="303" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjU06vzSpvqy7ZUnsWkIjo6x3Se7tF9k51rp7cval1ig29f40HqtQ2WYDQwy3UXt49z_4uZtktcGaDXW_B9a2e5T4DJ7CFx8CtTsdjpFgp-KVXb9hquRZhz5_Uv-VUhg3-dPzf11DIdBKLk6-Qwb7Aueg1Tfeb4so48QFk1UmGVuOsMYMLV0F0TgBpUl6k/s320/61i9ksL8VaL._SY466_.jpg" width="208" /></a></div><br /><p style="text-align: left;"><br /></p><p>चारों दिशाओं में तमस का एकछत्र साम्राज्य व्याप्त था। दिगंत तक सन्नाटा और शून्यता। चारों ओर फैली एक अबूझ सी खिन्नता। साँय-साँय करते वातावरण में यमुना नदी की धारा का गम्भीर गर्जन भर सुनाई दे रहा था। मेघों का झुण्ड एकत्रित होने से आकाश का रंग पूर्णतया श्यामल हो गया था। प्रचण्ड वायु के वेग से नदी के किनारे खड़े पीपल और बरगद के पेड़ किसी शैतान की तरह नृत्य कर रहे थे। वायु के अति उग्र होने की वजह से शमशान भूमि से घर्षण होने के पश्चात हाड़ कँपा देने वाली भयावह ध्वनि उत्पन्न हो रही थी। </p><p>उस घने अँधियारे के बीच सहसा 'राम नाम सत्य है... राम नाम सत्य है..!' की ध्वनि ने दहशत भरने का कार्य किया।</p><p>'राम नाम सत्य है... राम नाम सत्य है..!'</p><p>आवाज धीरे-धीरे नजदीक आती जा रही थी। तभी आकाश के वक्ष चीरती हुई विद्युत दमकी और हृदयविदारक दृश्य दृष्टिगोचर हुआ। पगडण्डी पर सहसा आठ-दस व्यक्तियों का एक समूह आगे बढ़ते हुए जा रहा था। वे बाँस से बनी अर्थी पर किसी मृत व्यक्ति का शव लिए हुए थे। उनमें से एक व्यक्ति हाथ में लालटेन लिए हुए आगे-आगे चल रहा था। वह पीली रोशनी रह-रह कर उस व्यक्ति के गोरे चेहरे पर कांप उठती। वातावरण में रात का गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। चारों ओर साँय-साँय कर रहा था। कभी-कभी उस नीरवता को भंग करती हुई जंगली झींगरों की झीं-झीं की आवाज से रौंगटे खड़े हो रहे थे। </p><p>यमुना नदी के किनारे मौजूद शमशान भूमि में अर्थी उतार कर नीचे रख दी गयी। शव के समीप लालटेन रखने के पश्चात उस व्यक्ति ने आवाज दी, “राधेश्याम… ओ राधेश्याम!”</p><p>“जी दीनू काका।”, राधेश्याम ने प्रति उत्तर में कहा।</p><p>“जल्दी चिता की तैयारी करो। लगता है बहुत भयंकर तूफान आने वाला है। एक बार बारिश आ गई तो फिर नहीं थमने वाली।”</p><p>तभी पीपल की किसी शाख पर बैठा उल्लू रोने लगा। </p><p>“अरे इस मनहूस को भी अभी ही रोना था क्या?” राधेश्याम ने पीपल के वृक्ष की तरफ दृष्टि डालते हुए कहा। </p><p>“उल्लू का रोना अपशगुन होता है। मुझे संदेह है कि हम पर कोई संकट ना आन पड़े।” दीनू काका ने अपने संशय को उजागर करते हुए बोले।</p><p>यह सुन सभी जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगे। कुछ देर बाद नदी के किनारे चिता तैयार हो चुकी थी और उस पर शव को रख दिया गया था। उसके बाद आग लगी हुई लकड़ी को लिए हुए राधेश्याम आगे बढ़ा और उसने उसे चिता के भीतर रख दिया। फिर काले सफेद धुएँ का एक गुबार उठा और देखते-ही-देखते चिता धधक उठी। </p><p>शव-यात्रा में आये लोग इत्मीनान से जाकर पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गये। उनमें से कुछ तो बीड़ी सुलगा कर पीने लगे और बाकी लोग आपस में गप-शप करने लगे। </p><p>सहसा सुनसान शमशान के निवासी सियारों का स्वर गूँजा। आवाज यूँ हुई थी कि सभी की जबान पर ताले से पड़ गए। हवा का वेग अब तीव्र हो उठा था। </p><p>तभी ना जाने कहाँ से चमगादड़ों का एक झुण्ड वहाँ आ पहुँचा और चिता के इर्द गिर्द गोल-गोल चक्कर काटने लगा। फिर एक और आश्चर्य सबकी आँखों ने देखा। अचानक से ही चमगादड़ों के उस झुण्ड में से चमगादड़ एक एक करके कर्कश चीत्कार करते हुए अग्नि में गिरकर भस्म होने लगे। जलते मांस की अजीब सी दुर्गन्ध वहाँ बैठे लोगों के नथुनों में समाने लगी। यह दृश्य देखकर वहाँ मौजूद सभी लोगों के रोंगटे भरभराकर खड़े हो गए। </p><p>तभी मेघ गड़गड़ाए, आकाश के वक्ष को जलाती हुई विद्युत एक बार फिर से चमकी और उसी के साथ भयंकर रूप से बारिश होने लगी। </p><p>जब बरसात बन्द हुई और राधेश्याम चिता के पास आया तो उसने पाया कि चिता तब तक बुझ चुकी थी। उसकी नजरें चिता पर पड़ी तो उसकी आँखें हैरत से बड़ी होती चली गई। उसे अपनी रीढ़ की हड्डी में झुरझरी सी होती महसूस हुई। </p><p>उसने अगले पल अपनी समस्त ऊर्जा को अपने अंदर समेटा और दौड़ता हुआ दीनू काका के पास आकर उनसे बोला, “क... काका वहाँ तो कोई शव नहीं है।”</p><p>“क्या बकवास कर रहा है? तूने फिर कहीं भाँग तो नहीं चढ़ा ली।” दीनू काका ने उसे डाँटते हुए कहा और चिता की तरफ बढ़ चले। </p><p>दीनू काका भी उस स्थान पर पहुँचकर जड़वत हो गए और उनके कण्ठ से स्वर निकला, “आखिर शव गया कहाँ? इतनी जल्दी भला एक मुर्दा कहाँ जा सकता है?”</p><p>उस समूह के सभी लोग अब उस बुझी चिता को घेरे खड़े थे। सभी लोगों का मन दहशत से भर उठा था। वे भयमिश्रित दृष्टि से एक-दूसरे की ओर देखने लगे। वह अजीब सी डरावनी घटना थी। </p><p>अचानक सियारों का रुदन फिर से शुरू हो गया। राधेश्याम के लिए तो यह अति हो चुकी थी। वह भय से काँपने लगा था। उसका रोम-रोम कांप उठा था। </p><p>उसके हाथ से छूट कर लालटेन धप से जमीन पर गिर पड़ी और बुझ गयी। अब वहाँ घुप अँधेरा था। हाथी को हाथ नहीं सुझाई देता था। सियारों का रुदन, नदी की आवाज और अँधेरा सब कुछ किसी के भी होश उड़ाने के लिए काफी थे। पहले से डरे हुए राधेश्याम के लिए अब चीजें बर्दाश्त से बाहर थीं। </p><p>“भागो... भागो वह दिव्या अब किसी को नहीं छोड़ेगी। वह हम सबको मार डालेगी।” भर्राये स्वर में यह कहते राधेश्याम उस शमशान से दौड़ पड़ा। उसके पीछे उसकी टोली भी सिर पर पैर रख भाग खड़ी हुई। </p><p>इस घटना को सभी ने प्रेत-लीला समझ लिया था और जो जिस हाल में था उसी हाल में भागने को विवश था। </p><p>“दिव्या जिंदा हो गई है... वो अब किसी को नहीं छोड़ने वाली।” राधेश्याम पागलों की तरह चीखता-चिल्लाता हुआ अपने गाँव की दिशा में भागे जा रहा था तो वहीं उसके अन्य साथी भी भूत-भूत चिल्लाते हुए उसके पीछे भाग निकले।</p><p>इधर उस शमशान में कुछ ही क्षणों में एक अद्भुत आश्चर्य सामने आया। शमशान के कोने में स्थित एक मंदिर के समीप से एक साये का आगमन हुआ। उस साये के कंधे पर किसी महिला का शव था। </p><p>शनै: शनै: अब वह साया उस चिता के समीप जा पहुँचा। बारिश और तूफान का अब कोई नामों निशान नहीं था। चाँद ने अब बादल के ओट से झाँकने का उपक्रम शुरू कर दिया था। </p><p>वह साया जैसे ही प्रकाश के संपर्क में आया तो यह ज्ञात हुआ की वह कोई तांत्रिक था। उस तांत्रिक के सिर पर उलझी हुई मोटी जटाएँ थीं और उसके नेत्र अंगारों के समान दहक रहे थे। उस तांत्रिक का नाम तृषाला था। </p><p>तांत्रिक ने चिता के ऊपर उस महिला को लिटाया। यह महिला कोई ओर नहीं बल्कि वही दिव्या सेमवाल थी जो कुछ समय पूर्व अदृश्य हो गई थी। जिसका सीधा अर्थ यह था की इस महिला को तांत्रिक ने किसी विशेष प्रयोजन हेतु वहाँ से अदृश्य किया था। यह चमत्कार उसने कैसे किया यह उसके अतिरिक्त कोई और नहीं जानता था। </p><p>इस शमशान भूमि में मृतक को दाह के लिए लाया जाता था और उसके राख में परिवर्तित होते ही वह राख इस यमुना नदी में प्रवाहित कर दी जाती थी।</p><p>तांत्रिक दिव्या के शव के समीप रुका, उसने मंदिर की तरफ देखते हुए अपने दोनों हथेली को जोड़ने का कार्य किया। उसके पश्चात सम्मानपूर्वक साष्टांग प्रणाम किया, फिर उसके मुख से अस्पष्ट-सी एक ध्वनि निकलने लगी। सम्भवतः वह किसी मन्त्र का जाप कर रहा था। </p><p>तांत्रिक ने लपक कर चादर को अपने काँपते हाथों से हटा दिया। वह मौन कुछ क्षणों तक शव के मुख को निहारता रहा। उसके जिस्म में एक हल्की-सी सिहरन दौड़ गयी। उस महिला का शव बिल्कुल नग्न था। उसके चेहरे पर शान्ति जरूर थी, मगर वह मरी हुई थी। उसके चेहरे पर सफेदी थी जो अक्सर मुर्दे के चेहरे पर दिखलायी पड़ती है। </p><p>तांत्रिक उस महिला शव के ऊपर आसन लगा कर बैठ गया। अब उसने एकाग्रचित मंत्र का जाप करना आरम्भ कर दिया था। उस शव की आँखें फैली हुयी थीं, मुँह भी थोड़ा सा खुला हुआ था। शरीर एकदम नग्न था, जैसा कि कोई साधक या तांत्रिक किसी तंत्र क्रिया करते वक्त अंजाम देता है। </p><p>शमशान में तांत्रिक के मंत्रों की आवाज के अतिरिक्त एक और आवाज आ रही थी। शमशान में मौजूद पीपल के पेड़ से यह आवाज निकल रही थी। ऐसे जैसे पेड़ की डाल पर कोई कुछ रगड़ रहा हो। तांत्रिक को इस आवाज से कोई फर्क पड़ा हो ऐसा लगता नहीं था। जैसे जैसे तांत्रिक का मंत्रोंचार तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था वैसे ही वह घिसने की आवाज भी तेज होती जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि कोई था जो कि जुनून के हवाले होकर यह घिसने का कार्य कर रहो। </p><p>सहसा घिसने की आवाज पर विराम लगा और उल्लू के एक कर्कश स्वर ने शमशान को गुंजायमान कर दिया। यह वह उल्लू ही था जो कि अपनी चोंच को पीपल की डाल पर रगड़ता जा रहा था। शायद यह एक संकेत था जिसे वह तांत्रिक भी समझ चुका था। तांत्रिक ने उसका संकेत पाकर तुरन्त घी का दीप जलाया और उसे शव के सिरहाने रख दिया। फिर मुर्गे का मांस, शराब की भरी बोतल और खोपड़ी भी सामने रख दी। </p><p>तांत्रिक ने थोड़ा-सा मांस खाया। फिर खोपड़ी में उड़ेल कर थोड़ी-सी शराब पी। इसके बाद शेष मांस और शराब शव के खुले मुँह में डाल दिया। दूसरे ही क्षण अपने स्थान पर शव जोर-जोर से हिलने लगा।</p><p>ऐसा लगा मानों शव अब किसी भी क्षण उठ कर बैठ जायेगा। तभी शायद उस तांत्रिक संन्यासी की छाती पर एक प्रहार हुआ और वह छाती थामे धप्प ने नीचे गिर पड़ा। तांत्रिक अब अपने हाथ से अपनी छाती पकड़े जमीन पर मौजूद था।</p><p>शव का हिलना अब बंद हो चुका था। अब शमशान में यमुना के जल के प्रवाह के सिवा कोई और आवाज नहीं आ रही थी। तांत्रिक उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी छाती पर लगा वह प्रहार इतना जोर का था कि उसकी उठने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। </p><p>सहसा वह शव चिता से उठा और चिता से नीचे कूद पड़ा मानों जैसे वह भी जीवित प्राणी हो। इस अंधेरे में तांत्रिक के निकट उस शव की आकृति बहुत भयक लग रही थी। अनुपात से कहीं बड़ा सिर, बड़ी-बड़ी गोल आँखे, बाहर की ओर निकले विशाल दाँत, काला भुजंग शरीर साक्षात यमदूत सी लग रही थी। तभी अंधेरे और सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज उठी।</p><p>“हा... हा... हा...!”</p><p>उस शव के अंदर से कर्कश हँसी निकल पड़ी। वह स्वर इतनी कर्कश थी की तांत्रिक के कानों में चुभने लगी। सुप्त पड़े सियारों का पुनः रुदन शुरू हो गया था और शाख पर बैठे उल्लू ने भी उनके साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मानों जैसे किसी बड़ी अनहोनी के होने की दस्तक हो।</p><p><br /></p><p style="text-align: center;">*****</p><p style="text-align: left;"><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3uHD7dg" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a> </p><p style="text-align: left;"><br /></p><h4 style="text-align: left;"></h4><h4 style="font-weight: 400; text-align: left;"><b><u>लेखक परिचय:</u></b></h4><p style="font-weight: 400; text-align: left;"><br /></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiH9u_o3mNTB66WNkLGzFutyCBMsrexGKjWz-Zni1KzMIR3rQDCLIbF9ZNjUjkyxx8Os5y11PZgnHTAl4MlVf4stFobIHjZAAfnyux8l-muoD1i17EdLwNwJvWxPNDKsjJ_Z9mvjROMmSQ/s400/devbabu1.jpeg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="किताब परिचय: लौट आया नरपिशाच | देवेन्द्र प्रसाद" border="0" data-original-height="400" data-original-width="266" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiH9u_o3mNTB66WNkLGzFutyCBMsrexGKjWz-Zni1KzMIR3rQDCLIbF9ZNjUjkyxx8Os5y11PZgnHTAl4MlVf4stFobIHjZAAfnyux8l-muoD1i17EdLwNwJvWxPNDKsjJ_Z9mvjROMmSQ/w133-h200/devbabu1.jpeg" title="किताब परिचय: लौट आया नरपिशाच | देवेन्द्र प्रसाद" width="133" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">देवेन्द्र प्रसाद</td></tr></tbody></table><p></p><br style="font-weight: 400;" /><div style="font-weight: 400; text-align: left;"><br /></div><div style="font-weight: 400; text-align: left;">देवेन्द्र प्रसाद एक बहुमुखी प्रतिभा वाले इंसान हैं।</div><div style="font-weight: 400; text-align: left;"><br /></div><div style="font-weight: 400; text-align: left;">इनकी अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रतिलिपि और कहानियाँ नामक प्लेटफार्म में ये असंख्य कहानियाँ प्रकाशित कर चुके हैं। वहीं कुकू और पॉकेट एफ एम जैसे एप्लीकेशन में इनकी कहानियों के ऑडियो संस्करण आ चुके हैं।</div><div style="font-weight: 400; text-align: left;"><br /></div><div style="font-weight: 400; text-align: left;"><b><u>सम्पर्क:</u></b></div><div style="font-weight: 400; text-align: left;"><a href="http://facebook.com/dev.prasad.50" rel="nofollow" target="_blank">फेसबुक</a> | <a href="https://www.instagram.com/author_devendraprasad/" rel="nofollow" target="_blank">इन्स्टाग्राम </a>| <a href="https://hindi.pratilipi.com/user/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6-3ssk94n7hg" rel="nofollow" target="_blank">प्रतिलिपि </a>| <a href="https://www.kahaniya.com/u/5f2688055b5bf4000af5c03e" rel="nofollow" target="_blank">कहानियाँ </a>| <a href="https://kukufm.com/user/798799/Devendra%20Prasad" rel="nofollow" target="_blank">कुकू एफ एम</a> | <a href="https://www.pocketfm.in/show/0c27d8cbf02ad4ccaf496f2b4551c200ac52e59a" rel="nofollow" target="_blank">पॉकेट एफ एम</a> | <b>ई-मेल:</b> authordevprasad@gmail.com</div><div><br /></div><p><b><u>नोट:</u></b> <span><b><span>'किताब परिचय'</span></b> <b><span>एक बुक जर्नल</span></b> की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। </span></p><p><span>अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:<br /></span></p><p><span><b>contactekbookjournal@gmail.com</b></span></p><p style="text-align: center;"><br /></p>एक बुक जर्नलhttp://www.blogger.com/profile/04777788548338715954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-90481808297768132702024-02-27T19:59:00.007+05:302024-02-28T20:07:46.431+05:30ब्लडी गेस्ट: द एडवेंचर ऑफ अलीशा अटवाल - संतोष पाठक | थ्रिल वर्ल्ड<p><b>संस्कार विवरण</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 260 |<b> प्रकाशक:</b> थ्रिल वर्ल्ड </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3Ia2nMn" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDkdE_vegBY8_AiIjtJofw43wwaRz4w-27Vmoj7EXBYeQSf9NQUjQPMpBFwNaqyFQrxaIqhSyYgwur8lIhzz0qfYi_dM7I8iNv4P9vTY0AusxrQHveesAP1JjcQmi3ZHY-8IeOunOyXM4cqj7uSiGoZckVwIFVzKCXvgrl0fQGYngS1Dxxc-0lVqkjrhk/s466/71ONwT9dO1L._SY466_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="ब्लडी गेस्ट - संतोष पाठक | अलीशा अटवाल" border="0" data-original-height="466" data-original-width="291" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDkdE_vegBY8_AiIjtJofw43wwaRz4w-27Vmoj7EXBYeQSf9NQUjQPMpBFwNaqyFQrxaIqhSyYgwur8lIhzz0qfYi_dM7I8iNv4P9vTY0AusxrQHveesAP1JjcQmi3ZHY-8IeOunOyXM4cqj7uSiGoZckVwIFVzKCXvgrl0fQGYngS1Dxxc-0lVqkjrhk/w250-h400/71ONwT9dO1L._SY466_.jpg" title="ब्लडी गेस्ट - संतोष पाठक | अलीशा अटवाल" width="250" /></a></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><div><div>डॉक्टर लवलेश भाटिया की बीवी कोमल का कत्ल हो चुका था। यह कत्ल शादी की सालगिरह की रात को ही किया गया था।</div><div><br /></div><div>डॉक्टर भाटिया की माने तो शादी की सालगिरह की पार्टी में आए मेहमानों के जाने के बाद वो आकर अपने बिस्तर पर लेट गए थे और सुबह उठे तो उन्होंने अपनी बीवी को मरा हुआ पाया था। हालात कुछ ऐसे थे कि पुलिस आती तो उन्हें ही अपनी पत्नी के कत्ल का जिम्मेदार ठहराती। </div><div><br /></div><div>उनका शक था कि उनकी पत्नी की हत्या के पीछे उस दबंग नेता चरण सिंह का हाथ था जिसने उनसे प्रोटेक्शन मनी की डिमांड रखी थी और उन्होंने वो देने से मना कर दिया था। भाटिया का मानना था कि पुलिस, जो कि नेता की जेब में थी, अपना काम सही से नहीं करने वाली थी।</div><div><br /></div><div>ऐसे में उन्होंने प्राइवेट डिटेक्टिव अलीशा चटवाल को अपनी पत्नी के कातिल का पता लगाने के जिम्मा सौंपा था।</div><div><br /></div><div>आखिर किसने किया था कोमल का कत्ल? </div><div>क्या डॉक्टर सच बोल रहा था? </div><div>क्या अलीशा कातिल का पता लगा पाई?</div></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div><div>कोमल भाटिया - मकतूल</div><div>लवलेश भाटिया - मकतूल का पति</div><div>अलीशा चटवाल - एक प्राइवेट डिटेक्टिव</div><div>गजानन चौधरी - अलीशा का असिस्टेंट </div><div>चरण सिंह - एक दबंग एमएलए</div><div>ओमकार सिंह - चरण का दायां हाथ</div><div>जलाल खान उर्फ जल्ली और निशांत सिंह उर्फ निन्नि - ओमकार के खास जिनका रुतबा ओम कार के ऊपर सबसे ज्यादा था</div><div>राशिद, नूरजहां - पार्टी में आए पति पत्नी</div><div>अमन सिंह, मीनाक्षी, स्वराज - पार्टी में आए पति पत्नी और पुत्र</div></div><div><div>जयंत शुक्ला - पुलिस सब इंस्पेक्टर</div><div>मुकुल देसाई - एक पत्रकार</div><div>अविनाश निगम - एक एडिटर</div></div><div><div>मोहित साहा - गार्ड</div><div>मुक्ता और अनिकेत त्रिपाठी - पार्टी में आए मेहमान</div></div><div>हर्षदेव खट्टर - एमपी जिसकी चरण सिंह से ठनी रहती थी</div><div>मंजीत सिंह - थाना इंचार्ज</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार </h4><div><div><b>'ब्लडी गेस्ट: एडवेंचर ऑफ अलीशा अटवाल'</b> लेखक संतोष पाठक की लिखी रहस्य कथा है। इस रहस्य कथा के माध्यम से वो अलीशा अटवाल के रूप पाठकों के समक्ष एक नवीन किरदार पेश कर रहे हैं। अलीशा एक प्राइवेट डिटेक्टिव है जो कि फॉक्सी सर्विसेज नाम से इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी चलाती है। ब्लडी गेस्ट में पाठक उसे एक मामले को सुलझाते दिखती है। </div><div><br /></div><div>यह मामला अलीशा के एक क्लाइंट डॉक्टर लवलेश भाटिया के कॉल के आने से शुरू होता है। डॉक्टर अलीशा को बताता है कि किसी ने उसकी पत्नी का खून कर दिया है और लवलेश जब उठा तो उसे इस बात का पता चला कि उसकी पत्नी की हत्या हो गई है। अब चूँकि दरवाजा अंदर से बंद था तो लवलेश को डर है कि कहीं पुलिस उसे ही इस हत्या के मामले में न लपेट ले और इसलिए वो चाहता है कि अलीशा इस मामले को देखे। अलीशा इस मामले की तहकीकात किस तरह करती है। इस तहकीकात में डॉक्टर, उसकी पत्नी और उसके दोस्तों के बीच के कौन से रिश्ते उजागर होते हैं और किस तरह असल कातिल का पता लगता है यह उपन्यास का एक हिस्सा बनता है। चूँकि पार्टी के बाद कत्ल हुआ रहता है तो नायिका के पास संदिग्ध कई सारे होते हैं। ऐसे में वो किस तरह असल कातिल तक पहुँचेगी यह देखने के लिए आप पृष्ठ पलटते चले जाते हैं। </div><div><br /></div><div>उपन्यास में डॉक्टर लवलेश भाटिया की एक दबंग नेता से अदावत भी चल रही होती है। इसी आदावत के चलते डॉक्टर को अपनी बीवी की हत्या के पीछे उसका हाथ दिखाई देता है। क्या असल में ऐसा होता है? नेता, जिसकी जेब में लोकल पुलिस भी है, के खिलाफ क्या डॉक्टर कुछ कर पाता है? नेता क्या करता है? ये भी उपन्यास का अच्छा खासा भाग बनता है जो कि उपन्यास के एंटरटेनमेंट कोशेंट को बढ़ाने में मदद करता है।</div><div><br /></div><div>उपन्यास रोमांचक है और कथानक आपको बांध कर रखता है। 15 जनवरी से शुरू हुआ कथानक 19 फरवरी पर जाकर खत्म होता है। कथानक तेज रफ्तार है। सबूतों के आधार पर आगे बढ़ते हुए किस तरह से चीजें साफ होती हैं यह देखना रोचक रहता है। नेता वाला कोण कथानक को और अधिक मनोरंजक बनाता है। पुलिस की छवि अकसर भ्रष्ट अफसरों के कारण मलिन होती है। कई बार अगर आपके अफसर भ्रष्ट हों तो किस तरह ईमानदार पुलिस वाले भी गलत चीजों को सहने के लिए मजबूर से हो जाते हैं यह भी इधर दिखता हैं। वहीं ईमानदार व्यक्ति अगर चाहे तो कैसे वो कान को घुमाकर पकड़ कर अपने कार्य को कर सकता है यह भी जयंत शुक्ला के किरदार से देखने को मिल जाता है।</div><div><br /></div><div>शादी का रिश्ता बड़ा नाजुक होता है। इसमें कई बार लोग अपने साथी की जरूरत का ख्याल नहीं रखते हैं। इसके चलते कई बार विवाहेतर संबंध स्थापित होते हैं। कई बार इसका क्या असर व्यक्ति के जीवन में पड़ सकता है यह भी इधर दिखता है। वही आज भी औरत को एक तरह से जागीर की तरह समझा जाता है। मर्दों की यह सोच होती है। ऐसे में जब वो किसी तरह का चुनाव करती हैं तो किस तरह से मर्द उसे अपने अहम पर चोट मानकर प्रतिक्रिया दिखाते हैं यह भी इधर दिखता है। लेखक इस प्रवृत्ति पर भी टिप्पणी करते दिखते हैं। </div><div><br /></div><div>रहस्य कथा में एक पहलू कातिल की पहचान का होता है। वही रहस्यकथा सफल मानी जाती है जिसमें जब तक लेखक न बताए तब तक पाठक कातिल की पहचान न पता कर सके। प्रस्तुत उपन्यास के अधिकतर हिस्से में लेखक कातिल की पहचान को पाठक की नजर से छिपाकर रखने में सफल होते हैं। ऐसे संदिग्ध भी पैदा कर देते हैं कि आपका ध्यान थोड़ा सा भटक जाता है लेकिन अगर आप मेथड ऑफ एलिमिनेशन लगाएँगे तो अलीशा द्वारा कातिल का नाम बताए जाने से पहले उसका अंदाजा सही सही लगा पाएँगे। ऐसे में वो सरप्राईज एलिमेंट उधर नहीं रहता है। पर ये अंदाजा आपको भी इतनी देरी में लगता है कि कथानक के मनोरंजन पर इसका इतना फर्क नहीं पड़ता है। पर लेखक इसकी भरपाई उपन्यास में दूसरा कोण जोड़कर कर देते हैं जो कि मनोरंजन की कमी नहीं होने देता है। </div><div><br /></div><div>उपन्यास का यह दूसरा कोण नेताओं की दबंगई के ऊपर है। लेखक इस कोण को जोड़कर अलीशा के किरदार के कई पहलुओं को उभारने में सफल होते हैं। वहीं राजनीति, मीडिया और पुलिस के गठ जोड़ भी दर्शाने में सफल होते हैं। किस तरह से सौदेबाजी होती है और खबरे दिखाई या दबाई जाती हैं यह भी दिखाने की लेखक ने कोशिश की है। वहीं कैसे पुलिस राजनीति के आगे नतमस्तक रहती है यह भी इधर दिखता है। ऐसे में लेखक अपनी लेखनी के माध्यम से इन पहलुओं पर भी टिप्पणी करते हैं जो काफी कुछ सोचने के लिए आपको दे जाता है और हल्का सा भय भी आपके भीतर पैदा कर देता है। </div><p>किरदारों की बात करूँ तो अलीशा अटवाल के रूप में एक रोचक किरदार लेखक ने खड़ा किया है। हिंदी अपराध कथाओं में महिला मुख्य नायिकाओं को एक विशेष तरीके से दिखाया गया जाता रहा है। लेखक उस परिपाटी में जाने से बचे हैं जो कि अच्छी बात है। अलीशा अटवाल 28 वर्षीय प्राइवेट डिटेक्टिव है। वो एक मजाकिया, जिसे कई बार लोग क्रैक भी कहते हैं, लड़की है जो अपनी क्लाइंट को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है। क्लाइंट सही है या गलत इससे उसे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे में उसके अंदर कई ग्रे शेड्स हैं। अगर घी सीधे उंगली से न निकले तो वो उसे टेढ़ी करना भी जानती है। </p><p>वहीं लेखक यह भी बताते हैं कि उसके अंदर भावनाएँ न के बराबर हैं। ऐसा क्यों है यह वो नहीं बताते। उम्मीद है आगे जाकर पाठकों को पता चलेगा कि उसके साथ ऐसा क्या हुआ कि उसकी भावनाएँ मर गई थीं।</p><p>अलीशा की गुजरी जिंदगी और उसके आने वाले कारनामों के बारे में अगर लेखक लिखते हैं पढ़ने की कोशिश रहेगी। वैसे भी इस तरह से उपन्यास को अंत किया गया है कि नए भाग की गुंजाइश लेखक ने पैदा कर दी है।</p><p>उपन्यास में जयंत शुक्ला एक ईमानदार पुलिस अफसर है। उसके और अलीशा के बीच का समीकरण रोचक बन पड़ा है। उम्मीद है आगे के भागों में भी वह दिखेगा। </p><p>उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप है। नेता के दायें हाथ के रूप में ओंकार सिंह का किरदार अच्छा बन पड़ा है। एक ही बार वो ढंग से दिखता है। अगर उसकी मौजूदगी थोड़ा और होती तो मज़ा अधिक आता। </p><p>उपन्यास की कमी की बात करूँ तो प्रूफरीडिंग की त्रुटियों के अतिरिक्त कोई ज्यादा कमी इसमें नहीं है।</p><p>अगर आप एक मनोरंजक अपराध कथा पढ़ना चाहते हैं तो आपको इसे एक बार पढ़कर देखना ही चाहिए। उम्मीद है इसने जितना मेरा मनोरंजन किया उतना ही आपका भी करेगी। </p><p><br /></p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3Ia2nMn" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><div><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/07/review-ek-teer-do-shikaar.html" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास 'एक तीर दो शिकार' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/05/book-review-of-golden-girl-by-surender-mohan-pathak.html" target="_blank">सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास 'गोल्डन गर्ल' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/11/book-review-doosra-chehra-ajinkya-sharma.html" target="_blank">अजिंक्य शर्मा के उपन्यास 'दूसरा चेहरा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2020/03/my-take-on-attache-rahasya.html" target="_blank">सत्यजित राय के उपन्यास 'अटैची रहस्य' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/book-review-raakh-jitendra-nath.html" target="_blank">जितेंद्रनाथ के उपन्यास 'राख' पर टिप्पणी </a></li></ul></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-27859798904043032742024-02-18T08:52:00.009+05:302024-02-18T08:54:09.593+05:30मई में आ रही है मशहूर हॉरर लेखक स्टीफन किंग की नवीन पुस्तक <p> <table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilbErnJiaDnppy8NBgSDazh4vXhdwZ2Y1Rpk3UB5lo4Qy96SziLTk5534DP5I-J1l2io-pH5O6hQOIroGsaB73KY7ztbABcC3o6sE00HfAfxbNwvmdosixX5xXWoi0MAHQzpqd7c9nmPSAe3l4drdO-pBvqDRDTYI7x50QTkKn85J3iug5v3qAT_rr/s320/stephen%20king.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="320" data-original-width="250" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilbErnJiaDnppy8NBgSDazh4vXhdwZ2Y1Rpk3UB5lo4Qy96SziLTk5534DP5I-J1l2io-pH5O6hQOIroGsaB73KY7ztbABcC3o6sE00HfAfxbNwvmdosixX5xXWoi0MAHQzpqd7c9nmPSAe3l4drdO-pBvqDRDTYI7x50QTkKn85J3iug5v3qAT_rr/s320/stephen%20king.jpg" width="250" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">स्टीफन किंग</td></tr></tbody></table></p><p>स्टीफन किंग के प्रशंसकों के लिए खुश खबरी आई है। उनकी नई किताब की घोषणा हो चुकी है। स्टीफन किंग की नई किताब <b>यू लाइक इट डार्कर</b> मई 2024 के आखिरी हफ्ते में <b>स्क्रिबनर</b> से आयेगी। स्क्रिबनर साइमन एण्ड शशटर प्रकाशन का एक इम्प्रिन्ट है।</p><p></p><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9BBmiMcUd00eDuyjdhE2OHn6fcZNNlwU8dvXvMFMK_uc-1c5FGVa5ogVYNgK5QkuyG3AdNRVW34jeAZbdjHhRQAhonSml6KsysElV8T9oUii0rMZuwdvo6VQ7LgpqNDSn2arotzpA1vwsdVXXVt-hzJyNKFQyLKAllDWJMi-70VIWto7kiqRoLDOx06U/s400/you-like-it-darker-9781668037713_lg.jpg" imageanchor="1"><img alt="मई में आ रही है मशहूर हॉरर लेखक स्टीफन किंग की नवीन पुस्तक" border="0" data-original-height="400" data-original-width="263" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9BBmiMcUd00eDuyjdhE2OHn6fcZNNlwU8dvXvMFMK_uc-1c5FGVa5ogVYNgK5QkuyG3AdNRVW34jeAZbdjHhRQAhonSml6KsysElV8T9oUii0rMZuwdvo6VQ7LgpqNDSn2arotzpA1vwsdVXXVt-hzJyNKFQyLKAllDWJMi-70VIWto7kiqRoLDOx06U/w210-h320/you-like-it-darker-9781668037713_lg.jpg" title="मई में आ रही है मशहूर हॉरर लेखक स्टीफन किंग की नवीन पुस्तक" width="210" /></a></div><br /> <p></p><p><b>यू लाइक इट डार्कर</b><b> </b>एक कहानी संग्रह है जिसमें स्टीफन किंग की 12 कहानियों को संकलित किया गया है। प्रकाशक के अनुसार इनमें से कुछ कहानियाँ पूर्व में कहीं प्रकाशित नहीं की हुई हैं। ऐसे में स्टीफन किंग के प्रशंसकों के लिए यह कहानियाँ किसी ट्रीट से कम नहीं होने वाली हैं। </p><p>ज्ञात हो <b>यू लाइक इट डार्कर </b>स्टीफन किंग का तेहरवाँ संग्रह होने वाला है। यह काफी वर्षों बाद है कि किंग का कोई संग्रह आ रहा है। इससे पूर्व उनका कहानी संग्रह <a href="https://amzn.to/3T0FbX4" rel="nofollow" target="_blank">स्टीफन किंग गोस टू द मूवीज</a>, जिसमें उन कहानियों को संकलित किया गया था जिन पर फिल्में बनी हैं, आया था जो कि वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ था। </p><p>बताते चले इससे पूर्व स्टीफन किंग का उपन्यास <a href="https://amzn.to/49vNijW" rel="nofollow" target="_blank">हॉली </a>आया था जो पाठकों को काफी पसंद आया था। </p><p><br /></p>एक बुक जर्नलhttp://www.blogger.com/profile/04777788548338715954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-5181344161042939652024-02-17T14:25:00.003+05:302024-02-17T14:25:49.175+05:30साहित्य अकादेमी ने पुस्तक मेले में आयोजित की बाल साहिती और ‘कविता में दिल्ली’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण<p><b> नई दिल्ली। 16 फरवरी 2024:</b></p><p> विश्व पुस्तक मेले में साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों की शृंखला में आज अकादेमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘कविता में दिल्ली’ का लोकार्पण हुआ और बाल मंडप में बाल साहिती कार्यक्रम के अंतर्गत सुमन बाजपेयी एवं वेद मित्र शुक्ल ने कहानी और कविताओं का पाठ किया। साहित्य अकादेमी स्टॉल पर राधेश्याम तिवारी द्वारा संपादित पुस्तक का लोकार्पण मदन कश्यप, राकेश रेणु एवं मनोज मोहन आदि की उपस्थिति में हुआ। लोकार्पण के बाद अपने वक्तव्य में मदन कश्यप ने कहा कि यह पुस्तक बहुत ही उचित समय पर आई है और इसकी विस्तृत भूमिका दिल्ली के इतिहास को समझने के लिए बहुत उपयुक्त है। उन्होंने संग्रह में प्रकाशित अपनी एक कविता का भी पाठ किया। राकेश रेणु ने भी अपनी कविता का पाठ करने के बाद संपादक राधेश्याम तिवारी को बधाई देते हुए कहा कि यह दस्तावेज़ी काम है और इसकी बहुत आवश्यकता थी। राधेश्याम मंगोलपुरी ने भी संग्रह पर अपने विचार व्यक्त किए। अंत में सभी का धन्यवाद करते हुए राधेश्याम तिवारी ने भी दिल्ली पर लिखी अपनी एक कविता सुनाई।</p><p></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitlUGGWOUkZgshbulad9e-KUJMekU4rWMn4V8NoOFH_3mE7mZH4qQh78EvB2YIf5hmPLFuAMLFQ2JNmLpjNAKaul7et4NpsHm4E8rbHm1jhDXOFLpxSilqbdLfciqOzNiSIv79GLHwD02zFxps7KhLVilNzv_NfAb6O1nkoAlJG2lPijITrwHofsNN89A/s900/WhatsApp%20Image%202024-02-17%20at%2010.19.37%20AM%20(1).jpeg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="900" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitlUGGWOUkZgshbulad9e-KUJMekU4rWMn4V8NoOFH_3mE7mZH4qQh78EvB2YIf5hmPLFuAMLFQ2JNmLpjNAKaul7et4NpsHm4E8rbHm1jhDXOFLpxSilqbdLfciqOzNiSIv79GLHwD02zFxps7KhLVilNzv_NfAb6O1nkoAlJG2lPijITrwHofsNN89A/w400-h266/WhatsApp%20Image%202024-02-17%20at%2010.19.37%20AM%20(1).jpeg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">पुस्तक 'कविता में दिल्ली' का लोकार्पण</td></tr></tbody></table><br /><p></p><p>बाल मंडप में आज प्रख्यात बाल साहित्यकारों सुमन बाजपेयी एवं वेद मित्र शुक्ल ने अपनी रचनाओं से बच्चों का मनोरंजन और मार्गदर्शन किया। सुमन बाजपेयी की कहानी ‘टिम टिम तारे की कहानी’ ने जहाँ बच्चों को ब्रह्मांड की कई रोचक जानकारियाँ दीं, वहीं वेद मित्र शुक्ल की कविताओं में बच्चों को प्यार और गु़स्से में कहे जाने वाले संबोधनों जैसे - उल्लू, गधे, मेंढक आदि में रोचक कहानियाँ छुपी हुई थीं।</p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4_rtoKPRSrRTnkumKiNP6OdTBwiH4kjo49iKj300XLfiHzxiiC3VDcX0tFWRjLFN4A1dz5bZK8V3a3GfMumJQTSWKPU7DWd7Nwi5zSBFsk7RqOi4FodIVxsouC6ppMWUCnTtO7IiuEkxGwl4vxbjTndA5bIOVJx7NUguudWXqfyB4xuU5_6Xlh2ibTBs/s800/WhatsApp%20Image%202024-02-17%20at%2010.19.37%20AM.jpeg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="800" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4_rtoKPRSrRTnkumKiNP6OdTBwiH4kjo49iKj300XLfiHzxiiC3VDcX0tFWRjLFN4A1dz5bZK8V3a3GfMumJQTSWKPU7DWd7Nwi5zSBFsk7RqOi4FodIVxsouC6ppMWUCnTtO7IiuEkxGwl4vxbjTndA5bIOVJx7NUguudWXqfyB4xuU5_6Xlh2ibTBs/s320/WhatsApp%20Image%202024-02-17%20at%2010.19.37%20AM.jpeg" width="320" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">बाल मंडप में रचना पाठक करती लेखिका सुमन बाजपेयी</td></tr></tbody></table><br /><p>ज्ञात हो 10 फरवरी से शुरू हुआ नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 18 फरवरी तक चलने वाला है। कल यानी रविवार को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला का आखिरी दिन होगा। </p>एक बुक जर्नलhttp://www.blogger.com/profile/04777788548338715954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-88251619262280175562024-02-08T23:03:00.005+05:302024-02-22T23:51:41.452+05:30कच्छामैन | बेसरा कॉमिक्स | सुरजीत बेसरा | अंशुदीप धुसिया | शंभुनाथ महतो<p> <b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 32 | <b>प्रकाशक: </b>बेसरा कॉमिक्स </p><p><b>टीम</b></p><p><b>परिकल्पना/रचनाकार:</b> सुरजीत बेसरा | <b>लेखक/स्क्रिप्ट लेखन:</b> सुरजीत बेसरा, अंशुदीप धुसिया | <b>चित्रकार/रंग-सज्जा/सुलेख/संपादक:</b> शंभु नाथ महतो</p><p> </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3SqUSoQ" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwbg4UUgzkPh5g5vE_GtlZ2gy27GBCsSWmhq5OrEAPnyfY7oa0kCU_kCpdAnDJGibrVjkUI0gpBotJ4HacKPDGdGHIPWNbAw1uyi0Y6cl4BJpLEcG9e4JyDimtfiXRfRKFW2Z0eRQrS2Hlr3Yz8TPVh3k4ZbO0cXC1IYpvHIklzxtBZ-pyHjVg8D1H-0c/s466/81+CvhRwrUL._SY466_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="466" data-original-width="330" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwbg4UUgzkPh5g5vE_GtlZ2gy27GBCsSWmhq5OrEAPnyfY7oa0kCU_kCpdAnDJGibrVjkUI0gpBotJ4HacKPDGdGHIPWNbAw1uyi0Y6cl4BJpLEcG9e4JyDimtfiXRfRKFW2Z0eRQrS2Hlr3Yz8TPVh3k4ZbO0cXC1IYpvHIklzxtBZ-pyHjVg8D1H-0c/s320/81+CvhRwrUL._SY466_.jpg" width="227" /></a></div><p><br /></p><h4>कहानी </h4><p>शहर के छात्र नशे की गिरफ्त में घिर चुके थे। प्रशासन और पुलिस भी नशे के इस बढ़ते प्रभाव के कारण चिंतित थी।</p><p>ऐसे में जब शहर के जाने माने कॉलेज के एस कॉलेज की एक शिक्षिका माया नशे की ओवरडोज की हालत में पुलिस को एक नशे पार्टी में मिली तो पुलिस को लगा कि उसका भी इस नशे के रैकेट से कुछ संबंध था।</p><p>वहीं मयंक, जो कभी माया का पति था, जानता था कि माया निर्दोष है और उसे फँसाया जा रहा है।</p><p>आखिर कौन था नशे के इस रैकेट के पीछे?</p><p><br /></p><h4>विचार</h4><p>बेसरा कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित पहला कॉमिक बुक <b>कच्छामैन</b> कॉमिक बुक ड्रग्स की उस बिमारी की बात करता है जिससे आजकल का युवा जूझ रहा है।</p><p>कॉमिक बुक की शुरुआत एक गोदाम से होती है जहाँ पर ड्रग्स को छुपाया जा रहा है। यहाँ पर नायक कच्छामैन पहुँच जाता है और फिर कहानी फ्लैश बैक में चली जाती है।</p><p>इस फ्लैश बैक में 1997 का कालखंड भी दर्शाया गया है और वर्तमान समय भी। 1997 में जो बस लूटने का प्रसंग बताया जाता है उसने व्यक्तिगत तौर पर मुझे छुआ। उन दिनों जब हम दिल्ली से कोटद्वार जाते थे तो कई जगह ऐसे ही बसें लूट ली जाती थी। हालत इतने बुरे हो गए थे कि बीच बीच पुलिस वाले गाड़ियों को एस्कॉर्ट करते थे और कई बार अकेली बसें आगे नहीं भेजी जाती थी बल्कि जत्थे भेजे जाते थे। कभी मुझे व्यक्तिगत तौर पर लूटपाट का सामना तो नहीं करना पड़ा लेकिन उन दिनों अखबारों में ऐसी खबरे आम थी। पढ़ते हुए वही खबरे दिमाग में कौंध गई थीं। </p><p>दूसरे पृष्ठ से शुरू हुआ ये फ्लैश बैक 22 वें पृष्ठ तक चलता है। इस फ्लैश बैक के माध्यम से कथानक के मुख्य किरदारों से पाठक का परिचय होता है। इस दौरान मुख्य किरदारों के जीवन से जुड़े की पहलू भी पाठक को दर्शाये जाते हैं। वो पहलू जिनके विषय में जानने के बाद पाठक के मन में यह उत्सुकता जाग जाती है कि इनके साथ ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? या फिर इनके बीच ऐसा क्या हुआ कि इनके बीच का रिश्ता मौजूदा समीकरणों तक पहुँच गया। </p><p>कॉमिक बुक का अंत इस तरह से होता है कि आप न केवल फ़्लैश से उत्पन्न हुए प्रश्नों के विषय में जानना चाहोगे लेकिन उसके साथ साथ ये भी जानना चाहोगे कि आगे जाकर कॉमिक बुक की कहानी क्या मोड़ लेती है। </p><p>कथानक वैसे तो सीरीअस टॉपिक पर है लेकिन कॉमेडी का तड़का कहानी में मौजूद रहता है जो कि कथानक को मनोरंजक बनाता है। कई संजीदा परिस्थियों के बीच हास्य पिरोया गया है और कुछ जगह ये ह्यूमर डार्क हो जाता है। हास्य क्योंकि व्यक्तिपरक होता है तो ये पाठक पर निर्भर करेगा कि उनके लिए यह हास्य कैसा रहता है? व्यक्तिगत तौर पर मुझे यह पसंद आया। </p><p>चूँकि यह कॉमिक बुक कथानक की भूमिका है और केवल 32 पृष्ठ हैं तो किरदारों को उस तरह से विकसित कर पाठकों के सामने नहीं लाया गया है। फिर चूँकि उनके जीवन के अलग अलग पहलुओं को दर्शाया तो हर चीज को बस इतना छू कर लेखक निकले हैं कि वह आगे के भाग के प्रति उत्सुकता जगाता है। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी। उम्मीद है उसमें यहाँ छूटे गए सभी प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँगे।</p><p>कॉमिक बुक का आर्टवर्क अच्छा है पर कुछ पैनल्स में अतिरितक कार्य करने की जरूरत थी। विशेषकर कन्याओं का चित्रण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। कई महिला किरदारों के चेहरे मोहरे और होंठ एक समान बने से लगते हैं। कॉमिक बुक की कलरिंग मुझे पसंद आई। वह हल्की पेस्टल टाइप रखी गई है जो कि ज्यादा चटक न होंने के कारण आँखों को सुकून सा देती है।</p><p>अंत में यही कहूँगा कि नशे को केंद्र में रखकर लिखी गई इस कॉमिक का यह पहला भाग अगले भाग के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब होता है। 32 पेज में काफी कुछ दिया गया है। किरदारों को लेकर की सवाल ये मन में छोड़ जाता है। मुख्य नायक कच्छामैन में एक नोवेल्टी फैक्टर है जिसे इस भाग में न्यायोचित ठहराने में लेखक कामयाब हुए हैं। अगले भाग में नायक के कपड़ों का क्या होगा और अगर इस शृंखला को लेखक बढ़ाते हैं तो कच्छेमैन को केवल कच्छे में कब तक और कैसे वो न्यायोचित रूप से रख पाएँगे ये देखना बनता है।</p><p>कॉमिक बुक के अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी। उम्मीद है प्रकाशक ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करवाएँगे।</p><div><br /></div><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3SqUSoQ" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-3630253900646789642024-02-03T19:38:00.003+05:302024-02-03T19:38:29.823+05:30रोमांच कथा: रचनाएँ आमंत्रित हैं<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvoc3HhXHbtS8yKQFHZDkuiUeFiYXJmUvgVVpI2zReN5F2mamuGZVdsYqQke_WtEWqBoBTEJRO-B6oyJhrzB3sMu1cEadUD6H9SgpAfr_bvAsPZJUmBmlo3coUk6DD5fACAh9byR4G7ESFvnnqpLGzeFiHYBSOjYYuGLzwWvsOaWk2x9vxi2rmEbXsj-Q/s1080/romanchktha.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="रोमांचकथाएँ: रचनाएँ आमंत्रित हैं" border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvoc3HhXHbtS8yKQFHZDkuiUeFiYXJmUvgVVpI2zReN5F2mamuGZVdsYqQke_WtEWqBoBTEJRO-B6oyJhrzB3sMu1cEadUD6H9SgpAfr_bvAsPZJUmBmlo3coUk6DD5fACAh9byR4G7ESFvnnqpLGzeFiHYBSOjYYuGLzwWvsOaWk2x9vxi2rmEbXsj-Q/w400-h400/romanchktha.jpeg" title="रोमांचकथाएँ: रचनाएँ आमंत्रित हैं" width="400" /></a></div><br /><p></p><p><br /></p><p>नमस्कार दोस्तों, <b>एक बुक जर्नल</b> और यू एन मी क्रिएशंस मिलकर एक त्रेमासिक ई-पत्रिका <b>रोमांचकथा</b> की शुरुआत करने जा रहे हैं। </p><p>इस पत्रिका में <b>अपराध कथा</b>, <b>भय कथा</b>, <b>विज्ञान गल्प</b>, फंतासी की रचनाएँ प्रकाशित की जाएँगी। आप इन विधाओं में कहानियाँ, इनसे जुड़े लेख हमें ईमेल द्वारा भेज सकते हैं। </p><p>मेल के सब्जेक्ट में रोमांचकथा, रचना का प्रकार ( अगर कहानी है तो कहानी और लेख है तो लेख), रचना की विधा (अपराध कथा, विज्ञान कथा, फंतासी, भयकथा इत्यादि) और शीर्षक कुछ यूं लिखकर आप हमें भेज सकते हैं:</p><p>रोमांचकथा | कहानी | अपराध कथा | खोए खजाने का रहस्य</p><p>या </p><p>रोमांचकथा | लेख | विज्ञान गल्प | हिंदी में विज्ञान गल्प </p><p> पत्रिका का पहला अंक मार्च 2024 में प्रकाशित किया जाएगा। </p><p>पत्रिका में गुणवत्ता के हिसाब से ही रचना का चुनाव होगा। साथ ही पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं को पत्रिका मानदेय देने की कोशिश करेगी। </p><p><b>मानदेय की दर फिलहाल ये तय की गई हैं:</b></p><p><b>कहानी:</b> 20 पैसा प्रति शब्द (न्यूनतम शब्द 2500, अधिकतम शब्द 12500)</p><p><b>लेख:</b> 10 पैसा प्रति शब्द (1000 शब्द से 2500 शब्द तक)</p><p><b>समीक्षा:</b> फिलहाल हम कोई मानदेय नहीं दे पाएंगे। लेखक की तस्वीर और लेखक परिचय दिया जाएगा।</p><p><b>कविता:</b> (भय, विज्ञान गल्प, फंतासी, रहस्य से जुड़ी कविताएं) फिलहाल हम कोई मानदेय नहीं दे पाएंगे। लेखक की तस्वीर और लेखक परिचय दिया जाएगा।</p><p><b>नोट:</b> <b>याद रखें रचना वर्ड में यूनिकोड (मंगल, कोकिला) फॉन्ट में हो। रचना के साथ आपकी तस्वीर और आपका संक्षिप्त परिचय हो। </b></p><p>आप अपनी रचनाएँ हमारे ईमेल <b>contactekbookjournal@gmail.com</b> पर भेज सकते हैं। रचना स्वीकृत होने पर आपको एग्रीमेंट भेजा जायेगा जिससे रचनाकार के सहमत होने पर ही पत्रिका द्वारा रचना प्रकाशित की जायेगी।</p><p>तो देर किस बात की है। जल्द से जल्द अपनी रचनाएँ हमें भेजें। मार्च अंक के लिए रचना भेजने की अंतिम तिथि <b>15 फरवरी 2024</b>। </p><p>इसके बाद आई रचनाएँ अगर स्वीकार होती हैं तो अगले अंक में प्रकाशित की जाएँगी।</p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-88935646854156854702024-02-01T11:44:00.003+05:302024-02-06T11:48:47.217+05:30अनचाही मौत - अजिंक्य शर्मा<p><b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> ई-बुक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 246 </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/4bh44EX" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-4vUbJezB3dggWN26j2zzvsw4-5IcZ5xYcU4cTpJgkzoiPcIES-HtkVxjOHAQKhYP9Gu4jfr3Xjh6duM1rFsKiTa-x1p5HHWtsXauS-YO-x-KNR57lJQSfZ5NAT_NaduAmKQ0pBb0mIjY5x9A3Dp9tmV1m5WqtJ-5JSnueXMf0bdtya_7iA-ZgxUv22A/s500/51pWsLmj84L._SX342_SY445_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="500" data-original-width="500" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-4vUbJezB3dggWN26j2zzvsw4-5IcZ5xYcU4cTpJgkzoiPcIES-HtkVxjOHAQKhYP9Gu4jfr3Xjh6duM1rFsKiTa-x1p5HHWtsXauS-YO-x-KNR57lJQSfZ5NAT_NaduAmKQ0pBb0mIjY5x9A3Dp9tmV1m5WqtJ-5JSnueXMf0bdtya_7iA-ZgxUv22A/s320/51pWsLmj84L._SX342_SY445_.jpg" width="320" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>वह छह लोग थे जो कि उस घर में रुकने वाले थे। वह घर जो कि उस इलाके में मौत का घर के नाम से प्रसिद्ध था। वह घर जो कि दुनिया की सबसे ज्यादा दस भूतहा जगहों की सूची में शुमार था।</p><p>पैरानॉर्मल होल्ड नामक एक संस्था ने यह प्रतियोगिता करवाई थी कि जो भी व्यक्ति उस घर में तीन दिन तक रहेगा वो एक लाख पाउंड जीत जायेगा। इस प्रतियोगिता में तीन जोड़ों को शामिल किया जाना था। </p><p>इसी एक लाख पाउंड और पारलौकिक घटनाओं को अनुभव करने के चक्कर में अरुण, निक्की, विकास, अंजना, अनुराग और मोहिनी अब मौत के घर में मौजूद थे।</p><p>उन्हें वहाँ तीन दिन बिताने थे।</p><p>क्या वो लोग वहाँ तीन दिन बिता पाए?</p><p>इन तीन दिनों में उनके साथ क्या हुआ?</p><p>क्या सचमुच वो घर भूतहा था या फिर फिर उसके भूतहा होने की सारी कहानियाँ,म्,।,कलक्षक/। कक/x 1 कोरी गप्पे थीं?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div style="text-align: left;">अरुण और निक्की - पैरानॉर्मल इन्वेस्टोगेटर और पार्टनर<br />विकास, अंजना - अरुण के कॉलेज के दोस्त<br />अनुराग मोहिनी - विकास और अंजना के दोस्त<br />सुरेश काबरा - पैरानॉर्मल होल्ड की तरफ से अप्वाइंट किया हुआ केयर टेकर<br />पारुल - काबरा की मंगेतर</div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">विचार</h4><p>'अनचाही मौत' लेखक <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/ajinkya-sharma.html" target="_blank">अजिंक्य शर्मा</a> का उपन्यास है। अक्सर अजिंक्य शर्मा अपराध साहित्य लिखते हैं लेकिन हॉरर में उन्होंने दो प्रयोग किए हैं। एक प्रयोग स्लेशर उपन्यास लिखने का <a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/01/book-review-party-started-now-by-ajinkya-sharma.html" target="_blank">पार्टी स्टार्टेड नाऊ</a> था और एक अनचाही मौत में उन्होंने हांटेड हाउस शैली में रचना की है।</p><p>उपन्यास की शुरुआत अरुण और निकी के पेट्रोल के लिए एक खस्ताहाल पंप में रुकने से होती है। वो लोग एक जगह जाने के लिए निकले हैं और इस पंप में तेल भराने रुकते हैं। यहाँ उनके साथ एक अजीब सा अनुभव होता है जो कि आगे आने वाली कहानी की नीव रखता है। साथ साथ यहीं ही पाठकों को पता लगता है कि अरुण और निकी कौन है और वो लोग कहाँ जा रहे हैं और किसके साथ साथ जा रहे हैं। पाठकों को न केवल उनके यहाँ आने का मकसद पता लगता है बल्कि उपन्यास के बाकी किरदारों का परिचय और उनके साथ इनके समीकरण का भी पता लगता है।</p><p>उपन्यास की कहानी पाँच दिन की है। पहले दिन उपन्यास के किरदार मौत के घर में इकट्ठा होते हैं। अगले तीन दिन वो इधर बिताते हैं और चौथे दिन जो बचता है वो वापस जाता है। आने और जाने के बीच के इन तीन दिनों में जो कुछ उनके साथ होता है वही कथानक बनता है।</p><p>उपन्यास की खूबी की बात करूँ तो इसकी विषय वस्तु रोचक है। अरुण और निकी के रूप में लेखक एक पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेटर लेकर आए हैं। इनके बीच समीकरण रोचक है। उम्मीद है इनके इंवेस्टिगेशन को लेकर लेखक और लिखेंगे। कहानी में एक प्रसंग है जब अरुण भूतों के ऊपर चर्चा करता है। वह बातचीत रोचक लिखी गई है। कहानी में आखिर में एक ट्विस्ट भी आता है जो कि आपको हैरान जरूर कर देता है। </p><p>उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो उपन्यास की विषय वस्तु रोचक जरूर है लेकिन लेखक इसका किर्यांवन करने में सफल नहीं हो पाते हैं। पहले दो दिन जो जो घटनाएँ किरदारों के साथ घटित होती हैं वह इतनी भयावह नहीं होती हैं जिससे कि आपके मन में कोई भय उत्पन्न हो या आगे पढ़ने की इच्छा हो। तीसरे दिन के अंत तक आते आते सब कुछ घटित होने लगता है। मौत के घर के बारे में जो कुछ सुना गया था वो सब होने लगता है तो किरदारों का अपने जीवन के लिए युद्ध शुरू हो जाता है। पर यह काम इतनी देर में शुरू होता है कि आप बस जैसे तैसे इसे खत्म करना चाहते हैं। </p><p>लेखक ने आखिर में कई चीजों को जोड़ने की कोशिश की है और कई कड़ियाँ जोड़ी भी हैं लेकिन काफी चीजें रह भी जाती हैं। </p><p>मसलन, अरुण और निकी की गाड़ी का एक्सीडेंट करने वाला क्या था?? क्या उसका घर से कोई लेना देना था?? अगर हाँ, तो घर का प्रभाव सड़क के नजदीक कैसे हुआ? अगर वो प्रभाव सड़क के नजदीक तक आ जाता है तो फिर आखिर के दिन में जो निकले वो निकलने में कामयाब कैसे हो पाते हैं?</p><p>कब्रिस्तान में ताज़ी कब्र किसने खोदी थी? क्या ये काम आत्माओं का था?</p><p>घर में पहले दो दिन इतना कुछ नहीं होता है। ऐसे में तीसरे दिन वो क्या होता है जिससे अचानक से घटित होने वाली घटनाओं की तीव्रता बढ़ जाती है। अगर चीजें पहले दिन से शुरू होना शुरू होती और तीसरे दिन चीजों के घटित होने के पीछे कोई पुख्ता कारण दिया होता तो बेहतर होता। मसलन उपन्यास में एक प्रसंग है जब एक किरदार बेहोश हो जाता है और बाद में वो एक ऐसी जगह मिलता है जहाँ उन्हें जाने के लिए मना किया गया था। उस किरदार को क्यों चुना और उसे वहाँ क्यों निषेध जगह पर लाया गया? अगर इसका कोई पुख्ता कारण देते तो बेहतर होता। </p><p>उपन्यास के आखिर में पैरानॉर्मल होल्ड का व्यक्ति मौत के घर में आता है और अपने आने का कारण देता है। उससे पहले वो जो चीज बताता है और उसके बाद आने का कारण देता है वह जमता नहीं है। किसी सुनसान जगह में जहाँ नेटवर्क भी नहीं है उधर कोई रह रहा है इसका पता कैसे चलेगा? यह एक ऐसी बात है जिसे थोड़ा और विस्तृत रूप से बताया जाता तो बेहतर होता। </p><p>व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो मेरे लिए यह अजिंक्य शर्मा के अब तक का सबसे कमजोर उपन्यास रहा है। मुझे लगता है कि तीन दिन की जगह एक दिन या ज्यादा से ज्यादा दो दिन की कहानी होती और शुरुआत से ही कथानक में हॉरर अधिक होता तो बेहतर होता। </p><p>कथानक के अतिरिक्त कुछ छोटी मोटी सम्पादन की दिक्कतें भी हैं। कई जगह अरुण का नाम बदलकर अतुल या अनुज हो गया है। पृष्ठ 203 में अनुराग द्वारा एक सपने देखे जाने की बात होती है लेकिन कहानी में सपना या तो अरुण ने देखा था या फिर विकास ने देखा था। ऐसे में अनुराग के सम्बन्ध में सपने का जिक्र करना पाठक को संशय में डालता है। पृष्ठ 85 में कब्र पर लिखी इबारत अंग्रेजी में हैं जिसमें कब्र रॉबर्ट कीन की बताई गई है लेकिन उसके हिंदी अनुवाद में वो नाम जेम्स कीन कर दिया गया है। </p><p>किरदारों की बात करूँ तो अरुण, निकी, विकास और अंजना के किरदार को अच्छे से गढ़ा गया है। अरुण, विकास और अंजना का समीकरण अच्छा बन पड़ा है। इसके साथ साथ पारुल के किरदार को भी सही से गढ़ा गया है। पर मोहिनी और अनुराग के किरदार को उतनी जगह नहीं दी गई है। जैसे कि ऊपर लिखा है अरुण और निकी को लेकर कई संभावनाएँ हैं। अगर लेखक उसे एक्सप्लोर करेंगे तो मैं उन रचनाओं को पढ़ना चाहूँगा। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि अजिंक्य शर्मा का यह उपन्यास मुझे औसत से कम ही लगा। ऐसा लगा कि जरूरत से ज्यादा इसे खींचा गया है। अगर पहले दो दिनों में भी कुछ बड़ा, खौफनाक होता तो शायद चल जाता लेकिन उसके न होने के चलते यह वो असर आपके ऊपर नहीं डाल पाता है। </p><p>अगर आपने अजिंक्य शर्मा के उपन्यास नहीं पढ़े हैं उनके अन्य उपन्यासों से शुरुआत करें। इसे आखिर में पढ़ें। हो सकता है आपको यह भी पसंद आ जाए। </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/4bh44EX" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a> </p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2024/01/book-review-uff-kolkata-satya-vyas.html" target="_blank">सत्य व्यास के उपन्यास 'उफ्फ़ कोलकाता' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2018/05/my-take-on-Agiya-Betal-by-Parshuram-Sharma.html" target="_blank">परशुराम शर्मा के उपन्यास 'अगिया बेताल' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2018/10/my-views-on-where-is-the-werewolf-by-Nitin-Mishra.html" target="_blank">नितिन मिश्रा के उपन्यास 'वेयर इज द वेयरवुल्फ़' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2014/10/blog-post.html" target="_blank">राज भारती के उपन्यास 'प्यासी आत्मा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/01/book-review-chandra-prakash-pandey.html" target="_blank">चंद्रप्रकाश पांडेय के उपन्यास 'आवाज' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-22331398055319418152024-01-26T23:33:00.008+05:302024-01-29T16:37:09.682+05:30उफ्फ़ कोलकाता - सत्य व्यास | हिंद युग्म<p><b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 207 | <b>प्रकाशक:</b> हिंद युग्म</p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3Uah2y3" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgz83RerCQPFGd8RM-qQzpQrKmazsey8m-FoRsziFLt_6THb10DWBJ7aALGzMZpofcZMlAEkjPDxTGXPwPOF8Dfq8sv5zQBazQqdvA6Dnh5PjpSdImU7sMsrjW2W31QHaacO0B4x1-iBhtOikq6I9slhoay25Mm3WO5KujAJNJHuMv4mdcwUDijSNn_taQ/s600/56148774.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="390" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgz83RerCQPFGd8RM-qQzpQrKmazsey8m-FoRsziFLt_6THb10DWBJ7aALGzMZpofcZMlAEkjPDxTGXPwPOF8Dfq8sv5zQBazQqdvA6Dnh5PjpSdImU7sMsrjW2W31QHaacO0B4x1-iBhtOikq6I9slhoay25Mm3WO5KujAJNJHuMv4mdcwUDijSNn_taQ/s320/56148774.jpg" width="208" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>सिद्धार्थ जब अपने दोस्त चेतन के साथ घर से लौटकर अपने हॉस्टल आ रहे था तो क्या जानता था कि उनकी जिंदगी बदलने वाली है।</p><p>ट्रेन के उस सफर में रात को हुए एक हादसे ने सिद्धार्थ के होश उड़ा दिए थे और फिर उस परी चेहरा से हुई मुलाकात ने उसके दिल की घंटी को बजा दिया था। पर सफर खत्म हुआ तो परी चेहरा के साथ उसका साथ भी खत्म हो गया।</p><p>सिद्धार्थ का मन था कि ये परी चेहरा उसके साथ हमेशा रहे और अब वो उसकी तलाश में भटक रहा था।</p><p>वहीं सिद्धार्थ के दोस्त रुद्र और चेतन को यकीन था कि सिद्धार्थ जिस परी चेहरा के पीछे पागल है वो उनको किसी तगड़ी मुसीबत में डाल देगी। जब से सिद्धार्थ की जिंदगी में वो आई थी तब से उनके हॉस्टल में अजीबों गरीब घटनाएँ हो रही थीं। उसके दोस्तों का मानना था कि इन घटनाओ के पीछे वही परी चेहरा थी। जबकि कुछ घटनाएँ ऐसी हुई थी जिसके चलते सिद्धार्थ को लगता था कि ट्रेन में हुए हादसे से इसका संबंध था और वो जिसका आशिक था वो मासूम थी।</p><p>आखिर ये परी चेहरा कौन थी?</p><p>सिद्धार्थ के साथ कौन सा हादसा हुआ था?</p><p>हॉस्टल में ऐसा क्या हुआ था?</p><p>सिद्धार्थ और उसके दोस्तों में से कौन सही था?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div style="text-align: left;">सिद्धार्थ - एक लॉ स्टूडेंट<br />चेतन - सिद्धार्थ का दोस्त<br />रुद्र - सिद्धार्थ का दोस्त<br />पूजा - सिद्धार्थ की पूर्व प्रेमिका<br />दीपक - पूजा का पति<br />असगर अली - हॉस्टल का वार्डन<br />मोहिनी - सिद्धार्थ की प्रेमिका<br />मूसा बंगाली - एक तांत्रिक<br />यशरंजन, रवि, राजीव - लॉ स्टूडेंट</div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">विचार </h4><div><div>हिंदी साहित्य की बात की जाए तो इसमें <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/horror+समीक्षा" rel="nofollow" target="_blank">हॉरर</a> के पाठकों के लिए काफी कम साहित्य रचा गया है। जब हिंदी लोकप्रिय साहित्य अपने उरूज पर था तब भी हॉरर विधा में लिखने वाले कम ही लेखक थे। अब भी गिने चुने लोग ही इस विधा में रचना कर रहे हैं। हॉरर कॉमेडी में तो यह संख्या नगण्य ही कही जा सकती है। ऐसे में जब स्थापित लेखक इस विधा में हाथ आजमाते हैं तो यह अपने आप में सराहनीय कदम हो जाता है। </div><div><br /></div><div>उफ्फ कोलकाता सत्य व्यास का ऐसा ही प्रयोग है। यह उनका लिखा हॉरर कॉमेडी उपन्यास है जो कि हिंद युग्म द्वारा 2020 में प्रकाशित हुआ था। </div><div><br /></div><div>उपन्यास की शुरुआत किस्सा ए तोता मैना से होती है। किस्सा ए तोता मैना की बात की जाए तो इस उपन्यास को पढ़ने से पहले मैं बस यही जानता था कि यह कहानियों की एक शृंखला होती थी। इसके अतिरिक्त मुझे अधिक नहीं पता था। यह उपन्यास शुरु किया तो किस्सा तोता मैना दिखा तो मन में इनके प्रति उत्सुकता जागी। वैसे मुझे लगता है लेखक को इस विषय पर एक लेखकीय में या एक फुटनोट में बताना चाहिए था ताकि जो लोग इससे मेरी तरह अंजान हैं वो समझ पाते कि इसका क्या महत्व है। लेकिन चूँकि ऐसा नहीं हुआ तो संक्षेप में इतना बताना ही काफी होगा कि यह कहानियों की शृंखला है जिसमें पहले मैना तोता को कहानी सुनाती है और फिर तोता मैना को एक कहानी सुनाती है। तोता जिसे उसकी पत्नी ने धोखा दिया होता है उड़ते हुए एक ऐसी डाल में पहुंचता है जहाँ एक मैना रहती है। यह मैना मर्दों से नफरत करती है क्योंकि वो बेवफा होते हैं और अपनी बात को सही साबित करने के लिए वह एक बेवफा मर्द की कहानी सुनाती है। उसकी कहानी खत्म होती है तो तोता यह दर्शाने के लिए कि महिला बेवफा होती हैं एक बेवफा औरत की कहानी सुनाता है।</div><div><br /></div><div>प्रस्तुत उपन्यास भी ऐसे ही कुछ शुरू होता है और मैना तोते को सिद्धार्थ, चेतन और उसके दोस्तों की कहानी सुना रही होती है।</div></div><div><br /></div><div>सिद्धार्थ और चेतना कोलागढ़ के कविगुरु भारती यूनिवर्सिटी में लॉ के छात्र हैं जिनका प्रथम वर्ष हाल ही में समाप्त हुआ है और वह द्वितीय वर्ष में दाखिल हुए है। कहानी सिद्धार्थ और चेतन के एक शादी में मौजूद होने से होती है।</div><div><br /></div><div><div>इस शादी में कुछ ऐसा घटित होता है जो कि नायक के चरित्र को दर्शाता है जिसे मैना पहले ही नालायक कह चुकी होती है। कहानी आगे बढ़ती है ये नालायक अपने साथी चेतन के साथ ट्रेन से अपने हॉस्टल के लिए निकल पड़ता है। </div><div><br /></div><div>ट्रेन में इसके साथ दो घटनाएँ होती हैं जो कि न केवल नायक बल्कि उसके साथ-साथ उसके दोस्तों और उनके पूरे होस्टल के जीवन में हड़कंप ले आती हैं। यह घटनाएँ क्या होती हैं? नायक, उसके दोस्तों और हॉस्टल में क्या हड़कंप आता है? नायक और उसके दोस्त किस तरह की परेशानियाँ उठाते हुए इन समस्याओं को सुलझाते हैं? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर पाने की इच्छा आपसे उपन्यास के पृष्ठ पलटवाते चला लेती है। </div><div><br /></div><div>चूँकि यह हॉरर कॉमेडी है तो उपन्यास में हास्य भी है और भय का वातावरण भी स्थापित किया जाता है। हास्य रचना बहुत ही जटिल काम है। फिर हास्य वस्तुपरक न होकर व्यक्तिपरक भी होता है। ऐसे में उपन्यास में मौजूद हास्य कई जगह आपको हँसाता है और कई जगह आप किरदारों की प्रतिक्रिया देखकर ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि इसमें लोट पोट होने वाली क्या बात थी। हॉरर कॉमेडी का पहला हिस्सा हॉरर होता है। उपन्यास में कई दृश्य सचमुच भय पैदा करते हैं और कई बार पढ़ते हुए मैं तो एक पल को पढ़ना ये चेक करने के लिए छोड़ देता था कि कहीं पीछे से साँस लेने की कोई आवाज तो नहीं आ रही है। आप भी अगर ये लेख पढ़ रहे हैं तो एक पल को पढ़ना छोड़िए और जाँच लीजिए कि आपके पीछे कोई खड़ा तो नहीं है। </div><div><br /></div><div>उपन्यास का मुख्य घटनाक्रम एक लॉ कॉलेज के हॉस्टल में घटित होता है। बनारस टॉकीज में लेखक इस ज़िंदगी पर अपनी पकड़ दर्शा चुके हैं तो यहाँ वो होम ग्राउन्ड में ही देखते हैं। हॉस्टल, वहाँ की ज़िंदगी, वहाँ के झगड़े, राजनीति, शरारतें, बेवकूफियाँ, बकैतियाँ इत्यादि का उन्होंने बाखूबी चित्रण किया है। अगर आप कॉलेज में पढ़ते हैं तो आप अपने मौजूद जीवन का अक्स इसमें देख पाएँगे और अगर कॉलेज से निकले कई वर्ष आपको हो चुके हैं तो आपकी कई यादें आपको इधर मिल जाएँगी। </div><div><br /></div><div>उपन्यास में मूलतः दो कहानियाँ एक साथ चल रही होती हैं। हॉस्टल में होती घटनाएँ और सिद्धार्थ और उसकी रहस्यमय परिचेहरा की मुलाकातें या मुलाकातों की कोशिश। दोनों ही घटनाओं के बीच में क्या संबंध है? संबंध है भी या नहीं? यह प्रश्न एक तरह का रहस्य कथानक में बनाए रखते हैं जो कि आपसे उपन्यास पढ़वा जाता है। </div><div><br /></div><div><div><div>उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो मुख्य किरदार सिद्धार्थ स्त्री द्वेषी है जो स्त्री को मुख्यतः भोग की वस्तु ही समझता है। वह कई लड़कियों को धोखा दे चुका होता है लेकिन जब एक लड़की अपनी मर्जी से किसी और से शादी कर रही होती है तो उसे यह बात पचती नहीं है। उसकी सोच ये है कि जिस स्त्री का वो सम्मान करे सब उसका सम्मान करें लेकिन उसे खुद किसी अन्य स्त्री का सम्मान करना जमता नहीं है। </div><div><br /></div><div>सिद्धार्थ के बनिस्पत रुद्र और चेतन थोड़ा बेहतर हैं। उन्हें स्त्री के मामले में सही गलत का थोड़ा ज्यादा ख्याल रहता है और इस कारण उनसे जुड़ाव ज्यादा महसूस होता है। </div><div><br /></div><div>असगर अली का किरदार भी रोचक है और उसके साथ छात्रों के सीन्स मजेदार बन पड़े हैं।</div><div><br /></div><div>मोहिनी का किरदार रहस्यमयी है और उसके बारे में और जानने की इच्छा आपको पृष्ठ पलटने पर मजबूर कर देती है। मोहनी को लेकर जो दृश्य लेखक ने लिखे हैं वो बड़े मजेदार बने हैं। </div><div><br /></div><div>मूसा बंगाली का किरदार भी रोचक बन पड़ा है और उसके सभी दृश्य हास्य पैदा कर मनोरंजन करने में सफल होते हैं।</div><div><br /></div><div>बाकी के किरदार कथानक के अनुरूप हैं।</div></div><div><br /></div></div><div>उपन्यास की कमी की बात करूँ तो जैसा कि ऊपर मैंने बताया है कि उपन्यास में हास्य और हास्य रचने की कोशिश कई जगह की है। ये कोशिश कई बार सफल होती है और कई बार मुँह के बल के गिरती है। अब यह उपन्यास आपको कैसा लगता है यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके लिए कितनी बार विफल हुई और कितने बार सफल। जहाँ तक मेरी बात थी मुझे लगता है कि मेरे विफलता और सफलता के बीच फर्क जरूर था लेकिन वो मामूली ही था। विफलता थोड़ी अधिक थी। व्यक्तिगत तौर पर् मुझे लगा कि इस कोशिश के विफल होने के पीछे एक कारण लेखक का किरदारों की प्रतिक्रिया के बारे में लिखना भी है। मसलन कई जगह लेखक दर्शाते हैं कि कोई बात होने या डायलॉग बोलने पर कोई किरदार हँस हँस कर लोटपोट हो रहा है जबकि पाठक के तौर पर मेरे लिए वह चीज इतनी हास्यजनक नहीं थी कि कोई उस पर लोटपोट हो। ऐसे में एक तरह का डिस्कनेक्ट आप महसूस करते हैं और हास्य फोर्सड लगने लगता है। </div></div><div><br /></div><div>उपन्यास में दूसरी बात जो मुझे खटकी वो उपन्यास की कमी तो नहीं कहलाएगी लेकिन क्योंकि उससे फर्क पड़ा तो उसके विषय में लिखना जरूरी है। अगर आप किसी उपन्यास को पढ़ रहे हैं तो आप चाहते हैं कि मुख्य किरदार ऐसा हो जिससे आप इतना जुड़ाव महसूस करें कि उसकी हार होती है या जीत इससे आपको कोई फर्क पड़े। लेकिन सिद्धार्थ ऐसा किरदार है जो व्यक्तिगत तौर पर मुझे पसंद नहीं आया। उसका मुख्य कारण उसका स्त्रियों के प्रति नजरिया ही था। ऐसे में उसके साथ कहानी मे क्या होता है इससे मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था। इसके बजाय मुझे उसके दोस्तों कि ज्यादा चिंता थी। </div><div><br /></div><div>उपन्यास में एक और बात जो मुझे खटकी वो पारलौकिक शक्ति का नाम है। यहाँ पर पारलौकिक शक्ति का नाम बंशी दिया है और उसका एक विवरण दिया है। अब बंशी नाम स्थानीय है या बैनशी (banshee) का हिंदी करण है ये बात साफ नहीं होती है। ऐसा इसलिए भी अंग्रेजी वाली बैनशी के जो विशेषताएँ होती हैं वो इस बंशी से मिलती नहीं है। बस चीख ही एक बात है जो मिलती है उसके अलावा सब अलग है। ऐसे में लेखक इस पर और रोशनी डालते तो बेहतर होता। </div><div><br /></div><div>उपन्यास के शीर्षक की बात की जाए तो शीर्षक किस प्रकार इस कथानक पर फिट बैठता है यह भी मुझे समझ नहीं आया। उपन्यास का शीर्षक जब मैंने पढ़ा था तो लगा था कि कथानक का कोलकता से कोई गहरा नाता होगा या फिर कथानक कोलकता में ही घटित हो रहा होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। कथानक का कोलकाता से बस इतना ही लेना देना है कि सिद्धार्थ और चेतन उधर रहते हैं और कथानक की शुरुआत उधर से होती है। मुख्य कथानक कोलाघाट में घटित होता है। अगर लेखक कथानक का कोलकता से कोई और मजबूत संबंध जोड़ देते या उपन्यास के घटनाक्रम का जरूरी हिस्सा उधर घटित होता दर्शाते तो शायद बेहतर होता। अभी तो यह आपके मन में गलत अपेक्षाएँ जगाता है और जब वो पूरी नहीं होती तो निराशा भी पैदा करता है। </div><div><br /></div><div>यह उपन्यास किस्सा ए तोता मैना के फॉर्मैट में लिखा गया है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर नहीं पता कि उन कहानियों में अंत में तोता और मैना आते थे या नहीं लेकिन अगर इस उपन्यास के अंत में वो आते तो अच्छा होता। उसके न आने से एक तरह का अधूरापन सा उपन्यास में मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगा। </div><div><br /></div><div><div>अंत में यही कहूँगा कि उफ्फ़ कोलकता लेखक एक सराहनीय प्रयास है। उपन्यास अभी औसत से अच्छा बन पड़ा है। हास्य लिखना कठिन कार्य है और उसमें सफल होने के बजाए असफल होने की संभावना अधिक रहती है। प्रस्तुत उपन्यास में मेरे लिए कई जगह ऐसा यह प्रयास सफल हुआ लेकिन कई जगह असफल भी हुआ है। भय के दृश्यों के मामलों में ज्यादातर जगहों में लेखक सफल ही हुए हैं। ऐसे में उपन्यास मेरा मनोरंजन करने में सफल ही होता है। मुझे लगता है कि लेखक को ऐसे प्रयास और करने चाहिए। मैं आगे भी इस विधा में लिखी उनकी रचनाएँ अवश्य पढ़ना चाहूँगा। साथ ही उन्हें कभी एक खालिस हॉरर उपन्यास भी लिखना चाहिए। मुझे उनके द्वारा लिखे हॉरर विधा के उपन्यास जरूर पढ़ना चाहूँगा। </div></div><p>जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि हास्य व्यक्तिपरक होता है। अगर हास्य आपको जमा तो यह उपन्यास आपको पसंद आएगा और नहीं जमा तो शायद फिर उपन्यास उतना पसंद न आए। फिर भी एक बार पढ़कर देख सकते हैं। </p><p><br /></p><p><b>उपन्यास के कुछ चुनिंदा अंश </b></p><p></p><blockquote>हार का वार बड़ा घातक होता है और हार की मार बड़ी दर्दीली। (<b>पृष्ठ 76</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote>बेपरवाहियाँ जवानी का पहला इशारा है और बदमाशियाँ नौ-उम्री जी पहली सीढ़ी। बाद के दिनों में जो सोचकर भी रूह काँप जाए वह इन दिनों की मौज होती है। (<b>पृष्ठ 82</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote>रात। क्या अजाब है कि दिन-रात जैसी खगोलीय प्रक्रिया भी नेक और बद के मुताबिक बाँट दी गई। नेकी दिन के हिस्से आई और बदी रात के हिस्से। सो सारे बुरे, तामसिक और पैशाचिक काम रात ही संभालती है। (<b>पृष्ठ 87</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote>आलसियों की नींद थकान और मकान का इंतजार नहीं करती। वह कहीं भीआ सकती है। (<b>पृष्ठ 94</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote>प्रेम असंभव में भी संभावना तलाश लेने का योग है। अंधविश्वास मूर्खता है और प्रेम सबसे प्रगाढ़ अंधविश्वास। तर्कों पर नासमझी की जीत ही अंधविश्वास है और यही प्रेम का सूत्र भी है। तर्क लाख सीधी राह दिखाए, प्रेम नासमझी की ओर ही झुकता है और राह की प्रवाह ही नहीं करता। (<b>पृष्ठ 102</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote>भय की जमीन बहुत उर्वर होती है। उसे संयोग का खाद पानी मिल जाए तो अंधविश्वास फौरन ही उग जाते हैं। तर्क और विज्ञान संयोगों को सिद्ध करने में अपना समय जमा लेते हैं और जब तक यह सिद्ध होते हैं तब तक अंधविश्वास अपनी जड़ें जमा चुका होता है। (<b>पृष्ठ 109</b>)</blockquote><blockquote>दिल साहूकार है जिसके हाथों मजबूर होकर आदमी हर वाजिब, गैर वाजिब काम करता है। (<b>पृष्ठ 131</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote>मगर मनुष्य का निश्चय कठपुतलियों के गिरह की तरह होता है, जिसे लगता तो है कि वह उसके नियंत्रण में है मगर उस गिरह से लगे धागे किसी और के हाथ में होते हैं। (<b>पृष्ठ 141</b>)</blockquote><p></p><p></p><blockquote><p>सबसे बुरा डर होता है उस अनदेखे का डर जो दिखता तो नहीं पर महसूस होता हो। माहौल जिसके होने का अहसास कराता है। ऐसा कुछ गैरमामूली अहसास जो रीढ़ की हड्डियों तक में झुरझुरी पैदा कर दे। सबसे बुरा डर होता है उस अदेखे का डर जो महसूस हो रहा हो। (<b>पृष्ठ 202</b>)</p></blockquote><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3Uah2y3" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/08/rakesh-verma-on-vickram-e-diwan-s-warlock-series.html" target="_blank">विक्रम दीवान की उपन्यास शृंखला 'वारलॉक' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/01/book-review-chudail-wala-mod-vilkas-bhanti.html" target="_blank">विकास भांती की उपन्यासिका 'चुड़ैल वाला मोड़' पर टिप्पणी</a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/09/book-review-siharan-by-shubhanand.html" target="_blank">शुभानन्द की उपन्यासिका 'सिहरन' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/06/book-review-of-anhoni-by-chandra-prakash-pandey.html" target="_blank">चंद्रप्रकाश पांडेय के उपन्यास 'अनहोनी' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/01/book-review-party-started-now-by-ajinkya-sharma.html" target="_blank">अजिंक्य शर्मा के उपन्यास पार्टी 'स्टार्टेड नाऊ' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2018/11/my-take-on-rang-mahal-ke-pret-by-rajbharti.html" target="_blank">राज भारती के उपन्यास 'रंग महल का प्रेत' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-4339512605600949402024-01-21T11:41:00.000+05:302024-01-21T11:41:57.132+05:30ब्लाइंड डील: लेखकीय और कहानियाँ - सुरेन्द्र मोहन पाठक<p><b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> ईबुक | <b>प्लेटफॉर्म:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/kindle" rel="nofollow" target="_blank">किंडल</a> </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/491Xn7A" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5qDMKDzjXVoZSz1ABNw0DP72B5z-tVI4qLNOOmhmTZg8ABIHBvsKwklZO2SNfOxCOVll172PPaNjaS3h60CWd2FiIHdkb8SkcdR51IOQ6W1WnYkOvBifHCVZ6Zoogoq8eRBFIHj2XwDzZ4ezbn8ak7OnSXlPAlW2FB97hrv_6Cqe1fR-DNOcll-eD/s320/blinddeal.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="ब्लाइंड डील - सुरेंद्र मोहन पाठक" border="0" data-original-height="320" data-original-width="201" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5qDMKDzjXVoZSz1ABNw0DP72B5z-tVI4qLNOOmhmTZg8ABIHBvsKwklZO2SNfOxCOVll172PPaNjaS3h60CWd2FiIHdkb8SkcdR51IOQ6W1WnYkOvBifHCVZ6Zoogoq8eRBFIHj2XwDzZ4ezbn8ak7OnSXlPAlW2FB97hrv_6Cqe1fR-DNOcll-eD/w201-h320/blinddeal.jpg" title="ब्लाइंड डील - सुरेंद्र मोहन पाठक" width="201" /></a></div><p>लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की ब्लाइंड डील 7 जून 2022 को सीधे किंडल पर प्रकाशित हुई थी। 'कातिल कौन' के बाद यह दूसरा मौका था जब लेखक द्वारा कोई किताब पहले ई बुक के रूप में प्रकाशित की गई थी। 'ब्लाइंड डील' में पाठकों के लिए लेखक द्वारा एक विस्तृत लेखकीय, एक उपन्यास ब्लाइंड डील और चार कहानियाँ परोसी गई हैं। </p><p>उपन्यास पर विचार आप निम्न लिंक पर् जाकर पढ़ सकते हैं:</p><p><a href="https://www.ekbookjournal.com/2024/01/book-review-of-surender-mohan-pathak-s-blind-deal.html" target="_blank">ब्लाइंड डील</a></p><p>प्रस्तुत लेख में हम केवल लेखकीय और कहानियों पर बात करेंगे। </p><p>सुरेंद्र मोहन पाठक जितने अपने उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं उतने ही उनके लेखकीय भी उनके प्रशंसकों के बीच प्रसिद्ध हैं। अपने लेखकीय के माध्यम से न केवल वो किताब से जुड़ी जानकारी और पुरानी प्रकाशित किताबों के ऊपर मिली पाठकों की राय पाठक के साथ साझा करते हैं पर साथ साथ कई दूसरी रोचक जानकारियाँ भी पाठक के साथ साझा करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में मौजूद लेखकीय भी ऐसा ही है। इसमें इस पुस्तक में मौजूद कहानियों के लिखने का प्रयोजन पाठक साहब साझा करते हैं। यह कहानियाँ क्यों लिखी गई और किसके लिए प्रथम बार लिखी गई इसका पता पाठक को लेखकीय पढ़कर लगता है। साथ ही उस समय की पत्रिकाओं और पत्रिका के ट्रेड से जुड़ी कुछ और जानकारियाँ भी पाठक जान पता है। इसके अलावा पुस्तकों और पुस्तकों की महिमा के साथ साथ भारत में जासूसी साहित्यकारों के साथ होते बर्ताव के विषय में भी लेखक लिखते हैं। वहीं यह जानकारी भी देते हैं कि उन्हें क्यों किंडल पर किताब प्रकाशित करनी पड़ी। कहानियों की जानकारी के अलावा लेखक गैंग ऑफ फोर के बारे में मिली पाठकों की राय साझा करते हैं और साथ साथ लग्जरी गाड़ियों विशेषकर रोल्स रॉयस कार से जुड़ी कई रोचक जानकारियाँ भी पाठक के साथ साझा करते हैं।</p><p>लेखकीय पठनीय है और किताब का एडेड अट्रैक्शन है। अगर आप पाठक साहब के लेखकीय पसंद करते हैं तो यह भी आपको पसंद आएगा।</p><p>पुस्तक में मौजूद कहानियों की बात करें तो इस पुस्तक में चार कहानियों को प्रकाशित किया गया है। लेखक की यह चारों ही कहानियाँ करीब बयालीस साल पहेली के तौर पर पत्रिका में प्रकाशित हुई थी और अब कई वर्षों बाद कहानी के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। चारों ही कहानियों में पाठक साहब मौजूद हैं जो कि अपने दोस्त इंस्पेक्टर एन एस अमीठिया के कहने पर मामले से जुड़ते हैं और असल कातिल तक पहुँचते हैं। चूँकि यह कहानियाँ पहले पहेली की तरह लिखी हुई थी तो जाहिर है ज्यादा जटिल इन्होंने नहीं होना था। साथ ही कथानक में ऐसे कुछ क्लूज का होना लाजमी था जिन्हें पहचानकर अपराधी तक पहुँचा जा सकता था। ऐसे में कुछ कहानी के क्लूज से आसानी से यह पता लगाया जा सकता है कि असल अपराधी कौन है।</p><p>इन चारों कहानियों की बात करूँ तो पहली दो कहानियाँ मर्डर मिस्ट्री हैं और आखिर की दो कहानियों में रहस्य तो है लेकिन कत्ल नहीं होता है। </p><p>संग्रह में मौजूद पहली कहानी <b>ठाकुर हरनाम सिंह</b> का कत्ल है। जैसे कि नाम से जाहिर है इसमें ठाकुर हरनाम सिंह नामक व्यक्ति का कत्ल होता है और मौकाय वारदात पर मिले सबूतों के आधार पर किस तरह असल कातिल तक पहुँचा जाता है यह देखने को मिलता है। कहानी रोचक है और मनोरंजन करने में सफल होती है। कहानी में मौजूद क्लूज आसानी से पकड़ में नहीं आते हैं।</p><p>दूसरी कहानी <b>पब्लिसिटी स्टंट</b> है। जाना माना गीतकार और संगीत निर्देशक कमल देव अमीठिया के पास मदद के लिए पहुँचा था। उसका कहना था कि उसकी टीम के बाँसुरी वादक राजेंद्र नाथ का कहना था कि उसके परिवार में जिस किसी ने भी राग जयजयवंती बजाया वो ही स्वर्गवासी हो गया। अब कमल देव ने भी इसी राग पर आधारित एक गीत लिखा था जिसकी रिकॉर्डिंग होनी थी। कमल को लगता था कि कहीं ये रिकॉर्डिंग राजेंद्र की मौत का बायस न बन जाए। क्या कमल का डर लाजमी था? क्या राग से मृत्यु की बात सच थी या फिर एक पब्लिसिटी स्टंट था।</p><p>यह रोचक कहानी है जिसमें हिंट के बावजूद कत्ल कैसे हुआ ये पता लगाने में थोड़ा दिक्कत होती है। क्लू आसानी से मिस हो जाता है। मुझे मजेदार लगी। </p><p>तीसरी कहानी <b>विष के व्यापारी</b> हैं। युवाओं के बीच ड्रग्स एक ऐसी बीमारी के तौर पर फैला हुआ जिससे कई युवाओं की ज़िंदगी बर्बाद हो गई है। यह कहानी भी इसी समस्या को केंद्र में लेकर लिखी गई है। इन्स्पेक्टर अमीठिया के कहने पर पाठक साहब को अपने दोस्त मनीष की उन पार्टियों में शामिल होना पड़ता है जहाँ ये ड्रग्स परोसी जाती हैं। अमीठिया चाहता कि पाठक सहाब मनीष के डीलर का पता लगाएँ ताकि पुलिस ड्रग्स की इस कड़ी को तोड़ सके। यह काम लेखक कैसे करते हैं यही कहानी बनती है। कहानी ठीक ठाक है। इसमें कुछ क्लूज मौजूद हैं जिससे आपको एक किरदार के बयान में सच्चाई है या नहीं ये पता लगाना होता है। क्लूज अच्छे हैं लेकिन रहस्य के तत्व कमजोर है। पहेली के रूप में कहानी अच्छी थी। लेकिन अगर इसमें रोमांच और रहस्य के तत्व और अधिक होते तो बेहतर होता। </p><p><b>ओपन एंड शट केस</b> इस संकलन में मौजूद आखिरी कहानी है। जैसा कि नाम से जाहिर है यह एक ओपन एण्ड शट केस ही है जिसमें अपराधी कौन है उसे पता लगाना बहुत आसान है। कहानी की खासियत यही है कि पाठक साहब ने इसमें अपने कान की दिक्कत और अपने डरपोक होने का जिक्र किया है और यह दर्शाया है कि लेखक और उसके किरदार दो अलग चीजें होती हैं और लेखक अपने किरदारों जैसा ही होगा यह गलतफहमी पाठकों को नहीं पालनी चाहिए। यह कहानी मुझे चारों में से सबसे कमजोर लगी। कहानी थोड़ा जटिल होती और कुछ ट्विस्ट इसमें होते तो बेहतर होता। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि संकलित हुए कहानियों में से पहली दो कहानियाँ रोचक हैं और दो कहानियाँ ऐसी हैं जिनमें और काम होता तो बेहतर होता। लेखकीय और पहली दो कहानियाँ आपका मनोरंजन करने में सफल होंगी ऐसा मुझे लगता है। </p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/491Xn7A" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें</h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/07/review-qatil-camera-vikas-c-s-jha.html" target="_blank">विकास सी एस झा की कहानी 'कातिल कैमरा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/02/book-review-pushpak-vishi-sinha.html" target="_blank">विशी सिन्हा की कहानी 'पुष्पक' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/review-of-aditya-kumar-s-daag.html" target="_blank">आदित्य कुमार की उपन्यासिका 'दाग' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/04/kaan-ka-bunda-yogesh-mittal.html" target="_blank">योगेश मित्तल की कहानी 'कान का बुंदा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/07/sharabi-Qatil-ved-prakash-kamboj.html" target="_blank">वेद प्रकाश कांबोज की रचना 'शराबी कातिल' पर टिप्पणी</a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-82726999026821832412024-01-20T15:45:00.001+05:302024-01-20T15:47:59.320+05:30ब्लाइंड डील - सुरेंद्र मोहन पाठक<p><b>संस्करण विवरण:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> ईबुक | <b>प्लेटफॉर्म:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/kindle" rel="nofollow" target="_blank">किंडल</a> </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/491Xn7A" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><p>लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की ब्लाइंड डील 7 जून 2022 को सीधे किंडल पर प्रकाशित हुई थी। 'कातिल कौन' के बाद यह दूसरा मौका था जब लेखक द्वारा कोई किताब पहले ई बुक के रूप में प्रकाशित की गई थी। 'ब्लाइंड डील' में पाठकों के लिए लेखक द्वारा एक विस्तृत लेखकीय, एक उपन्यास ब्लाइंड डील और चार कहानियाँ परोसी गई थी। प्रस्तुत लेख में हम केवल उपन्यास पर बात करेंगे। </p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5qDMKDzjXVoZSz1ABNw0DP72B5z-tVI4qLNOOmhmTZg8ABIHBvsKwklZO2SNfOxCOVll172PPaNjaS3h60CWd2FiIHdkb8SkcdR51IOQ6W1WnYkOvBifHCVZ6Zoogoq8eRBFIHj2XwDzZ4ezbn8ak7OnSXlPAlW2FB97hrv_6Cqe1fR-DNOcll-eD/s320/blinddeal.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="ब्लाइंड डील - सुरेंद्र मोहन पाठक" border="0" data-original-height="320" data-original-width="201" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5qDMKDzjXVoZSz1ABNw0DP72B5z-tVI4qLNOOmhmTZg8ABIHBvsKwklZO2SNfOxCOVll172PPaNjaS3h60CWd2FiIHdkb8SkcdR51IOQ6W1WnYkOvBifHCVZ6Zoogoq8eRBFIHj2XwDzZ4ezbn8ak7OnSXlPAlW2FB97hrv_6Cqe1fR-DNOcll-eD/w201-h320/blinddeal.jpg" title="ब्लाइंड डील - सुरेंद्र मोहन पाठक" width="201" /></a></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><div><div>शिवनाथ व्यास अपने कंपेनियन कपिल मेहता के साथ जब पुणे से मुंबई आया तो उसके जहन में एक पुराने वादे को पूरा करने की मंशा थी। </div><div><br /></div><div>एक ऐसा वादा जिसके चलते उसे हीरे किसी को देने थे।</div><div><br /></div><div>अपनी इसी मंशा को पूरा करने के लिए उसने हीरे से जुड़ी वो ब्लाइंड डील ली थी। </div><div><br /></div><div>पर वो कहाँ जानता था कि यह डील उसके जीवन की आखिरी डील होने वाली थी। </div><div><br /></div><div>इस डील के कुछ ही घंटों बाद वह अपने कमरे में कत्ल कर दिया जाएगा। </div><div><br /></div><div>आखिर कौन था जिसने शिवनाथ व्यास का कत्ल किया था?</div><div>आखिर क्या थी ये ब्लाइंड डील?</div><div>डील में मिले हीरों का क्या हुआ?</div></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div><div>शिवनाथ व्यास - एक बुजुर्ग जिसका कत्ल हुआ था</div><div>कपिल - शिवनाथ का कंपेनियन</div><div>लौंगमल कृपलानी - एक हीरे का व्यापारी</div><div>कोकिला कृपलानी - लौंगमल की बेटी</div><div>उदित आहूजा - एक और डायमंड मर्चेंट</div><div>तपन दीवान - एक डायमंड ब्रोकर</div></div><div>देवांग शिंदे - पुलिस इंस्पेक्टर जो तहकीकात कर रहा था</div><div>एलिजाबेथ सिलवा उर्फ लीजा - एक बारबाला जिससे शिवनाथ के संबंध थे</div><div>मनु सावंत - कोकिला का पार्टनर</div><div>भरत कार्की - सिंडीकेट का वो सदस्य जो उदय की मदद कर रहा था</div><div>सूर्य विक्रम बराल - नेपाली कस्टम अधिकारी</div><div><br /></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">विचार </h4><div>लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का लिखा उपन्यास 'ब्लाइंड डील' मूलतः यह एक मर्डर मिस्ट्री है।</div><div><br /></div><div>उपन्यास की शुरुआत एक होटल के कमरे से होती है। कमरे में पुलिस है और साथ ही हैं कोकिला कृपलानी और कपिल मेहता। इस कमरे में एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग शिवनाथ व्यास का कत्ल होकर हटा है और कपिल के बुलाने से पुलिस वहाँ आई है। कपिल का कहना है कि कोकिला कृपलानी द्वारा ही बुजुर्ग की हत्या हुई है लेकिन चूँकि बुर्जुग की मिल्कियत में मौजूद हीरे गायब हैं तो पुलिस के शक के घेरे में कपिल भी है। कोकिला कौन है? कपिल का बुर्जुग के साथ क्या रिश्ता है? हीरों का क्या चक्कर है? और कत्ल किसने किया? यह सब वो प्रश्न हैं जिन्हें जानने की उत्सुकता आपसे उपन्यास के पृष्ठ स्वाइप करवाते जाती है।</div><div><br /></div><div><div>उपन्यास का कथानक दो तरीके से उजागर होता है। शुरुआत में शिवनाथ व्यास, कपिल, उनके रिश्ते और उनके पुणे से मुंबई आने की बाबत पाठक को कपिल के लिखे एक विस्तृत बयान से पता लगता है। चूँकि यह बयान है तो यह हिस्सा प्रथम पुरुष में होता है।</div><div><br /></div><div>उपन्यास के बाद की कहानी तृतीय पुरुष में होती है जहाँ पुलिस के साथ मिलकर कपिल अपने दिमागी घोड़े दौड़ाता है और कातिल तक पहुँचने की कोशिश करता है। इस कोशिश में उसका शक कुछ लोगों में जाता है और हीरों की जो डील उसके एंप्लॉयर ने की थी उससे जुड़े कुछ ऐसे किरदारों से उसका सामना होता है जिनके पास कत्ल का पूरा मोटिव था। </div><div><br /></div><div>कथानक में दो रहस्य रहते हैं। पहला कि हीरे कहाँ हैं और दूसरा कि कत्ल किसने किया। चूँकि पाठक ने बयान पढ़ा रहता है तो उसके लिए पहले रहस्य का अंदाजा लगाना इतना कठिन नहीं होता है। पहले रहस्य के मार्फत यही कहूँगा कि उपन्यास में एक किरदार शेरो शायरी का शौकीन होता है। ऐसे में वह हीरों की मौजूदगी वाला क्लू किसी शेर के माध्यम से साझा करता तो शायद उसका पता लगना पाठक के लिए थोड़ा और मुश्किल हो जाता। अगर ऐसा होता तो कथानक और मजबूत हो जाता। </div><div><br /></div><div>वहीं दूसरे रहस्य का पता जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है और मामला साफ होता रहता है तो ही लगता है। </div><div><br /></div><div>वैसे तो यह रहस्य कथा है और साक्ष्यों के सहारे ही किरदार आगे बढ़ते हैं लेकिन लेखक ने कथानक में ट्विस्ट दिया है और इस कारण कथानक की पठनीयता बनी रहती है। जैसे जैसे आगे मामले से जुड़ी चीजें उजागर होती रहती हैं वैसे वैसे आगे पढ़ते जाने की इच्छा जागृत होती रहती है।</div></div><div><br /></div>लेकिन रहस्य को लेखक एक संयोग द्वारा उजागर करवाते हैं जो कि मुझे लगता है कथानक को थोड़ा सा कमजोर करता है। अगर संयोग के बजाय किसी ऐसे क्लू से, जो कि पाठक के साथ पुलिस से भी मिस हो गया, राज उजागर होता तो बेहतर रहता। यहाँ ये बात भी है कि जहां संयोग हुआ है उधर भी मुख्य किरदार दिमाग लगाकर ही पहुँचता है। वो बात सोचकर पहुँचता है जिस तक पुलिस भी न सोच पाई थी तो यह ऊपर लिखी कमजोरी की थोड़ी बहुत भरपाई कर देता है।<div><br /></div><div><div>उपन्यास की कमी की बात करूँ तो ऊपर रहस्य से जुड़ी कमी के अलावा उपन्यास में संपादन की कमी दिखती है। कहीं कहीं पर तृतीय से प्रथम पुरुष में कथानक अचानक से एक दो लाइन के लिए हो जाता है जो कि कंफ्यूज कर देता है। उदाहरण के लिए:</div><div><br /></div><div></div><blockquote><div>“एनी फ्रेंड ऑफ कोकिला इज़ ए फ्रेंड ऑफ माइन। नो?” कबीर ने जवाब न दिया। </div><div><br /></div><div>उस से पूरी तरह विमुख हो के वो युवती की ओर घूमा, “मैं यहाँ तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। जरूरी बात करनी है, चलते हैं कहीं जहां . . .” </div><div><br /></div><div>“यहाँ क्या हर्ज है?” कोकिला बोली, “मिस्टर मेहता ने मुझे कॉफी के लिए इनवाइट किया है। अगर तुम भी कॉफी पीना पसंद करो तो . . .” </div><div><br /></div><div>“मैं तो कुछ खाना भी पसंद करूंगा।” वो चहका, “यहाँ पहुँचने की जल्दी में टाइम न लगा ब्रेकफ़ास्ट का। मिस्टर बेदी – आई मीन मेहता - अगर मुझे भी इनवाइट करें तो बात बने!” </div><div><br /></div><div>“बी माई गेस्ट, सर!” मैं अनमने भाव से बोला।</div></blockquote><div></div><div><br /></div><div><blockquote>“दिखाई दे रहा है मुझे! तभी तो रात हवालात में कटी!” <br /><br />इन्स्पेक्टर हँसा, मेरी बेबसी पर हँसा कम्बख्त! <br /><br />“व्यास साहब मेरे पितातुल्य थे,” कबीर धीरे से बोला, “मेरे लिए पूज्यनीय थे, मैं उनके साथ सुखी था, संतुष्ट था, उनके माल पर निगाह रखना मेरे लिए डूब मरने का मुकाम होता। कैसे मैं उनकी खरीद हीरों पर लार टपकाने का खयाल भी जेहन में आने दे सकता था!”</blockquote></div><div><br /></div><div>उपन्यास में होटल के कमरे में एक मर्डर होता है। पुलिस वाले को दिए बयान में एक व्यक्ति कहता है कि मरने वाले से मिलने के लिए कोई व्यक्ति आने वाला था। अब पुलिस यह बात जानती है कि कत्ल करने वाल कमरे में आया होगा। ऐसे में आज के समय में जब हर होटल में सी सी टी वी कैमरा होता है वहाँ पुलिस को पहला काम ये ही सुनिश्चित करना था कि क्या कमरे वाले गलियारे में कैमरा था। वहाँ नहीं था तो रिसेप्शन पर रहा होगा। अगर वो ये काम करती तो आसानी से पता लगा सकती थी कि कौन कौन होटल और फिर कमरे में आया था। इस बिंदु का जिक्र न होना भी एक कमी है। अच्छा होता कि लेखक कैमरे और उसकी मौजूदगी या गैरमौजूदगी का जिक्र करते। अभी इसका जिक्र ही न करना एक कथानक का बदा प्लॉट होल है। </div><div><br /></div><div>इसके अतिरिक्त कोकिला और कपिल के बीच का रिश्ता आखिर में जिस मोड़ पर् आता है वह थोड़ा फिल्मी लगता है। मुझे लगता है कुछ ऐसे प्रसंग डालने चाहिए था जिससे रिश्ते को प्रगाढ़ होते हुए पाठक देखते। फिर शायद उनके रिश्ते की परिणति को पचाना आसान होता। </div><div><br /></div><div>ब्लाइंड डील मूलतः भले ही एक रहस्यकथा हो लेकिन यह उपन्यास भावनातमक रूप से काफी सशक्त मजबूत है। उपन्यास में मौजूद प्रसंग मन को छू जाते हैं। आज के जमाने में जहाँ लोग खून के रिश्ते की कद्र नहीं करते उसमें कपिल का शिवनाथ के प्रति भाव भावुक करता है। इसी रिश्ते से जुड़ा उपन्यास का आखिर का हिस्सा आपके मन को छू जाता है। वहीं कई बार एक तरफे प्यार के चलते व्यक्ति क्या क्या कर देता है यह भी इधर दिखता है। आखिर में यह एक तरफा वाला प्रसंग भी आपका मन छू देता है। वहीं शिवनाथ यक एकाकीपन भी आपको साल देता है। </div><div><br /></div><div>किरदारों की बात की जाए तो शिवनाथ व्यास का किरदार प्रेरक है। अपने वादे को निभाने वाले ऐसे कम ही होते हैं और उसका एकाकीपन आपको छू जाता है।कपिल मेहता के किरदार से भी आपका जुड़ाव हो जाता है। उदय आहूजा और कपिल के वार्तालाप के माध्यम से लेखक हास्य भी पैदा करते हैं। इंस्पेक्टर के रूप में देवांग शिंदे मौजूद है। देवांग एक कर्तव्य परायण पुलिसिया है जो कि कडक जरूर है लेकिन ईमानदार है। अक्सर पुलिस वालों को चेहरे पर् कठोरता का एक नकाब ओढ़कर चलना पड़ता है क्योंकि वो ऐसे पेशे से जुड़े हैं जहाँ पता नहीं कौन उन्हें बेवकूफ बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करे। पर पुलिस वालों के कठोर चेहरों के पीछे भी एक मनुष्य होता है। देवांग इसका उदाहरण उपन्यास में भली भाँति देता है। </div><div><br /></div><div>अंत में यही कहूँगा कि ब्लाइंड डील एक पठनीय उपन्यास है। कथानक में रोचकता अंत तक बनी रहती है। ऊपर एक आध कमी बताई है लेकिन क्योंकि उपन्यास सेल्फ पब्लिश है और एडिटिंग प्रोसेस से नहीं गुजरा है तो वो रह गई है। पर अगर आप मनोरंजन के लिए उपन्यास पढ़ते हैं तो मुझे लगता है आपका मनोरंजन करने में यह सफल होगी।</div><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/491Xn7A" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><div><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/01/the-great-social-media-trial-gaurav.html" target="_blank">गौरव कुमार निगम के उपन्यास 'द ग्रेट सोशल मीडिया ट्रायल' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/12/review-of-devta-ka-haar-by-ved-prakash-kamboj.html" target="_blank">वेद प्रकाश कांबोज के उपन्यास 'देवता का हार' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/09/book-review-kabristan-ka-shadyantra-janpriya-lekhak-om-prakash-sharma.html" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास 'कब्रिस्तान का षड्यन्त्र' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/09/book-review-scripted-murder-santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक के उपन्यास 'स्क्रिप्टिड मर्डर' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/05/book-review-kaala-saya-ajinkya-sharma.html" target="_blank">अजिंक्य शर्मा के उपन्यास 'काला साया' पर टिप्पणी </a></li></ul></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-87875542002483505532024-01-16T19:27:00.004+05:302024-01-16T22:07:13.100+05:30किताब परिचय: एर्यनम का रक्षक - भानुप्रताप यादव 'शुभारंभ'<p><b>भानुप्रताप यादव 'शुभारंभ'</b> द्वारा लिखित <b>एर्यनम का रक्षक</b> उनकी संतप्तभूमि बेरुंडा रचना (चतुर्थांश) की पहली कड़ी है। पुस्तक फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। पुस्तक के विषय में अधिक जानकारी और पुस्तक का एक छोटा सा अंश आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:</p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXHK1MKq5kJo_pd8tuLRNf80xZQfz_oxoHPEJv0yzQ9Mqeu_ldRQjGzyUU3gPn38sz39hJutUc0jXCtYgx1hQ4IR5tHEF-hv-xauufB-3Afn9h-ToseKfXnd4O1cJWo153IoQr1xF-uy4x31h9kfQjIfLPxdyhg_swVZrlYp7t-uQgQksxwbwAiA6TMmU/s1022/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="574" data-original-width="1022" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXHK1MKq5kJo_pd8tuLRNf80xZQfz_oxoHPEJv0yzQ9Mqeu_ldRQjGzyUU3gPn38sz39hJutUc0jXCtYgx1hQ4IR5tHEF-hv-xauufB-3Afn9h-ToseKfXnd4O1cJWo153IoQr1xF-uy4x31h9kfQjIfLPxdyhg_swVZrlYp7t-uQgQksxwbwAiA6TMmU/w400-h225/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF.jpg" width="400" /></a></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">पुस्तक के विषय में</h4><p>रामायण काल की एक घटना जो इतिहास के पन्नों से मिट चुकी है, जिसने क्रूरता और षड्यंत्र की सारी सीमाएँ लाँघकर रच दिया था एक रक्त रंजित इतिहास।</p><p>यह कहानी है इतिहास के अंधकार में खो चुके एक विशाल साम्राज्य की। एक घटना जिसके पीछे छिपा हुआ है भयावह रहस्य जो आने वाले समय में शापित भूमि एर्यनम को फिर से पुनर्जीवित कर देने वाला था।</p><p>इस सन्तप्तभूमि के उद्धार हेतु अवतरित हुआ वह योद्धा, जो कहलाया एर्यनम का रक्षक।</p><p>जागृत हो चुके हैं ग्यारह हज़ार वर्षों तक मृत पड़े दानवीय योद्धा। तो क्या प्रारंभ हो चुका है एक और विध्वंस?</p><p>लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न क्या एर्यनम का रक्षक कर पायेगा इन सभी दुष्टों का संहार और बचा पायेगा अपनी मातृभूमि को?</p><p>एक महागाथा, संतप्तभूमि बेरुंडा रचना (चतुर्थांश) की पहली कड़ी- एर्यनम का रक्षक (विलुप्त एर्यनम साम्राज्य की महागाथा)</p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/4aVh4Qr" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><h3 style="text-align: center;">पुस्तक अंश</h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaj0PVebm_0e5XVhJvP3AIbaYqgWxMkx6XTe-6J0xJNCIpGkSBy3ecKvyn-eEpfN-LLPZK2SjQhiiEI91pUto2-HW_Jvl84wu6RcrvlX-1IaFM6g-ABtOtMgVeKmVrJkPq8H3b91-HRamAawQ9fem6UCDm9XMJeHe4DgoOq3GjgvIek6w4JVEU_sVwFLk/s600/WhatsApp%20Image%202024-01-05%20at%207.48.57%20AM.jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="391" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaj0PVebm_0e5XVhJvP3AIbaYqgWxMkx6XTe-6J0xJNCIpGkSBy3ecKvyn-eEpfN-LLPZK2SjQhiiEI91pUto2-HW_Jvl84wu6RcrvlX-1IaFM6g-ABtOtMgVeKmVrJkPq8H3b91-HRamAawQ9fem6UCDm9XMJeHe4DgoOq3GjgvIek6w4JVEU_sVwFLk/s320/WhatsApp%20Image%202024-01-05%20at%207.48.57%20AM.jpeg" width="209" /></a></div><br /><div><br /></div><div><div>त्रेतायुग की समाप्ति से पूर्व आज से ग्यारह हजार वर्ष पहले जब लंका का युद्ध समाप्त होने के पश्चात श्रीराम माता सीता को लेकर पुनः अयोध्या लौट रहे थे तब उन्होंने लंका का साम्राज्य अपने भक्त तथा रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया था परंतु राक्षस अभी भी पूर्णतः समाप्त नहीं हुए थे और ना ही उनकी राक्षसी प्रवृत्तियाँ। इस युद्ध को प्रचंड रूप और उग्रता प्रदान करने वाली राक्षसी शूर्पणखा को उन्होंने ऐसे ही छोड़ दिया था और यही उनकी सबसे बड़ी गलती थी या कहें एक भयानक घटना को जन्म देने वाली शुरुआत।</div><div><br /></div><div>जब युद्ध समाप्त हुआ तब शूर्पणखा लंका छोड़कर एर्यनम चली गई। उस समय वह गर्भवती थी। कुछ समय पश्चात उसने वहाँ दो संतानों को जन्म दिया जिनमें से एक पुत्र था और एक पुत्री।</div><div><br /></div><div>शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिह्वा था और वह राजा कालकेय का सेनापति था। कालकेय के साथ हुए युद्ध में रावण ने विद्युतजिह्वा को मार डाला था।</div><div><br /></div><div>अपने पति की मृत्यु से उपजी क्रोधाग्नि से भरकर ही शूर्पणखा ने रावण को इस युद्ध में झोंका था परंतु यह भी सत्य था कि उसे राम के प्रति वासना का भाव जागृत हो गया था। जो भी हो! अपने आपको कुरूप बनाने के पश्चात वह ईर्ष्या, द्वेष और ना जाने कितनी व्याधियों से ग्रसित हो गई थी और यही व्याधियाँ उसके पुत्र और पुत्री में अनुवांशिकीय रूप से ढल चुकी थी।</div><div><br /></div><div>राक्षसी कुल के होने के कारण उनमें राक्षसी शक्ति तो अपूर्व थी ही। साथ ही उनमें क्रूरता और अमानवीयता भी कूट-कूट कर भरी हुई थी। इस आधार पर उन्होंने अपने कई अनुयायी बना लिए थे जो उन्हीं की तरह निर्दयी और अमानवीय थे। उसने अपनी पुत्री का नाम लालसा रखा और अपने पुत्र का नाम भेरूँड।</div><div><br /></div><div>कुछ समय पश्चात एर्यनम में यह विख्यात हो गया था कि लालसा और भेरूँड अमानवीय तो थे ही साथ ही वे नरभक्षण भी किया करते थे। जो व्यक्ति उनका साथ नहीं देता था वह अगले दिन का सूर्योदय नहीं देख पाता था।</div><div>उस समय लोगों के समक्ष केवल दो ही विकल्प हुआ करते थे एक या तो उनके अनुयायी बन जाओ या फिर अपनी मौत को स्वीकार कर लो।</div><div><br /></div><div>भेरूँड ने एर्यनम की दसों दिशाओं में हाहाकार मचा रखा था। वहाँ की धरती रक्त की नदियों से पट पड़ी थी। भेरूँड की बहन लालसा ने सभी लोगों में लालसा का भाव उत्पन्न कर दिया था जिससे वे लालची और अहंकारी हो गए थे। हर समय एर्यनम में कोहराम छाया रहता था और हर क्षण एक नया युद्ध हो रहा था जिसे देखकर शूर्पणखा और उसकी दोनों संतानें आनंदित होते थे। भेरूँड के आतंक से सभी त्रस्त थे। उसने संपूर्ण एर्यनम पर अपना आधिपत्य जमा लिया था।</div><div><br /></div><div>फिर कुरु वंश के एक प्रतापी राजा ने जिनका नाम विजेयक आर्य था। एर्यनम की पीड़ित प्रजा के द्वारा भेजे गए एक सन्यासी का अनुरोध स्वीकार किया तथा भेरूँड और उसकी भेरूँडा सेना पर आक्रमण कर दिया।</div><div><br /></div><div>निरंतर कई दिनों तक चले इस महायुद्ध में महाराजा विजेयक के कई सैनिक मारे गए तथा वे स्वयं भी घायल हो गए परंतु उन्होंने बलशाली भेरूँड के समक्ष हार नहीं मानी और लगातार युद्ध करते रहे। आखिरकार उन्होंने चौरासीवें दिन भेरूँड और उसकी सेना को झुकने पर मजबूर कर दिया और उसकी सेना के कई सैनिकों को बंदी भी बना लिया। भेरूँड वहाँ से भागने में सफल रहा कदाचित उसकी शक्ति पूरी तरह क्षीण हो चुकी थी। एर्यनम के हथियाये हुए राजमहल से विजेयक ने लालसा को गिरफ्तार किया और उसे बंदीगृह में कैद करने के लिए आदेश सुनाया। शूर्पणखा भी वहाँ से भाग निकली हालांकि वह बहुत वृद्ध हो गई थी परंतु उसमें आसुरी शक्तियाँ अभी भी व्याप्त थी इसलिए उसने एर्यनम को श्राप दिया कि संपूर्ण एर्यनम सुनामी के कहर से तहस-नहस हो जाएगा तथा समुद्र में परिवर्तित हो जाएगा। वहाँ केवल और केवल रेत रह जाएगी। वह रेत जो अनंत काल तक लोगों को अपने अंदर दफ़न करती रहेगी। फिर हर एक अच्छी और सच्ची चीज का विनाश करने के लिए मेरा पुत्र पुनः लौटकर आएगा और सर्वनाश कर देगा इस पृथ्वी का।</div><div><br /></div><div>युद्ध समाप्ति के पाँचवें दिन अचानक एक भयानक सुनामी आई और उसने संपूर्ण एर्यनम को तबाह कर दिया। लोग रोते बिलखते रहे परंतु महाराजा विजेयक भी उनकी सहायता ना कर पाए। इस तरह सारे एर्यनम का विनाश हो गया।</div><div><br /></div><div>"क्या ये पूरी कहानी है?" बच्चे ने मासूमियत से पूछा।</div><div><br /></div><div>"मुझे जितनी आती है मैंने तुम्हें सुना दी अब जाओ और सो जाओ।" वृद्धा ने थोड़ी कठोर आवाज में कहा।</div><div><br /></div><div>"ठीक है।" बच्चा पैर पटकते हुए अपने बिस्तर की ओर रवाना हो गया।</div><div><br /></div><div>"आपको उसे इस तरह की भयानक कहानियाँ नहीं सुनानी चाहिए दादी।" एक लड़की ने मधुर आवाज में कहा। </div><div><br /></div><div>"वह अभी बच्चा है।" </div><div><br /></div><div>"तो इसमें मैंने कौन सी गलती की। मैं उसे अपना इतिहास ही तो बता रही थी।" वृद्धा ने कहा।</div><div><br /></div><div>"हाँ बता तो रहीं थीं पर! चलिए ठीक है आप भी सो जाइए।" लड़की बोली और अपने बिस्तर में जाकर सो गई।</div><div><br /></div><div>"जिस दिन तुम लोगों को पूरी कहानी बताऊँगी उस दिन से चैन की नींद सोना भूल जाओगे।" वृद्धा ने काँपती हुई धीमी आवाज में कहा और उसके हाथ काँपकपाने लगे।</div></div><div><br /></div><div style="text-align: center;">*****</div><div style="text-align: left;">तो यह था भानुप्रताप यादव के उपन्यास एर्यनम का रक्षक का एक छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आया होगा। पुस्तक अमेज़न पर पेपरबैक और किंडल फॉर्मैट में उपलब्ध है। किंडल अनलिमिटेड सब्सक्रिप्शन धारक बिना किसी अतिरिक्त खर्च के इसे पढ़ सकते हैं। </div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/4aVh4Qr" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br /></div><h4 style="text-align: left;">लेखक परिचय </h4><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnHBB2f_Qcm8UtDI9qc4NnhvxjOamV5rM73QAPNlolkF1boGSQpRtP22Yky9CW9W-sfiQag3PbeGyRfhz2KO5CQoyeG1EVUhajO3r3GLIdwmdunBiRUcmO_kEBJBwGluy5tMU6SJtWO39hhT3SB1-7x1qe0bQkzF_btPTqZ_l2MHpdaMaok9b0B39E0XY/s742/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AA%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5.jpeg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="742" data-original-width="645" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnHBB2f_Qcm8UtDI9qc4NnhvxjOamV5rM73QAPNlolkF1boGSQpRtP22Yky9CW9W-sfiQag3PbeGyRfhz2KO5CQoyeG1EVUhajO3r3GLIdwmdunBiRUcmO_kEBJBwGluy5tMU6SJtWO39hhT3SB1-7x1qe0bQkzF_btPTqZ_l2MHpdaMaok9b0B39E0XY/w278-h320/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AA%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5.jpeg" width="278" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">भानुप्रताप यादव </td></tr></tbody></table><br /><div><div>लेखक भानुप्रताप यादव 'शुभारंभ' मध्य प्रदेश के सागर जिले में निवासरत हैं इन्होंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन कॉमर्स समूह से पूर्ण की है तथा वर्तमान समय में एक निजी आर्मी स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं। </div><div><br /></div><div>इन्हें बचपन से ही कविताएँ एवं कहानियाँ लिखना पसंद था। इनकी हॉबी कविताएँ तथा उपन्यास लिखना और पेंटिंग करना है। इनका एक यूट्यूब चैनल भी है जिसका नाम 'शुभारंभ बुक्स एंड योगा' है जिसमें यह अलग-अलग जॉनर की बुक्स का रिव्यू देते हैं और योगा पद्धति पर उपयोगी वीडियो बनाते हैं। </div><div><br /></div><div>इनके द्वारा लिखा गया एक ऐतिहासिक उपन्यास <b>'मणिकर्णिका शौर्य'</b>, एक कविता संग्रह <b>'आत्मशक्ति की यात्रा'</b> और संतप्तभूमि बेरुंडा रचना (चतुर्थांश) का प्रथम भाग <b>एर्यनम का रक्षक</b> प्रकाशित हो चुका हैं। द्वितीय भाग <b>वितंडा का अभिशाप</b> शीघ्र प्रकाश्य है। <br /><br /></div><div><b>लेखक से संपर्क करने हेतु</b> - bhanuy1994@gmail.com</div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><p><b><u>नोट:</u></b> <span><b><span>'किताब परिचय'</span></b> <b><span>एक बुक जर्नल</span></b> की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। </span></p><p><span>अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:<br /></span></p><p><span><b>contactekbookjournal@gmail.com</b></span></p></div><div><span><b><br /></b></span></div><div><br /></div>एक बुक जर्नलhttp://www.blogger.com/profile/04777788548338715954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-24074334216395617652024-01-16T09:51:00.003+05:302024-01-16T10:00:41.963+05:30केसरीगढ़ की काली रात - ओम प्रकाश शर्मा | नीलम जासूस कार्यालय<b>संस्करण विवरण:</b><div><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 168 | <b>प्रकाशक:</b> नीलम जासूस कार्यालय </div><div><br /></div><div><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3TVGiIt" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></div><div><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-9kyEWxn29SPCWrrC3H55-772itVacBCn0EPJsuA8DNiJv3ruPqn6-8OVWvs8VOnDsABOhPl34V6VdPdFvDXQahkTGJNGwDiDW9ubKotsQ_mu701h0F_rh7rIWSewHlL2JNUFaUNtpy2OOlw2LR6SmNAf5XHoQxjKx_v-8t7dYacLdF8VIaBM4QCCaAw/s466/71U0OWtwotL._SY466_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="466" data-original-width="291" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-9kyEWxn29SPCWrrC3H55-772itVacBCn0EPJsuA8DNiJv3ruPqn6-8OVWvs8VOnDsABOhPl34V6VdPdFvDXQahkTGJNGwDiDW9ubKotsQ_mu701h0F_rh7rIWSewHlL2JNUFaUNtpy2OOlw2LR6SmNAf5XHoQxjKx_v-8t7dYacLdF8VIaBM4QCCaAw/s320/71U0OWtwotL._SY466_.jpg" width="200" /></a></div><br /><div><br /></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><div><div>केसरीगढ़ कभी एक रियासत हुआ करता था पर अब एक जिला भर था।</div><div> </div><div>विशाल सिंह केसरी गढ़ के राज परिवार से आते थे। आज भी केसरी गढ़ वाले उन्हें महाराज मानते थे। उनका पूरे केसरीगढ़ में काफी मान सम्मान था।</div><div><br /></div><div>केसरीगढ़ में एक संग्रहालय था जहाँ केसरी गढ़ के राजपरिवार की चीजें रहती थीं। इस संग्रहालय में एक के बाद एक तीन चोरियाँ जब हुई और चोर का पता लगाने में पुलिस असफल रही तो जासूसी विभाग के जासूस जगन को चोरों का पता लगाने को भेजा गया।</div><div><br /></div><div>आखिर संग्रहालय में कौन चोरी कर रहा था?</div><div>क्या जगन चोर का पता लगा पाया?</div><div>इसके लिए उसे कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़े?</div></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div><div>जगन - खुफिया जासूस</div><div>बंदूक सिंह - एक युवक</div><div>कुंवर बलजीत सिंह - पुलिस सुप्रीटेंडेंट </div><div>लतिका - बंदूक सिंह की प्रेमी</div><div>रामदेव - जौहरी</div><div>हुकुम सिंह - एक तस्कर</div><div>हिरणी - हुकुम सिंह की पत्नी</div><div>बाबू खां - अफीम का व्यापारी</div><div>विशाल सिंह - केसरी गढ़ के महाराज</div><div>धनलक्ष्मी - विशाल सिंह की पत्नी</div><div>राजलक्ष्मी - विशाल सिंह की बेटी</div></div><div>चैनसिंह - मेहमानखाने का दरोगा</div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार </h4><div><b>'केसरीगढ़ की काली रात'</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/जनप्रिय लेखक" rel="nofollow" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा</a> का उपन्यास है जिसे <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/NJK" rel="nofollow" target="_blank">नीलम जासूस कार्यालय</a> ने प्रकाशित किया है। उपन्यास के मुख्य पृष्ठ में इसे बंदूक सिंह सीरीज का पहला उपन्यास कहा गया है। यह ठीक भी है क्योंकि यह वह उपन्यास है जिसमें बंदूक सिंह का पहली बार पाठक से परिचय होता है। पर अगर मेरा बस होता तो मैं इस सीरीज के नाम को किरदारों के नाम के बजाय विभाग के नाम पर रखता। यानी सीरीज का नाम जासूसी विभाग सीरीज होता जिसमें विभाग से जुड़े सभी मामले आते। ऐसा इसलिए भी क्योंकि प्रस्तुत उपन्यास में बंदूक सिंह जरूर पहली बार आया है लेकिन ये मामला जासूसी विभाग का ही रहता है। उसी के चलते जगन भी केसरीगढ़ पहुँचा रहता है। यहाँ ये भी साफ करना जरूरी है कि इस कहानी में जगन ही नायक है। बंदूक सिंह साथ में जरूर है लेकिन वो सेकंड लीड ही रहता है।</div><div><br /></div><div>कहानी की शुरुआत जगन की केसरीगढ़ आने से होती है। आते ही उसका टकराव बंदूक सिंह से होता है। ये दोनों एक दूसरे से अपरिचित हैं और बंदूक सिंह कुछ अक्खड़ स्वभाव का व्यक्ति है। उपन्यास के शुरू होते ही आपको ये तो पता चल जाता है कि शालीनता की मूर्ति जगन जितना मीठा बोलता है वो उतनी अच्छी तरह से मुसीबत से जूझ भी सकता है। वहीं इसका भान भी हो जाता है कि बंदूक सिंह के अक्खड़ स्वभाव के वजह से जिन दृश्यों में वह रहेगा वो दृश्य रोचकता के मामले में ऊपर ही रहेंगे।</div><div><br /></div><div>जगन के केसरीगढ के आने का कारण महाराज विशाल सिंह के संग्रहालय में होती चोरियाँ हैं। इन चोरियों में कई महंगी कलाकृतियाँ अभी तक चोरी हो गई हैं। जब पुलिस से कुछ नहीं बन पाता है तो विशाल सिंह अपने दोस्त राजेश से इस मामले पर विचार विमर्श करतें हैं जो कि जासूसी विभाग को इसमें लगा देते हैं।</div><div><br /></div><div>जगन किस तरह से मामले की जाँच करता है। इस दौरान क्या क्या तिकड़म वो भिड़ाता है। बंदूक सिंह केसरीगढ़ में क्या कर रहा है। वह कौन है और इस मामले में कैसे फिट होता है? आखिर चोर कौन है और इसका पता कैसे लगता है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर ही कथानक बनता है।</div><div><br /></div><div>जगन के काम करने लहजा रोचक है। वह कोयले की कोठरी में मौजूद रहकर खुद काला होने से नहीं कतराता है। प्यार मोहब्बत से बात करके अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करता है। ऐसा नहीं है कि वह खुर्राट नहीं है। मौका लगने पर वह खुर्राट भी बन जाता है।</div><div><br /></div><div>अपनी जाँच के चलते वह केसरी गढ़ के अपराध की दुनिया के बड़े बड़े लोगों के बीच उठता बैठता है और उनसे साम दाम दण्ड भेद के माध्यम से बात पता लगाने की कोशिश करता है। इस आपराधिक दुनिया के लोग भी जानते हैं कि पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिए और इसलिये वो जगन को भी अपने साथ मिलाने की तिकड़में लगाते हैं। उपन्यास में एक किरदार हिरनी का है जो कि रोचक बन पड़ा है। उसके और जगन के बीच का समीकरण मुझे पसंद आया।</div><div><br /></div><div>उपन्यास में जहाँ तहकीकात है वहीं रोमांस का तड़का भी मौजूद है। दो जोड़े इधर मौजूद हैं जो कि अपने अपने स्वार्थवश ही नजदीक आते हैं। रोचक बात ये है कि दोनों ही जोड़ों के बीच का समीकरण जदा जुदा है और रोमांस का अलग अलग फ्लेवर दोनों के बीच देखने को मिलता है। </div><div><br /></div><div>उपन्यास का नाम केसरीगढ़ की काली रात है। नाम से ऐसा लगता है कि जैसे केसरीगढ़ में किसी रात को कुछ बुरी घटना हुई होगी और इसलिए उसे काली रात कहा जा रहा है पर ऐसा नहीं है। केसरीगढ़ में हर वर्ष एक रात को मेला लगता है और जिस रात को मेला लगता है उसे केसरीगढ़ की काली रात कहा जाता है और मेले को केसरीगढ़ की काली रात का मेला कहते हैं। यह क्यों कहते हैं ये तो आप उपन्यास पढ़कर ही जानिए। बहरहाल चूँकि उपन्यास का क्लाइमैक्स इसी रात को घटित होता है तो कह सकते हैं कि शीर्षक कथानक में सटीक बैठता है। हाँ, उपन्यास पढ़ते हुए ये जरूर लगा कि इस रात में होने वाले मेले में नायकों और खलनायकों के बीच कुछ दाँव पेच अधिक होते तो अच्छा रहता। उससे उपन्यास का जितना हिस्सा ये रात बनी है उससे थोड़ा अधिक हिस्सा बनती और कथानक पर शीर्षक और अच्छे से फिट हो जाता। </div><div><br /></div><div>उपन्यास की कमी की बात करूँ तो एक रहस्यकथा से मेरी उम्मीद यह रहती है कि नायक की मेहनत से रहस्य उजागर हो। साथ ही अच्छी रहस्यकथा वो होती है जो कि पाठक के सामने सब कुछ पेश कर देती है और फिर बाजिगिरी से रहस्य उजागर करती है और पाठक ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि उससे ये क्लू मिस कैसे हो गया। </div><div><br /></div><div>इधर ऐसा नहीं होता है। इधर पाठक से चीजें छुपाई जाती हैं और फिर एन मौके पर उन्हें उजागर किया जाता है। साथ ही उपन्यास का एक महत्वपूर्ण रहस्य अपराधियों द्वारा खुद के पाँव पर कुल्हाड़ी मारने सरीखा रहता है। अगर वो ये हरकत नहीं करते तो शायद नायकों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती। मुझे लगता है कि लेखक को ये अतिरिक्त मेहनत नायकों से करवानी चाहिए थी क्योंकि इससे उपन्यास और अधिक रोचक बन जाता। अभी चूँकि अपराधी खुद चलकर नायकों के पास आते लगते हैं तो रोचकता थोड़ा कम हो गई है। </div><div><br /></div><div>अंत में यही कहूँगा कि मुझे <b>केसरीगढ़ की काली रात</b> ठीक ठाक उपन्यास लगा। रहस्य का तत्व और अधिक मजबूत होता तो ये बेहतर उपन्यास बन सकता था। बंदूक सिंह के अक्खड़पन, जगन की समझदारी और चतुराई और जगन और हिरनी के बीच के समीकरण के लिए इसे पढ़ा जा सकता है। </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3TVGiIt" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें</h4><div><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/book-review-raakh-jitendra-nath.html" target="_blank">लेखक जितेंद्रनाथ के उपन्यास 'राख' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/book-review-trap-santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक के उपन्यास 'ट्रैप' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-soorma-anil-mohan.html" target="_blank">अनिल मोहन के देवराज चौहान शृंखला के उपन्यास 'सूरमा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-gulshan-nanda-s-wapasi.html" target="_blank">गुलशन नंदा के उपन्यास 'वापसी' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-meri-jaan-ke-dushman-surender-mohan-pathak.html" target="_blank">सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यास 'मेरी जान के दुश्मन' पर टिप्पणी </a></li></ul></div><div><br /></div><div><br /></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-62040365012052971912024-01-05T10:21:00.005+05:302024-01-05T11:30:39.873+05:30संतोष पाठक के उपन्यास पर आधारित वेब सीरीज की हुई शूटिंग शुरू <p><br /></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_Z_9T01FBnpRqv6r6R6b_2aQB8HpHLaY4vXXY3TizwizynapPAPm-_Z0KBLVOfy2ArcK1JHbz6G18EAI7YXSNq3V5oZ94Ld83uI7CSn5NpUhRYCgpy8uO8c6eIRW2UwroTXDH-sgnoylF6CyQHx0Z-vivXmOf0MHTHjAduPaFT7QlaOrmy1kA8Jzfo7w/s1262/dasjoonkiraaty.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="800" data-original-width="1262" height="254" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_Z_9T01FBnpRqv6r6R6b_2aQB8HpHLaY4vXXY3TizwizynapPAPm-_Z0KBLVOfy2ArcK1JHbz6G18EAI7YXSNq3V5oZ94Ld83uI7CSn5NpUhRYCgpy8uO8c6eIRW2UwroTXDH-sgnoylF6CyQHx0Z-vivXmOf0MHTHjAduPaFT7QlaOrmy1kA8Jzfo7w/w400-h254/dasjoonkiraaty.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">स्रोत: <a href="https://www.instagram.com/p/C1qy9HsI41d/?hl=en" rel="nofollow" target="_blank">एकता कपूर का इंस्टाग्राम </a></td></tr></tbody></table><br /><p>किताबों और फिल्मों का गहरा नाता रहा है। किताबों के कथानकों पर आधारित फिल्में हमेशा से ही बनाई जाती रही हैं। ऐसी ही किताबों की फेहरिस्त में <b>दस जून की रात </b>का नाम भी आ गया है। </p><p><b>दस जून की रात</b> अपराध कथा लेखक <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक</a> की <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/vishal-saxsena-series.html" target="_blank">पनौती शृंखला </a>का पहला उपन्यास है। अब इस पर एक वेब सीरीज आने वाली है जिसकी शूटिंग की शुरुआत की घोषणा एकता कपूर द्वारा अपने इंस्टाग्राम हैंडल से की गई है। यह वेबसीरीज बालाजी टेलीफिल्म्स के एल्ट बालाजी और जिओ के जिओ सिनेमा पर स्ट्रीम की जाएगी। प्रियंका चहर चौधरी इस सीरीज में मुख्य किरदार निभाएँगी। वेब सीरीज का निर्देशन तबरेज खान द्वारा किया जाएगा। पनौती उर्फ विशाल सक्सेना का किरदार कौन निभा रहा है इस पर अभी कोई घोषणा नहीं की गई है। एकता कपूर ने भी फिलहाल यही बताया है कि यह सीरीज एक प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित है। </p><p>उम्मीद है जल्द ही वेबसीरीज तैयार होगी और बाकी जानकारी भी साझा होंगी। </p><p>ज्ञात हो इससे पहले लेखक <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/amit-khan.html" target="_blank">अमित खान</a> के उपन्यास <a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/09/book-review-Bicchoo-ka-khel.html" target="_blank">बिच्छू का खेल</a> पर भी एकता कपूर द्वारा एक शो बनाया गया था जिसे प्रशंसकों ने हाथों हाथ लिया था। </p><p><br /></p><p><b>यह भी पढ़ें:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/2019/09/my-take-on-10-June-ki-Raat-by-Santosh-Pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक के उपन्यास 'दस जून की रात' पर टिप्पणी </a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">कौन है पनौती</h4><p>विशाल सक्सेना अपने जानने वालों में पनौती के नाम से प्रसिद्ध है। वह जिस चीज में हाथ डालता है उसमें गड़बड़ होनी ही होती है। वह एक तेज दिमाग का व्यक्ति जरूर है लेकिन कई बार वह अपने अक्खड़पन से अहमक भी नजर आता है। <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/vishal-saxsena-series.html" target="_blank">पनौती</a> को लेकर <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक </a>अब तक 9 उपन्यास लिख चुके हैं। </p><p>विशाल सक्सेना पनौती का हालिया कारनामा <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/SV" rel="nofollow" target="_blank">साहित्य विमर्श प्रकाशन</a> द्वारा एक त्रयी (<a href="https://www.sahityavimarsh.in/mrigtrishna-mahabharata-trilogy-1/" target="_blank">मृगतृष्णा</a>, <a href="https://www.sahityavimarsh.in/chakravyooh-mahabharata-trilogy-2/" target="_blank">चक्रव्यूह</a>, <a href="https://www.sahityavimarsh.in/kurukshetra-mahabharata-trilogy-3/" target="_blank">कुरुक्षेत्र</a>) के रूप में प्रकाशित किया गया था। </p><p><br /></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">कौन हैं संतोष पाठक</h4><div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjtZ5cLIAGnwXRdiBmTdlG3ZnyQyIeMF1YAu7XYmrhcRjX_4IP0SP1M08bvesy_x5hctcdi9DqDu5zPHF4mqeWi6Ot-523Zu7lGILUSLtwo7Z09k0_DSjRfet1pKtMzBsrBW1_VzqljgkouenB38drpkzSIUsHVO6MoQ4j1WsNzfAXXK-u_UyfZG5HZu0I" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" data-original-height="200" data-original-width="200" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjtZ5cLIAGnwXRdiBmTdlG3ZnyQyIeMF1YAu7XYmrhcRjX_4IP0SP1M08bvesy_x5hctcdi9DqDu5zPHF4mqeWi6Ot-523Zu7lGILUSLtwo7Z09k0_DSjRfet1pKtMzBsrBW1_VzqljgkouenB38drpkzSIUsHVO6MoQ4j1WsNzfAXXK-u_UyfZG5HZu0I" width="240" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">संतोष पाठक</td></tr></tbody></table><br /><br /></div><div>1978 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बेटाबर खुर्द गाँव में जन्मे संतोष पाठक की उच्च शिक्षा दीक्षा दिल्ली में हुई है। वह फिलहाल फरीदाबाद में रहते हैं। उन्होंने अब तक 60 के करीब उपन्यास लिखे हैं। अपने पाठकों के बीच अपने रोमांचक कथानकों के लिए मशहूर संतोष पाठक अपनी लिखने की गति के लिए भी जाने जाते हैं। एक माह में उपन्यास लिखकर प्रकाशित करने का कारनामा वो कई बार कर चुके हैं। </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>एक बुक जर्नलhttp://www.blogger.com/profile/04777788548338715954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-31460626391377250712024-01-03T10:57:00.001+05:302024-01-11T10:13:47.664+05:30तिरछी नगर - ओम प्रकाश शर्मा<p> संस्करण विवरण:</p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 125 | <b>प्रकाशन:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/NJK" rel="nofollow" target="_blank">नीलम जासूस कार्यालय</a> </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3S23PpO" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnHDBjw-cZnwleUa54K22cxe54Hzgoy53y3y-Mdm_pNNaXpsUMHIV6umoaoR3kctx3FRqhl3rYVOJKgyXToEnUdoQB6syOG9pFKG_m0W5325Uerin6IEPnsu-zyTgopS3mJIWbuiHfGbPpSLSmcYNv3-ecPx6HKuIwR03fpvxLOsyBWC5zTCc4fWe2AEQ/s445/tirchhi%20nazar.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="445" data-original-width="275" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnHDBjw-cZnwleUa54K22cxe54Hzgoy53y3y-Mdm_pNNaXpsUMHIV6umoaoR3kctx3FRqhl3rYVOJKgyXToEnUdoQB6syOG9pFKG_m0W5325Uerin6IEPnsu-zyTgopS3mJIWbuiHfGbPpSLSmcYNv3-ecPx6HKuIwR03fpvxLOsyBWC5zTCc4fWe2AEQ/s320/tirchhi%20nazar.jpg" width="198" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>जग्गू का गणित में एम एस सी पूरा हो चुका था और अब उसे लखनऊ आना था। उसके पिता लाला गंगाराम और भाई भग्गू उर्फ भगवान दास ने मिलकर एक कॉलेज में उसकी लेक्चरशिप सुनिश्चित करवा ली थी। </p><p>जग्गू एक रूढ़िवादी आर्य समाज परिवार से आता था जिनके लिए धर्म और जाति ही सबसे महत्वपूर्ण थी। ऐसे में लखनऊ में रहने की कई आदेश दिए गए थे। जग्गू के परिवार वालों को लगता था कि लखनऊ के लोग धार्मिक नहीं थे और इस कारण कलियुग का प्रभाव उधर अधिक था।</p><p>जग्गू के परिवार वालों की लखनऊ के प्रति ये राय क्यों थी?</p><p>क्या जग्गू लखनऊ में अपने धर्म की रक्षा कर पाया?</p><p>आखिर लखनऊ में जग्गू के साथ क्या हुआ?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div style="text-align: left;">जमोहन गुप्ता उर्फ जग्गू - नायक<br />नन्ही - जग्गू की मां<br />गंगाराम गुप्ता - जग्गू का पिता<br />भगवान दास गुप्ता उर्फ भग्गू - जग्गू का बड़ा भाई<br />मैना देवी - भगवान की पत्नी<br />जगत राम - जग्गू का फूफा<br />जमना - जग्गू की बुआ<br />प्रिया - एक छात्र जो जग्गू के कॉलेज में पढ़ती थी<br />लटकन प्रसाद - प्रिया के पिता और एक नामी ठेकेदार<br />किशोरी देवी उर्फ कचोरी देवी - लटकन की पत्नी <br />संतोष कुमार - एक आर्य समाजी नेता <br />कातिल लखनवी - एक शायर और भस्मासुर का संपादक <br />बिंदिया उर्फ भिंडी भाभी - कातिल की पत्नी<br />शिकायत खाँ - पी जगमोहन फर्म का मुंशी <br />रामधुन - विधायक नेता <br />धन्नो - रामधुन की पत्नी </div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">विचार </h4><p><br /></p><p><b>तिरछी नजर</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/जनप्रिय लेखक" rel="nofollow" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा</a> का एक <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/satire" rel="nofollow" target="_blank">व्यंग्य </a>उपन्यास है जो कि <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/NJK" rel="nofollow" target="_blank">नीलम जासूस कार्यालय </a>से पुनः प्रकाशित हुआ है।</p><p>उपन्यास के केंद्र में जगमोहन उर्फ जग्गू है। जग्गू अपने परिवार का छोटा लड़का है। उसके परिवार में उसके पिता गंगाराम गुप्ता और उससे पंद्रह साल बड़े भाई भगवान दास गुप्ता उर्फ भग्गू हैं। जग्गू के परिवार वाले आर्य समाजी हैं और धर्म कर्म और कर्मकांड को मानने वाले लोग हैं। जग्गू की परवरिश ऐसे ही हुई है और आधुनिकता उसे छू भी नहीं पाई है। उपन्यास की शुरुआत जग्गू के लखनऊ जाने से होती है। जग्गू ने गणित में एम एस सी की है और अब लेक्चरर बनने लखनऊ जा रहा है। लखनऊ के विषय में उसके माता पिता और भाई भाभी के विचार ठीक नहीं है। उन्हें लगता है उधर आधुनिकता में डूबके लोगों ने अपने संस्कार खो दिए हैं। लखनऊ पहुँचकर जग्गू को जो अनुभव होते हैं, उसे जो लोग मिलते हैं और इस कारण उसके जीवन में जो प्रभाव आता है यही उपन्यास का कथानक बनता है। उपन्यास में जग्गू के लखनऊ पहुँचने, आधुनिकता से उसके दो चार होने और फिर आखिर में उसकी शादी होने तक के प्रसंग हैं। इस दौरान जग्गू के अनुभवों और उससे मिलने वाले किरदारों के माध्यम से लेखक समाज के कई पहलुओं पर व्यंग्य कसते से दिखते हैं। फिर वो नेता हों, धनाढ्य वर्ग हो, धार्मिक नेता हों या शिक्षण संस्थानों के भीतरी पहलू हो। वो सभी पहलुओं को छूते जाते हैं। </p><p>अक्सर लोग पाश्चात्य सभ्यता को खराब मानकर उससे बचने की सलाह देते हैं लेकिन ऐसे लोग अक्सर खुद ढोंग में जीते हैं। खुद कई तरह की बेइमानी करते दिख जाते हैं। उनका जीवन अक्सर उस बात से उल्टा दिखता है जिसका वो प्रवचन देते हैं। जग्गू के पिता, भाई और भाभी ऐसे ही लोग हैं। जग्गू के पिता धर्म कर्म की बातें करते हैं लेकिन लाला के रूप में उन्हें लोगो को ठगने से गुरेज नहीं है। जग्गू के भाई और भाई आर्य समाज के होने की दुहाई देते हैं। धर्म कर्म को मानने की बातें करते हैं लेकिन कई बार जब जरूरत पड़ती है तो वह इससे किनारा भी बखूबी कर लेते हैं।</p><p>यहाँ ऐसा नहीं है कि आधुनिक संस्कृति को मानने वाले सभी अच्छे हैं। लेखक दर्शाते हैं कि व्यक्ति अगर अच्छा है तो वो किसी भी संस्कृति से अच्छी चीज ही ग्रहण करेगा और आधुनिकता की अच्छी चीजों को अपनाया जाए तो उसमें कुछ बुरा नहीं है। यही चीज उपन्यास में जग्गू के फूफा जगतराम के किरदार में देखने को मिलती है। वह एक आधुनिक व्यक्ति हैं जो कि समय के साथ चलने में विश्वास रखते हैं। उन्हें पता है कि उनके रिश्तेदार आडंबर करते हैं और इसलिए वह उन पर कटाक्ष करने मौका नहीं छोड़ते हैं। वहीं वह भी जानते हैं कि उनके आडंबर में छेद किस प्रकार किया जा सकता है और यह काम वो वक्त आने पर बखूबी करते हैं। </p><p>जग्गू का परिचय उपन्यास में प्रिया नाम की लड़की से होता है। प्रिया के पिता लटकन प्रसाद नामी ठेकेदार हैं। प्रिया के माध्यम से जग्गू ठेकेदारी में घुसता है और फिर उसके पिता से गुर सीख कर उनसे भी आगे बढ़ जाता है। ठेकेदारी में कैसे चापलूसी चलती है यह इधर दिखाया गया है। धनाढ्य वर्ग में अक्सर कैसे स्वार्थ से रिश्ते बनते हैं यह इधर देखने को मिलता है। </p><p>प्रिया का किरदार भी बहुत रोचक गढ़ा गया है। प्रिया अपनी नौजवानी में प्रेम कर चुकी है और अब प्रेम की असलियत समझ चुकी है। वह ज़िंदगी अपनी तरह से जीना चाहती है और इसके लिए बकायदा जग्गू को प्रशिक्षण देती है। उसे पता है कि उसे जीवन और संबंधों से में क्या चाहिए और उसे लेने में झिझकती नहीं है। वहीं वह अपने प्रेमी पर किसी तरह की बंदिश नहीं लगाती है और एक तरह से ओपन मेरिज की हिमायती नजर आती है। </p><p>उपन्यास की भाषा शैली रोचक है। बड़े ही चुटीले अंदाज में वो किरदारों का परिचय देते हैं और उनके बीच के संवाद और दृश्य दर्शाते हैं। यह सब ऐसा है जिससे बरबस चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। उदाहरण के लिए:</p><p></p><blockquote><p>भग्गू ने जग्गू को आदेश दिए। ऐसे नहीं जैसे बड़ा भाई छोटे भाई को सीख दे... बल्कि ऐसे जैसे प्रिंसिपल विद्यार्थी पर रौब गाँठे।... </p><p>बेचारा जग्गू!</p><p>जबसे होश संभाला तब से स्कूल में भाई का कठोर अनुशासन रहा और शाम को लौटकर बाप की दुकान पर हल्की और फिटकरी तोली। वह बड़े भाई के सामने ऐसे खड़ा था जैसे बुलडॉग के सामने दुम दबाए देसी पिल्ला। (पृष्ठ 9)</p><p></p></blockquote><p></p><blockquote><p>तंबाखू का पिंडा यहाँ दो हजार लेने नहीं आया था। कृष्ण कन्हैया लाल का कंठ स्वर खासा था। विद्यार्थी जीवन में रेडियो पर भी गाया और अब वह नामी कीर्तनकार भी था। लोग पैसा देकर बुलाते थे। </p><p>...</p><p>यूँ नगर में युवक कीर्तन मंडली अलग थी और उसने भी तमाखू के पिंडे को एक बार बुलाना चाहा था... परंतु वह नहीं आया था। तभी से कहा जाता था... सड़क के कीर्तन में औरतें कम होती हैं। जो औरतें होती भी हैं वह भी साधारण गृहस्थिन होती हैं। इसी कारण तमाखू का पिंडा बुलाने से भी नहीं आता। छम्मो सेठानी की बात और थी। उसके कीर्तन में नंबर एक की औरतें आती थीं जिन्हें नगर के युवक मलाई या क्रीम कहते थे। (पृष्ठ 12)</p></blockquote><p></p><blockquote><p>तीन दिन प्रिया ने सब कुछ सहा। </p><p>चौथे दिन... !</p><p>मुहर्त किया घर से। सौतेली माँ कुछ कह बैठी तो प्रिया ने माँ की ऐसी पिटाई की कि छोटे भाई और बहनें सकते में आ गए। पिता बड़ी कठिनता से बीच बचाव करा पाए। </p><p>उसी साँझ जिस लड़के के साथ वह भागी थी उसने फब्ती कशी तो बिल्कुल बीच सड़क पर उसे चप्पलों से पीट डाला। </p><p>इसके बाद साह के साथ वह कॉलेज गई, वहाँ एक नई उम्र के लेक्चरर ने उसे टोक दिया... बात कॉलेज तक पहुँच गई थी न। बस फिर क्या था। क्लास रूम में मुक्केबाजी का वह दृश्य प्रिय ने प्रस्तुत किया कि चैम्पीयन क्ले देखता तो शर्मा जाता। (पृष्ठ 20) </p></blockquote><p></p><p></p><p>उपन्यास चूँकि व्यंग्य है तो इसका स्ट्रक्चर आम उपन्यासों जैसा नहीं है। ऐसा नहीं है कि उपन्यास में कॉन्फ्लिक्ट नहीं है और वो सुलझते नहीं हैं पर वो आम उपन्यासों सरीखे नहीं हैं तो हो सकता है कई लोगों को यह चीज अटपटी भी लगे। उपन्यास के अधिकतर किरदारों के कुछ स्याह पहलू हैं तो कुछ सफेद भी हैं। मुख्य किरदार भी इनसे अछूते नहीं हैं। ऐसे में अगर आप ऐसे उपन्यासों को पढ़ने के शौकीन हैं जहाँ खलनायक और नायक के बीच एक अच्छा खासा फर्क होता है तो भी यह उपन्यास आपको अटपटा लग सकता है। </p><p>मैं अपनी बात करूँ तो उपन्यास मुझे पसंद आया। उपन्यास का कलेवर छोटा है तो यह झट से पढ़ भी लिया जाता है। उपन्यास में मौजूद व्यंग्य कई बार आपके चेहरे पर् मुस्कान ले आता है। वहीं उपन्यास के कई किरदार ऐसे हैं जिनमें आपको अपने परिचिरतों का अक्सर दिखता है। हाँ, जहाँ पर उपन्यास खत्म होता है वहाँ से पाँच से दस वर्ष बाद इन किरदारों का जीवन कैसा होगा ये मैं खुद को सोचने से न रोक सका। अगर लेखक होते तो मैं उनसे जरूर कहता कि वह उस समय को दर्शाता एक अन्य उपन्यास लिखें। मैं जानना चाहता था कि पाँच दस वर्ष बाद जग्गू और प्रिया के जीवन में क्या क्या परिवर्तन आए होंगे। ये देखना रोचक होता। </p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3S23PpO" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-gulshan-nanda-s-wapasi.html" target="_blank">गुलशन नंदा के उपन्यास 'वापसी' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/09/book-review-laal-rekha-kushwaha-kant-rajpal-and-sons.html" target="_blank">कुशवाहा कांत के उपन्यास 'लाल रेखा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/09/book-review-patthar-ki-devi-by-ranu.html" target="_blank">रानू के उपन्यास 'पत्थर की देवी' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/07/devta-satyakam-vidyalankar.html" target="_blank">सत्यकाम विद्यालंकार के उपन्यास 'देवता' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/03/book-review-aakhiri-premgeet-abhishek-joshi.html" target="_blank">अभिषेक जोशी के उपन्यास 'आखिरी प्रेमगीत' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-9154649552117910052023-12-30T16:10:00.003+05:302023-12-30T16:15:56.416+05:30राख - जितेंद्र नाथ | बुककेमिस्ट<p><span style="font-size: medium;"><b>संस्करण विवरण:</b></span></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 200 | <b>प्रकाशक:</b> बुककेमिस्ट (सूरज पॉकेट बुक्स)</p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/41BENRf" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjNES54EPsjPY3_ncuzvY7u_mKOiNlSLy-wk-t6e1gi1DM3jw6EeqTkg9Md7dS0WVs-ZVhPIk_NEKHUalGk8Ml1AwFZzb-ObVZ6qiqUbSe6gcHHl5OrsJDtie0kzOIR5WsMqLYBlxv4Xw/s200/WhatsApp+Image+2021-05-14+at+3.05.32+PM.jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="राख - जितेंद्र नाथ | बुककेमिस्ट" border="0" data-original-height="200" data-original-width="124" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjNES54EPsjPY3_ncuzvY7u_mKOiNlSLy-wk-t6e1gi1DM3jw6EeqTkg9Md7dS0WVs-ZVhPIk_NEKHUalGk8Ml1AwFZzb-ObVZ6qiqUbSe6gcHHl5OrsJDtie0kzOIR5WsMqLYBlxv4Xw/w248-h400/WhatsApp+Image+2021-05-14+at+3.05.32+PM.jpeg" title="राख - जितेंद्र नाथ | बुककेमिस्ट" width="248" /></a></div><br /><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>प्रेम नगर एक उभरता हुआ शहर था जहाँ आई तरक्की अपने साथ साथ अपराध भी लेकर आई थी। </p><p>इन दिनों प्रेम नगर ऐसे ही एक जघन्य अपराध से जूझ रहा था।</p><p>प्रेम नगर में अलग अलग जगह दो जली हुई लाशें मिली थीं और ऐसी उम्मीद थी कि इन लाशों में अभी और इजाफा होना था।</p><p>अपराधी कौन था इसका कोई पता नहीं लग पा रहा था और जाँच कर रहे इंस्पेक्टर कालीरमण के ऊपर अपराधी को पकड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा था।</p><p>आखिर किनकी थी ये लाशें?</p><p>क्यों मारा गया था इन्हें?</p><p>क्या इनके बीच में कोई संबंध था?</p><p>क्या कालीरमण लाशों की इस गुत्थी को सुलझा पाया?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मुख्य किरदार </h4><div style="text-align: left;">रोशन वर्मा - सब इंस्पेक्टर <br />रणवीर कालीरमण - प्रेमनगर थाने का इंचार्ज</div><div style="text-align: left;">सौम्या - रणवीर की पत्नी </div><div style="text-align: left;">भव्या - रणवीर की बेटी </div><div style="text-align: left;">अनिल कुमार - हेड कांस्टेबल फोरेंसिक<br />वरुण - पत्रकार<br />नवीन - कैमरामैन<br />रतन लाल - थाने का मुंशी<br />नवनीत कंसल - पोस्टमार्टम के पैनल हेड<br />पुरषोत्तम गोयल - दुर्गा कॉलोनी में हुई हत्या के मकान का मकान मालिक<br />अनिकेत - किरायेदार<br />संजय बंसल - अनिकेत का दोस्त और दूसरा शिकार<br />वेदपाल - फोरेंसिक का हेड<br />गौरव कालिया - पहला शिकार<br />सुरेंद्र कालिया - गौरव का पिता<br />रोहित गेरा - अनिकेत का दोस्त<br />शमशेर सिंह गेरा - रोहित का पिता और एक बाहुबली<br />मोहित गेरा - शमशेर का दूसरा लड़का<br />विपिन मित्तल - शमशेर के फार्म हाउस महक फार्म हाउस का मैनेजर<br />दिनेश, कृष्ण, अनिल, कदम सिंह - रणवीर के मातहत<br />पुनीत खन्ना - वेल केयर फार्मा का डिस्ट्रीब्यूटर<br />रामचरण - एमएलए<br />नरेश मल्होत्रा - ड्रग इंस्पेक्टर</div><div style="text-align: left;">अविनाश चौधरी - एक युवक</div><div style="text-align: left;">अशोक - अविनाश का मकान मालिक </div><div style="text-align: left;">रूप कुमार - एक बुजुर्ग व्यक्ति </div><div style="text-align: left;">दया राम - रूप कुमार का पड़ोसी </div><div style="text-align: left;">अक्षत वर्मा - रूप कुमार का बेटा </div><div style="text-align: left;">रूपाली वर्मा - रूप कुमार की बेटी </div><p><br /></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार</h4><p>'राख' लेखक जितेंद्रनाथ की लिखी रहस्य कथा है जो कि <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/spb" rel="nofollow" target="_blank">सूरज पॉकेट बुक्स</a> के इम्प्रिन्ट <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/bookemist" rel="nofollow" target="_blank">बुककेमिस्ट </a>से 2021 में प्रकाशित हुई थी। अगर इसे अपराध कथा की उप शैली में वर्गीकृत करना पड़े तो इसे एक<a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/police procedural" rel="nofollow" target="_blank"> पुलिस प्रोसीजरल</a> की श्रेणी में रखा जा सकता है जो कि ऐसे उपन्यास होते हैं जिसमें पुलिस की कार्यशैली को दर्शाया जाता है। </p><p>उपन्यास के केंद्र में इंस्पेक्टर कालीरमण है जो कि प्रेम नगर थाने का एस एच ओ है। उसके इलाके में जब दो जली हुई लाशें मिलती हैं तो वो उस मामले को सुलझाने में लग जाता है। केस में जैसे जैसे वो आगे बढ़ता जाता है वैसे वैसे शहर के रसूखदार लोगों के ऐसे राज उसके सामने उजागर होते जाते है जिसके चलते उसके ऊपर विभागीय और राजनैतिक प्रेशर पड़ने लगता है। वहीं इस केस की तहकीकात ऐसे जघन्य अपराध से भी परदा उठाती है जिसे सिस्टम की मदद से छुपाने के पहले प्रयास किया गया था।</p><p>चूँकि यह एक पुलिस प्रोसीजरल है तो पुलिस के तहकीकात करने के लहजा कहानी का महत्वपूर्ण भाग है। इस तरीके को बहुत बारीकी से दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त अक्सर पुलिसिया कार्यवही बाहरी तत्वों से प्रभावित होती है यह भी दिखता है। कैसे सिस्टम के आगे कई बार ईमानदार लोगों को मुँह की खानी होती है और सब कुछ देखते हुए भी आँखें बंद कर देने की मजबूरी उसकी होती है यह भी इधर दिखता है। </p><p>अगर पुलिस अपराधियों का साथ देने लगे तो एक आम आदमी की हालत क्या हो जाती है यह भी इधर रूप कुमार की हालत देखकर दिखता है। </p><p>उपन्यास में जिस तरह से सिस्टम को दर्शाया गया है वह यथार्थ के काफी नजदीक लगता है और यह एक आम आदमी के तौर पर आपको डराने के लिए काफी है। लेकिन उपन्यास में मौजूद ऐसे किरदार भी हैं जो कि आपकी उम्मीद बँधाते हैं कि वह अपने स्तर पर सही कार्य करने की कोशिश करते हैं। </p><p>उपन्यास की एक और अच्छी बात मुझे ये लगी कि कालीरमण की व्यक्तिगत ज़िंदगी को इधर दर्शाया गया है। अक्सर हिंदी अपराध कथाओ में ऐसा कम होता है कि हम पुलिस वालों की व्यक्तिगत ज़िंदगी देखते हैं। उनका काम कैसे उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी को प्रभावित करता है यह भी कम देखने को मिलता है। ऐसे में लेखक द्वारा ये पहलू दर्शाया जाना अच्छा लगता है। </p><p>उपन्यास का घटनाक्रम प्रेम नगर नाम की जगह में घटित होता है। यह एक काल्पनिक शहर है जो कि हरियाणा में शायद कहीं है। उम्मीद है लेखक इस शहर के और किस्से लेकर आयेंगे। जिस हिसाब से अपराध इधर बढ़ रहे हैं उस हिसाब से कई मामले तो बन सकते हैं।</p><p>कथानक आप पर पकड़ बनाकर रखता है। जैसे जैसे सबूत मिलते जाते हैं वैसे वैसे कथानक उजागर होता जाता है। पर जो आपको दिख रहा है क्या वो सच है या इसमें कुछ घुमाव है? यह एक ऐसा प्रश्न रहता है जो कि आपको आखिर तक कथानक से बाँधे रखता है। लेखक कथानक में ट्विस्ट देने की भी कोशिश करते हैं और उसमें सफल भी हुए हैं। </p><p>किरदारों की बात की जाए तो अधिकतर किरदार जीवंत हैं। उपन्यास में पुलिस विभाग केंद्रीय भूमिका में है तो यहाँ की राजनीति इधर दिखती है। अच्छे बुरे सब तरह के अफसर यहाँ मौजूद हैं। ईमानदार अफसरों में भ्रष्ट अफसरों के कारण जो खीज उत्पन होती है यह भी इधर दिखती है। कैसे ताकत आपके पास हो तो स्याह को सफेद और सफेद को स्याह बनाया जा सकता है यह भी इधर दिखता है। </p><p>कालीरमण एक ईमानदार पुलिस वाला है जिसे अपनी ईमानदारी की कई बार कीमत चुकनी पड़ती है। वहीं अपनी इसी खूबी के चलते वह अपने उन मातहतों के बीच में सम्मान का पात्र है जिनके भीतर अभी मनुष्यता बाकी है। कालीरमण से मैं दोबारा जरूर मिलना चाहूँगा। </p><p>कालीरमण के अलावा एक पत्रकार वरुण भी कहानी में मुख्य भूमिका निभाता है। वरुण एक ईमानदार और महत्वायाकांक्षी पत्रकार है जिसका प्रयोग कालीरमण समय समय पर करता है। वरुण और कालीरमण की बातें अक्सर इस संजीदा उपन्यास में हास्य का तड़का भी लगाती हैं जो कि माहौल को हल्का करने में काम आता है। इनके बीच का समीकरण मुझे रोचक लगा। </p><p>इसके अतिरिक्त राजनैतिक संरक्षण पाए बाहुबली, राजनेताओं के सामने दुम हिलाने वाले पुलिस वाले, फोरेंसिक से जुड़े लोग और अन्य किरदार इसमें हैं। यह सभी कथानक के लिए जरूरी हैं और उसी हिसाब से इनका प्रयोग लेखक द्वारा किया गया है।</p><p>उपन्यास की कमी की बात करूँ तो एक दो चीजें थीं जो कि मुझे थोड़ा लगी जिनपर और काम हो सकता था। </p><p>कहानी का फ्लेवर चूँकि यथार्थवादी है तो कहानी का आखिरी घुमाव, जिसमें अपराधी की पहचान का पता लगता है, को पचाने में काफी लोगों को दिक्कत हो सकती है। अचानक से एक अमीर किरदार को ले आना ओर फिर महंगे मेडिकल प्रोसीजर करवा देना थोड़ा अटपटा लगता है और उपन्यास को यथार्थ से काफी दूर इसे ले जाता है। ऐसा भी लगता है कि लेखक ने कथानक खत्म करने के लिए एक सरल रास्ता चुना है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि अगर लेखक बिना इसके कहानी को अंत तक पहुँचा पाते तो बेहतर होता।</p><p>इसके अतिरिक्त एक कमी जो मुझे कथानक में लगी वो ये थी कि उपन्यास में एक किरदार है जिसका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है। ये देखकर हैरानी होती है कि उसको इलाज दिलाने की कोशिश नहीं की गई। जबकि एक किरदार ऐसा था जो कि वो कोशिश कर सकता था या उसे ऐसी जगह रख सकता था जहाँ उसका ध्यान रखा जाता। ऐसा उसके द्वारा अपनी पहचान उजागर किए बिना भी हो सकता था। इससे अधिक बोलना कहानी को खोलना होगा लेकिन अगर ऐसी कोई कोशिश, फिर चाहे वो असफल ही रही हो, का जिक्र किया रहता तो बेहतर होता। </p><p>इनके अतिरितक इक्का दुक्का जगह नाम में थोड़ी गड़बड़ दिखी। रणवीर कालीरमण एक जगह रणवीर सिंह हो गया और वेद पाल एक आध जगह तेजपाल हो गया था। वहीं इक्का दुक्का जगह वर्तनी की गलतियाँ थी जो कि इतनी नहीं थी कि पढ़ने का मजा किरकिरा हो। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि राख एक रोचक रहस्यकथा है जो कि पाठक को अंत तक बाँध कर रखती है। उपन्यास क्योंकि पुलिस प्रोसीजरल है तो उस हिसाब से पुलिसिया कार्यवाही के बारे में अधिक जानकारी दी है जो कि मुझे नहीं खली। यह एक अलग तरह का फ्लेवर इसे देती है। अगर पुलिस प्रोसीजरल और रहस्यकथाएँ पसंद हैं तो मुझे लगता है कि उपन्यास आपका मनोरंजन करने में सफल अवश्य होगा। </p><p>उम्मीद है लेखक रणवीर कालीरमण को लेकर और भी कथानक लिखेंगे। मैं तो जरूर रणवीर से दोबारा मिलना चाहूँगा। </p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/41BENRf" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p><p><b>Full Disclosure (पूर्ण प्रकटीकरण): </b>उपन्यास लेखक द्वारा मुझे उपहार स्वरूप दिया गया था।</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें</h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/11/story-review-anokhi-chori.html" target="_blank">अनुराग कुमार जिनीयस की कहानी 'अनोखी चोरी' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2020/06/my-take-on-ek-hi-rasta-surendra-mohan-pathak.html" target="_blank">सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास 'एक ही रास्ता' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/book-review-trap-santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक के उपन्यास 'ट्रैप' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-soorma-anil-mohan.html" target="_blank">अनिल मोहन के देवराज चौहान शृंखला के उपन्यास 'सूरमा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/10/review-of-badkismat-qatil.html" target="_blank">शुभानन्द के उपन्यास 'बदकिस्मत कातिल' पर टिप्पणी </a></li></ul><div><br /></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-61177846923047013972023-12-28T19:58:00.003+05:302023-12-28T20:09:36.397+05:30गदर | फेनिल कॉमिक्स | फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा | बजरंगी<p><b><span style="font-size: medium;">संस्करण विवरण </span></b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 22 | <b>प्रकाशक:</b> फेनिल कॉमिक्स | <b>शृंखला:</b> बजरंगी #3 </p><p><b>टीम:</b></p><p><b>कहानी:</b> फेनिल शेरडीवाला | <b>लेखक:</b> फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा | <b>पेंसिलर:</b> आनंद जादव | <b>कलरिस्ट:</b> हरेन्द्र सिंह सैनी | <b>मुख्य पृष्ठ:</b> आनंद जादव, भक्त रंजन</p><p><b>पुस्तक लिंक: </b><a href="https://www.fenilcomics.com/gadar" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> | <a href="https://www.fenilcomics.com/bajararngi-3-in-1-combo-standard-size-edition" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स: सस्ता संस्करण </a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRLXQMsruzefk4W6YZ5gC7aupKGAGCq56NT6yEageLmltjJDsouDtbGxiNrwEer-QB-2cPGOmIRkZ3aoermxF8RAPw6TLqvOsnWoVuzamT0JRku-1gew8HwLOp-4LuNZlV1d5tpmCT9pykwBqV02AoLnJ-CuADk3UwMxoZ3GTLpEd0yJgerHJ404RzhM4/s300/gadar.jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="199" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRLXQMsruzefk4W6YZ5gC7aupKGAGCq56NT6yEageLmltjJDsouDtbGxiNrwEer-QB-2cPGOmIRkZ3aoermxF8RAPw6TLqvOsnWoVuzamT0JRku-1gew8HwLOp-4LuNZlV1d5tpmCT9pykwBqV02AoLnJ-CuADk3UwMxoZ3GTLpEd0yJgerHJ404RzhM4/s1600/gadar.jpeg" width="199" /></a></div><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><div><div>शहर की ओर जाते भीमा और उसके बेटे वज्र पर वन दस्युओं में जानलेवा हमला कर दिया था।</div><div><br /></div><div>अगर सफेद बाघ के रूप में बीच में एक व्यवधान नहीं आ जाता तो भीमा और वज्र की इहलीला समाप्त होने में कोई कसर बाकी रह गई थी।</div><div><br /></div><div>आखिर वन दस्युओं ने इन पर हमला क्यों किया?</div><div>इस हमले का वज्र के जीवन पर क्या असर पड़ा?</div><div>आखिर कौन था ये सफेद बाघ और इसने क्यों इन भीमा और वज्र की जान बचाई?</div></div><div><br /></div><h4 style="text-align: left;">विचार </h4><div>'गदर' फेनिल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित बजरंगी शृंखला का तीसरा कॉमिक बुक है। </div><div><br /></div><div>प्रस्तुत कॉमिक बुक की शुरुआत एक फ़्लैशबैक से होती है। <a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/comic-review-1411-fenil-comics.html" target="_blank">1411 </a>पढ़कर जान चुके हैं कि वज्र का गाँव देवीपुर बजरंगी नाम के जिंदारी योद्धा द्वारा बसाया गया था। 1411 की शुरुआत भी देवीपुर में बजरंगी के लौटने से होती है और उसके बाद तीन महीने पहले की कथा शुरू होती है। प्रस्तुत कॉमिक गदर में भी फ़्लैशबैक के माध्यम से इसी जिंदारी योद्धाओं के पूर्वज इसी बजरंगी के जीवन के एक पहलू को दर्शाया जाता है। वहीं <a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/comic-book-review-simha-fenil-comics.html" target="_blank">सिम्हा </a>में दर्शाये सफेद बाघ की पहचान के विषय में भी इधर इशारा किया जाता है। कॉमिक बुक में 22 पृष्ठ हैं और उसमें से 8 इसी फ़्लैश बैक को दिए गए हैं। इसके पश्चात कहानी वर्तमान में आती है। भीमा बहुत घायल है। वज्र को होश आ गया है और अब वह जिंदारी परिधान अपनी माँ से माँगता है। पाठकों को पता चलता है कि इस परिधान को पाने के लिए एक परीक्षा से व्यक्ति को गुजरना होता है। ये परीक्षा क्या है यही कॉमिक बुक में पता लगता है। इसके अतिरिक्त भीमा और वज्र पर् हमला करने वाले व्यक्ति के विषय में कॉमिक बुक रोशनी डालती है। </div><div><br /></div><div>मुझे लगा था कि चूँकि बजरंगी की तीन ही कॉमिक आई हैं तो ये स्टोरी आर्क इन तीन कॉमिक बुक्स में खत्म हो गया होगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। कॉमिक बुक के खत्म होने के कुछ और सवाल आपके सामने मुँह बाये खड़े होते हैं। ऐसे में एक अधूरेपन का अहसास इसमें होता है। अगर कहानी को जल्द ही खत्म किया जाए तो बेहतर होगा। </div><div><br /></div><div>मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि जो फ्लैश बैक सीन इधर दिया गया वो सिम्हा का हिस्सा होना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो उसका शीर्षक औचित्यपूर्ण लगता जो फिलहाल नहीं लग रहा था। वहीं इस कॉमिक बुक का अंत वज्र को परीक्षा को पूरी करने में आने वाली मुसीबतों में से एक दो से जूझने में होता तो बेहतर होता। ऐसे में पाठकों को लगता कि कुछ कहानी आगे बढ़ी है। </div><div><br /></div><div>अभी के लिए तो यही कहूँगा कि प्रस्तुत कॉमिक में कहानी थोड़ा और आगे सरकती है। ये सरकना संतुष्ट नहीं कर पाता है। कौड़िया नाम का नया किरदार जो कहानी में आ रहा है वो रोचक लग रहा है। </div><div><br /></div><div>आर्ट वर्क पहले कॉमिक बुक्स की तरह ही है। फ्लैशबैक के सीन रात में घटित होते हैं। वो मुझे अच्छे लगे। कवर की बात करूँ तो बजरंगी इसमें एक खंडहर के सामने दिखता है। अब फ्लैश बैक पूरा एक अँधेरे कमरे में और रात को घटित होता है तो वो खंडहर यही है या नहीं मुझे नहीं पता। ऐसे में कवर कहानी के साथ जुड़ा नहीं होता है। इससे पहले भी 1411, सिम्हा के कवर में भी यही बात मुझे दिखी थी। उसमें बजरंगी को ही दर्शाया गया है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि कवर कहानी को दर्शाये तो बेहतर होता है। इधर भी यही होता तो अच्छा होता। </div><div><br /></div><div>अंत में यही कहूँगा कि बजरंगी कॉमिक की यह तीसरी कॉमिक बुक भी क्योंकि पहले कॉमिक में शुरू हुए आर्क को खत्म करने में सफल नहीं होती है तो एक तरह से पाठक के रूप में आपके भीतर असंतुष्टि रहती है। पहले भाग में जहाँ काफी कहानी पाठकों को प्रकाशकों को दी गई थी उसकी तुलना में दूसरे और तीसरे भाग में बहुत कम कहानी देखने को मिलती है। हाँ, तीनों भाग अगले भागों के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब जरूर होते हैं लेकिन अगर थोड़ा ज्यादा कहानी पढ़ने को मिलती तो कॉमिक और अच्छी हो जाती। फिलहाल तो यही सलाह होगी कि जब तक ये आर्क खत्म नहीं हो जाता तब तक इन कॉमिक बुक्स से दूरी बनाए। वरना कहानी का अधूरापन आपको काफी दिनों तक सालता रहेगा। </div><div><br /></div><div><br /></div><p><b>पुस्तक लिंक: </b><a href="https://www.fenilcomics.com/gadar" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> | <a href="https://www.fenilcomics.com/bajararngi-3-in-1-combo-standard-size-edition" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स: सस्ता संस्करण </a></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-11878768922939037072023-12-26T19:19:00.000+05:302023-12-26T19:19:12.649+05:30सिम्हा | फेनिल कॉमिक्स | बजरंगी #2 | फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा<p><span style="font-size: medium;"><b>संस्करण विवरण</b></span></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 21 | <b>प्रकाशन:</b> फेनिल कॉमिक्स | <b>सीरीज:</b> बजरंगी #1 </p><p><span style="font-size: medium;"><b>टीम</b></span></p><p><b>कहानी: </b>फेनिल शरेडीवाला | <b>लेखक:</b> फेनिल शेरडीवाला, वीरेंद्र कुशवाहा | <b>पेन्सिलर:</b> आनंद जादव | <b>कलरिस्ट:</b> हरेन्द्र सिंह नेगी | <b>सहयोग:</b> व्योमा मिश्रा | <b>शब्दांकन: </b>संदीप गुप्ता | <b>मुख्य पृष्ठ:</b> आनंद जादव, भक्त रंजन</p><p><b>कॉमिक बुक लिंक:</b> <a href="https://www.fenilcomics.com/simha" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> | <a href="https://www.fenilcomics.com/bajararngi-3-in-1-combo-standard-size-edition" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स: सस्ता संस्करण </a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwWHzPbW2LPPu0Tnjcw1_O3c-Te_BlGa-T66CERbGH1mlszYUWDOo8qBxMhQNmt4fXZSANJm89cen42l4GYsjFETvcTurKg-g_6b18QeZhsbLYxIWkL2p3MxTO1Dck0aorEU9dkz82xXGS2P5niwh747KC6ktBm8LGw5ee7Zdc-AujgtGylf5mj4oyinQ/s300/0000192_simha_300.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="सिम्हा | फेनिल कॉमिक्स | बजरंगी #2 | फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा" border="0" data-original-height="300" data-original-width="199" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwWHzPbW2LPPu0Tnjcw1_O3c-Te_BlGa-T66CERbGH1mlszYUWDOo8qBxMhQNmt4fXZSANJm89cen42l4GYsjFETvcTurKg-g_6b18QeZhsbLYxIWkL2p3MxTO1Dck0aorEU9dkz82xXGS2P5niwh747KC6ktBm8LGw5ee7Zdc-AujgtGylf5mj4oyinQ/w212-h320/0000192_simha_300.jpeg" title="सिम्हा | फेनिल कॉमिक्स | बजरंगी #2 | फेनिल शेरडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा" width="212" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>वज्र बहुत समय बाद अपने गाँव देवीपुर लौटा था।</p><p>वह अब तक आपने गाँव के हालात, अपनी पहचान और अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ था लेकिन अब वह गाँव के विषय में जानना चाहता था। </p><p>पर कोई था जो नहीं चाहता था कि वज्र गाँव में रहे। शायद इसीलिए उस पर जानलेवा हमला हुआ था।</p><p>आखिर कौन थे वो लोग जो वज्र के खिलाफ साजिश रच रहे थे?</p><p>इस हमले का क्या असर हुआ?</p><p>वज्र और उसके परिवार वालों ने क्या किया?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">विचार</h4><p><b>'सिम्हा'</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/fenil comics" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> के <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/बजरंगी+fenil comics" rel="nofollow" target="_blank">बजरंगी शृंखला</a> का दूसरा कॉमिक बुक है। इससे पूर्व इसका भाग <a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/12/comic-review-1411-fenil-comics.html" target="_blank">1411 </a>आ चुका है और इस कॉमिक बुक की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ 1411 की खत्म हुई थी। यहां 1411 की कहानी भले ही संक्षेप में दी गई है लेकिन अगर आपने वो नहीं पढ़ी है तो आपको इसे पढ़ने से पहले उसे जरूर पढ़ना चाहिए।</p><p><b>सिम्हा </b>की बात की जाए इसमें वज्र की कहानी थोड़ा ही आगे सरकती है। 1411 के अंत में हम देखते हैं कि वज्र पर एक हमला होता है और वो हमलावर के पीछे एक गुप्त कमरे तक पहुँचता है। इसके बाद क्या होता है यही कहानी बनती है। सिम्हा केवल 19 पेज का कॉमिक बुक है तो इसमें कहानी बढ़ाने का इतना स्कॉप वैसे भी नहीं था। </p><p>यहाँ इतना कहना काफी है कि वज्र के पिता के द्वारा एक निर्णय लिया जाता है और उस निर्णय के बाद जो होता है वो नए कॉमिक बुक के लिए छोड़ दिया जाता है।</p><p>कथानक की बात करूँ तो यह आपको संतुष्ट नहीं कर पाता है। एक तो ज्यादा कुछ इस कॉमिक में होता नहीं है। ऐसे में आपको लगता है कि ये पार्ट केवल पार्ट बनाना है इसलिए ही बनाया गया है। चूँकि मैंने तीसरा भाग भी पढ़ लिया है तो मुझे लगता है कि दूसरा और तीसरा भाग मिलाकर एक ही भाग बनाया जा सकता था। ऐसे में वो भी पहले भाग की तरह 40+ पेज का बनता और पाठकों को संतुष्ट करने में सफल होता।</p><p>कथानक की लंबाई के अतिरिक्त अन्य कमियों की बात करूँ तो एक दो कमी इसमें थीं जो मुझे लगी। उदाहरण के लिए: एक प्रसंग है जिसमें एक बेटे के सामने उसके पिता पर हमला होता है। लेकिन बेटा तब तक हमला होते हुए देखता है जब तक पिता बुरी तरह घायल होकर बेदम नहीं हो जाता है। ये अजीब लगता है। जो बेटा अपने पिता की मौखिक बेइज्जती पहले भाग में नहीं सह पाया था उसका ऐसा आचरण उसके किरदार के विरुद्ध ही लगता है।</p><p>इसके अतिरिक्त खलनायक तलवार नुमा हथियार लेकर नायक पर हमला करते दिखते हैं। बताया गया है कि वो खूँखार हैं और ताकतवर हैं। नायक एक आम व्यक्ति है। उसके अंदर कोई सुपरहीरो जैसी ताकतें नहीं हैं। अगर तलवार से चार पाँच लोग किसी पर वार करें तो उसके अंग क्षत विक्षित हो जायेंगे। हाथ पाँव कट कर अलग हो जायेंगे। पर ऐसा दिखता नहीं है। </p><p>कहानी में एक बिंदु ऐसा आता है जब नायक के पास वार सहने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं होता है। लेकिन खलनायक इसमें भी कोई खतरनाक वार करते नहीं दिखते हैं। मतलब गर्दन पर वार किया जा सकता था। चार पाँच लोग नायक से लड़ते दिखते हैं। सबके हाथ में दो दो तलवारनुमा हथियार हैं, पर फिर भी किसी का तलवार घोप कर नायक को न मारना थोड़ा अटपटा लगता है।</p><p>कॉमिक का नाम सिम्हा है। लेकिन ये क्यों है इसका पता कॉमिक के अंत तक नहीं लगता है। तीसरे भाग में पता लगता है कि एक सफेद बाघ, जो कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, का नाम सिम्हा रहता है। चूँकि उसे इधर पहली बार दर्शाकर उसका परिचय पाठकों से करवाया जा रहा है तो नाम का औचित्य है। पर उसका नाम सिम्हा है ये इधर बताया रहता तो अच्छा था। अभी तो कॉमिक खत्म होने के बाद पाठक यही सोचता है कि इसका नाय सिंहा क्यों रखा गया है। अपनी बात करूँ तो जब तक मैंने तीसरा भाग नहीं पढ़ा था तब तक मुझे लगा था कि इसका नाम् सिम्हा की जगह व्याघ्र रखा जाता तो बेहतर होता। वैसे भी बाघ का नाम शेर रखना अटपटा ही होता है। </p><p>आर्टवर्क की बात करूँ तो फेनिल का कमजोर पक्ष आर्टवर्क ही रहता है। यहाँ भी ऐसा ही है। आर्टवर्क ऐसा नहीं है कि जो आपको प्रभावित करे।</p><p>एक बार मुझे समझ नहीं आती। फेनिल कॉमिक के आर्टवर्क में मैंने एक बात नोट की है। इसमें ही नहीं इससे पहले मैंने <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/जासूस बलराम+fenil comics" rel="nofollow" target="_blank">जासूस बलराम</a> के कॉमिक्स भी पढ़े थे उसमें भी ये नोट किया था। जहाँ अन्य कॉमिक्स अक्सर अपने नायकों के चेहरे मोहरे अच्छे से बनाते हैं वहीं फेनिल कॉमिक में बाकी किरदारों के चेहरे मोहरे तो ठीक ठाक होते हैं लेकिन नायकों के चेहरे बनाने में कम ही मेहनत की गई लगती है। यह इधर भी दिखता है। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि प्रस्तुत कॉमिक सिम्हा 1411 को थोड़ा सा आगे सरकाती है। अभी अंत में भले ही यह अगले भाग के प्रति रुचि जागृत करने में सफल होती है लेकिन एक असंतुष्टि का भाव पाठकों के मन के इसे लेकर बना रहता है। ऐसा लगता है किसी ने खीर की कटोरी के बजाय दो चम्मच खीर आपको दी हो और कहा हो कटोरी अगली बार मिलेगी। अगर इसे और तीसरे भाग को मिलाकर एक कॉमिक बना देते तो मेरे ख्याल से बेहतर होता।</p><p><br /></p><p><b>कॉमिक बुक लिंक:</b> <a href="https://www.fenilcomics.com/simha" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> | <a href="https://www.fenilcomics.com/bajararngi-3-in-1-combo-standard-size-edition" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स: सस्ता संस्करण </a></p><p><br /></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-55675615094763240662023-12-23T20:14:00.002+05:302023-12-31T09:24:32.275+05:30रॉयल बंगाल रहस्य - सत्यजित राय | मुक्ति गोस्वामी | रेमाधव प्रकाशन<p><span style="font-size: medium;"><b>संस्करण विवरण:</b></span></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 119 | <b>प्रकाशन:</b> रेमाधव प्रकाशन | <b>शृंखला:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/फेलूदा" rel="nofollow" target="_blank">फेलूदा</a></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3Rve6co" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3Fk3QGymBsDtT6tLN61WALFqFIYh2OzBV8W9nAqxWrCIUw-bDIlxi_6LLHF6Pp2ZQfe-x0FTvYhf9dkHTnhxkHoJMg58OVtEKOw-Ukh0LR3nMc1JxLCFa3Pu10qf0agwE1RlLo-_le6-IZ6bcgyt2nO_lWRnIKmcqo8KzjbR2qjIN92ncLcXfpdSyohs/s466/715qACHEE9L._SY466_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="466" data-original-width="297" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3Fk3QGymBsDtT6tLN61WALFqFIYh2OzBV8W9nAqxWrCIUw-bDIlxi_6LLHF6Pp2ZQfe-x0FTvYhf9dkHTnhxkHoJMg58OVtEKOw-Ukh0LR3nMc1JxLCFa3Pu10qf0agwE1RlLo-_le6-IZ6bcgyt2nO_lWRnIKmcqo8KzjbR2qjIN92ncLcXfpdSyohs/s320/715qACHEE9L._SY466_.jpg" width="204" /></a></div><br /><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>तोपशे की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रहीं थी। फेलूदा भी हाल में एक मामला निपटा कर इन दिनों खाली बैठा हुआ था। ऐसे में जब लालमोहन गांगुली उर्फ जटायु ने उन्हें अपने साथ जंगल की एक यात्रा आने के लिए कहा तो हामी भर दी। उन लोगों को भूटान सीमा के निकट रहने वाले महीतोष सिंहराय ने बुलाया था। </p><p>वो क्या जानते थे एक और रोमांचक अनुभव वहाँ उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। </p><p>आखिर कौन थे ये महितोष सिंघराय? उन्होंने क्यों लालमोहन गांगुली और फेलूदा को अपने पास बुलाया था?</p><p>वहाँ उनके साथ ऐसा क्या हुआ?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मुख्य किरदार </h4><div style="text-align: left;">प्रदोष मित्र उर्फ फेलूदा - एक प्राइवेट डिटेक्टिव <br />तपेश रंजन मित्र उर्फ तोपशे - फेलूदा का छोटा भाई<br />लालमोहन गांगुली उर्फ जटायु - एक रहस्यकथा लेखक जो फेलूदा और तोपशे का दोस्त था<br />महीतोष सिंघराय - एक शिकारी और लेखक<br />देवतोष सिंह राय - महीतोष के भाई<br />शशांक सन्याल - महीतोष के दोस्त<br />तड़ित सेनगुप्ता - महीतोष के सचिव<br />मिस्टर विश्वास - पुलिस अफसर<br />माधवलाल - एक शिकारी</div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">विचार </h4><p>'रॉयल बंगाल रहस्य' सत्यजित राय के <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/बांग्ला+अनुवाद" rel="nofollow" target="_blank">बांग्ला</a> उपन्यास का हिंदी अनुवाद है। यह उपन्यास बांग्ला में प्रथम बार 1974 में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास का अनुवाद मुक्ति गोसवामी द्वारा किया गया है और रेमाधव प्रकाशन द्वारा यह प्रकाशित किया गया है। </p><p>यह मूलतः एक रहस्य कथा है जिसके केंद्र में एक पहेली और उसका हल होता है। </p><p>उपन्यास की शुरुआत इसी पहेली से होती है जहाँ तोपशे बताता है कि उसे पहेली से शुरुआत करने का सुझाव फेलूदा ने ही दिया है । इसके पश्चात कहानी की शुरुआत होती है जिसमें पाठक जानता है कि कैसे लाल मोहन गांगुली उन्हें महीतोष सिंहराय के आमंत्रण के विषय में बताता है और यह तिकड़ी वहाँ के लिए निकल लेती है। </p><p>महीतोष सिंह राय एक जमींदार परिवार से आता है और एक नामी शिकारी और शिकार लेखक है। इन दिनों वह अपने परिवार के इतिहास को लिखना चाहता है और उसी दौरान इस पहेली से उसका वास्ता पड़ता है। उसका मानना है कि इस पहेली में उनके पारिवारिक खजाने का राज है जिसे उसके पूर्वज ने छुपा दिया है। अब फेलूदा को इस पहेली का हल ढूँढना है।</p><p>फेलूदा इस पहेली का हल कैसे ढूँढता है? इस दौरान महीतोष राय के घर में क्या-क्या घटित होता है? इस पहेली का अर्थ ढूँढने के साथ साथ और जो राज उजागर होते हैं वह कहानी बनते हैं। </p><p>पहेली घुमावदार है और उसका अर्थ का पता लगाना आसान नहीं है। कहानी में पहेली का रहस्य तो महत्वपूर्ण ही है लेकिन चूँकि घटनाक्रम जंगल के निकट घटित होता है और नरभक्षी का होना भी यहाँ रोमांच पैदा करता है। साथ ही महीतोष के घर में भी षड्यन्त्र चल रहा होता है जो कि उपन्यास में रोमांच बढ़ा देता है।</p><p>फेलूदा के उपन्यासों में लाल मोहन गांगुली का विशेष महत्व रहता है। उनकी हरकतें हास्य पैदा करती हैं और इस उपन्यास में भी ऐसी कई परिस्थितियाँ आती है जहाँ लालमोहन गांगुली की हरकतें चेहरे पर हास्य पैदा कर देती हैं। </p><p>उपन्यास में कई किरदार और हैं जो कि कथानक के अनुरूप हैं। यह किरदार संदिग्ध भी रहते हैं और इनकी हरकतें इतना संशय तो पैदा करती ही है। जब व्यक्ति अमीर रहता है तो उसके कई चेहरे होते हैं और ऐसे अमीर परिवार के कई राज भी होते हैं। यह इधर भी दिखता है। शशांक सानयाल, तड़ित सेन गुप्ता, महीतोष सिंहराय और देवतोष सिंह राय ऐसे किरदार हैं जो जैसे हैं वैसे दिखते नहीं हैं। </p><p>अक्सर पुलिस वाले प्राइवेट डिटेक्टिव को अपने प्रतिद्वंदी के तौर पर देखते हैं और उन्हें अपने से कमतर मानते है। यह बात कई रचनाओं में दर्शाई गई है। विश्वास और प्रदोष के बीच का समीकरण भी ऐसा ही है। </p><p> उपन्यास के आठवें अध्याय में ऐसा प्रतीत हुआ कि कथानक का कुछ हिस्सा प्रकाशित नहीं हुआ है। उपन्यास में काला पहाड़ का एक प्रसंग है जिसके विषय में लालमोहन बाबू बात कर रहे होते हैं लेकिन उसका जिक्र उससे पहले उपन्यास में नहीं आया था। ऐसे में लगा कि उपन्यास में कुछ अधूरा रह गया है। इसके साथ साथ उपन्यास का रहस्य का एक हिस्सा संयोग से हमारे नायकों को मिलता है। वो किसी को अँधेरी रात में बात करते देख लेते है। यहाँ संयोग की जगह थोड़ा तहकीकात दर्शाई होती तो बेहतर होता। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि यह एक उपन्यास एक बार पढ़ा सकता है। अनुवाद का हिस्सा गायब न रहता तो पढ़ने में अधिक मज़ा आता। उसके चलते अभी काला पहाड़ के बारे में केवल कयास ही लगाया जा सकता है। </p><p><br /></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3Rve6co" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें</h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/10/book-review-sundarvan-mein-saat-saal.html" target="_blank">बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के उपन्यास 'सुंदरबन में सात साल' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/09/book-review-mitti-mere-desh-ki-sanjeev-jaiswal-sanjay.html" target="_blank">संजीव जायसवाल संजय के उपन्यास 'मिट्टी मेरी देश की' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/02/review-of-rakshaputra-by-anurag-kumar-singh.html" target="_blank">अनुराग कुमार सिंह के उपन्यास 'रक्षपुत्र' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/04/book-review-jeetenge-ham-sabir-hussain-national-book-trust.html" target="_blank">साबिर हुसैन के बाल उपन्यास 'जीतेंगे हम' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/08/book-review-of-surekha-panandiker-s-talash.html" target="_blank">सुरेखा पाणंदीकर के बाल उपन्यास 'तलाश' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-19752813531842265202023-12-21T17:31:00.002+05:302023-12-26T19:36:03.241+05:30पक्या और उसका गैंग - गंगाधर गाडगील | अनुवाद: माधवी देशपांडे | साहित्य अकादेमी<p style="text-align: left;"><span style="font-size: medium;"><b>संस्करण विवरण:</b></span></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 40 | <b>प्रकाशन:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/साहित्य अकादेमी" rel="nofollow" target="_blank">साहित्य अकादेमी</a> | <b>अनुवाद:</b> माधवी देशपांडे </p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNHcDOvpC8ts6zz0YS0QWIGDfJsC1akKIORvUaB9bXBv-AlkT95waNvcmOvxSfD3v4fn-2pD7rkfDgUIE2odm-iEA8YT5YGIbvIsB5FzJUn0BCO44EJJdJ1V7aY2y2GpBbWT0ndtFpxpOtGlK_7qLKHgzpi6zeWhP7us8XOlL1Y_jNSLaSVzp_WaN4-2M/s320/pakyaauruskigang.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="पक्या और उसका गैंग - गंगाधर गाडगील | अनुवाद: माधवी देशपांडे | साहित्य अकादेमी" border="0" data-original-height="320" data-original-width="244" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNHcDOvpC8ts6zz0YS0QWIGDfJsC1akKIORvUaB9bXBv-AlkT95waNvcmOvxSfD3v4fn-2pD7rkfDgUIE2odm-iEA8YT5YGIbvIsB5FzJUn0BCO44EJJdJ1V7aY2y2GpBbWT0ndtFpxpOtGlK_7qLKHgzpi6zeWhP7us8XOlL1Y_jNSLaSVzp_WaN4-2M/w244-h320/pakyaauruskigang.jpg" title="पक्या और उसका गैंग - गंगाधर गाडगील | अनुवाद: माधवी देशपांडे | साहित्य अकादेमी" width="244" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>पक्या और उसके दोस्त काउबॉय सुरेश, विजय उर्फ फैटी और बिट्टू उसके मामाजी के घर आए हुए थे। वहाँ वो लोग बोर हो रहे थे तो उन्होंने समंदर के नजदीक जाकर घूमने की योजना बना डाली। </p><p>समंदर की तरफ जाते हुए उनका सामना एक तेज रफ्तार गाड़ी से हुए जिसने फैटी को लगभग कुचल ही डाला था </p><p>इस तेज भागती गाड़ी ने पक्या और उसकी गैंग का ध्यान आकर्षित कर दिया था। </p><p>आखिर ये गाड़ी किसकी थी और क्यों इतनी तेजी से ये इसे चला रहे थे?</p><p>इस सवाल का उत्तर जानने की जब उन्होंने कोशिश की तो कई परिस्थितियों से उनका सामना हुआ।</p><p>वो परिस्थितियाँ क्या थीं?</p><p>पक्या और उसकी गैंग इन परिस्थितियों से कैसे निकले?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मुख्य किरदार </h4><div style="text-align: left;">पक्या - गैंग का लीडर<br />खंड्या - पक्या का कुत्ता<br />विजय उर्फ फैटी - पक्या की गैंग का सदस्य<br />गट्टू - विजय का कबूतर<br />काउबॉय सुरेश - गैंग का मेंबर<br />भागी - नौकरानी<br />बिट्टू - गैंग का मैकेनिक<br />हिन्या - पकया का दोस्त और बुधया मछुआरे का लड़का<br />बुध्या पागल - एक मोटा तगड़ा आदमी जो पागल था</div><div style="text-align: left;"><br /></div><div style="text-align: left;"><br /></div><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार </h4><p>'पक्या और उसका गैंग' साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित गंगाधर गाडगील के मराठी बाल उपन्यास <b>'पक्याची गैंग'</b> का हिंदी अनुवाद है। <b>पक्याची गैंग</b> 1985 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। इसके हिंदी अनुवाद का पहला संस्करण 2007 में प्रकाशित हुआ था। </p><p>उपन्यास का अनुवाद माधवी देशपांडे द्वारा किया गया है। अनुवाद ठीक हुआ है। </p><p>स्कूल से मिली छुट्टी के दौरान कई बार बच्चों के पास करने के लिए नहीं होता है। चूँकि खाली समय काफी होता है तो कई लेखकों ने इस दौरान अपने बाल किरदारों से कई रोमांचक कारनामें करवाएँ हैं। इस उपन्यास में भी मुख्य किरदार ऐसे ही एक कारनामें को करते दिखते हैं। </p><p>उपन्यास के केंद्र में पक्या और उसके दोस्त हैं जो कि छुट्टी बिताने मुंबई से पक्या के मामा के घर आए हुए हैं। इन्हीं को पक्या का गैंग कहा गया है। इस गैंग में पक्या के दोस्त विजय उर्फ फैटी, उसका कबूतर गट्टू , काउबॉय सुरेश, बिट्टू और पक्या का कुत्ता खंड्या शामिल हैं। यह बच्चा पार्टी घर में जब बोर हो रही होती है तो पक्या इन्हें समंदर किनारे जाकर घूमने का आइडिया देता है। पक्या का एक दोस्त हिन्या है जो कि एक मछुआरे का पुत्र है और उस जगह का स्थानीय निवासी है। पक्या उसकी नाव में बैठकर मछली पकड़ने की योजना बना रहा होता है कि इनका सामना एक तेज रफ्तार गाड़ी से होता है। कुछ ऐसा हो जाता है कि ये गाड़ी इस बच्चा पार्टी की उत्सुकता का केंद्र बन जाती है और इस गाड़ी की ढूँढ में निकली बच्चा पार्टी रोमांचकारी अनुभवों से दो चार होती है। </p><p>उपन्यास तीन अध्यायों में विभाजित है और कई फुल पेज चित्रों के माध्यम से उपन्यास के मुख्य दृश्यों को दर्शाया गया है। पक्या और उसके साथ एक दूसरे की टाँग खीचने में माहिर हैं और कई बार इनके बीच के संवाद हास्य पैदा करते हैं। खंड्या पक्या का कुत्ता है जिसके बारे में उसका विचार है कि वह तेज तर्रार नहीं है। खंड्या की हरकतें भी कई बार हास्य पैदा करती हैं और कई जरूरी मोड़ों पर वह बच्चों की मदद भी करता है। खंड्या का किरदार मुझे विशेष तौर पर पसंद आया। </p><p>देहाती इलाकों में किस तरह से वहाँ के निवासियों के अंधविश्वास का फायदा उठाया जाता है यह भी इधर दिखता है। </p><p>कथानक की बात की जाए तो चूँकि यह मूलतः 1985 में प्रकाशित हुआ था तो इसमें जो चीज है वह व्यक्ति इतनी बार पढ़ या देख चुका है कि अगर उसे किसी नए पन की तलाश है तो शायद उसे निराशा मिले। उपन्यास के किरदार रोचक हैं लेकिन कथानक में और घुमाव होते तो बेहतर रहता। ऐसा नहीं है कि उपन्यास बुरा है लेकिन बच्चों की छुट्टियाँ और उन छुट्टियों में होते रोमांचक कारनामों पर इतना लिखा जा चुका है कि यह उससे अलग कुछ पाठकों को नहीं देता है। फिर कथानक में अगर विस्तार होता और कुछ घुमाव अधिक होते तो कथानक और रोमांचक बन सकता था। अभी इसमें घुमाव इतने नहीं हैं। इसके साथ ही कहानी में दो जीव थे। एक पक्या का कुत्ता खंड्या और एक फैटी का कबूतर गट्टू। जहाँ खंड्या के करने के लिए काफी कुछ था उधर गट्टु के लिए उतना नहीं था। अगर होता तो मज़ा आता। गट्टू के लिए भी लेखक कुछ सोचते तो बेहतर होता। </p><p>घुमाव के अतिरिक्त एक और चीज थी जो मुझे खली। कथानक की शुरुआत में एक गाड़ी तेज रफ्तार से जा रही होती है। इसी गाड़ी का पीछा करके हमारे नायक इस रोमांचक अनुभव से गुजरते हैं। यह गाड़ी इतनी तेजी से क्यों जा रही थी? इसका कारण उपन्यास में आखिर तक नहीं मिलता है। अगर किसी विशेष कारण से कार की स्पीड बढ़ाई गई होती तो बेहतर रहता। क्योंकि अभी कार वाले जो करते हैं वो करने के लिए तेज गाड़ी भगाने की जरूरत नहीं थी। </p><p>इसके अतिरिक्त इक्का दुक्का वर्तनी की गलतियाँ उपन्यास में दिखी लेकिन वो इतनी अधिक नहीं थीं कि परेशानी करें। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि रोचक किरदारों को लेकर लिखा गया यह एक साधारण उपन्यास है। किरदारों के लिए उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। उनके बीच की बातचीत आपका मनोरंजन करने में सफल होती है। खंड्या मुझे विशेष तौर पर पसंद आया। </p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><p></p><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-paanch-jasoos-shakuntla-verma.html" target="_blank">शकुंतला वर्मा के उपन्यास 'पाँच जासूस' पर् टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-golden-five-ke-karnamein.html" target="_blank">नेहा अरोड़ा के उपन्यास 'गोल्डन फाइव के कारनामें' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/09/book-review-mitti-mere-desh-ki-sanjeev-jaiswal-sanjay.html" target="_blank">संजीव जायसवाल 'संजय' के उपन्यास 'मिट्टी मेरे देश की' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/09/book-review-bori-ka-pul-surekha-panandikar.html" target="_blank">सुरेखा पाणंदीकर के उपन्यास 'बोरी का पुल' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/08/book-review-fatikchand-hindi-satyajit-ray.html" target="_blank">सत्यजित राय के उपन्यास 'फटिकचंद' पर टिप्पणी </a></li></ul><p></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-26198062015579894482023-12-16T19:52:00.003+05:302023-12-16T19:59:48.896+05:301411 | फेनिल कॉमिक्स | फेनिल शरेडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा | बजरंगी <p><span style="font-size: medium;"><b>संस्करण विवरण:</b></span></p><p><b>फॉर्मैट:</b> पेपरबैक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 40 | <b>प्रकाशक:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/fenil comics" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> | <b>शृंखला:</b> बजरंगी #1 </p><p><span style="font-size: medium;"><b>टीम</b></span></p><p><b>लेखक:</b> वीरेंद्र कुशवाहा, फेनिल शेरडीवाला | <b>चित्रांकन: </b>आनंद जाधव | <b>रंग सज्जा:</b> हरेन्द्र सिंह सैनी | <b>शब्दांकन:</b> दयाक सिंधी | <b>मुख्य पृष्ठ:</b> आनंद जाधव, योगेश पुगाँवकर | <b>संपादन:</b> फेनिल शेरडीवाला</p><p><b>कॉमिक बुक लिंक:</b> <a href="https://www.fenilcomics.com/1411" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स</a> | <a href="https://www.fenilcomics.com/bajararngi-3-in-1-combo-standard-size-edition" rel="nofollow" target="_blank">फेनिल कॉमिक्स: सस्ता संस्करण </a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju98UrsmHkIRzh-CAH6zqywq4hz4EXfhbV_fiChhkDrj4KiHWNBmfaNV0rojx415Z-bpw0HADtSx8YDCBuDC1CdOAI1G2LCSbrHN7Z6t1QHXLGI3HUcQjfOehtCr10I3WUTAS0SwWsDJ-2qm4ivIoEIhy6lpm8FJETBV_V7vfn6ijYt8mFo28DDq-iQ8o/s300/1411.jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="1411 | फेनिल कॉमिक्स | फेनिल शरेडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा | बजरंगी" border="0" data-original-height="300" data-original-width="199" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju98UrsmHkIRzh-CAH6zqywq4hz4EXfhbV_fiChhkDrj4KiHWNBmfaNV0rojx415Z-bpw0HADtSx8YDCBuDC1CdOAI1G2LCSbrHN7Z6t1QHXLGI3HUcQjfOehtCr10I3WUTAS0SwWsDJ-2qm4ivIoEIhy6lpm8FJETBV_V7vfn6ijYt8mFo28DDq-iQ8o/s16000/1411.jpeg" title="1411 | फेनिल कॉमिक्स | फेनिल शरेडीवाला और वीरेंद्र कुशवाहा | बजरंगी" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>देवीपुर जिंदारी यौद्धाओं द्वारा बसाया गया गाँव था जहाँ जंगल के बीचों बीचों रहते जिंदारी यौद्धाओं के वंशज अपना जीवन बिता रहे थे।</p><p>पर इन दिनों देवीपुर के गाँववासी परेशान था। जंगल में वन दस्युओं का आतंक बढ़ता जा रहा था और फॉरेस्ट गार्ड तक उन्हें रोकने में असफल थी। वो बाघों का शिकार कर उनकी खाल बेचने का कार्य धड़ल्ले से कर रहे थे। </p><p>वहीं देवीपुर के सरपंच भीमा का बेटा वज्र विदेश से लौटकर अपने गाँव वापस आ चुका था।</p><p>वज्र को जब गाँव की स्थिति पता चली तो वो विकल हो गया।</p><p>लेकिन वो कहाँ जानता था कि कोई था जो उसके खिलाफ भी साजिश कर रहा था।</p><p>ऐसे कोई जो उसकी जान लेना चाहता था।</p><p>आखिर वज्र की जान कौन लेना चाहता था?</p><p>क्या देवीपुर के वासी अपनी परेशानियों से निजाद पा पाए?</p><p><br /></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार </h4><p>फेनिल कॉमिक्स की <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/जासूस बलराम" rel="nofollow" target="_blank">जासूस बलराम</a> के कॉमिक पढ़ने के बाद उनके द्वारा प्रकाशित कोई भी कॉमिक बुक पढ़ने का मौका नहीं लग पाया था। इस बार दीवाली के वक्त कोई कॉमिक खरीदने का मन किया तो फेनिल कॉमिक्स का ख्याल आया और उनके द्वारा प्रकाशित <a href="https://www.fenilcomics.com/bajararngi-3-in-1-combo-standard-size-edition" rel="nofollow" target="_blank">बजरंगी</a> और <a href="https://www.fenilcomics.com/faulaad-3-in-1-sasta-sanskaran-combo" rel="nofollow" target="_blank">फौलाद शृंखला</a> के सस्ते संस्करण मैंने मँगवा लिए। </p><p> <b>1411</b> बजरंगी शृंखला का पहला कॉमिक बुक है। भारतीय कॉमिक बुक्स की बात की जाए तो कई प्रकाशनों ने ऐसे किरदार बनाए हैं जिनका घर जंगल होता है और उनका मुख्य काम प्रकृति का दोहन करने वाले मनुष्यों के होश ठिकाने लगाना होता है। ऐसे किरदारों का एक तय फॉर्मैट होता है जिस पर कहानियाँ लिखी जाती है। नायक जंगल का रक्षक रहता है और वहाँ रहे वन्य जीवों और वन वासियों को शोषकों से निजात दिलाता है। बजरंगी भी इसी फॉर्मैट पर लिखा गया है। कॉमिक बुक के केंद्र में देवीपुर नाम का गाँव है। शृंखला का पहला कॉमिक बुक देवीपुर के इतिहास, वहाँ की संस्कृति और वहाँ के हाल से पाठक का परिचय करवाता है। बजरंगी कौन है और क्यों को देवीपुर के निवासियों के आदरणीय है। बजरंगी को लेकर एक बार फिर चर्चा क्यों चल पड़ी है और गाँव में हाल फिलहाल में क्या क्या हुआ है ये कॉमिक बुक से पता लगता है। </p><p>कॉमिक बुक की शुरुआत बजरंगी द्वारा शिकारियों द्वारा शिकार हो रहे बाघ को बचाने से होती है। बजरंगी के इस कृत्य को एक ग्रामीण युवक देख लेता है। इस पश्चात कॉमिक बुक की कहानी बैक फ्लैश में चली जाती है और पाठकों का परिचय वज्र से होता है। वज्र गाँव के मुखिया भीमा का लड़का है। वो कई वर्षों बाद गाँव लौटा है। उसके साथ गाँव में क्या होता है? वह गाँव में जाकर क्या करता है? यह सब कॉमिक बुक में पता चलता है। कॉमिक में ऐसी घटनाएँ भी होती हैं जो कि कथानक में रहस्य पैदा करती हैं। ऐसे किरदार होते हैं जिनके विषय में पढ़ते हुए आप ज्यादा जानना चाहेंगे। 44 पृष्ठ की कॉमिक बुक में कथानक ऐसा है जो कि अंत तक अपने आप को पढ़वाकर मानता है। </p><p>कॉमिक बुक की कमी की बात करूँ तो कई प्लॉट पॉइंट्स ऐसे हैं जो कि फिल्मों में कई बार प्रयोग किये गए हैं। हीरो का आना। गाँव के दबंग से उसकी सीना जोरी अक्सर एक (खूबसूरत बाला के चक्कर में ) होना। व्यक्तिगत तौर पर मुझे इन चीजों से इतना फर्क नहीं पड़ता है लेकिन ये चीजें कहानियों में ऐसे ही आम है जैसे भारत में दाल चावल। विदेश की फिल्म अवतार भी इससे नहीं बच पाई थी। तो ये तो फिर भी कॉमिक बुक है। फिर भी इनसे बचा जाता तो बेहतर ही होता। कान्फ्लिक्ट दिखाने का दूसरा तरीका हो सकता था। </p><p>इसके अतिरिक्त कॉमिक बुक में इक्का दुक्का वर्तनी और व्याकरण की गलतियाँ हैं। उदाहरण के लिए कॉमिक में वैद्य को वैध लिखा है जो कि दो बिल्कुल अलग चीजें होती हैं। इसके अतिरिक्त एक डायलॉग है 'वो आपके ही गाँव के लोग थे जिसने शिकारियों को बाघ की खाल बेची है।' जो कि 'वो आपके ही गाँव के लोग थे जिन्होंने शिकारियों को बाघ की खाल बेची है।' होना चाहिए था। इसके अतिरिक्त भी एक दो गलतियाँ और थीं। </p><p>कॉमिक बुक का शीर्षक 1411 है जो कि भारत में बची हुई बाघों की संख्या है। शीर्षक कॉमिक बुक के एक किरदार के संवाद से आता है। चूँकि कॉमिक बुक में बाघों का शिकार एक महत्वपूर्ण बिंदु है तो औचित्यपूर्ण कहा जा सकता है। </p><p>कॉमिक बुक की आर्ट की बात करूँ तो यह काम चलाऊ ही कही जाएगी। व्यक्तिगत तौर पर्स मुझे आर्ट से इतना फर्क नहीं पड़ता लेकिन फिर भी मैं कहूँगा कि कॉमिक बुक क्योंकि दृशयात्मक माध्यम है तो आर्ट का औसत से बेहतर होना जरूरी हो जाता है। प्रस्तुत कॉमिक बुक में सुधार की काफी संभावनाएँ हैं। किरदारों के चेहरे में पृष्ठ बदलने के साथ बदलाव होता दिखता है जो कि नहीं होना चाहिए था और भावों का चित्रण भी और बेहतर हो सकता था। </p><p>अंत में यही कहूँगा कि कॉमिक बुक अपनी कमियों के बावजूद पढ़े जाने लायक है। कथानक आपको बाँधकर रखता है। साथ ही कॉमिक बुक आगे के भागों के लिए भी उत्सुकता जगाता है। अगर नहीं पढ़ा तो पढ़कर देख सकते हैं। </p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6624276145362245599.post-43745078741496692632023-12-11T22:58:00.005+05:302023-12-12T06:46:15.294+05:30ट्रैप - संतोष पाठक | थ्रिल वर्ल्ड<p><b>संस्करण विवरणल्:</b></p><p><b>फॉर्मैट:</b> ई-बुक | <b>पृष्ठ संख्या:</b> 244 | <b>प्रकाशक:</b> <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/थ्रिलवर्ल्ड" rel="nofollow" target="_blank">थ्रिल वर्ल्ड </a></p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/48aGF5S" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsnhBkMaE1R3kxGr0chZQC-QmI4blpUBLV87a8lZcutd2Zrg95Xq7u-P5pL4ENjoBmNQ8weRY-Cou_bUgNSLBihhnsA8k6YQ3Zw3Tau466W94zUzc6OYGQx0zbIsPsqtMOKR3jw8YPv67Jrqmr4Y2nedTAIo2De-gTyijO5Q6mnQhytJC7YAJZ0EJ8TRM/s445/51jluUKlfbL._SY445_SX342_.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="445" data-original-width="279" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsnhBkMaE1R3kxGr0chZQC-QmI4blpUBLV87a8lZcutd2Zrg95Xq7u-P5pL4ENjoBmNQ8weRY-Cou_bUgNSLBihhnsA8k6YQ3Zw3Tau466W94zUzc6OYGQx0zbIsPsqtMOKR3jw8YPv67Jrqmr4Y2nedTAIo2De-gTyijO5Q6mnQhytJC7YAJZ0EJ8TRM/s320/51jluUKlfbL._SY445_SX342_.jpg" width="201" /></a></div><br /><h4 style="text-align: left;">कहानी </h4><p>शशांक को अगर मालूम होता कि उसकी पल भर की दिलेरी उसकी जिंदगी में ऐसा तूफान लाएगी तो वह दिलेरी न दिखाता।</p><p>पर शशांक ये नहीं जानता था और अब पुलिस उसके पीछे पड़ी थी।</p><p>किसी ने उसकी हालत का फायदा उठाकर एक ऐसा जाल उसके इर्द गिर्द बुना था कि वह किसी मक्खी की तरह उसमें फँसता जा रहा था।</p><p>ये अब वक्त की बात थी कि जब कानून रूपी मकड़ी उसे अपना शिकार बना लेती। शशांक जितना इस जाल से निकलने के लिए छटपटाता उतना ही गहरा इसमें धँसता चला जाता।</p><p>आखिर शशांक अपनी किस दिलेरी की सजा भुगत रहा था?</p><p>आखिर किसने उसके लिए यह ट्रैप बनाया था?</p><p>पुलिस शशांक के पीछे क्यों पड़ी थी?</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">किरदार </h4><div style="text-align: left;">शशांक यादव - एक युवक<br />धर्मराज चौहान - बलुआ चौकी का इंचार्ज</div><div style="text-align: left;">बबलू राय - शशांक का दोस्त </div><div style="text-align: left;">शोभिता मेहता - एक स्त्री जिससे पहली बार शशांक की दोस्ती हुई थी</div><div style="text-align: left;">विनीता चौहान - धर्मराज की कॉलोनी में रहने वाली एक युवती<br />दीपक दयाल - एस सो (स्टेशन ऑफिसर) <br />अविनाश सिंह - सी ओ (सर्कल ऑफिसर)</div><div style="text-align: left;">मुकुल भारद्वाज - सब इन्स्पेक्टर </div><div style="text-align: left;">नैना चंद्रा - अंजना और शशांक की दोस्त<br />अवधेश चंद्रा - नैना का पति</div><div style="text-align: left;">अंजना दत्ता - एक युवती जो कि शशांक की दोस्त थी<br />रूपम मंडल - अंजना का पति</div><div style="text-align: left;">मयंक मंडल - एक वकील और अंजना और उसके पति का दोस्त<br />वीर प्रताप सिंह - एम पी<br />विकास गुप्ता - एम एल ए<br />अमित दीवान - फास्ट ट्रैक इन्वेटिगेशन कम्पनी का मालिक<br />शीतल - अंजना की नौकरानी</div><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">मेरे विचार</h4><p><b>ट्रैप </b>लेखक <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/santosh-pathak.html" target="_blank">संतोष पाठक (Santosh Pathak)</a> द्वारा लिखी एक <a href="https://www.ekbookjournal.com/search/label/mystery" rel="nofollow" target="_blank">रहस्य कथा </a>है।<b> </b>उपन्यास मार्च 2020 में किंडल पर प्रथम बार प्रकाशित हुआ था।<b> </b> </p><p>उपन्यास का कथानक एक जुलाई 2019 से तेरह जुलाई 2019 के बीच में घटित होता है। इन तेरह दिनों में शशांक यादव, जो कि उपन्यास का मुख्य किरदार है, की जिंदगी एक रोलर कोस्टर राइड की तरह ऐसे ऊँचे नीचे और टेढ़े मेढे पड़ावों से होकर गुजरती है कि पाठक उपन्यास से चिपक सा जाता है और उपन्यास खत्म करके ही दम लेता है।</p><p>उपन्यास की शुरुआत शशांक यादव के बदले लेने के लिए एक कॉलोनी में दाखिल होने से होती है। वह बदला किस से और क्यों ले रहा है इसका पता पाठक को तब पता चलता है जब शशांक के तोते बदला लेने वाले के घर पहुँच कर उड़ जाते हैं। इसके बाद शुरू होता है भागने का सिलसिला। शशांक को पता है किसी ने उसके लिए एक फंदा तैयार किया है लेकिन वो इससे जितनी दूर जाना चाहता है उतना ही ये फंदा उस पर कसता चला जाता है। ये कैसे होता है? फंदा डालने वाला कौन होता है? शशांक खुद को बचाने के लिए जो काम करता है और जिस तरह और जिन लोगों की सहायता से आखिरकार इस जंजाल से निकलता है यही इस उपन्यास का कथानक बनता है। </p><p>उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो इसका मुख्य पात्र शशांक यादव है जो कि एक ऐसा व्यक्ति है जो कि आया तो काम की तलाश में वाराणसी था लेकिन परिस्थितियों के चलते वो एक पुरुष वैश्या बन गया है। हाँ, वो जो काम पैसा कमाने के लिए करता है उसका कथानक में बस उतना ही प्रयोग किया गया है जितना जरूरी है। वह अक्खड़ दिमाग किरदार है जिसके अंदर ताकत तो है तो दिमाग की थोड़ी कमी दिखती है। अच्छी बात है ये है कि उसे ये बात पता है और इस चीज का जिक्र वह करता भी है। </p><p>उपन्यास में कई ऐसे किरदार भी है जो कि पुलिस में हैं। पुलिस की एक तरह की छवि एक आम नागरिक के जहन में बनी हुई है। यह छवि कोई अच्छी नहीं है और ऐसे पुलिस वालों, जिनसे ये धूमिल छवि बनी है, को भी हम इस उपन्यास में देखते हैं। पुलिस कई बार कैसे हद से ज्यादा पाशविक हो सकती है यह भी इधर दिखता है। पुलिस और राजनीति का गठजोड़ मिलकर कैसे अपराध को छुपाता है यह भी इधर दिखता है। लेकिन बुरे पुलिस वालों के साथ साथ कुछ ऐसे पुलिस वाले भी हैं जो कि सही हैं लेकिन वो भी जिस तरह के हथकंडे कई बार प्रयोग करते दिखते हैं उससे ये ही लगता है कि जैसे गुंडई के बिना काम पुलिस में नहीं चलता है।</p><p>उपन्यास में अंजना दत्ता का भी महत्वपूर्ण किरदार है। वह शशांक की दोस्त है। अक्सर हिंदी फिल्में हों या उपन्यास उनमें अगर महिला और पुरुष किरदार हैं तो उनके बीच में कभी न कभी रोमांटिक क्षण आता ही है। स्त्री पुरुष दोस्ती जब दिखती भी है तो उसमें भी यह दोस्ती का भाव अक्सर एक ही व्यक्ति के तरफ से होता है और दूसरा वाला केवल प्यार ही करता है। खालिस दोस्ती कम ही देखने को मिलती हैं। ऐसे में अंजना और शशांक के बीच का यह खालिस दोस्ती वाला समीकरण ताज़ा महसूस होता है। यह दोनों गहरे दोस्त हैं। हाँ, इनकी यह दोस्ती इतनी गहरी कैसे हो गई इस पर इतना प्रकाश नहीं डाला गया है। इनकी इतनी गहरी दोस्ती का होना अटपटा इसलिए भी लगता है क्योंकि शशांक के पेशे से अंजना वाकिफ है। इसके साथ साथ सामाजिक और शैक्षिक रूप से भी उनके बीच में काफी अंतर है। ऐसे में लेखक अगर इस दोस्ती के होने की कारणों पर प्रकाश डालते तो अच्छा होता। बहरहाल अंजना एक मजबूत विचारों वाली स्त्री है जिसे पता है कि उसके लिए सही क्या है और क्या नहीं है। वह अपने निर्णयों पर कायम रहना भी जानती है। और शशांक की मदद ऐसे ऐसे तरीकों से करती है जैसे आज के जमाने में लँगोटिया यार भी न करें। ये भी एक कारण था कि मैं जानना चाहता था कि इनके बीच में ये प्रगाढ़ दोस्ती कैसी हुई। साथ ही अंजना को मैं आगे किसी और उपन्यास में भी अवश्य देखना चाहूँगा। </p><p>उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं। इनमें अंजना का दोस्त मयंक मंडल और फास्ट ट्रैक इंवेस्टिगेशन के मालिक दीवान साहब महत्वपूर्ण है। मयंक चूँकि अंजना पर दिल रखता है और अंजना को ये पता है तो अंजना को उसे अपनी उँगली पर नचाना आता है। यह काम् वह करती भी है। वहीं दीवान एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाता है। हिंदी साहित्य में अक्सर जो प्राइवेट डिटेक्टिव दिखते हैं वह वन मैन शो ही रहते हैं लेकिन दीवान की अपनी एक पूरी संस्था है जो कि तकनीक और मातहतों की मदद से काफी कुछ करने के काबिल दिखता है। </p><p>उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो कथानक तेज रफ्तार है और इस तरह से चीजें इसमें घटित होती है कि आप एक ही बैठक में इसे पढ़ जाते हैं। कहानी में ट्विस्ट्स आते रहते हैं जिससे कथानक आपके ऊपर पकड़ बनाए रखता है। साजिश के पीछे कौन है इसके लिए भी लेखक कई संदिग्ध खड़े करते हैं। वह इस तरह से कथानक को आगे बढ़ाते हैं कि पाठक आखिर तक ये पता नहीं लगा पाता है कि ये सब जो कर रहा है वो कौन है? जब कौन का पता नहीं लगता है तो क्यूँ का पता लगना तो मुश्किल ही रहेगा। </p><p>अकसर हिंदी उपन्यासों में जब वाराणसी की बात आती है तो लेखकों ने इधर या तो प्रेम आख्यान घटित होते दिखाए हैं या फिर यहां आध्यात्म से जुड़े कथानक ही दर्शाए हैं। ऐसे में जय बाबा फेलुनाथ के बाद एक अपराध कथा को इस शहर में सेट किया हुआ देखना रोचक रहता है।</p><p>उपन्यास की कमियों के बारे में बात करूँ तो इतनी बड़ी कमी कोई मुझे इसमें नहीं दिखी। एक चीज जो मुझे खटकी वो ये थी कि उपन्यास में जब शशांक पुलिस के हत्थे चढ़ता है तो पुलिस को लगता है कि वो तीन लोगों को गोली मार कर आया है। अक्सर देखा जाता है कि हत्यारे ने गोली चलाई है या नहीं इसके लिए भी एक टेस्ट होता है। पर ऐसा टेस्ट कोई शशांक पर करता नहीं दिखता है। इसके अतिरिक्त एक जगह एक किरदार एक बार फोन पर कुछ फुसफ़साते हुए दिखाया जाता है। इतना तो मुझे पता था कि ये शक पैदा करने के लिए दर्शाया गया था। पर अंत तक दिमाग से ये बात नहीं गई कि वो किरदार फुसफुसाकर किससे बात कर रहा था। अगर आखिर में ये जाहिर कर देते तो बेहतर रहता। </p><p>उपन्यास में एक प्रसंग है जब अंजना शशांक को छोड़कर आ रही होती है और पुलिस उसकी गाड़ी रोक देती है। वहाँ जो अफसर उसे रोकता है उसका नाम कभी भरत बताया और कभी मुकुल। ये सम्पादन में ठीक कर दें तो बेहतर रहेगा। </p><p>अक्सर संतोष पाठक आम बोल चाल की भाषा का प्रयोग करते हैं जिसमें हिंदी में उर्दू अंग्रेजी की छौंक लगा होता है। इस उपन्यास में उन्होंने बीच बीच में भोजपुरी का भी प्रयोग किया है जो कि कथानक को उधर का फ्लेवर देता है। ये चीज मुझे अच्छी लगी।</p><p>अंत में यही कहूँगा कि एक अगर आप एक अच्छी रहस्यकथा पढ़ना चाहते हैं तो ट्रैप पढ़कर देख सकते हैं। लेखक रहस्य को अंत तक बरकरार रखने में और इस कारण मेरी नज़रों में एक मनोरंजक अपराधकथा पाठकों को मुहैया करवाने में पूरी तरह से सफल होते हैं। अगर रहस्यकथाओं के शौकीन है तो मुझे लगता है कि आप इससे निराश नहीं होंगे। </p><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/48aGF5S" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न </a></p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">यह भी पढ़ें </h4><div><ul style="text-align: left;"><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/11/book-review-soorma-anil-mohan.html" target="_blank">अनिल मोहन के उपन्यास 'सूरमा' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2023/02/book-review-dhadkanein-janpriya-lekhak-om-prakash-sharma.html" target="_blank">जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास 'धड़कनें 'पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/12/review-of-devta-ka-haar-by-ved-prakash-kamboj.html" target="_blank">वेद प्रकाश कांबोज के उपन्यास 'देवता का हार' पर टिप्पणी </a></li><li><a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/05/book-review-darpok-apradhi-surender-mohan-pathak.html" target="_blank">सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास 'डरपोक अपराधी' पर 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